Bathinda Municipal Corporation Election-चार प्रमुख दलों की आपसी फाइट में जातिगत राजनीति करने वाले नेताओं की इंट्री होगी अहम

-कांग्रेस, भाजपा, आप व अकाली दल में जातिगत समीकरण को समझने व बागियों से निपटने के लिए शुरु हुआ मंथन

बठिंडा. साल 2021 में होने वाले नगर निगम चुनावों को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। इसमें प्रमुख सियासी दल कांग्रेस, अकाली, भाजपा व आप के इलावा इस बार छोटे राजनीतिक दल जो गली मुहल्लों व समुदाय में अपनी पैठ रखते हैं वह भी चुनावी रंगत में अपनी हिस्सेदारी डालने के लिए तैयार खड़े हैं। इसमें हिंदु समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली शिव सेना व उसके विभिन्न ग्रुप, शहर के समाज सेवी संगठन, दलित सेना व लोकजनशिक्त पार्टी, जरनल समाज पार्टी ऐसे संगठन है जो चुनाव में किसी न किसी तरह से स्वयं की उपिस्थति दर्ज करवाने की तैयारी कर रहे हैं।

  • वही शहर में वाल्मीकि समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले समुदाय, ब्राहमण संगठन, उत्तराखंड समुदाय, पूर्वाचल संगठन, खत्री समाज अपना प्रभाव रखते हैं जो विभिन्न राजनीतिक दलों से टिकट की मांग समय-समय पर करते रहे हैं लेकिन अगर इस बार उन्हें 50 वार्डों में जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है तो वह अपने स्तर पर चुनावी शंखनाद करने को तैयार बैठे हैं।
  • इसमें अग्रवाल समाज के बाद अगर कोई समाज शहर में प्रभाव रखता है तो वह वाल्मीकि समाज है व इससे पहले दलित वोट राजनीतिक दलों के पक्ष व विपक्ष में उतरकर खेल को सवारता व बिगाड़ता रहा है। इस समुदाय की शहर में आबादी 60 हजार से ऊपर बताई जा रही है जबकि वोट 35 हजार के करीब है।
  • इस तरह से उक्त समुदाय शहर में 10 वार्डों में अपनी पैठ रखता है व यहां हार जीत का फैसला करने की ताकत रखता है। दलित समुदाय के चलते ही पूर्व अकाली सरकार ने बठिंडा में मेयर का पद दलित समुदाय से रजिर्व रखा था व वाल्मीकि समाज के सबसे प्रभावी व्यक्ति बलवंत राय नाथ को मेयर की कुर्सी सौंपी थी।
  • इसी बीच चुनाव से पहले किसान संगठनों की सहायता के लिए आगे आए दर्जनों समाज सेवी व नौजवानों के समूह भी नगर निगम के साथ नगर काउंसिल चुनावों में यह कहकर उतरते की तैयारी कर रहे हैं कि सरकार बहरी है और उसे जगाने का काम नौजवान करेंगा। इस तरह के समीकरण में अब राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती प्रमुख दलों के साथ विभिन्न वर्गों व गुटों में बिखरे जातिगत वोट को इकट्ठा करने व अपने पक्ष में करने को लेकर हो रही है।
कांग्रेस नेताओं को प्रमुख दलों की रणनीति पर नजर रखने की हिदायत

दूसरी तरफ गत दिनों पंजाब के प्रमुख कैबिनेट स्तर के अधिकारियों व मंत्रियों की बैठक में बठिंडा की सियासत पर भी विचार मंथन किया गया। बठिंडा विधानसभा की शहरी सीट राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल का क्षेत्र है। वही अकाली दल के सांसद व बादल परिवार की बहूं हरिसमरत कौर बादल का लोकसभा क्षेत्र है। इस स्थिति में कांग्रेस और अकाली दल के लिए बठिंडा नगर निगम के चुनाव काफी महत्वपूर्ण व प्रतिष्ठा का सवाल बने हुए है। इसमें कांग्रेस बठिंडा नगर निगम चुनावों में पूरा जोर लगाने के लिए सबसे पहले तैयारियां शुरू कर चुकी है जबकि अकाली दल के सुप्रीमों सुखबीर सिंह बादल पिछले सप्ताह ही बठिंडा का दौरा कर नगर निगम चुनावों में पूरा जोर लगाने के लिए वर्करों को हिदायत दे चुके हैं।

भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी पूरी ताकत से पहली बार चुनावी रण में उतरी

फिलहाल कांग्रेस और अकाली दल पहले भी निगम चुनावो में आमने सामने होते रहे हैं व एक दूसरे की रणनीति से दोनों दल भलीभांति परिचित है लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी पूरी ताकत से पहली बार चुनावी रण में उतरी है व दोनों का अकेले दल पर पहली बार अकाली दल व कांग्रेस से मुकाबला होगा। इस स्थिति में कांग्रेस अकाली दल के बाद भाजपा व आप की चुनावी रणनीति पर पूरी नजर रख रही है व इस बाबत उन्हें हाईकमान से भी निर्देश मिले हैं।

स्वयं को उम्मीदवार घोषित कर चुनाव प्रचार कर रहे नेताओं ने खड़ी की परेशानी

इसी बीच राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बिना टिकट आंबाटन के ही मैदान में उतरकर स्वयं को उम्मीदवार घोषित कर चुनाव प्रचार कर रहे नेताओं ने खड़ी कर रखी है। इसमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व अकाली दल के सर्वाधिक नेता है जो पार्टी की टिकट मिलने का दावा कर मैदान में कूदकर प्रचार कर रहे हैं। इसमें पार्टी हाईकमान के पास अपनी दावेदारी जताने के लिए आवेदन कर खड़े दूसरे नेताओं ने हाईकमान के पास शिकवे करना शुरू कर दिए है। कांग्रेस के दावेदार जयजीत सिंह जौहल से आशिर्वाद मिलने की बात कर रहे हैं तो अकाली दल के नेता सरु पचंद सिंगला की हामी मिलने की बात कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी में तो कई नेता ऐसे है जो सीधे अरविंद केजरीवाल से बात होने का दावा कर दूसरे दावेदारों की सिरदर्दी बढ़ा रहे हैं। इस रु झान के चलते पार्टी में ही बागी सुर उठने पर कांग्रेस व अकाली दल सार्वजनिक तौर पर स्पष्ट कर चुके हैं कि उन्होंने किसी को टिकट नहीं दिया है बल्कि स्कैनिक कमेटी इसका फैसला लेगी लेकिन राजनीति का भूत व नेता बनने की धुन में कोई भी किसी की सुनने को तैयार नहीं है।

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