Ayodhya Land Dispute Case : अगर हिंदुओं को कब्जा दिया जाता है तो मुसलमानों को ऐतराज नहीं

सुप्रीम कोर्ट में दसवें दिन की सुनवाई में गोपाल सिंह विशारद की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजेन्द्र सिंह की ओर से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने पक्ष रखा।...

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नई दिल्ली। अयोध्या राम जन्मभूमि में मंदिर तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। 1934 में दंगा हुआ तब से मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़नी बंद कर दी। हिन्दू वहां पूजा करते थे। अगर वहां का कब्जा हिन्दुओं को दे दिया जाता है तो मुझे कोई ऐतराज नहीं। ये बातें अयोध्या में रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1950 में फैजाबाद की जिला अदालत में हलफनामा दाखिल कर कहीं थीं।

 

गुरुवार को रामलला के उपासक होने के आधार पर अबाधित पूजा अर्चना का अधिकार मांगते हुए गोपाल सिंह विशारद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इन हलफनामों का हवाला दिया गया और कोर्ट से उन पर गौर करने की अपील की गई। शुक्रवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

 

फैजाबाद कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा 

गुरुवार को दसवें दिन की सुनवाई में गोपाल सिंह विशारद की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजेन्द्र सिंह की ओर से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा। कुमार ने 1949 में मूर्ति रखे जाने के विवाद के बाद जन्मभूमि को सरकार के कब्जे में ले लेने और वहां रिसीवर नियुक्त करने की धारा 145 के तहत हुई कार्यवाही का हवाला देते हुए बताया कि उस समय पब्लिक नोटिस निकला था जिसके जवाब में अयोध्या में रहने वाले 20 लोगों ने फैजाबाद की अदालत में हलफनामे दाखिल किये थे।

 

हलफनामा देने वालों में कुछ मुसलमान भी थे। कुमार ने अब्दुल गनी के हलफनामे का अंश पढ़ा जिसमे कहा गया है कि अयोध्या राम जन्मभूमि में मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई। 1934 में दंगा हुआ था जिसके बाद वहां नमाज बंद हो गई। कुमार ने हसन अली मोहम्मद के हलफनामे का भी अंश पढ़ा जिसमें कहा गया है कि बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि है। गदर हुई थी जिसके बाद मुस्लिम यहां शुक्रवार को नमाज करते थे। हिन्दू अंदर पूजा करते थे। 1934 के बाद मुस्लिम ने नमाज बंद कर दी। मुझे ऐतराज नहीं अगर सरकार इसे हिन्दुओं को दे दे।

 

हाईकोर्ट के फैसले और रिकार्ड मे जिक्र 


रंजीत कुमार ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले और रिकार्ड मे इनका जिक्र है लेकिन हाईकोर्ट ने हलफनामों को यह कह कर स्वीकार नहीं किया था कि जिनके हलफनामे हैं उनसे जिरह नहीं हो सकती। कुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इन पर गौर करना चाहिए। इस पर पीठ के न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा कि यह ठीक है कि हलफनामे दाखिल किए गए लेकिन हलफनामे में जो बात कही गई है उसकी सत्यता जिरह पर नही परखी गई है इसीलिए हाईकोर्ट ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।

तब कुमार ने कहा कि पब्लिक नोटिस के जवाब में लोगों ने अदालत में ये हलफनामे दिए थे भले ही हलफनामा देने वालों से जिरह न हुई हो लेकिन किसी ने उनका खंडन नहीं किया है ऐसे में कोर्ट सहयोगी साक्ष्य के तौर पर तो उन पर विचार कर ही सकती है।

पूजा- अर्चना का अधिकार जारी रहना चाहिए
कुमार ने कहा कि उनका मुवक्किल रामलला का उपासक है और वह मानता है कि जन्मस्थान के मालिक भगवान रामलला ही हैं। वह उपासक है और उसका पूजा का कानूनी अधिकार है जो जारी रहना चाहिए। कुमार ने 1856 से लेकर बाद तक के सरकारी दस्तावेजी रिकार्ड का हवाला देकर यह साबित करने की कोशिश की कि अयोध्या में वह स्थान राम जन्मभूमि है और वहां प्राचीन काल से हिन्दू पूजा करते चले आ रहे हैं। वहां मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी।

कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा से कहा स्पष्ट करो नजरिया
निर्मोही अखाड़ा की ओर से गुरुवार को फिर पक्ष रखा गया लेकिन उसकी ओर से दी गई लिखित और मौखिक दलीलों में विपरीत नजरिया होने पर कोर्ट ने अखाड़ा की पैरवी कर रहे वकील सुशील जैन से कहा कि आप नजरिया स्पष्ट करें। साफ बताएं कि आप जन्मस्थान को देवता और कानूनी व्यक्ति मानते हैं कि नहीं।

जैन ने कहा कि वह उन्हें कानूनी व्यक्ति मानने से इन्कार नहीं कर रहे। वह मालिकाना हक का दावा नहीं कर रहे सिर्फ पूजा प्रबंधन का अधिकार और कब्जा मांग रहे हैं। इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा लेकिन आपकी लिखित दलीलों में इससे उलट बात कही गई है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आप स्थिति स्पष्ट कर कोर्ट को संतुष्ट करें, तभी आगे अपील सुनी जाएगी।

 

 

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