लंदन के कोर्ट में अनिल अंबानी का बयान:‘गहने बेचकर चुकाई वकीलों की फीस, मेरे पास कोई रॉल्स रॉयस नहीं, सिर्फ एक कार है; परिवार और पत्नी ही मेरा खर्च उठा रही’

रिलायंस कम्युनिकेशन के लिए कॉरपोरेट लोन लेने का मामला, चीन के तीन सरकारी बैंकों को चुकाने हैं 5281 करोड़ रुपए. कोर्ट के आदेश पर दुनियाभर की संपत्तियों की जानकारी दी

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लंदन। कर्ज के बोझ तले दबे रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी ने शुक्रवार को लंदन कोर्ट में कहा कि वह सादा जीवन जीते हैं। केवल एक कार में चलते हैं और गहने बेचकर वकीलों की फीस चुका रहे हैं। चीन के तीन सरकारी बैंकों से लोन लेने के मामले में अनिल अंबानी पहली बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लंदन की हाईकोर्ट में पेश हुए थे।

9.9 करोड़ रुपए के गहने बेचे

अनिल अंबानी ने कहा कि जनवरी से जून 2020 के बीच गहने बेचकर उन्होंने 9.9 करोड़ रुपए जुटाए हैं। अब उनके पास अपना कुछ भी नहीं है। कारों के काफिले के सवाल पर अनिल अंबानी ने कहा कि यह मीडिया की आधारहीन खबरें हैं। उनके पास कभी भी रॉल्स रॉयस कार नहीं रही है। मौजूदा समय में वे केवल एक कार का इस्तेमाल करते हैं। अनिल अंबानी ने कहा कि अब परिवार ही उनका खर्च उठाता है।

कोर्ट ने मां और बेटे से लिए लोन पर उठाए सवाल

शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने लग्जरी दुकानों पर क्रेडिट कार्ड से खर्च पर सवाल उठाया। इस पर अनिल अंबानी ने कहा कि इस क्रेडिट कार्ड पर उनकी मां कोकिलाबेन अंबानी खर्च करती हैं। मां से 66 मिलियन डॉलर और बेटे से 41 मिलियन डॉलर के लोन के सवाल पर अनिल अंबानी ने कहा कि वे इस लोन की शर्तों की जानकारी नहीं दे सकते हैं। लेकिन, यह लोन गिफ्ट नहीं हैं। अंबानी ने कोर्ट में कहा कि वे कभी भारत के सबसे धनी लोगों में शुमार होते थे, लेकिन अब उनके पास 1,10,000 डॉलर की केवल एक पेंटिंग है।

सादा जीवन जीते हैं अनिल अंबानी

एक प्रवक्ता ने कहा कि अनिल अंबानी बहुत ही साधारण व्यक्ति हैं और सादा जीवन जीते हैं। उनकी जीवन शैली भव्य नहीं है। बयान में कहा गया है कि अनिल अंबानी जन्म से ही शाकाहारी हैं और किसी भी प्रकार का नशा नहीं करते हैं। अनिल अंबानी नॉन-स्मोकर हैं जो शहर से बाहर जाने के बजाए बच्चों के साथ बैठकर घर में फिल्म देखना पसंद करते हैं।

क्या है मामला

अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन (आरकॉम) ने चीन के तीन सरकारी बैंकों से कॉरपोरेट लोन लिया था। लेकिन, आरकॉम इस लोन का भुगतान करने में विफल हो गई थी। चीनी बैंकों का कहना था कि इस लोन के लिए अनिल अंबानी ने पर्सनल गारंटी दी थी। अनिल अंबानी से भुगतान पाने के लिए चीनी बैंकों ने लंदन की हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया था।

हाईकोर्ट ने 22 मई को 5281 करोड़ चुकाने का आदेश दिया था

इस मामले में लंदन की हाईकोर्ट ने 22 मई 2020 को अनिल अंबानी को आदेश दिया था कि वो चीनी बैंकों को 71 करोड़ डॉलर करीब 5281 करोड़ रुपए का भुगतान करें। साथ ही कानूनी लागत के तौर पर 7.5 लाख पाउंड करीब 7 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाए। यह भुगतान 12 जून 2020 तक किया जाना था। लेकिन यह भुगतान नहीं किया गया। 15 जून को चीनी बैंकों ने अनिल अंबानी की संपत्तियों का खुलासा करने की मांग को लेकर याचिका दाखिल की।

29 जून को संपत्तियों की घोषणा करने का आदेश दिया था

चीनी बैंकों की याचिका पर कोर्ट ने 29 जून को अनिल अंबानी को अपनी दुनियाभर में फैली संपत्तियों की घोषणा करने का आदेश दिया था। अनिल अंबानी से उन सभी संपत्तियों की जानकारी देने को कहा गया था जिनमें उनकी पूरी या संयुक्त हिस्सेदारी है। कोर्ट ने उन सभी संपत्तियों की जानकारी मांगी थी, जिनकी वैल्यू 1 लाख डॉलर से ज्यादा है।

