निर्मोही अखाड़ा ने कहा- मुसलमानों ने 1934 में बंद कर दी थी 5 वक्त की नमाज

भूमि विवाद को लेकर सभी पक्ष चाहते हैं कि फैसला जल्द से जल्द आए. 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था. दो तिहाई हिस्सा हिन्दू पक्ष को मिला था और एक तिहाई सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को.

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  • मध्यस्थता के जरिए नहीं निकला अयोध्या विवाद का कोई भी हल
  • आज से अयोध्या मामले की सुप्रीम कोर्ट में रोजाना होगी सुनवाई
  • 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ करेगी मामले की सुनवाई

 

नई दिल्ली: देश में सबसे लंबे समय से चलने वाले अयोध्या विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो गई. अयोध्या में विवादित स्थल पर अपना दावा करते हुए निर्मोही अखाड़ा ने मगंलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद में प्रतिदिन पांच बार नमाज पढ़ना 1934 में ही बंद कर दिया था और दिसंबर 1949 में जुमे की नमाज भी बंद कर दी थी.

 

निर्मोही अखाड़ा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के समक्ष कहा कि विवादित भूमि पर उसका दावा 1934 से है, जब कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित भूमि पर अपना दावा 1961 में किया था.

 

अखाड़ा के वकील ने यह भी दावा किया कि भगवान राम की मूर्ति मस्जिद में 1949 में 22-23 दिसंबर की रात में रखी गईं थी. उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदू पक्ष रोज पूजा करते हैं और उन्होंने मुस्लिम पक्षों के दावे को खारिज किया कि विवादित भूमि पर वे रोज नमाज पढ़ते हैं.

निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने तर्क दिया कि अगर वहां नमाज नहीं होती है तो उस स्थान को मस्जिद नहीं बोला जा सकता. उन्होंने कहा, “हमारा दावा 1934 से है. यहां कोई नमाज नहीं पढ़ी गई है.”

 

वकील ने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए अदालत के सामने एक और सबूत पेश किया. वकील ने कहा कि उस स्थान पर वजू के लिए कोई जगह नहीं है. वजू वह स्थान होता है, जहां मुस्लिम समुदाय नमाज से पहले अपने हाथ धोते हैं.

 

उन्होंने कहा, “वहां 1985 से कोई नमाज नहीं पढ़ी गई तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि एक मस्जिद के तौर पर इसका अस्तित्व कई साल पहले समाप्त हो चुका है.”

 

बता दें कि 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज़मीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था. दो तिहाई हिस्सा हिन्दू पक्ष को मिला था और एक तिहाई सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को. लेकिन कोई भी पक्ष इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुआ. सबने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की. दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. बाद में कई और पक्षों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी.

 

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अयोध्या सुनवाई के लाइव अपडेट्स:

02.35 PM: लंच के बाद मामले की सुनवाई शुरू हो गई है. निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि 1850 से ही हिंदू पक्ष उस स्थान पर पूजा करता आ रहा है. लेकिन ब्रिटिश काल में ऐसा लागू नहीं रह सका था. हालांकि, ब्रिटिश काल में भी दर्शन की सुविधा जारी रही थी.

इस दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई में जल्दबाजी में नहीं है. दरअसल, निर्मोही अखाड़े की तरफ से इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुछ जवाबों को रखा जा रहा था, वकील ने कहा था कि वह पहले उनका पक्ष बताएंगे फिर अपनी बात को आगे रखेंगे. जिसपर CJI ने कहा कि ये आपका केस है, अपनी बात पूरी करें. हम जल्दबाजी में नहीं हैं.

01.40 PM: मामले की सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि पूरी जमीन अखाड़े के पास ही है, इस पर मुस्लिम पक्ष का दावा गलत है. जो अन्य हिंदू पक्ष हैं वह पूजा का अधिकार मांग रहे हैं. अभी अदालत में लंच चल रहा है.

12.20 PM: निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत कोई भी व्यक्ति जमीन पर कब्जे की वैध अनुमति के बिना दूसरे की जमीन पर मस्जिद निर्माण नहीं कर सकता है. ऐसे में जबरन कब्जाई गई जमीन पर बनाई गई मस्जिद गैर इस्लामिक है और वहां पर अदा की गई नमाज़ कबूल नहीं होती है.

चीफ जस्टिस ने कहा कि ट्रायल कोर्ट में जज ने कहा है कि मस्जिद से पहले किसी तरह के ढांचे का कोई सबूत नहीं है. इस पर निर्मोही अखाड़े के वकील ने कहा कि अगर उन्होंने इसे ढहा दिया तो इसका मतलब ये नहीं है कि वहां पर कोई निर्माण नहीं था. चीफ जस्टिस ने इसके बाद कहा कि इसी मुद्दे के लिए ट्रायल होता है, आपको हमें सबूत दिखाना पड़ेगा.

11.28 AM: निर्मोही अखाड़े ने कहा कि 16 दिसंबर 1949  को आखिरी बार जन्मभूमि पर बनाई गई मस्जिद में नमाज़ पढ़ी गई थी. जिसके बाद 1961 में वक्फ बोर्ड ने अपना दावा दाखिल किया था. लेकिन इसी दौरान जब राजीव धवन ने कोर्ट को टोका तो CJI ने कहा कि आपको आपका समय मिलेगा, बीच में ना टोकें और कोर्ट की गरिमा का ध्यान रखें.

