Maha Kumbh 2025: प्राचीन मंदिरों का कायाकल्प; प्रयागराज को क्यों कहते हैं तीर्थराज? इनके दर्शन कर जान सकेंगे

0 999,006

Maha Kumbh 2025: महाकुंभ को लेकर प्रयागराज में स्थित प्रचीन मंदिरों, आश्रमों को नए सिरे से सजाया संवारा जा रहा है। कहीं कॉरिडोर का निर्माण किया गया है तो कहीं समय के साथ जीर्ण-शीर्ण हो चुके मंदिरों का पुनरोद्धार किया गया है।

महाकुंभ को लेकर तीर्थराज प्रयाग में तैयारियां जोरों पर हैं। मेला क्षेत्र ही नहीं शहर के हर छोर पर आपको महाकुंभ का माहौल दिख जाएगा। हर विभाग श्रद्धालुओं के स्वागत की तैयारी में लगा है। प्रयागराज में स्थित प्रचीन मंदिरों, आश्रमों को भी नए सिरे से सजाया संवारा जा रहा है। कहीं कॉरिडोर का निर्माण किया गया है तो कहीं समय के साथ जीर्ण-शीर्ण हो चुके मंदिरों का पुनरोद्धार किया गया है। जिस तरह की तैयारियां की जा रही हैं उसे देखकर कहा जा सकता है कि महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के साथ यहां के मनमोहक पर्यटन स्थलों की देखकर मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकेंगे।

Maha Kumbh 2025: Why Prayagraj called land of pilgrimages? You will be able to know by visiting these temples

क्षेत्रीय पर्यटन सचिव अपराजिता सिंह कहती हैं कि महाकुंभ को देखते हुए पर्यटन विभाग प्रयागराज के सभी प्रमुख मंदिरों में आधारभूत सुविधाएं बेहतर करने का काम कर रहा है। इसके तहत मंदिर परिसर में टॉयलेट, बेंच, यात्री शेड, मंदिर परिसर का फ्लोरिंग वर्क के साथ अन्य साज-सज्जा के काम पर्यटन विभाग करा रहा है।

Maha Kumbh 2025: Why Prayagraj called land of pilgrimages? You will be able to know by visiting these temples

जहां भगवान राम ने सुनी थी सत्यनारायण की कथा  
जिन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया गया है उनमें भारद्वाज आश्रम अहम है। इसमें पर्यटन विभाग ने आश्रम कॉरिडोर का निर्माण कराया है। कॉरिडोर के दोनों ओर बहुत से म्यूरल्स लगाए गए हैं। ये म्यूर्ल्स महर्षि भारद्वाज की कथाओं से संबंधित हैं। इनमें उस कथा को भी दर्शाया गया है, जब भगवान राम, सीता और लक्ष्मण भारद्वाज आश्रम में आए थे। यहीं से भारद्वाज मुनि ने उन्हें चित्रकूट की ओर जाने का मार्ग दिखाया था। इसके साथ ही लंका विजय के बाद भागवान ने यहां आकर सत्यनारायण की कथा सुनी थी। उसका चित्र भी इन म्यूरल्स में दर्शाया गया है। कॉरिडोर निर्माण के बाद यहां पहले की तुलना में ज्यादा संख्या में श्रद्धालुओं आ सकेंगे। कहा जाता है कि महर्षि भारद्वाज ने इस आश्रम की स्थापना की थी। प्रचीन काल में यह प्रसिद्ध शैक्षणिक केंद्र था। वनगमन के समय श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण के साथ यहां आकर भारद्वाज जी से मिले थे।

Maha Kumbh 2025: Why Prayagraj called land of pilgrimages? You will be able to know by visiting these temples

नागवासुकि मंदिर, अलोप शंकरी मंदिर, मनकामेश्वर, द्वादश माधव, पड़िला महादेव जैसे प्रमुख मंदिरों में भी पर्यटन विभाग ने सौंदर्यीकरण और टूरिज्म डेवलपमेंट का काम भी कराया है। नागवासुकि मंदिर में जगह-जगह पर यात्री शेड और हवन शेड बनाया गया है। नागवासुकि मंदिर परिसर में स्थित भीष्म पितामह मंदिर का भी नए सिरे सौंदर्यीकरण किया गया है।

Maha Kumbh 2025: Why Prayagraj called land of pilgrimages? You will be able to know by visiting these temples