इन चीनी बैंकों से लिया था लोन

  • इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना (आईसीबीसी) की मुंबई शाखा
  • चाइना डवलपमेंट बैंक
  • एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना

ये संयोग है कि जब कोई कंपनी बुरी तरह और तेज़ी से डूबती है तो उसे ‘नोज़डाइव’ की उपमा दी जाती है. मतलब किसी जहाज़ के नाक के बल क्रैश करने की.

तो, अनिल की कंपनी या कहें कंपनियों के समूह के नोज़डाइव की शुरुआत हुई, दोनों भाइयों के बीच हुए बंटवारे से काफ़ी पहले. उस किसी भी पल, जब धीरूभाई अंबानी के मन में, अपने दोनों लड़कों के बीच के प्रेम को देखकर, कोई भी विल या वसीयत नहीं बनाने का ख़्याल आया होगा. लेकिन 2002 में धीरूभाई की मृत्यु हो गई. तीन साल भी नहीं हुए कि दबे छुपे चल रही दो भाइयों के बीच की रार, सबके सामने आने लगी. दो भाई- बड़ा वाला मुकेश और छोटा वाला अनिल. बीच में आईं इन दोनों की मां कोकिलाबेन और हो गया दोनों भाईयों के बीच बंटवारा. मुकेश के पोर्टफ़ोलियो में सबसे बड़ा हिस्सा पेट्रोलियम का था. अनिल को जो कंपनियां मिलीं उनमें सबसे बड़ा नाम रिलायंस कम्यूनिकेशन का ही था.

कहा जाता है कि आर कॉम (रिलायंस कम्यूनिकेशन) भी मुकेश अंबानी का ड्रीम थी. और उसकी तामीर भी उन्होंने ही की थी. लेकिन इस बंटवारे के दौरान जो करार हुआ था, उसके अनुसार मुकेश अंबानी अगले 10 साल तक कोई टेलीकॉम कंपनी नहीं खोल सकते थे. तो अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि रिलायंस जियो का सॉफ्ट लॉन्च, 2015 में और पब्लिक लॉन्च, 2016 में क्यों हुआ था.

सर्व-अंबानी- अनिल, मुकेश और धीरूभाई

इसके अलावा अनिल के पोर्टफ़ोलियो में थीं, रिलायंस एनर्जी और रिलायंस कैपिटल जैसी कुछ और बड़ी कंपनियां. कुल मिलाकर दोनों भाइयों की संपत्तियां लगभग बराबर थीं. यूं मुकेश अंबानी दुनिया के पांचवे और अनिल दुनिया के छठे सबसे अमीर इंसान हो गए.

जहां मुकेश वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाते हुए अपने वाले हिस्से को कंसोलिडेट करते रहे, वहीं अनिल ताबड़तोड़ एक्सपैंशन में लग गए. एडलैब्स ख़रीदा, देश-विदेश में बिग सिनेमा की बहुत बड़ी चेन खोली. हॉलीवुड की बड़ी कंपनी ‘ड्रीमवर्क्स’ से करोड़ों का करार किया. बंटवारे के ठीक एक साल बाद, 2006 में, एक समय ऐसा भी आया था जब अनिल की संपत्ति, मुकेश से ज़्यादा थी. तब अनिल भारत के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए थे. इसके बाद राज्यसभा के सदस्य भी बने. हालांकि बाद में फ़ैक्स के माध्यम से इस्तीफ़ा दे दिया. मुंबई में ही स्थित अपने घर और ऑफ़िस के बीच की दूरी हेलीकॉप्टर से नापने वाले अनिल बंटवारे से पहले भी रिलायंस का फ़ेस थे, और लग नहीं रहा था कि कभी उन्हें वो दिन भी देखने पड़ेंगे, जिनकी बात हम आगे करेंगे. ख़ैर, ये तो उनका टेंटेटिव घर था, नया घर तो बांद्रा में बन रहा था. बड़े भाई के एंटीला की तरह ही, आलीशान.

