पंजाब में मतदान का असर:मालवा में बंपर वोटिंग से कांग्रेस को नुकसान; AAP का फायदा लेकिन अकाली भी चुनौती; दोआबा में चन्नी फैक्टर तो माझा में खेल फंसा
ढ़। पंजाब में 117 विधानसभा सीटों के लिए कुल 71.95% मतदान हुआ है। मालवा में बंपर वोटिंग हुई है। इसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है। वहीं आम आदमी पार्टी (AAP) को इसका फायदा नजर आता है लेकिन उनके लिए अकाली दल भी यहां चुनौती बनेगा। दोआबा में कांग्रेस के पहले SC सीएम चरणजीत चन्नी का फैक्टर चला है। वहीं माझा में मुकाबला फंसा हुआ है। जिनमें कुछ सीटों पर आप जबकि ज्यादातर में अकाली दल और कांग्रेस के बीच मुकाबला है।
राजनीतिक दलों के लिहाज से पढ़ें नफा-नुकसान
कांग्रेस : सबसे ज्यादा 59 सीटें मालवा में हैं। यहां ज्यादा मतदान हुआ है। इसका सीधा मतलब एंटी इनकंबेंसी है। पिछली बार कांग्रेस यहां से 40 सीटें जीती थी। इस बार नुकसान हो सकता है। दोआबा में 23 सीटें हैं, यहां कांग्रेस फायदे में नजर आती है क्योंकि चन्नी फैक्टर खूब चला है। पिछली बार 15 सीटें कांग्रेस जीती थी। माझा में कांग्रेस के दिग्गज चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार 25 में से 22 सीटें जीते थे लेकिन इस बार आंकड़ा कम हो सकता है।
आम आदमी पार्टी : मालवा में बंपर वोटिंग हुई है तो यहां से सीटें बढ़ सकती हैं। एंटी इनकंबेंसी का फायदा आप को ज्यादा मिलेगा। बढ़ी वोटिंग भी बदलाव मानी जाती है। इसमें एक और अहम बात है कि इस बार अकाली दल के मजबूत होने से एंटी इनकंबेसी का वोट बंटेगा तो उससे मालवा में आप को एकतरफा फायदा नहीं होगा। दोआबा में कुछ सीटों पर आप का असर है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। माझा में 3-4 सीटों पर पार्टी मुकाबले में है। वहां फायदा हो सकता है।
अकाली दल : पिछली बार अकाली दल बेअदबी के मुद्दे पर हाशिए पर चला गया। इस बार ऐसा कुछ नहीं था। मालवा में अकाली दल मजबूत होकर उभर सकता है। माझा में भी अकाली दल के दिग्गज चेहरे सीट निकाल सकते हैं क्योंकि यहां उतना ही मतदान हुआ है, जितने से हर बार हार-जीत बदलती रही है। दोआबा में भी कुछ सीटों पर अकाली दल के मजबूत कैंडिडेट हैं, उसका फायदा मिलेगा। शहरी सीटों पर अकाली दल की हालत पतली है क्योंकि भाजपा साथ नहीं है। अकाली दल ने खुद ही अपनी छवि पंथक पार्टी की बनाई है तो शहरी वोटर दूर होगा। जिसका नुकसान तीनों रीजन में होगा।
कैप्टन-भाजपा गठबंधन: शहरी सीटों पर बंपर वोटिंग नहीं है लेकिन इस बार भाजपा चौंका सकती है। यहां आप और अकाली दल का आधार ज्यादा नहीं है। कांग्रेस से नाराजगी हुई तो वोट भाजपा के खाते में जाएगा। डेरों के समर्थन से भी भाजपा को फायदा होगा। मल्टीकॉर्नर मुकाबले की वजह से हार-जीत का अंतर कम होगा, ऐसे में थोड़े वोट से भी जीत मिल सकती है।
ओवरऑल कांग्रेस मजबूत लेकिन चौंका सकता है अकाली दल
पंजाब में मतदान के बाद कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिख रही है। इसकी वजह पंजाब में हुई कम वोटिंग है। ज्यादा होती तो सरकार विरोधी लहर मानी जा सकती थी। वहीं कांग्रेस को दूसरा फायदा एंटी इनकंबेसी के वोट बंटने का है। अगर यह वोट सिर्फ आप को मिलते तो कांग्रेस को बड़ा नुकसान होता। हालांकि पिछली बार की तरह इस बार अकाली दल के प्रति पूरे पंजाब में बेअदबी और ड्रग्स का मुद्दा नहीं रहा। ऐसे में अकाली दल को भी लाभ हो सकता है। अकाली दल भी दिग्गज चेहरों की बदौलत चौंका सकता है। जो पिछली बार सिर्फ बेअदबी के मुद्दे पर हार गए थे।
पंजाब में मतदान संपन्न होने के बाद नेताओं के जीत को लेकर दावे तेज हो गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पंजाब में ऐसा विचित्र तरह से मतदान हुआ कि ज्योतिषी के अलावा कोई इसका आकलन नहीं कर सकता। कोई दूसरा नहीं बता पाएगा। वहीं कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा कि पंजाब में कांग्रेस जीत रही है। कांग्रेस फिर से सरकार बनाएगी। CM चरणजीत चन्नी ने हमें रास्ता दिखाया है। पंजाब चुनाव के लिए मतगणना 10 मार्च को होगी।
