खूबसूरत कश्मीर की बदनाम कहानी: इंदौर में बसे पंडित बोले- मस्जिदों से आवाजें आईं अपनी बहू-बेटियों को छोड़कर भाग जाओ, हम आधी रात में निकले
उधमपुर में डेढ़ महीने तक शरणार्थियों के साथ खुले में रहे। इसके बाद छह महीने जम्मू में रहे। जम्मू से निकलकर दिल्ली और गाजियाबाद के आसपास रहे, जहां सरकार ने हमें स्थान उपलब्ध कराया था। पढ़ाई पूरी होने के बाद 2001 में इंदौर आकर पीथमपुर में नौकरी की और 2005 में इंदौर में ग्लास का बिजनेस शुरू किया।
फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद ठंडी तासीर वाली जन्नत का दहकता मुद्दा फिर चर्चा में है। मुद्दा तीन दशक पुराना है, लेकिन इसकी गरमाहट अब भी जस की तस है। कश्मीर के खौफनाक हालात के बीच भागकर इंदौर में बसे वीरेंद्र कौल अब 50 साल के हो चुके हैं। घर छोड़ने का दर्द उनके जेहन में आज भी कायम है। कौल के मुताबिक हमारा परिवार सेब के ट्रक में छिपकर उधमपुर आया था।
उधमपुर में डेढ़ महीने तक शरणार्थियों के साथ खुले में रहे। इसके बाद छह महीने जम्मू में रहे। जम्मू से निकलकर दिल्ली और गाजियाबाद के आसपास रहे, जहां सरकार ने हमें स्थान उपलब्ध कराया था। पढ़ाई पूरी होने के बाद 2001 में इंदौर आकर पीथमपुर में नौकरी की और 2005 में इंदौर में ग्लास का बिजनेस शुरू किया।
बहू-बेटियों को छोड़कर कश्मीर से भाग जाओ
वीरेंद्र ने बताया, 28 अक्टूबर 1989 का वह दिन मैं और मेरा परिवार कभी नहीं भूलेगा। उस वक्त मेरी उम्र मेरी 16-17 साल थी। मैं 9वीं में पढ़ता था। हमारे घर को एक हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ ने घेर लिया था और पास की मस्जिदों से आवाजें आईं कि बाहर निकलो। बहू-बेटियों को छोड़कर कश्मीर से भाग जाओ। हम सभी बाहर आए तो मुस्लिम युवकों की भीड़ खड़ी थी। सभी ने उपद्रव शुरू कर दिया। तब हमारे पास करीब 50 हजार रुपए के गहने थे।
वे घर का सामान लूटने लगे और हमारे मकान में आग लगा दी। एक व्यक्ति मेरी साइकिल ले गया जो मैं आज भी नहीं भूला हूं। हम सभी बेबस थे, क्योंकि वहां हर पंडित परिवार के साथ ऐसा ही हो रहा था। हमारा परिवार भी आधी रात में ट्रक में छुपकर भागा था। परिवार में माता-पिता के अलावा दो बहनें भी थीं। पड़ोसियों तक ने मदद नहीं की। पड़ोसी ही हमारा सामान उठाकर ले गए।
अखरोट-सेब के बगीचे छोड़कर भागना पड़ा
कौल को आज भी जब अपनी लुटी हुई गृहस्थी व जलते घर का मंजर याद आता है, तो उन्हें अंदर तक झकझोर देता है। हजारों लोगों की भीड़ में किस तरह उन्हें परिवार के साथ वहां से भागना पड़ा था। खुद के अखरोट व सेब के बाग उन्होंने किन हालात में छोड़े, यह पीड़ा आज भी है।
याद आता है पुश्तैनी मकान
कौल ने भले ही इंदौर में अपना बिजनेस जमा लिया हो, लेकिन खूबसूरत कश्मीर और वहां अपना पुश्तैनी मकान आज भी याद आता है। कौल ने बताया कश्मीर के हालात 1986 से बिगड़ना शुरू हुए , जबकि इसके पहले सब अच्छा चल रहा था। फिर आतंकवाद व अलगाववाद से जो हालात पैदा हुए वे किसी से छिपे नहीं है। मेरे परिवार में तब 8 लोग थे। सभी पर बहुत अत्याचार हुए। कई परिवारों को अपना घर, मकान, बाग बेचकर पलायन करना पड़ा।
