बठिडा : नगर निगम चुनाव के लिए स्थानीय निकाय विभाग की तरफ से बीते सितंबर माह में जारी की गई नई वार्डबंदी को लेकर शिरोमणि अकाली दल के शहरी अध्यक्ष तथा पूर्व पार्षद एडवोकेट राजबिदर सिंह सिद्धू की ओर से बीते दिनों रिव्यू पटीशन पर मंगलवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। पंजाब एवं हरियाणा के चीफ जस्टिस रवि शंकर झा और अरुण पल्ली के बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इसकी अगली तारीख 22 दिसंबर निर्धारित कर दी है। मंगलवार को भी बहस हुई, इसमें दोनों पक्षों ने अपनी आपत्ति कोर्ट के समक्ष रखते तर्क दिए। याचिकाकर्ता इस बात पर जो दे रहे है कि नगर निगम के चुनाव या तो साल 2015 की स्थिति पर ही करवाए जाए या फिर निगम क्षेत्र की नई आबादी व संरचना के आधार पर फिर से नोटिफिकेशन जारी करे क्योंकि उन्हें एक वार्ड को दो से तीन हिस्सों में बांटने की नीति मंजूर नहीं हैै क्योंकि यह स्थिति जहां भ्रमक है वही सत्ताधारी दल अपने हितों को साधने के लिए सरकार के नियमों व केंद्र सरकार की अदिसूचना का उल्लघन कर रहे हैं। फिलहाल कोर्ट इस पूरे मामले में विस्तृत बहस अब 22 दिसंबर की सुनवाई के दौरान ही होगी। राजबिदर सिद्धू की ओर से बीते सितंबर माह में दायर की गई याचिका भी इसी के साथ अटैच कर दी गई है।
शिअद नेता व पूर्व पार्षद एडवोकेट राजबिदर सिंह सिद्धू की तरफ से बीते दिनों यह रिव्यू पिटीशन दायर की गई थी कि नई वार्डबंदी पूरी तरह से गलत है। इससे पहले सितंबर में दायर याचिका पर हाईकोर्ट की ओर से दिए गए निर्देश के बावजूद स्थानीय निकास विभाग ने उनकी कोई सुनवाई नहीं की है। उनके एतराज भी नहीं सुनेंगे। जबकि वार्डबंदी में अनेक खामियां हैं। राजबिदर सिद्धू के वकील केएस डडवाल ने कहा कि नई वार्डबंदी पंजाब म्यूनिसिपल आर्डिनेंस के क्लाज 95 का उल्लंघन है। नई वार्डबंदी में न तो एकरूपता है और न हीं एक-दूसरे से मिलते हैं। उन्होंने बताया कि माननीय बैंच अब इस मामले की 22 दिसंबर को सुनवाई करेगा। इस दौरान बहस भी होगी। जबकि उनकी ओर से सुनवाई से पहले-पहले रिटन सिनोपसिस दाखिल किए जाएंगे।
नगर निगम चुनाव के लिए स्थानीय निकाय विभाग की ओर से जारी की गई नई हदबंदी के खिलाफ शिरोमणि अकाली दल से संबंधित पूर्व पार्षद की ओर से पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। जिस पर पहले 18 सितंबर को और अब 15 दिसंबर को सुनवाई हुई थी। यह याचिका शिअद के शहरी प्रधान एवं पूर्व पार्षद एडवोकेट राजबिदर सिंह सिद्धू की ओर से दायर की गई है। राजबिदर सिद्धू ने अपनी याचिका में कहा है कि नई वार्डबंदी भारत सरकार की ओर से 6 सितंबर 2019 को जारी की गई उस नोटिफिकेशन का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया था कि पंजाब के शहरों, जिलों, तहसीलों तथा गांवों के वार्डों की सीमाएं एक जनवरी 2020 से लेकर 31 मार्च 2021 तक सुरक्षित रहेंगी। इस अवधि के दौरान सीमाओं के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। लेकिन भारत सरकार की इस नोटिफिकेशन के बावजूद स्थानीय निकाय विभाग की ओर से बठिडा नगर निगम चुनाव को लेकर जो वार्डों की नई हदबंदी की गई है, उसमें पहले निर्धारित सीमाओं को बुरी तरह से तोड़ा गया है। एक एक मोहल्ले को तीन वार्डों में बांट दिया गया है। इसी तरह किसी वार्ड के छह