समुद्र मंथन में रस्सी बने थे नागवासुकि
नागवासुकी को सर्पराज माना जाता है। नागवासुकी भगवान शिव के कण्ठहार हैं। नागवासुकि जी कथा का वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण,भागवत पुराण और महाभारत में भी मिलता है। कहा जाता है कि जब देव और असुर, भगवान विष्णु के कहने पर सागर को मथने के लिए तैयार हुए तो मंदराचल पर्वत मथानी और नागवासुकि को रस्सी बनाया गया। लेकिन मंदराचल पर्वत की रगड़ से नागवासुकि जी का शरीर छिल गया। तब भगवान विष्णु के ही कहने पर उन्होंने प्रयाग में विश्राम किया और त्रिवेणी संगम में स्नान कर घावों से मुक्ति प्राप्त की। वाराणसी के राजा दिवोदास ने तपस्या कर उनसे भगवान शिव की नगरी काशी चलने का वरदान मांगा। दिवोदास की तपस्या से प्रसन्न होकर जब नागवासुकि प्रयाग से जाने लगे तो देवताओं ने उनसे प्रयाग में ही रहने का आग्रह किया। तब नागवासुकि ने कहा कि यदि मैं प्रयागराज में रुकूंगा तो संगम स्नान के बाद श्रद्धालुओं के लिए मेरा दर्शन करना अनिवार्य होगा और सावन मास की पंचमी के दिन तीनों लोकों में मेरी पूजा होनी चाहिए। देवताओं ने उनकी इन मांगों को स्वीकार कर लिया। तब ब्रह्माजी के मानस पुत्र द्वारा मंदिर बना कर नागवासुकि को प्रयागराज के उत्तर पश्चिम में संगम तट पर स्थापित किया गया।

Maha Kumbh 2025: Why Prayagraj called land of pilgrimages? You will be able to know by visiting these temples

प्रयाग इसलिए है तीर्थराज
कहा जाता है कि पृथ्वी पर सबसे पहला यज्ञ खुद भगवान ब्रह्मा ने गंगा, यमुना और सरस्वती की पवित्र संगम पर किया था। इसी प्रथम यज्ञ से प्रथम के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना। जब ब्रह्मा यज्ञ कर रहे थे तो स्वयं भगवान श्री विष्णु 12 माधव रूप में इसकी रक्षा कर रहे थे। विष्णु के यही 12 माधव रूप द्वादश माधव कहे जाते हैं। समय के साथ विलुप्तप्राय हो चुके इन मंदिरों का भी नए सिरे से जीर्णोद्धार कराया गया है। महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु इनके दर्शन कर सकेंगे। पौराणिक मान्यता है कि इस स्थान की पवित्रता को देखते हुए भगवान ब्रह्मा ने इसे ‘तीर्थ राज’ या ‘सभी तीर्थस्थलों का राजा’ भी कहा है। शास्त्रों – वेदों और महान महाकाव्यों – रामायण और महाभारत में इस स्थान को प्रयाग के नाम से संदर्भित किया गया है। ‘पद्मपुराण’ के अनुसार – “जैसे सूर्य चंद्रमा के मध्य और चंद्रमा तारों के मध्य है, वैसे ही ‘प्रयाग सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है।” ब्रह्मपुराण में वर्णित है कि “प्रयाग में गंगा यमुना के तट पर माघ मास में स्नान करने से करोड़ों अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है।”

तीर्थराज को लेकर एक और कथा प्रचलित है। इसके अनुसार शेष भगवान के निर्देश से भगवान ब्रह्मा ने सभी तीर्थों के पुण्य को तौला था। फिर इन सभी तीर्थों, सात समुद्रों, सात महाद्वीपों को तराजू के एक पलड़े पर रखा गया। दूसरे पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग थे। तीर्थराज प्रयाग वाले पलड़े ने धरती नहीं छोड़ी, वहीं बाकी तीर्थों वाला पलड़ा ध्रुवमंडल को छूने लगा था।

मंदिरों के प्रचार-प्रसार के लिए सोशल मीडिया का लिया जा रहा सहारा
पर्यटन विभाग द्वारा जिर्णोद्धार कराए गए ज्यादातर मंदिरों में रेड सैंड स्टोन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। इन पत्थरों के इस्तेमाल को लेकर अपराजिता सिंह कहती हैं कि इसका उद्देश्य यह है कि जो भी काम कराया गया है वो कुंभ ही नहीं बल्कि आने वाले कुछ वर्षों तक वैसा ही बना रहे। शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित इन मंदिरों तक पर्यटक पहुंचे इसका भी प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया गया है। अलग-अलग विभाग अपने सोशल मीडिया पेज से प्रयागराज के पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इसके साथ ही स्थानीय सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स की भी इसमें मदद ली जा रही है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.