टाटा-मिस्त्री विवाद: कोर्ट ने सुनाया टाटा के हक में फैसला, रतन टाटा ने कहा- फैसला टाटा ग्रुप के मूल्यों को सही साबित करता है
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा संस लिमिटेड और शापूरजी पलोनजी ग्रुप के सायरस मिस्त्री के मामले पर आज अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने NCLAT के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि मिस्त्री को टाटा संस को चेयरमैन पद से हटाना कानूनी तौर पर सही।
कोर्ट ने यह भी कहा कि शेयरों का मामला टाटा और SP ग्रुप दोनों मिलकर निपटाएं। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया, जिसमें जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम भी शामिल रहे।
रतन टाटा ने किया फैसले का स्वागत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने फैसले का स्वागत करते हुए कोर्ट का धन्यवाद किया और कहा कि यह कोई जीत या हार का मामला नहीं। पोस्ट में उन्होंने लिखा यह मेरी ईमानदारी और ग्रुप के नैतिक आचरण पर लगातार हमलों के बाद, कोर्ट द्वारा टाटा संस की सभी अपीलों को बरकरार रखने का निर्णय उन मूल्यों और नैतिकता का सत्यापन है, जो हमेशा ग्रुप के मार्गदर्शक सिद्धांत रहे हैं। यह हमारी न्यायपालिका द्वारा प्रदर्शित निष्पक्षता और न्याय को दर्शाता है।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा था फैसला
कोर्ट ने 17 दिसंबर को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा था। दरअसल, टाटा संस ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के 18 दिसंबर, 2019 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें टाटा संस लिमिटेड के चेयरमैन के रूप में सायरस मिस्त्री की बहाली का आदेश दिया था। इस पर 10 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। मिस्त्री टाटा सन्स के सबसे युवा चेयरमैन थे। मिस्त्री परिवार की टाटा सन्स में 18.4% की हिस्सेदारी है। वो टाटा ट्रस्ट के बाद टाटा संस में दूसरे बड़े शेयर होल्डर्स भी हैं।
NCLAT ने अपने दिसंबर 2019 के फैसले में कहा था कि 24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस की बोर्ड बैठक में चेयरपर्सन के पद से साइयस मिस्त्री को हटाना गैर-कानूनी था। साथ ही यह भी निर्देश दिया था कि रतन टाटा को पहले से कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए, जिसमें टाटा संस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के बहुमत के फैसले या AGM में बहुमत की आवश्यकता होती है।
मिस्त्री को 4 साल में ही चेयरमैन पद से हटाया गया
सायरस मिस्त्री ने दिसंबर 2012 में टाटा संस के प्रेसिडेंट का संभाला था और 24 अक्टूबर 2016 को कंपनी के बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स के बहुमत से पद से हटा दिया गया। इसके बाद 6 फरवरी 2017 को बुलाई गई एक बोर्ड बैठक (EGM) में शेयरहोल्डर्स ने मिस्त्री को टाटा संस के बोर्ड से हटाने के लिए वोट किया। तब एन चंद्रशेखरन ने टाटा संस के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला।
मामले को लेकर दो शापूरजी पल्लोनजी कंपनियों ने मिस्त्री को हटाने और अल्पसंख्यक शेयरधारकों के उत्पीड़न और कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल का रुख किया। ये दोनों कंपनियां टाटा संस में शेयरहोल्डर्स हैं। हालांकि जुलाई 2018 में NCLT ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसके खिलाफ पल्लोनजी कंपनियों ने अपील दायर की थी।
अपील में शापूरजी पलोनजी कंपनियों ने कहा कि NCLAT मिस्त्री को कुछ महत्वपूर्ण राहत देने में विफल रहा। इसलिए मिस्त्री कंपनियों को टाटा संस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर द्वारा गठित सभी समितियों में प्रतिनिधित्व का हकदार होना चाहिए।