1986 में घाटी में पंडितों को भगाने जैसे अत्याचार शुरू हुए। इस दौरान काफी संघर्ष भी हुआ और पूरा इलाका कर्फ्यू के साए में रहा। फिर जिस तरह घाटी से पंडितों को भगाना शुरू किया तो उस दौरान मेरी स्कूली शिक्षा चल रही थी। हमारा घर पुलवामा के पास था जो कश्मीर के सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। हमारे मकान के आसपास और भी पंडित रहते थे।
कश्मीर में वापस बसना चाहते हैं
वीरेंद्र के मुताबिक सरकार ने कुछ समय पहले कहा था कि कब्जा ले लो। तीन साल पहले जब उन्होंने कश्मीर जाकर अपना मकान देखा तो खंडहर बन चुका था। उसके खिड़की-दरवाजे तक लोग ले गए थे। उनका मकान 4 मंजिला था ऊपर की दो मंजिल जल गई थीं, जबकि ग्राउंड फ्लोर व पहली मंजिल को थोड़ा नुकसान हुआ था।
वीरेंद्र ने बताया कि मंदिर का गुम्बद तक तोड़ दिया गया था। सरकार से हमारा एक ही कहना है कि सभी को कश्मीर में एक जगह बसाए और सामूहिक सुरक्षा दें। ‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्म में 30 प्रतिशत सच्चाई है जबकि 70 प्रतिशत नर्क बताया नहीं गया है। इंदौर बहुत अच्छा शहर है। आज भी हम कश्मीर जाकर बसना चाहते हैं, लेकिन हमारी सुरक्षा की गारंटी पूरी हो।
Kashmiri पंडितों की 7 दर्दनाक कहानियां, 31 साल बाद जानिए 19 जनवरी को क्या हुआ था
31 साल पहले 19 जनवरी को वो दिन जब कश्मीरी पंडितों को अत्याचार का सामना करना पड़ा और उनके अपने लोगों ने ही घरों से भाग जाने पर मजबूर किया. कश्मीर में हिंदुओं के साथ कैसी त्रासदी हुई? कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ क्या हुआ? ये सच आपको आज जरूर जानना चाहिए, क्योंकि आज देशभर में अल्पसंख्यक के नाम पर नया आंदोलन खड़ा किया जा रहा है. कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म और उनके दर्द को आप महसूस करना चाहते हैं तो ZEE NEWS पर इन कश्मीरी पंडितों की झकझोर देने वाली कहानी पढ़िए…
तमाशबीन बनी रही फारुक अब्दुल्ला सरकार
उस वक्त जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार थी, लेकिन सही मायने में वहां हुकूमत चल रही थी आतंकवादियों और अलगाववादियों की. कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के खिलाफ आतंकवाद का ये खूनी खेल शुरू हुआ था साल 1986-87 में, जब सैय्यद सलाहुद्दीन और यासीन मलिक जैसे आतंकवादी जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ रहे थे.
साल 1987 के विधान सभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की जनता के सामने दो रास्ते थे- या तो वो भारत के लोकतंत्र में भरोसा करने वाली सरकार चुने या फिर उस कट्टरपंथी यूनाइटेड मुस्लिम फ्रंट का साथ दे, जिसका मंसूबा कश्मीर को पाकिस्तान बनाना था और जिसके इशारे पर कश्मीरी पंडितों की हत्याएं की जा रही थीं. हिंसा और आतंकवाद के माहौल में भी जम्मू-कश्मीर की जनता ने अपने लिए लोकतंत्र का रास्ता चुना. फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. उसके बाद कट्टरपंथियों ने कश्मीर की आजादी की मांग और तेज कर दी और हिंदुओं का नरसंहार होने लगा, लेकिन जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) की फारुक अब्दुल्ला सरकार कट्टरपंथियों के आगे तमाशबीन बनी रही.
अचानक रातों-रात कश्मीरी पंडितों के पड़ोसी पराए हो गए
कश्मीरी पंडित शशि टिकू गंजू का कहना है, ‘मुस्लिम पड़ोसी थे. वो भी वहां रहते थे और हर कोई धमकी दे रहे थे कि निकल यहां से जाओ. अचानक रातों रात हिंदुओं के घरों पर पोस्टर चिपका दिए गए.’