टुकड़े कर दिए गए हैं। बता दें कि उधर, स्थानीय निकाय विभाग की ओर से भी बीती 11 सितंबर की केविएट फाइल की हुई है। जिसमें राजबिदर सिद्धू सहित बठिडा के दस अकाली-भाजपा नेताओं की ओर से नई वार्डबंदी के खिलाफ याचिका दायर करने की आशंका व्यक्त की गई थी। जिसमें कहा गया है कि अदालत कोई फैसला लेने से पहले स्थानीय निकाय विभाग का पक्ष सुना जाए। राजबिदर सिद्धू ने बताया कि संभवत 18 सितंबर को केविएट को पहले स्थानीय निकाय विभाग का पक्ष सुना जाएगा और उसके बाद उनकी याचिका पर सुनवाई होगी। फिलहाल इस मामले में अब 22 दिसंबर को कोर्ट पक्ष व विपक्ष में तर्क सुनेगी। इसमें संभवत वार्डबंदी को फिर से करवाया जाएगा या पहले वाली स्थिति बरकरार रखी जाएगी इस सुनवाई के बाद ही तय हो सकेगा। फिलहाल कोर्ट में दायर याचिका के कारण नगर निगम क्षेत्र में विभिन्न दलों की तरफ से चुनावी तैयारी शुरू करने के बावजूद अभी भी संशय का माहौल है क्योंकि अगर कोर्ट याचिकाकर्ता की तरफ से जताई आशंका को कोर्ट सही मानकर फिर से हदबंदी की हिदायत देता है या फिर सरकार की नोटिफिकेशन से पहले वाली स्थिति को बरकरा रखने को कहता है तो चुनावी दंगल में कूदे संभावित उम्मीदवारों को फिर से नए सिरे से चुनावी तैयारी करनी पड़ सकती है। फिलहाल माना जा रहा है कि 22 दिसंबर की सुनवाई के बाद स्थिति काफी हद तक स्पष्ट हो सकती है।
यहां बताते चले कि दो साल पहले साल 2018 में जब शहर की वार्ड बंदी को लेकर निगम नें अकाली दल के कार्यकाल में योजना बनी तो इसमें बठिंडा में बढ़ रही जनसंख्या व शहर का दायरा बढ़ने के साथ शहर में नई वार्डबंदी की जरूरत समझी गई थी व निगम तथा नेतागण वार्डों में वोटों की असमानता तथा शहर की हद के बाहर नए एरिया के आस्तित्व में आने के बाद निगम पर शहर का दायरा बढ़ाने का लगातार दबाव बढ़ रहे थे। बठिंडा के लंबे अंतराल तक नगर कौंसिल रहने के बाद 2006 में तत्कालीन वित्तमंत्री सुरिंद्र सिंगला द्वारा इसे नगर निगम का दर्जा दिलाया गया था। वर्ष 2008 में पहली बार निगम की वार्डबंदी में 35 से बढ़ाकर 50 वार्ड किए गए थे। अब 12 साल बाद नगर निगम की वार्डबंदी की गई है। शहर की जनसंख्या के 3.80 लाख से अधिक होने तथा नए एरिया बनने के बाद वोट संख्या के सही वितरण को लेकर वार्डों की संख्या 60 से 65 किए जाने की मांग की जा रही है। इसमें वार्डों की सीमाओं का निर्धारण करने काे लेकर कांग्रेस पार्टी के नेताओं में काफी हलचल रही तथा अकाली इसे अपने अनुसार किए जाने को लेकर पूरी तरह सक्रिय रहे। शहर में वर्तमान में कम से कम 2500 तथा अधिकतम 3200 तक वोट हैं। नगर कौंसिल से 2006 में नगर निगम बनने के बाद शहर में 35 वार्डों को 2008 में बढ़ाकर 50 किया गया। हालांकि उस समय वोटों की गिनती थोड़ी कम थी, लेकिन 12 साल में जनसंख्या में काफी अंतर आ चुका है। 2011 की जनगणना के अनुसार बठिंडा में 2.86 लाख जनसंख्या थी तथा इसमें 1.51 लाख पुरुष तथा 1.34 लाख महिलाएं शामिल थीं। 19 में करीब 3.80 के पास बताई जा रही है, यानी प्रतिवर्ष शहर की जनसंख्या में 10 हजार तक का इजाफा हो रहा है। साल 2020 की बात करे तो यह चार लाख के आसपास है। बठिंडा में प्रतिवर्ग किलोमीटर एरिया में 4172 लोग आते हैं। वार्ड में वोटों की संख्या को लेकर असमानता को लेकर भी पार्षद नई वार्डबंदी चाहते हैं। बठिंडा की वर्तमान हदें 56 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई हैं तथा शहर की हद खत्म होने के बाद हर एरिया के बाहर काफी आबादी अब वहां बस चुकी है।
