कॉमनवेल्थ गेम्स को ब्रिटिश गुलामी का प्रतीक कहा गया:मिल्खा सिंह ने दिलाया था पहला गोल्ड, आज से 213 भारतीय खिलाड़ी इसमें खेलेंगे
28 जुलाई से बर्मिंघम में 22वें कॉमनवेल्थ गेम्स का आगाज हो रहा है। भारत के 213 खिलाड़ी 16 खेलों में शिरकत करेंगे। इस आर्टिकल में आगे हम जानेंगे कि कॉमनवेल्थ गेम्स के इतिहास में अब तक भारत का प्रदर्शन कैसा रहा है। देश के लिए इस इवेंट में पहला मेडल किसने जीता। हम यह भी जानेंगे कि क्यों देश में एक तबका इन खेलों में भारत की भागीदारी के खिलाफ है।
92 साल से हो रहा है आयोजन
20वीं सदी की शुरुआत में दुनिया के करीब 40% हिस्से पर ब्रिटेन का राज था। 1911 में ब्रिटिश साम्राज्य को सेलिब्रेट करने के लिए फेस्टिवल ऑफ ब्रिटिश एंपायर की शुरुआत की गई। इसी फेस्टिवल के तहत 1930 में पहली बार कनाडा के हेमिल्टन शहर में साम्राज्य के अधीन आने वाले देशों की भागीदारी वाले मल्टीस्पोर्ट्स इवेंट की शुरुआत हुई। पहले इसे ब्रिटिश एम्पायर गेम्स कहा गया और बाद में इसका नाम कॉमनवेल्थ गेम्स रखा गया। तब से अब तक 1942 और 1946 को छोड़कर हर चार साल में इन गेम्स का आयोजन हो रहा है।
दो वजहों से होता है भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स का विरोध
भारत 1947 में आजाद हुआ और आज की तारीख में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत की GDP अब ब्रिटेन की GDP के आस-पास है। ऐसे में देश का एक बड़ा तबका भारत की कॉमनवेल्थ गेम्स में भागीदारी के खिलाफ आवाज उठाता रहा है। इनका कहना है कि यह इवेंट ब्रिटेन की गुलामी का प्रतीक है लिहाजा भारत को इसमें भाग लेना छोड़ देना चाहिए। कॉमनवेल्थ गेम्स के विरोध की दूसरी वजह प्रतिस्पर्धा का कमजोर स्तर है। कॉमनवेल्थ गेम्स का लेवल ओलिंपिक और एशियन गेम्स की तुलना में कमतर रहा है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन खेलों में हिस्सा लेने से भारतीय खिलाड़ियों में कोई सुधार नहीं आता। वे कमजोर खिलाड़ियों को हराकर आत्ममुग्ध हो जाते हैं और ओलिंपिक में इस आत्ममुग्धता की हवा निकल जाती है।
अब जानते हैं कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के प्रदर्शन का इतिहास
चार साल में एक बार आयोजित होने वाले इस इवेंट में भारत चार संस्करण (1930,1950,1962 और 1986) को छोड़कर सभी में शामिल रहा है। भारत ने 1934 में लंदन में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में डेब्यू किया। लंदन कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय दल में छह एथलीट शामिल थे, जिन्होंने 10 ट्रैक एंड फील्ड इवेंट्स और एक कुश्ती स्पर्धा में भाग लिया था। भारत ने अपने पहले कॉमनवेल्थ गेम्स में केवल एक मेडल जीता था। पुरुषों के 74 किग्रा फ्रीस्टाइल कुश्ती इवेंट में पहलवान राशिद अनवर ने ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। अगले 24 साल तक इन खेलों में यह भारत का इकलौता मेडल रहा। 1958 में फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह ने देश के लिए पहला गोल्ड मेडल जीता।
21वीं सदी में भारत बना कॉमनवेल्थ गेम्स का सुपरपावर
भारत ने अब तक कॉमनवेल्थ गेम्स में कुल 503 पदक जीते हैं। इनमें से 350 पदक उसने आखिरी 5 कॉमनवेल्थ गेम्स में हासिल किए। भारत ने मलेशिया में 1998 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स तक 153 पदक ही जीते थे। यानी आखिरी 5 सीजन में भारत के प्रदर्शन में करीब 200 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है।
महिला एथलीटों ने भी कॉमलवेल्थ गेम्स से बनाई पहचान
1958 का कार्डिफ कॉमनवेल्थ महिलाओं की भागीदारी के लिहाज से ऐतिहासिक रहा था, जहां ट्रैक एंड फील्ड एथलीट स्टेफनी डिसूजा और एलिजाबेथ डेवनपोर्ट राष्ट्रमंडल खेलों में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनीं थी। जहां एक ओर शुरुआती वर्षों में विजेताओं की सूची में पुरुषों का दबदबा देखने को मिला तो वहीं, भारतीय महिलाओं ने भी पिछले कुछ संस्करणों में अपने प्रदर्शन में सुधार किया है।
डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया ने 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स में एथेलेटिक्स में भारत के लिए दूसरा गोल्ड जीता। ऐसा करने वाली वह मिल्खा सिंह के बाद दूसरी खिलाड़ी बनीं। इस फील्ड में यह स्वर्ण पदक 52 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आया।
पिछले पांच इवेंट में टॉप-5 में रहा भारत
2000 के दशक के बाद से भारत लगातार पॉइंट्स टेबल में टॉप 5 देशों में शामिल रहा है। 2002 के मैनचेस्टर CWG में भारत 69 पदकों के साथ चौथे पायदान पर रहा था। 2006 के मेलबर्न कॉमनवेल्थ खेलों में हिंदुस्तानी दल ने 50 पदकों के साथ चौथा स्थान हासिल किया। 2010 के नई दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने 101 पदक जीते और 39 स्वर्ण, 26 रजत और 36 कांस्य पदकों के साथ लीडरबोर्ड पर दूसरे स्थान पर रहा। यह अब तक भारत का सबसे सफल राष्ट्रमंडल खेल बना हुआ है।
अब जानिए कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लेने के फायदे
कॉमनवेल्थ गेम्स एक जमाने में जरूर गुलामी का प्रतीक रहा है लेकिन आज की तारीख में यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मल्टी स्पोर्ट्स इवेंट है। कॉमनवेल्थ गेम्स का का आयोजन एशियन गेम्स से ठीक पहले होता है। इससे भारतीय एथलीटों को एशियन गेम्स की बेहतर तैयारी का मौका मिलता है। साथ ही यह दो ओलिंपिक गेम्स के बीच में होता है। इससे खिलाड़ियों को ओलिंपिक के लिहाज से खुद को परखने का मौका मिलता है।