पंजाब में मतदान अलग कैसे
पूरे राज्य में एक जैसी लहर नहीं : असल में पंजाब के मालवा क्षेत्र में जहां बंपर वोटिंग हुई है, वहीं माझा और दोआबा में मतदान कम हुआ है। अमृतसर, लुधियाना और जालंधर जैसे बड़े शहरों में मतदान कम हुआ है। पूरे राज्य में एक जैसी लहर नहीं दिखाई दी। मालवा जहां सरकार में बदलाव का जोर दिखा तो माझा और दोआबा में वोटिंग नॉर्मल रही।
कांग्रेस से जुड़ा संयोग : पंजाब में जब भी वोटिंग कम होती है तो कांग्रेस को फायदा होता है। 2012 और 2017 में कांग्रेस इसी तरह सत्ता में आई थी। इस बार भी वोटिंग कम हुई है। हालांकि इसके अलावा पंजाब के वोटिंग ट्रेंड में जब भी वोटिंग % घटा है तो सरकार बदल जाती है। इनमें एक ट्रेंड कांग्रेस के पक्ष में है तो दूसरा खिलाफ है।
कुछ गठबंधन पहली बार : पहली बार अकाली दल और भाजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। अकाली दल से बसपा से गठबंधन कर लिया। भाजपा ने कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव ढींढसा की शिअद संयुक्त से गठजोड़ किया। कांग्रेस पहली बार कैप्टन के बगैर चुनाव लड़ रही है। वहीं 22 किसान संगठनों का संयुक्त समाज मोर्चा भी पहली बार चुनाव मैदान में था।
चन्नी बोले- दोनों सीटें जीत रहा हूं
CM चरणजीत चन्नी ने कहा कि मेरे बारे में कहा जा रहा था कि मैं चुनाव हार रहा हूं। मैंने दोनों जगहों से रिपोर्ट मंगवाई है और मैं चमकौर साहिब और भदौड़ सीट से जीत रहा हूं। पूरे पंजाब से भी रिपोर्ट मंगवा रहे हैं।
सुखबीर कह चुके – क्लीन स्वीप करेंगे
इससे पहले अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल कह चुके कि पंजाब में क्लीन स्वीप करेंगे। अकाली दल 80 से ज्यादा सीटें जीत रहा है।
पंजाब का मतदाता कभी कनफ्यूज नहीं रहता। ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य के चुनाव में कभी हंग एसेंबली की नौबत नहीं रही। मतदाताओं ने किसी एक पार्टी या गठबंधन की सरकार बना दी। इस बार भी राजनीतिक दलों को यही उम्मीद है। इस चुनाव से जुड़ी एक और रोचक बात है। वोटिंग % में जब भी बदलाव हुआ तो पंजाब में सरकार बदल गई। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि जब भी ऐसा हुआ तो कांग्रेस सत्ता में आ गई। इस बार कांग्रेस खुद ही सत्ता में है तो इसको लेकर सियासी पंडित जरूर माथापच्ची कर रहे हैं। पंजाब में इस बार मतदाताओं का क्या फैसला रहा, इसका पता 10 मार्च को मतगणना के दिन चलेगा।
मतदान कम या ज्यादा. लेकिन बहुमत मिलता है
पिछले 5 चुनावों की बात करें तो मतदान भले ही कम या ज्यादा हुआ हो, लेकिन बहुमत जरूर मिलता है। 1997 में 68.73% मतदान हुआ और अकाली दल-भाजपा गठबंधन को बहुमत मिला। 2002 में मतदान और कम होकर 62.14% रह गया लेकिन 62 सीटों के साथ कांग्रेस को बहुमत मिल गया। 2007 में मतदान बढ़कर 76% हुआ और 68 सीटों के साथ अकाली दल-भाजपा गठबंधन सत्ता में आ गया। 2012 में मतदान बढ़कर 78.30% हुआ और 68 सीटें जीत अकाली दल फिर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आ गया। 2017 में मतदान 1% कम हुआ और 77 सीटें जीत कांग्रेस सत्ता में आ गई।
कांग्रेस के साथ दोहरा संयोग
चुनाव में वोट % ट्रेंड को लेकर कांग्रेस के साथ खास संयोग है। पंजाब में जब कभी वोटिंग % घटा तो कांग्रेस को फायदा हुआ। 1997 में करीब 69% वोट के साथ अकाली दल के पास सत्ता रही। 2022 में यह वोट % घटकर 62% रह गया तो कांग्रेस सत्ता में आ गई। 2007 और 2012 में वोट % बढ़ा और अकाली दल लगातार 10 साल सत्ता में रहा। 2017 में वोट % एक फीसद गिरकर 77% हुआ तो कांग्रेस सत्ता में आ गई। इस लिहाज से देखें तो जब वोट % गिरा तो पंजाब में सरकार बदल गई। हालांकि तब कांग्रेस सत्ता में नहीं थी। इस बार कांग्रेस सत्ता में है और वोट % गिरना उसके हक में है लेकिन कम वोट % से सरकार में बदलाव कांग्रेस के खिलाफ है।