अयोध्या मामले में हिंदू पक्ष की बहस पूरी, शिया बोर्ड ने मंदिर बनाने का समर्थन किया

आज अयोध्या मामले में सुनवाई का 16वां दिन था. ये सुनवाई 6 अगस्त से शुरू हुई थी. हिंदू पक्ष ने इस मुद्दे पर अपनी बहस आज खत्म कर ली. वहीं शिया वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा कि अब तक हिंदू पक्ष ने जो कहा है, हम उसका विरोध नहीं करते.

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नई दिल्ली: अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में आज शिया वक्फ बोर्ड हिंदू पक्ष के समर्थन में सामने आया. शिया बोर्ड के वकील ने कहा, “हाई कोर्ट ने एक तिहाई हिस्सा मुस्लिम पक्ष को देने का आदेश दिया था. हम वो हिस्सा हिंदुओं को ही सौंप देना चाहते हैं.” हालांकि, यहां यह समझ लेना जरूरी है कि मामले में मुख्य पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड है, जो कि सोमवार से अपनी जिरह शुरू करेगा.

 

हिंदू पक्ष की जिरह पूरी

 

6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई सुनवाई का आज 16वां दिन था. हिंदू पक्ष ने अपनी बहस आज खत्म कर ली. हिंदू पक्षकारों की तरफ से राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने दावा किया कि इस्लामी नियमों के मुताबिक विवादित इमारत मस्ज़िद थी ही नहीं. उन्होंने कहा, “8 वीं सदी के विख्यात इस्लामी विद्वान इमाम अबू हनीफा ने कहा था कि जिस इमारत में कम से कम दो वक्त की अजान न हो, उसे मस्जिद नहीं माना जा सकता. विवादित इमारत में 70 साल से नमाज नहीं पढ़ी गई है. उससे पहले भी वहां सिर्फ शुक्रवार को नमाज हो रही थी.”

 

मिश्रा ने आगे कहा, “इस्लामिक विद्वान यह भी मानते हैं कि कब्रों से घिरी इमारत मस्जिद नहीं हो सकती. अयोध्या की विवादित इमारत के आसपास कब्रगाह थी. पैगंबर मोहम्मद ने खुद यह कहा था कि दूसरे के घर को गिराकर मस्जिद नहीं बनाई जा सकती. अगर ऐसा किया गया तो वह जगह उसके सही हकदार को सौंप दी जानी चाहिए.”

 

जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के वकील ने आगे कहा, “मूल राजस्व रिकॉर्ड में उस जगह का जिक्र जन्मस्थान के तौर पर किया गया है. बाद में ब्रिटिश शासकों ने मुसलमानों को जगह पर कब्जा लेने के लिए उकसाया. 1855 से पहले वहां नमाज पढ़े जाने का कोई प्रमाण नहीं है. उसके बाद राजस्व रिकॉर्ड में हेरफेर की गई. जन्म स्थान के साथ कुछ जगह पर मस्जिद भी लिख दिया गया. यह बात इलाहाबाद हाई कोर्ट में साबित हो चुकी है.

 

हिंदू पक्ष की जिरह के अंत मे हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने कहा, “किसी बाहरी आक्रमणकारी की तरफ से हुए विध्वंस को कानूनन मान्यता नहीं दी जा सकती. वह जगह हजारों सालों से हिंदू आस्था का केंद्र है. उससे जुड़े मामले का निपटारा भी कानून के आधार पर नहीं, धर्म शास्त्र के आधार पर होना चाहिए.”

 

शिया बोर्ड ने किया समर्थन

 

इसके बाद बारी आई शिया वक्फ बोर्ड की. बोर्ड की तरफ से वकील एम सी ढींगरा ने हिंदू पक्ष का खुल कर समर्थन किया. उन्होंने कहा, “अब तक हिंदू पक्ष ने जो कहा है, हम उसका विरोध नहीं करते. हम चाहते हैं कि वह पूरी जगह हिंदुओं को सौंप दी जाए.” ढींगरा ने अपनी बात को मजबूती देते हुए कहा, “मस्ज़िद बनवाने वाला मीर बाकी शिया था. इसलिए, शुरू से ही वह इमारत शिया वक्फ की संपत्ति थी. वहां जब तक नमाज पढ़ी गई, जगह शिया मुतवल्ली के नियंत्रण में थी. शिया के साथ सुन्नी भी नमाज पढ़ते थे. हमने सुन्नियों की सुविधा का ख्याल करते हुए वहां सुन्नी इमाम को नियुक्त किया. बाद में सुन्नी इमाम की मौजूदगी को देखते हुए 1946 में कोर्ट ने जगह को सुन्नी वक्फ मान लिया.”

 

उन्होंने आगे कहा, “हम ने फैज़ाबाद कोर्ट के 70 साल पुराने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है. हाई कोर्ट के फैसले में भी यह नहीं लिखा कि ज़मीन सुन्नी बोर्ड को मिलेगी. फैसला मुसलमानों को एक तिहाई जमीन देने के पक्ष में था.जगह हमारी है और हम उसे हिंदुओं को सौंप देना चाहता हैं.”

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