कौन हैं अहमदिया, जिन्हें हज तक की इजाजत नहीं:वक्फ बोर्ड ने गैर-मुस्लिम कहा तो भड़की सरकार; क्या है विवाद

हिंदुस्तान की संसद जो कानून बनाएगी, उसी के मुताबिक वक्फ बोर्ड को काम करना होगा। वक्फ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ये तय नहीं कर सकते हैं कि अहमदिया समुदाय मुस्लिम है या नहीं।’

अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने ये बयान आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के उस प्रस्ताव पर दिया है, जिसमें अहमदिया को काफिर और गैर-मुस्लिम बताया गया है। मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी वक्फ बोर्ड के इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।25 जुलाई को आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित किया गया. प्रस्ताव आंध्र प्रदेश के अहमदिया समुदाय के लोगों से जुड़ा था. और इसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा पारित किया गया. प्रस्ताव में अहमदियाओं के मुस्लिम ना होने की बात कही गई. जमीयत ने कहा कि अहमदियाओं को मुस्लिम ना मानने पर आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के रुख पर सभी मुसलमान सहमत हैं.

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सबसे पहले जानते हैं अहमदियाओं को लेकर ताजा विवाद क्या है?
अहमदिया को मुस्लिम नहीं मानने को लेकर जो विवाद देश में चल रहा है, इसकी बुनियाद 13 साल पहले पड़ी थी। 26 मई 2009 को जमीयत उलेमा ने एक फतवा जारी किया था। इसमें कादियानी यानी अहमदिया को काफिर बताया गया था।

इस फतवे के 2 साल बाद 2011 में आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम बताने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। जब मामला आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट पहुंचा तो वक्फ बोर्ड के इस फैसले पर कोर्ट ने रोक लगा दी।

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आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड ने दोबारा से फरवरी 2023 में एक प्रस्ताव जारी कर अहमदिया को फिर से मुस्लिम मानने से इनकार कर दिया। इस बार के प्रस्ताव में भी 2009 में जमीयत उलेमा के दिए फतवे को ही आधार माना गया है।

20 जुलाई 2023 को भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय को वक्फ बोर्ड के खिलाफ एक शिकायत पत्र मिला। अगले ही दिन 21 जुलाई को केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय ने आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर उनसे जवाब मांगा है।

केंद्र सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड का ये प्रयास अहमदिया समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने जैसा है। इस संगठन के पास किसी समुदाय को मुस्लिम धर्म से अलग करने का कोई अधिकार नहीं है।

अहमदिया कौन हैं?

साल 1889 में पंजाब के लुधियाना जिले के कादियान गांव में मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया समुदाय की शुरुआत की थी। उन्होंने एक बैठक बुलाकर खुद को खलीफा घोषित कर दिया।

उन्होंने शांति, प्रेम, न्याय और जीवन की पवित्रता जैसे शिक्षाओं पर जोर दिया। इसके बाद यह माना गया कि मिर्जा गुलाम अहमद ने इस्लाम के अंदर पुनरुत्थान की शुरुआत की है।

मिर्जा गुलाम अहमद कादियान गांव से थे, ऐसे में अहमदिया को कादियानी भी कहा जाने लगा। अहमदियाओं की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक अल्लाह ने मिर्जा गुलाम अहमद को धार्मिक युद्धों और कट्टर सोच को समाप्त करके शांति बहाल करने के लिए धरती पर भेजा था।

अहमदिया समुदाय के लोगों को लिबरल माना जाता है। इसकी वजह यह है कि मिर्जा गुलाम अहमद दूसरे धर्म के संस्थापकों और संतों जैसे ईरानी प्रोफेट जोरोस्टर, अब्राहम, मूसा, जीसस, कृष्ण, बुद्ध, कन्फ्यूशियस, लाओ त्जु और गुरु नानक की शिक्षाओं को पढ़ने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि इन शिक्षाओं के जरिए ही कोई इंसान सच्चा मुसलमान बन सकता है।

अहमदिया समुदाय के लोगों पर ये आरोप लगता है कि वह मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के राष्ट्रीय सचिव मौलाना नियाज फारूकी ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘अहमदिया के साथ मुसलमान शब्द जोड़ना ही गलत है। सारी दुनिया में मुस्लिमों के हर तबके ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम माना है। इसकी वजह ये है कि पैगंबर मोहम्मद हमारे आखिरी नबी हैं और जो उन्हें आखिरी नबी नहीं मानता है, वो काफिर है, वो मुसलमान है ही नहीं।’

अहमदिया मुस्लिम समुदाय की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, इस समुदाय को मानने वाले लोग विश्व के 200 से ज्यादा देशों में रहते हैं. समुदाय के पास दुनियाभर में 16 हजार से ज्यादा मस्जिदें, 600 स्कूल और लगभग 30 अस्पताल मौजूद हैं.

दुनिया में सबसे ज्यादा अहमदिया मुसलमान पाकिस्तान में रहते हैं. यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम के मुताबिक, इनकी आबादी 40 लाख बताई जाती है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का 2.2 प्रतिशत है. पंजाब प्रांत में रबवाह शहर अहमदिया समुदाय का वैश्विक मुख्यालय हुआ करता था. ये फिलहाल इंग्लैंड से ऑपरेट किया जाता है.

