भुखमरी की हालत पर पहुंचे बांग्लादेश को भारत मानवीय सहायता के साथ दिखाए आंख भी, अब कठोरता है जरूरी

भारत के बांग्लादेश पर नज़र रखने के दिन चले गए. अब भारतीय सरकार को फ्रंट फुट पर आगे आकर कदम उठाना पड़ेगा. भारत एक जिम्मेदार प्रजातांत्रिक देश है और उसी तरह बर्ताव करेगा, बांग्लादेश के मसले पर!

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By :डॉ. अमित सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर

बांग्लादेश की स्थिति पिछले कुछ समय से खराब चली आ रही है. जून में शेख हसीना के तख्तापलट से पहले फिर भी वहां राजनीतिक स्थिरता थी और जैसे-तैसे अंदरूनी हालातों को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने संभाला हुआ था. इसका नतीजा यह निकला कि बांग्लादेश कुछ चीजों में सफलता की कहानी लिख रहा था. बांग्लादेश की आबादी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा हो रहा है. इसकी  जनसंख्या को पालने और रखने की बात करें तो  बांग्लादेश के पास इतने संसाधन है ही नहीं कि इतनी बड़ी जनसंख्या को ढंग से संभाल पाए और सबकी इच्छाओं की पूर्ति कर पाए. अपने नागरिकों के लिए नौकरी, खान-पान, इलाज आदि जो भी व्यवस्थाएं हैं, उनको पूरा कर सके. बांग्लादेश में बुनियादी  संसाधनों की कमी से हर साल लाखों लोग कानूनी और गैर-कानूनी रूप से दूसरे देश में जाकर रहते हैं. बांग्लादेश के लोगों के दूसरे देश में आप्रवासी बनने की वजह से अड़ोसी-पड़ोसी मुल्कों में राजनीतिक अस्थिरता फैला रखी है.

भारत के लिए भी खतरा!

भारत के अलावा म्यांमार, दक्षिण-पूर्व देशों में और यूरोप के देशों की भी बात करें तो वहां गैर-कानूनी रूप से रहने वाले बांग्लादेशी मिल जाएंगे. मसला यह है कि बांग्लादेश के लोग गैर-कानूनी रूप से इन देशों में घुसते हैं और दूसरे देशों में भी राजनीतिक अस्थिरता फैलाते हैं. अस्थिरता फैलाने और जिस देश में रह रहे हैं, वहां के कानून का सम्मान न करने की वजह से ही बांग्लादेशियों को यूरोपीय देश से लेकर अमेरिका, कनाडा या फिर दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में शक की निगाहों से देखते हैं. भारत में भी हाल ही में दिल्ली में भी इसी तरह के प्रकरण समाने आए हैं. कई बस्तियों की बस्तियां ऐसी मिली है जहां रहने वाले बांग्लादेश के लोगों ने नकली आधार कार्ड, राशन कार्ड सब कुछ बना लिया है.

वर्तमान स्थिति की बात करें तो जिस प्रकार से बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार बांग्लादेश में चरमपंथियों को गोदी में बैठकर शासन चला रहे हैं, वे बांग्लादेश में हर उस निशान को मिटा देना चाहते हैं, जिसके माध्यम से बांग्लादेश का निर्माण हुआ था. चाहे वह शेख़ मुजीबुर्रहमान हो, चाहे वह रवींद्रनाथ टैगोर का आमार सोमार बांग्ला (मेरा सोने का बंगाल) हो, इस तरह के कई प्रतीकों को उजाड़ देना चाहते हैं. सारी चीजें कहीं ना कहीं पाकिस्तान के कहने पर की जा रही हैं. ऐसा इसलिए साफ झलकता है, क्योंकि पाकिस्तान ही ऐसे प्रतीकों को नकारता है. जिसकी पहचान भारतीय धरती से जुड़ी हुई है.

भारत का मुक्ति वाहिनी ने किया था आह्वान

कुछ दिन पहले 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस मनाया गया था. विजय दिवस, वही दिन है, जब भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी के आह्वान पर बांग्लादेश को आजाद करवाया था. इसे लेकर भी बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस की सरकार ने आपत्ति जताई थी. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के ‘सलाहकार’ के रूप में कार्यरत महफूज आलम ने तो सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट डाला. उसने उड़ीसा, त्रिपुरा, बंगाल और बिहार को बांग्लादेश का ही हिस्सा तक बता दिया. ये महफूज आलम वही है, जिसे शेख हसीना के तख्तापलट का मास्टरमाइंड खुद युनुस ने बताया था. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस वक्तव्य पर अच्छी खासी टिप्पणी की और बांग्लादेश की वर्तमान सरकार की बढ़िया धुलाई की है.

