कपूरथला में कांग्रेसी दिग्गज आमने-सामने:राणा का सुल्तानपुर लोधी से कांग्रेसी कैंडिडेट को चैलेंज- कांग्रेस निकाले या रखे, अब चीमा को तड़ीपार करवाकर दम लेंगे

सुल्तानपुर लोधी से नवतेज चीमा को टिकट मिली को कपूरथला से विधायक और मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने अपने बेटे को वहां से आजाद प्रत्याशी के तौर पर खड़ा कर दिया। अब राणा ने चीमा को चैलेंज भी कर दिया है कि कांग्रेस उन्हें पार्टी में रखे या न रखे लेकिन अब वह चीमा को तड़ीपार करवा कर ही दम लेंगे।

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कपूरथला . पंजाब के रियासती जिला कपूरथला में सियासत का माहौल पूरी तरह से गरमा गया है। दो कांग्रेसी दिग्गजों के बीच चल रही सियासी रंजिश अब व्यक्तिगत हो गई है। दोनों में सियासी तलवारें खिंच गई हैं। मियान से निकली तलवार की तरह से ज़ुबान से निकले शब्द एक दूसरे को भेद रहे हैं।

सुल्तानपुर लोधी से नवतेज चीमा को टिकट मिली को कपूरथला से विधायक और मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने अपने बेटे को वहां से आजाद प्रत्याशी के तौर पर खड़ा कर दिया। अब राणा ने चीमा को चैलेंज भी कर दिया है कि कांग्रेस उन्हें पार्टी में रखे या न रखे लेकिन अब वह चीमा को तड़ीपार करवा कर ही दम लेंगे।

राणा गुरजीत सिंह ने आज से अपने बेटे राणा इंद्र प्रताप सिंह के लिए कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ पार्टी लाइन के विपरीत चलते हुए सुल्तानपुर लोधी में प्रचार भी शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि वह लगातार पांच दिन यहीं रहेंगे और बेटे इंद्र के लिए पूरा जोर लगाएंगे। उन्होंने यहां तक भी कहा कि वह गांव में जमीन भी खरीदने जा रहे हैं। यहां पर वह गौशाला के साथ-साथ घुड़साल भी बनाएंगे। वह गांव में गायें और घोड़े पालेंगे। नवतेज चीमा पर तंज कसते हुए कहा कि इससे निम्न स्तर क्या हो सकता है कि वह स्थानीय गौशाला से एक गाय ले गए और गाय की कीमत तक अदा नहीं की। उन्होंने चीमा पर रेत माफिया के साथ-साथ कब्जे करने वाले माफिया से मिले होने का आरोप भी लगाया।

राणा गुरजीत सिंह ने अपने बेटे राणा इंद्र प्रताप सिंह के लिए कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ पार्टी लाइन के विपरीत चलते हुए सुल्तानपुर लोधी में प्रचार भी शुरू कर दिया।
राणा गुरजीत सिंह ने अपने बेटे राणा इंद्र प्रताप सिंह के लिए कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ पार्टी लाइन के विपरीत चलते हुए सुल्तानपुर लोधी में प्रचार भी शुरू कर दिया।

शिकायत के बाद ज्यादा बागी हुए राणा

दरअसल, राणा गुरजीत सिंह कपूरथला जिला के तहत ही आती सुल्तानपुर लोधी सीट से अपने बेटे राणा इंद्र प्रताप सिंह के लिए टिकट चाहते थे। लेकिन पार्टी ने पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के खासमखास नवजोत सिंह चीमा को ही इस बार दोबारा फिर से मैदान में उतारा। इससे राणा गुरजीत सिंह भड़क गए। उन्होंने पहले तो अपनी भड़ास यह कहकर निकाली कि यदि सासंदों के बेटों को टिकट दिए जा सकते हैं तो फिर उनके लिए एक परिवार में एक टिकट की शर्त क्यों लगाई जा रही है। इसके बाद राणा इंद्र प्रताप सिंह आजाद प्रत्याशी के तौर पर सुल्तानपुर लोधी से खड़े हो गए। इसी दौरान चीमा के साथ जालंधर के विधायक बाबाव हेनरी व अन्य ने एक लिखित शिकायत सोनिया गांधी को भेज दी कि राणा गुरजीत सिंह पार्टी विरोधी काम कर रहे हैं और उन्हें पार्टी से बाहर निकाला जाए। इस चिट्ठी के बाद वह व्यक्तिगत ही हो गए। उन्होंने अब मूंछ का सवाल बना लिया है। अब वह सुल्तानपुर लोधी में ही डेरा जमाकर बैठ गए हैं। उन्होंने अब सीधे ही चैलेंज करना शुरू कर दिया है कि पार्टी अब उन्हें रखे या न रखे लेकिन वह नवतेज चीमा को सबक जरूर सिखाएंगे।

पिछले दिनों सुल्तानपुर लोधी में करवाई गई रैली के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू के साथ नवतेज चीमा।
पिछले दिनों सुल्तानपुर लोधी में करवाई गई रैली के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू के साथ नवतेज चीमा।

सिद्धू के कारण हुआ ज्यादा माहौल खराब

नवतेज सिंह चीमा प्रदेश कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू के खासमखास हैं। जबकि सिद्धू का राणा गुरजीत सिंह के साथ इक्कीस का आंकड़ा है। दोनों एक दूसरे के धुर विरोधी है। दोनों एक दूसरे को दबाने के लिए मौका ढूंढते हैं। पिछले दिनों नवतेज चीमा ने एक रैली रखी थी। इसमें कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू, सांसद डिंपा विशेष रूप से आए थे। लोगों को संबोधन करते हुए सिद्धू और चीमा ने कई बातें राणा गुरजीत सिंह के खिलाफ बोलीं। नवतेज चीमा ने यहां तक कहा था कि कुछ बाहरी लोग आकर सुल्तानपुर में कब्जा करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें सुल्तानपुर लोधी में घुसने नहीं दिया जाएगा। सिद्धू ने भी परोक्ष रूप से तो नहीं लेकिन अपरोक्ष रूप से कई तरह के लांछन राणा पर लगाए थे। इससे राणा की खुन्नस और ज्यादा बढ़ गई। इससे पहले भी जब राणा को मंत्री बनाया जाना था तो नवतेज सिंह चीमा और नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने खेमे के विधायकों को लेकर खूब विरोध किया था। तब खैहरा, चीमा और अन्य. विधायकों से एक चिट्ठी भी सोनिया गांधी को भिजवाई गई थी कि राणा को मंत्री पद की शपथ न दिलाई जाए। उन पर रेत माफिया से लेकर कई तरह से आरोप जड़े गए थे। लेकिन हाईकमान ने किसी की नहीं सुनी और राणा को मंत्री पद की शपथ दिला दी।

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