कश्मीरी पंडित नीरजा साधु ने कहा, ‘वो आपके घर की दीवारों पर पोस्टर लगा देते थे. सीधे ना मिले, लेकिन जब आपको आपके घर की दीवारों पर पोस्टर मिलेगा कि आप निकलोगे नहीं तो आपको उड़ा देंगे. आपका घर जला देंगे. ये सीधी धमकी है.
रातों रात होने लगा अल्पसंख्यक हिंदुओं का नरसंहार
नीरजा साधु ने कहा, ‘ऐसा लग रहा था, जैसे अब हमारी जिदगी यहीं खत्म हो जाएगी. मुझे नहीं पता कि ये हमें जलाएंगे, मारेंगे, कत्लेआम करेंगे, जो भी करेंगे.’ शशि टिकू गंजा का कहना है, ‘मैंने अपनी आंखों से देखा है जो सामने मिल गया उसे काट दिया और फेंक दिया. बोरे में बंद करके फेंक देते थे.’
अचानक रातों रात मस्जिदों से देशविरोधी नारे गूंजने लगे
कश्मीरी पंडित आदित्य बकाया ने कहा, ‘सभी नारे लगा रहे थे. यहां क्या चलेगा- निजाम-ए-मुस्तफा. ‘असि गछि पाकिस्तान बटव रोअस त बटनेव सान’. इसका मतलब हुआ ‘यहां बनेगा पाकिस्तान, हिंदुओं के बगैर, लेकिन उनकी औरतों के साथ.’
अचानक रातों रात मंदिर तोड़ और जला दिए गए
कश्मीरी पंडित नीरजा हाकू का कहना है, ‘हमारे घर में शिवजी का मंदिर भी था. उस मंदिर के साथ पूरा घर जला दिया गया. अचानक रातों-रात कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बन गए.’
कश्मीरी पंडित गौरव बजाज का कहना है, ‘मुझे अभी भी याद है जम्मू में हम देखते थे कि हमारे बड़े-बुजुर्ग साधुओं से ये पूछा करते थे कि बाबा हम कश्मीर कब वापस जाएंगे. और वो घर आकर बताते थे कि बाबा ने कहा है अगले साल सितंबर में वापस जाएंगे, अगले साल दिसंबर में वापस जाएंगे.’
‘अंजाम भुगतो या फिर इस्लाम अपनाओ’
19 जनवरी 1990 शुक्रवार की सुबह डल झील पर शिकारा का संगीत नहीं, मुस्लिम कट्टरपंथियों का शोर सुनाई पड़ रहा था. हिंदुओं के घरों की दीवारों पर धमकी भरे पोस्टर लगा दिए गए थे. कश्मीर के कोने-कोने में मस्जिदों से फरमान जारी किए जा रहे थे. फरमान कश्मीर में रहने वाले गैर-मुस्लिमों के खिलाफ. फरमान कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के खिलाफ और फरमान ये था कि या तो कश्मीर छोड़ो या अंजाम भुगतो या फिर इस्लाम अपनाओ.
‘जॉब छोड़कर चले जाएं, नहीं तो घर जला देंगे’
कश्मीरी पंडित नीरजा साधु का कहना है, ’19 जनवरी को मैंने या मेरे परिवार ने ये नहीं सोचा कि हमेशा के लिए हम यहां से चले जाएंगे, क्योंकि उससे पहले दिसंबर में मेरे पिताजी को धमकी भरे फोन कॉल्स आए थे. उसमें ये बोला था कि आप जॉब छोड़कर चले जाएं यहां से, नहीं तो आपका घर जलाएंगे. आपकी बेटी को ले जाएंगे. आपके पूरे परिवार को जला देंगे. शशि टिकू गंजू का कहना है, ‘धमकियां मिल रही थीं. यहां से निकल जाओ, नहीं तो मार देंगे.’