# रिलायंस पावर-2008 में रिलायंस पावर के IPO 60 सेकेंड में पूरी तरह सब्सक्राइब हो गए थे. जो कि आज तक अपने-आप में एक रिकॉर्ड है. आसान भाषा में कहें तो 450 रुपये की चीज़ को लेने के लिए लोगों में ऐसी होड़ लगी कि 60 सेकंड में सब कुछ बिक गया. लेकिन इस IPO ने एक और रिकॉर्ड बनाया, वो ये कि जिस दिन ये IPO शेयर मार्केट में लिस्ट हुआ था, तब से लेकर आज तक, इसने अपना वो IPO वाला रेट नहीं छुआ. आसान भाषा में कहें तो जिन्होंने भी ये IPO लिया था, उनमें से किसी को भी फ़ायदा नहीं हुआ, फिर चाहे वो लॉन्ग टर्म इंवेस्टर हो या शॉर्ट टर्म. बल्कि जो जितने समय तक रिलायंस पावर के शेयर्स होल्ड किए हुए था, उसे उतना ही ज़्यादा नुक़सान हुआ. 450 रुपये का ये IPO आज शेयर के रूप में 3 -3.50 रुपये पर ट्रेड कर रहा है. IPO शेयर का आसान गणित समझने के लिए ये पढ़ें.

रिलायंस पावर (स्क्रीनग्रैब: गूगल फ़ाइनेंस)

# रिलायंस मीडियावर्क्स-2015 में बिग सिनेमाज़, कार्निवल सिनेमा को बेच दिया गया. बिग टीवी बिककर ‘इंडिपेंडेट टीवी’ हुआ और फिर बंद हो गया. बिग एफ़एम, जागरण के पास चला गया. इसके बाद पहले तो इन सबकी पेरेंट कंपनी ‘रिलायंस मीडियावर्क्स’ शेयर मार्केट से डीलिस्ट हुई फिर एक दूसरी कंपनी ‘प्राइम फ़ोकस’ से मर्ज़ हो गई.  डीलिस्ट मतलब, फिर इसके शेयर्स, मार्केट में ट्रेड होना बंद हो गए, या यूं कहें कि पब्लिक लिमिटेड से प्राइवेट लिमिटेड हो गई.

बिग सिनेमाज़, जो अब कार्निवल है.

# रिलायंस इंफ़्रास्ट्रक्चर- रिलायंस इंफ़्रा की सहायक कंपनी दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस के बुरे हाल हुए तो 2013 के बाद से एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो लाइन को DMRC हैंडल करने लगी. वर्सोव-बांद्रा सी लिंक जैसे प्रोजेक्ट, जैसा कि विशेषज्ञ बताते हैं, सिर्फ़ शो ऑफ़ करने के लिए नुक़सान में पूरा करने को तैयार हो गया रिलायंस इंफ़्रा. इससे पहले 5,000 करोड़ के वर्ली-हाजी सी लिंक से भी रिलायंस इंफ़्रा अलग हो गई थी. इसी के चलते MSRDC (महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) को कहना पड़ा कि अगर रिलायंस इंफ़्रा, इस प्रोजेक्ट (को भी) पूरा नहीं करती, तो कठोर कारवाई की जाएगी.

रिलायंस इंफ़्रा के शेयर अपने पीक समय में आज से 100 गुना भाव के थे. (स्क्रीनग्रैब: गूगल फ़ाइनेंस)

# रिलायंस कम्यूनिकेशन- आर कॉम की मुश्किलें तब से शुरू हो गईं थीं जब 2G घोटाले में इसका नाम आया. उसके बाद आर कॉम का CDMA तकनीक पर आधारित होना इसे ले डूबा. जो 2G, 3G तक तो ठीक थी, लेकिन 4G के लिए कॉन्पैटिबल नहीं साबित हो रही थी. हालांकि बाद में आर कॉम के GSM सिम भी आए लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. और फिर 2017 में तो एयरटेल, वोडाफ़ोन जैसी कंपनीज़ थरथराने लगी थीं, फिर आर कॉम की क्या ही बिसात थी. कारण था- जियो नाम के फ़िनॉमिना का लॉन्च होना. लेटेस्ट स्टेटस ये है कि आर कॉम को बैंक्स ने NCLT में घसीटा है. वहीं चाइना के तीन लेंडर्स (इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना, चाइना डेवलपमेंट बैंक और एग्जिम बैंक ऑफ चाइना) ने यूके की कोर्ट में आर कॉम के खिलाफ केस किया है. यूके कोर्ट में अनिल केस हार चुके हैं और अभी तक उन्होंने पैसों का भुगतान नहीं किया है, 21 दिन की मियाद ख़त्म हो चुकी है. आर कॉम के लिए चाइना के बैंक्स से ये लोन अनिल अंबानी ने अपनी पर्सनल गारंटी में लिया था. इसलिए उन्हें पर्सनली दिक्कत हो सकती है. इसलिए ही यूके कोर्ट के सामने अनिल का तर्क ये था कि उनके पास तो देने के लिए एक भी पैसा नहीं है.

जब रिलायंस कम्यूनिकेशन देश के चप्पे-चप्पे में छाया हुआ था.

