बठिंडा. बठिंडा के सिविल अस्पताल में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के दौरान एचआईवी का शिकार तीन थैलेसीमिया के मरीजों के परिजन इंसाफ की उम्मीद कर रहे हैं लेकिन अस्पताल प्रबंधक इस मामले में 15 दिन बीतने के बावजूद भी असल दोषियों का पता लगाने में नाकाम रहे हैं। एक के बाद एक जांच कमेटी गठित हो रही है लेकिन इसमें कागजों में औपचारिकता पूरी कर केस को दबाने की कोशिश अभी भी जारी है। इसी बीच राज्य सेहत विभाग ने इस पेचिंदा व गंभीर मसले पर स्टेट कमेटी का गठन करने का फैसला लिया है इस बाबत नारकों विभाग के साथ सेहत व जूडीशियल अधिकारियों का एक पैनल गठित करने की बात राज्य के सेहत मंत्री बलबीर सिंह ने की है। वही सेहत विभाग ने अब पिछले 10 साल में ब्लड बैंक के मार्फत थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के साथ दूसरे मरीजों को दिए गए खून की जांच भी करेगी। इसमें इस बात का पता लगाने की कोशिश की जाएगी कि आखिर पूरे मामले में लापरवाही कहां हुई व इसके लिए जिम्मेवार लोग कौन थे। वही पिछले सवा महीने से जिस तरह से एचआईवी रक्त चढ़ाने के मामले सामने आए क्या पूर्व में भी इस तरह की लापरवाही होती रही है इस बाबत जांच जल्द शुरू होगी।
आम लोगों को भी भुगतना पड़ रहा खामियाजा
सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक में हो रही लापरवाही का खामियाजा अब आम लोगों को भी भुगतना पड़ रहा है। पिछले एक माह से अस्पताल में ब्लड डूनेशन कैंप में कमी आई है जिसके चलते रक्त की कमी भी होने लगी है। वर्तमान में एमरजेंसी में ही कुछ लोग रक्त लेने आ रहे हैं व रक्त के बदल् रक्त दान हो रहा है जबकि सामाजिक संस्थाओं के साथ आम लोगों की तरफ से रक्तदान नहीं किया जा रहा है। इसके चलते आने वाले समय में रक्त की भारी कमी झेलनी पड़ेगी जो आपातकाल व गंभीर बीमारियों के पीड़ित लोगों के लिए बड़ी दिक्कत खड़ी कर सकती है।
दूसरी तरफ थेलेसीमिया से पीड़ित ऐसे बच्चों जिन्हें एचआईवी रक्त चढ़ाया गया वह मानसिक व शारीरिक दिक्कतों के दौर से गुजर रहे हैं वही उनके अभिभावक भी अब बच्चों की सेहत को लेकर चिंतिंत व तनाव झेलने को मजबूर हो रहे हैं। 7 से 13 वर्ष की आयु के प्रभावित बच्चों के परिवार लापरवाह लोगों को सबक सिखाने के लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं। परिजन इस बात को लेकर आक्रोशित है कि पंजाब में लोगों की जान से खिलवाड़ करने की लापरवाही लगातार हो रही है लेकिन सीएम अमरिंदर सिंह और बठिंडा के विधायक और राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने राज्य के अस्पताल प्रशासन और वहां तैनात कर्मचारियों की घोर लापरवाही पर कोई एक्शन नहीं लिया और न ही प्रबावित परिजनों के साथ सहानुभूति व्यक्त की है।
पहले लगी गंभीर बीमारी की जिंदगी भर लेनी थी दवा अब एचआईवी दवा भी लेंगे बच्चे
खबर में प्रभावित सभी बच्चों की पहचान बचाने के लिए उनके नाम तबदील किए गए है। इसमें सुखप्रीत कौर (8) का केस अक्तूबर में सामने आया। शहर के एक सरकारी स्कूल में कक्षा 3 की छात्रा सुखप्रीत ने 3 अक्टूबर को एचआईवी से संक्रमित पाए जाने के एक महीने बाद 2 नवंबर को अपना 8वां जन्मदिन मनाया। एक मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजिस्ट द्वारा कथित तौर पर संक्रमित खून चढ़ाने के बाद उसे एक और संक्रमण ने अपनी चपेट में ले लिया। अब उसके माता-पिता व परिवार के सदस्यों को संक्रमण के खतरे को रोकने के लिए उसके साजों सामान की अलग से खरीद करने के साथ कई दूसरी संतर्कता बरतनी पड़ रही है। बच्चे के अभिभावकों ने कहा “अस्पताल में लापरवाही ने मेरी बेटी के भाग्य को समझौता करते देखना दर्दनाक है। जैसा कि उसके खून की एक बूंद किसी के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा कर सकती है, अब हमे उसकी गतिविधियों पर नजर रखनी पड़ती है ताकि उसका संक्रमित रक्त किसी दूसरे के लिए खतरा न बन सके। अब उसका बाकी जीवन भी वैसा नहीं रहेगा, ”उसके पिता एक सरकारी कर्मचारी है। सुखप्रीत को उसके जन्म के तुरंत बाद थैलेसीमिया का पता चला था। चूंकि थैलेसीमिया हड्डियों को कमजोर करता है और उसे फोलिक एसिड और कैल्शियम की गोलियों की दैनिक खुराक की आवश्यकता होती है। अब, वह पूरे जीवन के लिए एंटीरेट्रोवाइरल उपचार (एआरटी) से भी गुजरेंगी।
दूसरे प्रभवित बच्चे हरमन सिंह (13) पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा है। हरमन की विधवा माँ पूरे परिवार की देखभाल करती है। उनके पिता, राज्य पुलिस में एक कांस्टेबल थे व 2008 में मृत्यु हो गई। वह जिले के तलवंडी साबो उपखंड के एक गांव के हैं। परिवार ने कहा कि हरमन यह समझने के लिए काफी परिपक्व है कि उसके साथ बहुत कुछ हुआ है, लेकिन उसने उसकी हाल ही घटित चिकित्सा लापरवाही की स्थिति पर कोई सवाल नहीं पूछा है। उनकी माँ ने कहा कि हरमन का दिन खाली पेट शुरू होता है और अब उनकी दिनचर्या में एक और दवा जुड़ गई है। कक्षा 7 का एक छात्र, हरमन पढ़ाई में अच्छा है और अपने इलाके के बच्चों के साथ खेलना उसका शौक है।
तीसरा प्रभावित बच्चा हरजीत सिंह (11) बेशक युवा हो सकता है लेकिन हरजीत चुपचाप अपने पिता के चेहरे पर तनाव देखता है। हरजीत की खराब सेहत का पता तब चला जब वह केवल एक सप्ताह का था और जब वह दो साल का था तब उसकी थैलेसीमिया का उपचार शुरु किया गया था। “डॉक्टरों ने कहा है कि हरजीत को पूरे जीवन के लिए एचआईवी दवा लेनी है।उसके पिता ने कहा कि“यह उसे हर दिन मरते हुए देखने जैसा है। मैं दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करता हूं। लगभग 40 और अधिक थैलेसीमिक बच्चे भी रक्त संचार के लिए बठिंडा ब्लड बैंक पर निर्भर हैं और मैं उनके स्वास्थ्य के बारे में भी चिंतित हूं ।