कश्मीर में हिंदू होने की कीमत चुकाई
कश्मीरी पंडित नीरजा हाकू का कहना है, ‘या तो हम इतने भोले थे, मासूम थे या हमें समझ में नहीं आया. लेकिन मस्जिदों में ऐसे चलते हुए हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि कुछ सोचा नहीं कि मस्जिद में ये सब चल रहा है. पर जो 19 जनवरी को हुआ तो लगा कि ये सब जगह तो चल रहा था.’
मस्जिद से हिंदुओं को मिटाने का हुआ ऐलान
कश्मीरी पंडित नीरजा साधु का कहना है, ‘जब ये आतंकवाद शुरू हुआ, मेरा एक पड़ोसी था जिसका नाम हाजी था. वो हर रोज आया करते थे और कहते थे धर साहब-धर साहब आपको ये जगह छोड़नी होगी वर्ना आपके घर की महिलाओं का अपहरण हो जाएगा. उनके साथ काफी गलत-गलत चीजें की जाएंगी. उनकी हत्या भी की जा सकती हैं.
कश्मीरी पंडितों के घरों में दाखिल हो जाती भीड़
हथियार लहराती हुई भीड़ अल्लाहु अकबर के नारों के साथ अचानक कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के घरों में दाखिल हो जाती और उन्हें धमकाती थी. मुस्लिम कट्टरपंथियों ने गैर-मुस्लिमों के लिए ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी, जिसमें उनके पास दो ही विकल्प थे- या तो कश्मीर छोड़ो या फिर दुनिया.
नीरजा साधु का कहना है, ‘ऐसा लग रहा था जैसे अब हमारी जिंदगी यहीं खत्म हो जाएगी. मुझे नहीं पता कि ये हमें जलाएंगे, मारेंगे, कत्लेआम करेंगे, जो भी करेंगे. लेकिन फिर भी हमने ये नहीं सोचा था कि हमें यहां से निकलना है.’ उन्होंने कहा, ‘आप बस में बैठे हैं तो पीछे से बम ब्लास्ट हो रहा है. पता नहीं कहां से आया. हम चल रहे हैं पीछे से किसी को गोली लगी. हमें तो पता ही नहीं चलता था कि हो क्या रहा है.’
एक दिन में 60 हजार कश्मीरी पंडितों ने छोड़ी घाटी
एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ 19 जनवरी 1990 को ही 60 हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों ने मजबूरन घाटी छोड़ दी. घाटी में उस वक्त कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) की आबादी करीब 5 लाख थी, लेकिन कश्मीर को इस्लामिक स्टेट बनाने की मजहबी सोच की वजह से साल 1990 के अंत तक 95 प्रतिशत कश्मीरी पंडित अपना घर-बार छोड़ कर वहां से चले गए.
इस दौरान कश्मीरी पंडितों से जुड़े 150 शैक्षिक संस्थानों को आग लगा दी गई. 103 मंदिरों, धर्मशालाओं और आश्रमों को तोड़ दिया गया. कश्मीरी पंडितों की दुकानों और फैक्ट्रियों में लूट की 14 हजार 430 घटनाएं हुई. 20 हजार से ज्यादा कश्मीरी पंडितों की खेती योग्य जमीन छीनकर उन्हें भगा दिया गया. कश्मीरी पंडितों के घर जलाने की 20 हजार से ज्यादा घटनाएं हुईं और 1100 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को बेहद निर्मम तरीके से मार डाला गया.
मंदिर के साथ पूरा घर जला दिया गया
नीरजा हाकू का कहना है, ‘मेरे ससुर जिनका नाम था बीएन खुशू. वो जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) के पहले साइक्रेटिस्ट थे और उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी जम्मू-कश्मीर के लोगों की सेवा में खपा दी. उनकी जिंदगी का आखिरी दिन, वो यही कहते रहे कि क्या हम श्रीनगर वापस जा सकते हैं. दो या तीन दिन बाद जब वो जम्मू पहुंचे. उन्हें खबर मिली कि उनका घर जलाया जा चुका है और हमारे घर में शिवजी का मंदिर भी था. उस मंदिर के साथ पूरा घर जला दिया गया.