 बांग्लादेश भुखमरी की तरफ बढ़ रहा है

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है. देश भुखमरी की तरफ बढ़ रहा है. फिर भी, वे इस तरह की अनैतिक हरकतों से बाज नहीं आ पा रहा हैं. ऐसे में भारत से राशन (चावल,अनाज) और कई प्रकार की मदद बांग्लादेश मांग रहा है, जो मानवीय आधार पर शायद भारत उपलब्ध भी कराए. हालांकि, भारत को इस मामले पर मुस्तैदी से काम करना चाहिए. भारत को चाहिए कि बांग्लादेश की सरकार को ढंग से ताकीद करे कि वे वहां पर अल्पसंख्यकों की रक्षा करें. अगर बांग्लादेश की सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा नहीं करती है, आए दिन बुद्धिस्ट, सिख़, ईसाई और हिंदू धर्म के लोगों पर होनेवाले अत्याचार अगर जारी रहते ही हैं, तो  भारत को इस मामले पर तल्ख टिप्पणी करनी चाहिए, कार्रवाई करनी चाहिए. बांग्लादेश की मानवीय आधार पर सहायता करने से पहले 10 बार सोचना भी चाहिए कि ऐसा ना हो कि भारत सांप को ही दूध पिला रहा है, जो आगे चलकर भारत को ही डंसेगा. बांग्लादेश की अनैतिक हरकतों में पाकिस्तान का बहुत बड़ा हाथ है.

भारत रखे ‘गाजर और छड़ी’ एक साथ

भारत के बांग्लादेश पर नज़र रखने के दिन चले गए. अब भारतीय सरकार को फ्रंट फुट पर आगे आकर कदम उठाना पड़ेगा. भारत एक जिम्मेदार देश है, प्रजातांत्रिक देश है और उसी वजह से बड़े भाई की जिम्मेदारी पूरे दक्षिण एशिया के बाकी देशों के मुकाबले उठाता है. अब शायद समय आ गया है कि भारत को इस नीति को दरकिनार करना चाहिए. जैसा सलूक बांग्लादेश या कोई और छोटा मुल्क करने की कोशिश करता है, उनके साथ वैसे ही व्यवहार करना चाहिए. जिसे हम कई बार अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बोलते हैं, ‘कैरट एंड स्टिक पॉलिसी.’ गाजर देने मात्र से काम नहीं चलेगा, भारत को हाथ में डंडा भी रखना चाहिए. जब तक भारत फ्रंट फुट पर कदम नहीं उठाएगा तब तक बांग्लादेश जैसे छोटे राष्ट्र को समझ में नहीं आएगा. बांग्लादेश का भविष्य तभी है जब वो भारत के साथ मिलकर काम करे, नहीं तो इस्लामिक ‘कट्टरपंथ’ बांग्लादेश को ले डूबेगा.

बांग्लादेश का निर्माण संस्कृति के आधार पर हुआ था, लेकिन वर्तमान में बांग्लादेश अपनी संस्कृति को नज़र अंदाज करते नज़र आ रहे हैं. म्यांमार भी इन कारणों से परेशान हैं. इसी वजह से रोहिंग्या वाला पूरा जो कांड हुआ था. उसके पीछे भी एक वजह थी कि गैर-कानूनी रूप से बांग्लादेशी घुसपैठी वहां घुस गए थे. बौद्ध महिलाओं का बलात्कार हो रहा था, धर्म परिवर्तन हो रहा था जब चीजें गले से भी ऊपर उठ गईं तो इन लोगों ने प्रतिशोध करना शुरू किया था. बांग्लादेश के घुसपैठी अपने आपको म्यांमार का रोहिंग्या मुसलमान बताते थे, लेकिन प्रतिरोध करने पर वहां से भागे. जिस तरह से राजनीतिक अस्थिरता बांग्लादेश में फैली है, वहां के कई लोग म्यांमार में घुसने की कोशिश कर रहे हैं. म्यांमार के साथ भी भारत को डायलॉग करना चाहिए और इस संकट से सख्ती से निबटना चाहिए.

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