क्या होती है वार्डबंदी-प्रपोजल पर आधारित होती है
किसी भी नगर निगम में वार्डबंदी का निर्णय राज्य सरकार द्वारा निगम द्वारा दी गई प्रपोजल पर आधारित रहता है। शहर में वार्डबंदी का काम नगर निगम टीम करती हैं। शहर की हद बढ़ाने के साथ इसमें वार्डों की सीमाओं का नए सिरे से निर्धारण किया जाता है। एक बार सरकार से वार्डबंदी की स्वीकृति मिलने के उपरांत वार्डबंदी को नए सिरे से डिजाइन कर सरकार के पास भेजा जाता है। सरकार की फाइनल स्वीकृति मिलने पर वार्डबंदी फाइनल करने से पहले जनता की आपत्तियां दूर करने, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति व महिलाओं के लिए आरक्षित वार्डों की घोषणा के बाद ही मनोनीत कमेटी फाइनल मुहर लगाती है। वार्डबंदी में वोट वितरण में 10 प्रतिशत तक पापुलेशन प्लस या माइनस हो सकती है।
पाषर्दों को नई वार्डबंदी में क्या है एतराज
अकाली-भाजपा से संबंधित अधिकतर पूर्व पार्षद इसे सियासी वार्डबंदी करार दे रहे हैं। जिन लोगों ने अभी तक अपने एतराज दर्ज कराए हैं, वे लगभग एक जैसे ही हैं। एक मोहल्ले को दो वार्डों में बांटा गया है। शिअद के शहरी प्रधान एवं पूर्व पार्षद एडवोकेट राजबिदर सिंह सिद्धू ने जो एतराज दर्ज करवाएं हैं, उसमें उन्हें उनके मोहल्ले भाई मती दास नगर को दो हिस्सों में बांटने पर कड़ा एतराज है। उसके एरिया को पटियाला रेलवे लाइन पार मॉडल टाउन इलाके के साथ भी जोड़ दिया है। सिद्धू कहते हैं कि पूरी वार्डबंदी पॉलिटिकल मोटिव को ध्यान में रखकर की गई है, ताकि किसी तरह से कांग्रेसी उम्मीदवारों को जिताया जा सके। मॉडल टाउन इलाका भी दो वार्डों में बंटा गया है। भाजपा से संबंधित पूर्व पार्षद पंकज अरोड़ा का भी यही एतराज है कि उसके मॉडल टाउन इलाके को दो हिस्सों में बांट दिया है। मॉडल टाउन का एक हिस्सा भाई मती दास नगर से जोड़ दिया है। दोनों एरिया में से अगर कोई भी यहां से पार्षद बनता है तो दूसरे इलाके के लोगों के लिए अपने पार्षद के पास पहुंचना मुश्किल हो जाया करेगा। अकाली नेता मिट्ठू को भी यही एतराज है कि उसके वार्ड की कोर्ट रोड को अब दो हिस्सों में बांट दिया गया है। एक ही एरिया अब दो वार्डों में पड़ेगा।
पूर्व डिप्टी मेयर गुरिदरपाल कौर मांगट का कहना है कि बेशक उसके वार्ड नंबर दो से कोई ज्यादा छेड़छाड़ नहीं हुई, लेकिन अन्य अधिकतर वार्डों को तोड़ दिया गया है। वरिष्ठ नेताओं के वार्ड जो रिजर्व थे उन्हें जनरल कर दिया, जो जनरल थे उन्हें रिजर्व कर दिया गया है। अकाली दल के ही पूर्व पार्षद निर्मल सिंह संधू अपने एतराज में कहा है कि नई वार्डबंदी में कुछ हदबंदी समझ ही नहीं आ रही हैं। अधिसूचना में बाउंड्री वॉल कुछ है, जबकि वास्तव में कुछ और है। कांग्रेस के नेता एवं पूर्व पार्षद बेअंत सिंह रंधावा ने कहा कि बेशक वह लिखित में कोई एतराज दर्ज नहीं करवा रहे हैं। परंतु उसका वार्ड दो किलोमीटर के एरिया में फैला दिया गया है। उसका वार्ड अब तीन थानों में पड़ेगा। कुछ एरिया थाना थर्मल, कुछ थाना कैंट और कुछ इलाका थाना सिविल लाइन के अधीन आएगा। ऐसी स्थिति में किसी भी पार्षद के लिए काम करना बहुत मुश्किल हो जाता है।