भाईचारे वाली सोच अचानक जलकर हो गई राख
कश्मीरी पंडित शशि टिकू गंजू का कहना है, ‘जो आजू-बाजू लोग थे. अपने ही लोग पराए हो गए थे, जो कल तक इतने अच्छे थे. मुस्लिम पड़ोसी थे. वो भी वहां रहते थे. हर कोई धमकी दे रहे थे कि यहां से निकल जाओ. कभी भी कुछ हो सकता है.’
कश्मीरी पंडित आदित्य बकाया ने कहा, ‘इन सारी घटनाओं के लिए कश्मीर के मुस्लिम जिम्मेदार हैं. मैं ये नहीं कह रहा हूं कि सारे मुसलमान, लेकिन बहुत सारे मुसलमान इसमें शामिल थे. हां उन्हें आर्थिक और राजनीतिक समर्थन पाकिस्तान से मिला, लेकिन वो स्थानीय कश्मीरी मुसलमान ही थे, जिन्होंने इस स्थिति को जन्म दिया. कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के खिलाफ मुहिम चलाई. ये कोई जमीन, शिक्षा, आर्थिक मुद्दा नहीं सिर्फ धर्म का मुद्दा था.’
कश्मीरी पंडितों के खिलाफ भरा जा रहा था जहर
कश्मीरी पंडित गौरव बजाज ने कहा, ‘हम कश्मीर में पीटीवी देख सकते थे. वहां पाकिस्तान का पीटीवी बहुत लोकप्रिय था. पीटीवी के जरिए उस दौर में कश्मीर के मुसलमानों को उकसाया जा रहा था. उनके दिमाग में जहर भरा जा रहा था. ऐसे शो दिखाए जा रहे थे जो कश्मीरियों को भड़काने के लिहाज से ही बनाए गए थे. कश्मीर में दुष्प्रचार का बड़ा माध्यम बन चुका था पाकिस्तान का पीटीवी. ग्लोबल जेहाद और ईरान की तरह इस्लामिक फ्रीडम मुवमेंट इन कश्मीर जैसे विचार फैलाये जा रहे थे और सभी लोग ये सबकुछ देख रहे थे. अगर मैं मुसलमान होता तो ये सब देखकर काफी गुस्से में आ जाता.’
मीडिया को भी नहीं दिखे कश्मीरी पंडितों पर हो रहे जुल्म
पाकिस्तानी मीडिया और पाकिस्तान की सरकार कश्मीर में आतंकवाद और हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार की पूरी स्क्रिप्ट लिख रही थी. हमारे देश में सरकार तो छोड़िए मीडिया को भी कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) पर हो रहे ज़ुल्म नहीं दिखे. कश्मीरी पंडित अशोक व्यास का कहना है, कश्मीर में हिंदुओं के साथ जो कुछ हुआ. उसकी खबरें कश्मीर तो छोड़िए राजस्थान समेत देश के किसी भी भाग में बड़े स्तर पर नहीं छपीं.’
बांटे जा रहे थे हिंदुओं के खिलाफ भड़काने वाले कैसेट्स
कश्मीरी पंडित गौरव बजाज का कहना है, ‘वो दुष्प्रचार की सामग्रियां बांटते थे. वीसीआर कैसेट्स दिए जाते थे. हम जानते थे कि ये दुष्प्रचार वाले वीडियो सर्कुलेट हो रहे हैं. उस वीडियो में दिखाया जाता था कि कैसे आतंकियों की ट्रेनिंग होती है. इसे घर-घर फैलाया जाता था. इन सबसे ना सिर्फ कश्मीरी मुसलमानों में आक्रोश बढ़ रहा था, बल्कि उनमें ये भरोसा जाग रहा था कि हम अलग देश बन सकते हैं. ये सबकुछ पाकिस्तान की ओर से हो रहा था. कश्मीर के लोगों का इस्तेमाल करके पाकिस्तान भारत को अस्थिर करना चाहता था.’
गौरव बजाज का कहना है, ‘जो युवा मुसलमान थे उन्होंने सच पर भरोसा करना छोड़ दिया. दुष्प्रचार को सच मानने लगे. उन्होंने लगने लगा कि वो भी आने वाले कल में पाकिस्तान बन जाएंगे. कश्मीर में मुसलमानों के बीच पाकिस्तानी करंसी बांटी जा रही थी. उनका समय पाकिस्तान के स्टेंडर्ड टाइम के हिसाब से तय हो रहा था. मस्जिदों से लेकर कश्मीर की गलियों तक पाकिस्तान के समर्थन में नारे लग रहे थे. कश्मीर की आजादी की आवाज गूंज रही थी. मुस्लिम महिलाएं और बच्चे भी बोलते थे- कश्मीर में क्या आएगा- निजाम-ए-मुस्तफा.’
