नगर निगम के उपचुनाव जीतकर अमरजीत मेहता ने खोला सियासी रास्ता-आप में रहकर बेटे को दिलाई टिकट, उसी पार्टी के विधायक के खिलाफ खोला मोर्चा  

विधायक को पटकनी देने के बाद अब नगर निगम की सियासत में मेयर पद हासिल करने की रणनीति

बठिंडा, 22 दिसंबर: पिछले दिनों बठिंडा के वार्ड नंबर 48 में जब उपचुनाव की घोषणा हुई तो इन सामान्य चुनावो में पंजाब किक्रेट एसोसिएशन के प्रधान अमरजीत मेहता ने अपने बेटे के मार्फत इंट्री की तो हर कोई हैरान था। अब तक विधायक या फिर सांसद के दावेदार माने जा रहे अमरजीत मेहता ने अपने बेटे पदमजीत मेहता को चुनावी दंगल में उतारा तो सभी इसे बचकाना फैसला मान रहे थे लेकिन अब जह पदमजीत मेहता ने आप की टिकट से चुनाव लड़कर जीता तो इसके पीछे की रणनीति का भी खुलासा होने लगा है। पदमजीत ने यह चुनाव वार्ड में 42 साल से अधिक समय तक पार्षद रहे व वर्तमान के विधायक जगरूप गिल के विरोध के बीच जीता है। इसमें कहा जा रहा है कि अमरजीत मेहता की तरफ से अपने बेटे पदमजीत मेहता को वार्ड नंबर 48 के उपचुनाव से पार्षद बनाकर जहां विधायक जगरूप सिंह गिल को पटकनी देने में सफल रहे है वहीं अब उनकी नजर नगर निगम के मेयर की कुर्सी पर है। माना जा रहा है कि मेहता अपने बेटे को मेयर बनाने की कोशिश करेंगे इसके लिए उन्होंने चुनाव के दौरान ही कुछ पार्षदों को आप ज्वाइंन करवाकर संकेत दे दिए थे। इसमें लाइन पार इलाके के पार्षद रतन राही ने मेहता परिवार की रहनुमाई में आप ज्वाइन की जबकि रत्न राही भाजपा नेता मनप्रीत बादल के नजदीकी है व उनके संपर्क में मनप्रीत समर्थक 10 से करीब पार्षद भी है। मनप्रीत बादल समर्थकों के अमरजीत मेहता के समर्थन में आने का एक बड़ा कारण जगरूप गिल व मनप्रीत बादल के बीच रही तलखी को भी माना जा रहा है। जब मनप्रीत बादल कांग्रेस में थे व विधायक के साथ वित्तमंत्री रहे तो जगरूप सिंह गिल नगर निगम मेयर बनना चाहते थे लेकिन मनप्रीत बादल ने उन्हें दरकिनार कर रमन गोयल को मेयर बना दिया। इसके बाद जगरूप गिल ने मनप्रीत का विरोध करने के साथ कांग्रेस छोड़कर आप ज्वाइन की व विधानसभा का चुनाव लड़ मनप्रीत बादल को पराजित कर विधायक बन गए। अब उपचुनाव में जब मेहता व गिल के बीच तलखी बढ़ी तो मनप्रीत बादल समर्थक पाषर्द मेहता के पक्ष में खड़े दिखाई दिए व अब यही पार्षद पदमजीत मेहता के लिए मेयर का रास्ता तैयार कर सकते हैं। फिलहाल पार्षदी चुनाव में पटखनी खाने के बाद विधायक जगरूप गिल चुप बैठने वाले नहीं है व आने वाले दिनों में मेयर की कुर्सी पर अपने पार्षद को बिठाने के लिए वह मैदान में उतर सकते हैं व फिर से मेहता व गिल के बीच घमासान शुरू हो सकता है वही इसमें सत्ता में बैठी कांग्रेस को सियासी नुकसान उठाना पड़ेगा।

बठिंडा के बहुचर्चित वार्ड नंबर 48 के कल आए उपचुनाव नतीजों के बाद बठिंडा में बड़े राजनीतिक उलटफेर की आशंका है. चल रही अटकलों के मुताबिक, पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के चेयरमैन और मशहूर बिजनेसमैन अमरजीत सिंह मेहता ने अपने बेटे पद्मजीत मेहता को न सिर्फ पार्षद बनाने के लिए, बल्कि मेयर बनाने के लिए भी लड़ाई लड़ी। अगर ये अटकलें सच साबित हुईं तो आने वाले दिनों में बठिंडा नगर निगम में बड़ा राजनीतिक उलटफेर हो सकता है, जिसमें सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ सकता है।

बेशक आंकड़ों के मुताबिक आम आदमी पार्टी अपने स्तर पर बठिंडा में मेयर बनाने में सक्षम नहीं है, लेकिन राजनीतिक जानकारों की मानें तो जल्द ही अन्य पार्टियों में बड़ी टूट हो सकती है। इसके अलावा पूर्व मंत्री मनप्रीत बादल का गुट भी मेहता के बेटे के पक्ष में आ सकता है। गौरतलब है कि नवंबर 2023 में इस गुट से संबंधित बठिंडा की पहली महिला मेयर रमन गोयल को गद्दी से उतार दिया गया था। हालांकि बाद में यह मामला कोर्ट में चला गया, लेकिन वहां से हरी झंडी मिलने के बावजूद मेयर की कुर्सी अभी भी खाली है, जिस पर कांग्रेस के सीनियर डिप्टी मेयर अशोक प्रधान कार्यवाहक मेयर के तौर पर काम कर रहे हैं।

नगर निगम में दलवार पार्षदों की संख्या की गणना करें तो वर्तमान में पहली महिला मेयर रमन गोयल को गद्दी से उतार दिया गया। हालांकि बाद में यह मामला कोर्ट में चला गया, लेकिन वहां से हरी झंडी मिलने के बावजूद मेयर की ‘कुर्सी’ अभी भी खाली है, जिस पर कांग्रेस के सीनियर डिप्टी मेयर अशोक प्रधान कार्यवाहक मेयर के तौर पर काम कर रहे हैं। यदि निगम में पार्टीवार पार्षदों की संख्या की गणना की जाए तो वर्तमान में कांग्रेस सदस्यों की अधिकतम संख्या 25 के आसपास है। इसी तरह मनप्रीत बादल गुट के भी करीब आधा दर्जन पार्षद हैं। आम आदमी पार्टी के भी आधा दर्जन से अधिक पार्षद हैं। जबकि अकाली दल के पास 4 और बीजेपी के पास एक पार्षद है। 50 सदस्यीय सदन के अलावा विधायक जगरूप सिंह गिल के पास भी एक वोट है। जिसके मुताबिक मेयर बनाने के लिए कम से कम 26 सदस्यों की जरूरत है। इस हिसाब-किताब से कई वंचित और हाशिये पर पड़े पार्षदों के लिए बड़ी चुनौती का समय आ गया है।

 

 

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