एनआरसी / कांग्रेस नेता अधीर रंजन बोले- मैं बाहरी हूं, पिता बांग्लादेश में रहते थे; संसद में भी एनआरसी होनी चाहिए

अधीर रंजन ने कहा- केंद्र सरकार असम में नागरिकता के मुद्दे को संभालने में नाकाम रही उन्होंने कहा- किसी भी स्थिति में वास्तविक नागरिकों को बाहर नहीं किया जाना चाहिए मनोज तिवारी बोले- दिल्ली में भी बाहरी लोगों की संख्या ज्यादा, यहां भी एनआरसी हो

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नई दिल्ली.असम में जारी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) से 19 लाख लोगों के बाहर होने पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने शनिवार को कहा कि मैं भी बाहरी हूं क्योंकि मेरे पिताजी बांग्लादेश में रहते थे। केंद्र सरकार को संसद में भी एनआरसी लागू कराना चाहिए। चौधरी ने कहा कि केंद्र असम में एनआरसी कराने में सक्षम नहीं था। अब वे दूसरे राज्यों में भी जा सकते हैं।

 

उन्होंने कहा कि देश उनका है, उन्हें जहां भी इच्छा हो एनआरसी कराना चाहिए। किसी भी स्थिति में वास्तविक नागरिकों को बाहर नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें पूरी सुरक्षा देनी चाहिए। इस बीच, भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा कि दिल्ली में भी बाहर से आकर रहने वालों के कारण भयावह स्थिति है और यहां भी एनआरसी कराना चाहिए। उन्होंने कहा कि दिल्ली में चुनाव नजदीक है और हमारे घोषणापत्र मेंएनआरसी जैसे कार्य शामिल होंगे।

 

जानबूझकर लोगों के नाम शामिल नहीं किए: गोगोई
एनआरसी में बड़े पैमाने पर लोगों का नाम शामिल नहीं होने पर असम कामुख्य विपक्षी दल कांग्रेस संतुष्ट नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने आरोप लगाया है कि अधिकारियों ने जानबूझकर लाखों लोगों केनाम रजिस्टर में शामिल नहीं किए। कांग्रेस सांसद खलीक अहमद ने एनआरसी की कोशिश को सराहा है, लेकिन अंतिम सूची पर असंतोष प्रकट किया।

 

भाजपा नेता ने डेटा में फेरबदल के आरोपलगाए

असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व शर्मा ने कहा है कि एनआरसी की अंतिम सूची से वे खुश नहीं है। उन्होंने डेटा में फेरबदल के साथ कई विदेशी लोगों का नाम सूची में शामिल करने की बात कही। शर्मा ने अधिकारियों पर मूल नागरिकों के शरणार्थी प्रमाण-पत्र स्वीकार नहीं करने का आरोप लगाया और कहा कि इसके कारण काफी संख्या में स्थानीय लोगों का नाम सूची में शामिल नहीं हो पाया।

 

पिछले साल जारी सूची में 40.37 लाख लोग बाहर रहे थे
21 जुलाई 2018 को भी एनआरसी सूची जारी की गई थी, जिसमें 3.29 करोड़ लोगों में से 40.37 लाख लोगों का नाम शामिलनहीं था। अंतिम सूची में उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 से पहले असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं। दूसरी सूची में भी 19 लाख 6 हजार 657 लोगों के नाम शामिल नहीं हैं। जो लोग सूची से सहमत नहीं हैं वह फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं।

 

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