हिंदुओं के खिलाफ हर तरफ लग रहे थे नारे
कश्मीरी पंडित आदित्य बकाया ने कहा, ‘मुझे याद है सुबह के 4 बजे होंगे. बाहर अंधेरा था और मस्जिद से आवाजें आ रही थीं. बारामूला में वो मस्जिद मेरे घर से 15 फीट दूर थी. मेरी नींद खुली और मैंने अपनी बुआ को देखा वो खिड़की से देख रही थीं और रो रही थीं. ये सब मैंने इससे पहले कभी नहीं देखा था. मैंने बाहर देखा कि सड़कों पर लोग भरे हुए हैं. उन लोगों में महिलाएं और बच्चे भी थे. सभी नारे लगा रहे थे ‘यहां क्या चलेगा निज़ाम-ए-मुस्तफा.’ ‘असि गछि पाकिस्तान बटव रोअस त बटनेव सान.’ इसका मतलब हुआ कि ‘यहां जो कुछ भी बनेगा. हमें पाकिस्तान चाहिए हिंदुओं के बगैर, लेकिन उनकी औरतों के साथ.’
आदित्य बकाया ने कहा, ‘मुस्लिम पुरुष ज्यादा सक्रिय रोल में थे. उन्होंने बंदूक उठा ली थी, जबकि मुस्लिम महिलाएं कैंपेन ऑर्गनाइज कराने में सक्रिय भूमिका निभा रही थीं. मुस्लिम महिलाएं सड़कों पर उतरकर आजादी के नारे लगा रही थीं. ये सब पूरी प्लानिंग के साथ हो रहा था और मुस्लिम महिलाएं आतंकवादियों के लिए एक ढाल की तरह काम कर रही थीं.’
6-7 साल के बच्चे भी फेंक रहे थे पत्थर
कश्मीरी पंडित वीरेंद्र हाक का कहना है, ‘मैंने देखा जो 6-7 साल के बच्चे थे. वो पत्थर फेंक रहे थे. ऐसा क्यों कर रहे थे, ये उन्हें भी नहीं पता था. ये दुर्भाग्यपूर्ण था. मैं उस वक्त खुद को उन बच्चों से रिलेट कर पा रहा था, क्योंकि जिस तरह मेरा बचपन खत्म हो रहा है, ठीक उसी तरह ये बच्चे भी अपना बचपन खत्म कर रहे हैं.’
क्रिकेट मैच में भारत की जीत की भी कीमत चुकाई
कश्मीर के मुसलमानों के दिमाग में भारत के खिलाफ नफरत किस कदर भर दी गई. इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जब क्रिकेट के मैदान में भारत पाकिस्तान के खिलाफ जीत जाता था तो उस जीत की कीमत कश्मीर में हिंदुओं को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती थी. कश्मीरी पंडित शशि टिकू गंजू का कहना है, ‘अपने होमटाउन में जो घर होते थे, बड़े-बड़े घर होते थे. जब इंडिया-पाकिस्तान का मैच होता था और इंडिया जीत जाता था और पाकिस्तान हार जाता था. मेरे को अभी भी याद आता है. मैंने खिड़की से अपनी आंखों से देखा है कि जो सामने मिल गया उसे काट दिया और फेंक दिया और बोरे में बंद करके फेंक देते थे. उन खौफनाक मंजरों को मैं कभी भूल नहीं सकती. ये सब मैंने अपनी आंखों से देखा है. इंडिया जब जीत जाता है तो अपने मुस्लिम भाई लोग हैं तो वो आपको बर्दाश्त नहीं कर सकते. अगर इंडिया मैच जीत जाता है.’