और रही बात NCLT की तो NCLT केवल ‘इंसल्ट’ नहीं करती. जब किसी कंपनी को NCLT में खींचा जाता है, या ख़ुद आती है तो इसे उस कंपनी के ‘दिवालिया’ होने के पहले कदम के रूप में देखा जाता है. NCLT एक प्रक्रिया के द्वारा कंपनी के निदेशकों को निलंबित कर कंपनी को नीलाम कर देती है, जिससे आए पैसों से कर्ज़ चुकाया जाता है. इससे पहले एरिक्सन वाला केस तो याद होगा ही? अरे वो, जब अनिल, एरिक्सन के पैसे न चुकाने के चलते जेल जाते-जाते बचे थे, क्यूंकि ठीक अंतिम समय में मुकेश अंबानी ने उनका पैसा चुकाया था. बात अप्रैल 2019 की है जब एरिक्सन के भुगतान के विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अंबानी से कहा था कि तय समय पर भुगतान नहीं किया तो अवमानना की कार्रवाई होगी और जेल जाना पड़ेगा.

ये वही मुकेश थे, जिनके साथ अनिल का 2010 में KG बेसिन (RIL-RNRL) विवाद हुआ था. भारत के सबसे हाई प्रोफ़ाइल फ़ैमिली ड्रामे में से एक था RIL-RNRL विवाद. जिसने 2009-10 में मीडिया में ख़ूब जगह बनाई.

असल में मुकेश की कंपनी (RIL रिलायंस इंडिया लिमिटेड) और अनिल की कंपनी (RNRL रिलायंस नेचुरल रिसोर्स लिमिटेड) के बीच डील हुई थी. बंटवारे के वक्त. 2005 में. डील कि KG (कृष्णा गोदावरी) बेसिन से निकलने वाली गैस को अगले 17 सालों तक मुकेश $2.34 प्रति mmBtu (मेट्रिक मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट) के रेट से अनिल को बेचेंगे. मज़े की बात कि KG बेसिन से तेल निकलना तो 2008 में जाकर शुरू हुआ था लेकिन डील 2005 में ही हो गई.

कहा जाता है कि ये डील कभी भी सार्वजनिक नहीं की गई थी. तो फिर कब सार्वजनिक हुई? जब मुकेश की कंपनी बोली कि उसे तेल की क़ीमत बहुत कम मिल रही है. असल में अनिल की कंपनी (रिलायंस नैचुरल रिसोर्स लिमिटेड) के साथ ही नहीं बाक़ी ख़रीदारों के साथ भी यही एग्रीमेंट हुआ था. इसलिए मुकेश की कंपनी को केवल अनिल से नहीं बाक़ी सारे ख़रीदारों (जैसे NTPC) से भी दिक्कत थी. उसे रेट बढ़वाने थे, सरकार नहीं मानी. मुकेश ने प्रोडक्शन कम करना शुरू कर दिया. फिर PMO ने आदेश दे दिया कि मुकेश की कंपनी बाज़ार के हिसाब से अपने रेट बढ़ा सकती है. रेट तय हुआ $4.2 प्रति mmBtu. अब अनिल आए पिक्चर में और उन्होंने बताया करार हुआ है. सुप्रीम कोर्ट बोली कि जब तक कोई भी नैचुरल रिसोर्स अंतिम उपभोक्ता तक नहीं पहुंच जाता वो सरकार का है. और जो चीज़ सरकार की है उसपर दो भाई कैसे लड़ सकते हैं, या करार कर सकते हैं? यूं प्रथम दृष्टया दोनों भाइयों के विरोध में लिया गया सा दिखने वाल ये निर्णय, दरअसल अनिल के विरोध में था. क्यूंकि उनके पास अब सिर्फ़ दो विकल्प थे. या तो इस डील से निकल जाएं या $4.2 प्रति mmBtu के हिसाब से भुगतान करें.

जानकार कहते हैं कि यहां पर भी सरकार का हिसाब किताब समझ में नहीं आया, ये वही UPA सरकार थी, जो कुछ दिनों पहले दोनों भाइयों से कह रही थी कि आपस में मामला सुलझाओ. जो कुछ दिनों पहले कह रही थी कि अप्रैल 2014 तक तेल के यही दाम रहेंगे. फिर क्या जयपाल रेड्डी का पेट्रोलियम मंत्रालय से हटना, मुकेश के लिए रास्ता साफ़ करना था? क्यूंकि वो जयपाल रेड्डी ही थे, जिन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज़ पर इस बात को लेकर सात हज़ार करोड़ का जुर्माना लगा दिया था कि RIL मनमाने ढंग से, ब्लैकमेल करने के उद्देश्य से, तेल उत्पादन में जानबूझ कर कमी ला रही है.

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