11.24 AM: इसके बाद निर्मोही अखाड़े के वकील ने सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से जो सबमिशन किया गया, उसे अदालत के सामने पढ़ा. निर्मोही अखाड़े की तरफ से इस मामले के इतिहास और बाबर शासन काल का जिक्र किया जा रहा है.

11.09 AM: सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हमारे सामने वहां के स्ट्रक्चर पर स्थिति को साफ करें. चीफ जस्टिस ने पूछा कि वहां पर एंट्री कहां से होती है? सीता रसोई से या फिर हनुमान द्वार से? इसके अलावा CJI ने पूछा कि निर्मोही अखाड़ा कैसे रजिस्टर किया हुआ? जस्टिस नज़ीर ने निर्मोही अखाड़े से पूछा कि आप बहस में सबसे पहले अपनी बात रख रहे हैं, आपको हमें इसकी पूरी जानकारी देनी चाहिए.

11.05 AM: निर्मोही अखाड़े ने अदालत को बताया कि 1961 में वक्फ बोर्ड ने इस पर दावा ठोका था. लेकिन हम ही वहां पर सदियों से पूजा करते आ रहे हैं, हमारे पुजारी ही प्रबंधन को संभाल रहे थे. सुनवाई के दौरान निर्मोही अखाड़े ने कहा कि 6 दिसंबर, 1992 को कुछ शरारती तत्वों ने रामजन्मभूमि पर बना विवादित ढांचा ढहा दिया था.

10.59 AM: निर्मोही अखाड़े ने अदालत से कहा कि हमसे पूजा का अधिकार छीना गया है. सुप्रीम कोर्ट ने बहस के दौरान निर्मोही अखाड़े से पूछा कि क्या कोर्टयार्ड के बाहर सीता रसोई है?

10.45 AM: चीफ जस्टिस ने बहस शुरू होते ही कहा कि सबसे पहले स्टेटस और लोकस पर दलीलें रखी जाएं. जिसके बाद सुशील जैन ने अपनी बात कहनी शुरू की.

निर्मोही अखाड़े की तरफ से सुशील जैन ने आंतरिक कोर्ट यार्ड पर मालिकाना हक का दावा किया. उन्होंने कहा कि सैकड़ों वर्षों से इस जमीन और मन्दिर पर अखाड़े का ही अधिकार और कब्ज़ा रहा है, इस अखाड़े के रजिस्ट्रेशन से भी पहले से ही है.

निर्मोही अखाड़े की तरफ से कहा गया है कि सदियों पुराने रामलला की सेवा पूजा और मन्दिर प्रबंधन के अधिकार को छीन लिया गया है.

10.40 AM: राम मंदिर मामले के लाइव प्रसारण की मांग को अदालत की तरफ से खारिज कर दिया गया है.

10:35 AM: राम मंदिर मामले पर सुनवाई शुरू. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नज़ीर कोर्ट में पहुंचे. निर्मोही अखाड़े की तरफ से सुशील कुमार जैन ने अपनी बात रखनी शुरू की.

मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं.

मध्यस्थता में नहीं बनी थी बात

अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 6 अगस्त से सुनवाई होगी. साथ ही कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता कमेटी कामयाब नहीं हो पाई. मंदिर विवाद पर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच आम सहमति बनाने के लिए अयोध्या मध्यस्थता पैनल को 31 जुलाई तक का समय दिया गया था.

बीते गुरुवार  यानी 1 अगस्त को मध्यस्थता समिति ने सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट सौंपी थी और फिर शीर्ष कोर्ट ने बताया कि मध्यस्थता समिति के जरिये मामले का कोई हल नहीं निकाला जा सका है.

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने बंद कमरे में कहा, “विवाद को लेकर मध्यस्थता के लिए बनाई गई समिति किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई है. इसलिए इस मामले पर 6 अगस्त से प्रतिदिन सुनवाई शुरू की जाएगी. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कहा था कि अगर आपसी सहमति से कोई हल नहीं निकलता है तो मामले की रोजाना सुनवाई होगी.

सुप्रीम कोर्ट ने गठित की थी कमेटी

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को पूर्व जज जस्टिस एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति गठित की थी. कोर्ट ने कहा था कि समिति आपसी समझौते से सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करे.

इस समिति में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू शामिल थे. समिति ने बंद कमरे में संबंधित पक्षों से बात की लेकिन हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने निराशा व्यक्त करते हुए लगातार सुनवाई की गुहार लगाई. 155 दिन के विचार विमर्श के बाद मध्यस्थता समिति ने रिपोर्ट पेश की और कहा कि वह सहमति बनाने में सफल नहीं रही है.

 सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में आज से रोजाना सुनवाई करेगा. मध्यस्थता के माध्यम से कोई आसान हल निकलने का प्रयास विफल होने के बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की रोजाना सुनवाई करने का फैसला किया है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मामले की सुनवाई करेगी.

पीठ में न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं. पीठ ने दो अगस्त को तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट का संज्ञान लिया था.

 

मध्यस्थता समिति के प्रमुख उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला थेय पीठ ने कहा था कि करीब चार महीने चली मध्यस्थता प्रक्रिया का अंतत: कोई परिणाम नहीं निकला.

 

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