घाटी में हर तरफ घूम रहे थे हिंदुओं के हत्यारे
कश्मीरी पंडित नीरजा साधु का कहना है, ‘एक दिन मैं, मेरे डैडी और मेरे डैडी के दोस्त. मुझे लगता है कि उस वक्त वो डीएसपी थे. हम एक दूसरे के पीछे चल रहे थे. अचानक गोली चल गई. मुझे लगा मेरे डैड को हिट किया. मैं उस वक्त 24 साल की थी. मैं बिना ये सोचे घर की तरफ भागी कि अगर गोली मेरे डैड को लगी है तो मुझे उन्हें अटेंड करना चाहिए. मैंने कोई रिएक्ट नहीं किया और भागी. मैं रो रही थी, चिल्ला रही थी. अपनी मां से कह रही थी कि सबकुछ खत्म हो गया. मेरे पिता मार दिए गए. उस स्थिति में पता नहीं चलता कि आप क्या बोल रहे हैं और वो कुछ समझ नहीं सकी. कुछ ही मिनटों बाद मेरे पिताजी घर आए. उन्होंने कहा मेरे दोस्त की हत्या हो गई. उनका नाम मिस्टर वाहतल था. उन्हें मार दिया.’
कश्मीरी पंडितों का खून बहाने वाले बन गए हीरो
कश्मीरी पंडित वीरेंद्र हाक का कहना है, ‘वो सभी आतंकी जो बाद में नेता बन गए. यासीन मलिक, जो कि JKLF का हिस्सा था. हुर्रियत नेता. ये सभी अलगाववादी नेता. इन लोगों ने ही कश्मीर में आतंकवाद शुरू किया. स्थानीय लोगों के लिए ये हीरो बन गए. लोगों ने उन्हें इज्जत देना शुरू कर दिया. तो वो धीरे-धीरे कश्मीर की जनता के लिए निगोशिएटर हो गए. किसी दूसरे राजनेताओं की तुलना में उनलोगों की बात जनता ज्यादा ध्यान से सुनने लगी. धीरे-धीरे राजनेताओं को भी ये एहसास होने लगा कि अगर कश्मीर में ज्यादा आकर्षण बटोरना है तो अलगाववादियों के साथ संपर्क बढ़ाना होगा.’
कश्मीरी पंडित अपने ही देश में बन गए शरणार्थी
19 जनवरी 1990 को जब कश्मीरी पंडित अपने ही घर से बेघर किए जा रहे थे. उस वक्त केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी और देश के गृहमंत्री महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद थे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया और इस तरह कश्मीरी पंडित अचानक अपने ही देश में शरणार्थी बन गए.
वीरेंद्र हाक का कहना है, ‘1986 में अनंतनाग में हिंदुओं के खिलाफ दंगे हुए. साउथ कश्मीर के शहर अनंतनाग में ये हुआ. और वो सिर्फ इसलिए, क्योंकि उन्हें लगा कि जम्मू में कुछ मुस्लिमों की हत्या हो गई और ये हिंदुओं ने किया इसलिए उन्होंने कश्मीर में हिंदुओं को मारना शुरू कर दिया. कइयों का रेप हुआ, कइयों की हत्या हुई. और बाद में गृह मंत्री ने स्टेटमेंट जारी किया, जिसमें इस नरसंहार के लिए हिंदुओं को जिम्मेदार माना गया.’
कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के ख्वाब को नए पंख लगे
कश्मीरी पंडित वीरेंद्र हाक का कहना है, ‘मुझे लगता है हमें वहां से घर छोड़े 30 साल से ज्यादा हो चुके हैं. ज्यादातर लोग उस दौर में जो थे बड़े-बुजुर्ग वो अब नहीं रहे. वो सभी ये पूछा करते थे कि हम कश्मीर कब वापस जाएंगे, लेकिन वो दिन कभी नहीं आया.’
पहली बार कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) की घर वापसी के ख्वाब को नए पंख लगे हैं. आदित्य बकाया ने कहा, ‘ये एक सच है कि हम जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में रह सकते हैं. वहां घर खरीद सकते हैं.’ नीरजा हाकू का कहना है, ‘हमें अंदाजा नहीं था कि ये दिन भी आएगा. अनुच्छेद 370 से आजादी के बाद पहली बार इन्हें महसूस हो रहा है कि शायद अब उन्हें अपने खूबसूरत कश्मीर को देखने का और वहां फिर से जीने का मौका मिल जाए.’