मुस्लिम क्यों नहीं माना जाता?

अहमदिया समुदाय के खलीफा रहे मिर्जा गुलाम अहमद के मुताबिक, हजरत मोहम्मद आखिरी नबी नहीं हैं. वो ये भी कहते हैं कि कुरान का कोई हुक्म और कोई आयत नहीं है. मिर्जा गुलाम के इन विचारों पर मुस्लिम समुदाय के कई लोगों को आपत्ति है. उनके मुताबिक हजरत मोहम्मद ही आखिरी पैगंबर और नबी हैं और कुरान आखिरी किताब.

पाकिस्तान में भी मुस्लिम नहीं माना जाता

साल 1974. पाकिस्तान में मई महीने में दंगे भड़के थे. इनमें 27 अहमदियों की मौत हो गई थी. घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुसलमानों को ‘नॉन-मुस्लिम माइनॉरिटी’ घोषित कर दिया था. यानी अहमदिया लोग पाकिस्तान में आधिकारिक तौर पर मुस्लिम नहीं हैं. समुदाय के लोग यहां दूसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर रहते हैं.

इतना ही नहीं, पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298-C के तहत अहमदिया मुसलमानों को खुद को मुस्लिम कहने और अपने धर्म का प्रचार करने पर रोक है. ऐसा करने पर 3 साल तक की सजा का भी प्रावधान है. 2002 में अहमदिया लोगों के लिए पाकिस्तान सरकार ने अलग वोटर लिस्ट प्रिंट करवाई थीं. इनमें उन्हें गैर-मुस्लिम माना गया था.

पाकिस्तान के अलावा और कहां-कहां रहते हैं?

सबसे ज्यादा तादाद पाकिस्तान में है. भारत में करीब 10 लाख अहमदिया मुस्लिम रहते हैं. नाइजीरिया में 25 लाख से ज्यादा हैं तो इंडोनेशिया में करीब 4 लाख अहमदी रहते हैं. पाकिस्तान में ज़ुल्म होने की वजह से कई देशों में अहमदी लोगों ने शरण ली है. इनमें जर्मनी, तंजानिया, केन्या जैसे देश भी शामिल हैं.

अहमदिया समुदाय की ऑफिशियल वेबसाइट में लिखा है कि वह बाकी मुस्लिमों की तरह ही इन तीन मुख्य बातों को फॉलो करते हैं…

1. बाकी मुस्लिमों की तरह ही अहमदी मुसलमान ‘इस्लाम के पांच फर्ज’ शहादा, नमाज, रोजा, जकात और हज को मानते हैं।

2. अहमदिया भी बाकी मुस्लिमों की तरह ही कुरान को अपना पवित्र धर्म ग्रंथ मानते हैं। वे मानते हैं कि इस्लाम मानव जाति के लिए सबसे बेहतर धर्म है।

3. अहमदिया पैगंबर मोहम्मद को भी मानते हैं। वह ये भी मानते हैं कि पैगंबर मोहम्मद आखिरी बार अल्लाह के मैसेज को लेकर धरती पर आए थे।

49 साल पहले मक्का में अहमदिया को गैर-मुस्लिम बताया गया
सऊदी अरब अहमदिया को मुस्लिम नहीं मानता है। 2018 में सऊदी अरब ने अहमदिया के हज करने पर पाबंदी लगा दी। अहमदिया हज के लिए जाते हैं तो उन्हें हिरासत में लेकर वापस उनके देश भेजा जाता है।

आज से करीब 49 साल पहले 1974 में मक्का में इस्लामिक फिक्ह काउंसिल ने एक फतवा जारी किया था, जिसमें अहमदिया संप्रदाय और उसके अनुयायियों को काफिर और गैर-मुस्लिम करार दिया गया था। इसके बाद अलग-अलग समय पर मुस्लिम संगठनों की कई ऐसी बैठकें हुई।

कई मुस्लिम देशों में वैचारिक मतभेद की वजह से अहमदिया मुस्लिमों की गिरफ्तारी तक हो जाती है। इसी वजह से कई जगहों पर इस समुदाय से जुड़े लोग अपनी पहचान तक बताने या सार्वजनिक करने से बचते हैं। सरकारी कागजों में भी ये गलत जानकारी देने लगते हैं।

1974 से ही पाकिस्तान में अहमदिया को मुस्लिम नहीं माना जाता है
साल 1974 की बात है। पाकिस्तान में दंगे भड़क गए। दंगे में अहमदिया समुदाय के करीब 27 लोगों की हत्या हो गई थी। इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुसलमानों को ‘नॉन-मुस्लिम माइनॉरिटी’ बता दिया था।

उस समय इसका अहमदिया समुदाय के लोगों ने खूब विरोध किया था। हालांकि, बाद में पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298 के जरिए अहमदिया को मुस्लिम कहना जुर्म करार दिया गया। अगर कोई अहमदिया खुद को मुस्लिम बताता है तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है। 2002 में अहमदिया लोगों के लिए पाकिस्तान सरकार ने अलग वोटर लिस्ट प्रिंट करवाई, जिसमें उन्हें गैर-मुस्लिम माना गया था। हाल ये है कि पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों का कब्रिस्तान से लेकर मस्जिद तक अलग है।

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