इंसान नहीं मशीनों के हाथ में होगा जीवन-मौत का फैसला? जानिए क्या हैं किलर रोबोट्स, जिन्हें बैन करने की उठी मांग?

जीवन और मौत का फैसला लेने की क्षमता इंसान के बजाय मशीनों के ऊपर छोड़ देने को ही मानवता के लिए खतरा माना जा रहा है और इसी वजह से किलर रोबोट्स पर बैन लगाने की मांग हो रही है।

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हाल ही में किलर रोबोट्स पर बैन लगाने के लिए UN की पहल पर जिनेवा में हुई 125 सदस्य देशों वाले समूह CCW की बैठक बेनतीजा समाप्त हो गई। किलर रोबोट्स-यानी हथियारों से लैस ऐसी मशीनें जो इस बात का निर्णय खुद ही लेती हैं कि हमला करना है या मारना है। इस बैठक का उद्देश्य, मानवता के लिए खतरे के रूप में देखते हुए किलर रोबोट्स पर बैन लगाना था, लेकिन कुछ ताकतवर देशों के विरोध की वजह से इस बैठक में कोई फैसला ही नहीं लिया जा सका।

आइए जानते हैं कि क्या होते हैं किलर रोबोट्स? क्यों है इनसे मानवता को खतरा? दुनिया भर में क्यों उठ रही है इन पर बैन लगाने की मांग?

क्या होते हैं किलर रोबोट्स?

  • किलर रोबोट्स या लीथल ऑटोनॉमस वेपंस सिस्टम (LAWS) -आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर आधारित ऐसी मशीनें या रोबोट्स हैं, जिनका काम इंसानी आदेश के बिना ही खुद से हमला करना या मारना होता है।
  • आसान शब्दों में कहें तो किलर रोबोट्स-हथियारों से लैस ऐसी मशीनें हैं, जो अपने आर्टिफिशियल दिमाग (AI) की मदद से खुद ये फैसला लेती हैं।
  • रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और इमेज रिकग्निशन में दिन-प्रतिदिन हो रहे सुधार से किलर रोबोट्स को और बेहतर बना पाना संभव हो पा रहा है।

ड्रोन से अलग होते हैं किलर रोबोट्स

ड्रोन जैसे मौजूदा सेमी-ऑटोमेटेड हथियारों के विपरीत, किलर रोबोट्स फुली-ऑटोनॉमस वेपंस होते हैं। किलर रोबोट्स में ह्यूमन ऑपरेशन का रोल नहीं होता है, यानी किलर रोबोट्स में जीवन और मौत का फैसला पूरी तरह से इसके सेंसर, सॉफ्टवेयर और मशीन की प्रोसेस पर छोड़ दिया जाता है।

अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में जिन ड्रोन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था, उन्हें किलर रोबोट्स नहीं माना जाता है, क्योंकि वे कहीं दूर स्थित इंसानों द्वारा ऑपरेट हो रहे थे, जहां इंसान ही लक्ष्य चुन रहे थे और तय भी कर रहे थे कि उसे शूट करना है या नहीं।

क्यों है किलर रोबोट्स से मानवता को बड़ा खतरा?

कुछ देशों द्वारा किलर रोबोट्स टेक्नोलॉजी में भारी-भरकम निवेश के बावजूद दुनिया के 70 से अधिक देश इस पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं। आइए समझते हैं कि आखिर किलर रोबोट्स से मानवता को क्यों एक बड़ा खतरा है?

  • जीवन और मौत का फैसला लेने की क्षमता इंसान के बजाय मशीनों के ऊपर छोड़ देने को ही मानवता के लिए खतरा माना जा रहा है और इसी वजह से किलर रोबोट्स पर बैन लगाने की मांग हो रही है।
  • किलर रोबोट्स के आलोचकों का तर्क है कि युद्ध की स्थिति में, टेक्नोलॉजी के एडवांसमेंट के बावजूद, इंसानी जानों का फैसला मशीनों पर छोड़ देना एक घातक निर्णय है। ये न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि मानवता के लिए भी खतरा है।
  • आलोचकों का कहना है कि मशीन या किलर रोबोट्स के लिए, एक बच्चे और एक वयस्क में या फिर, हाथ में बंदूक थामे या हाथ में झाड़ू या डंडा लिए इंसान में अंतर करना मुश्किल होगा
  • साथ ही किलर रोबोट्स के लिए हमला करने वाले दुश्मन सैनिक, घायल या आत्मसमर्पण करने वाले सैनिकों को अलग करना मुश्किल होगा।
  • रॉयटर्स के मुताबिक, किलर रोबोट्स के मुखर विरोधी रहे रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष पीटर मौरर ने जिनेवा कॉन्फ्रेंस के बाद कहा, “मौलिक रूप से, जीवन और मौत के मानवीय फैसलों को सेंसर, सॉफ्टवेयर और मशीनी प्रक्रियाओं से बदलने वाला ऑटोनॉमस वेपंस सिस्टम, समाज के लिए नैतिक चिंताएं पैदा करता है।”
  • अलजजीरा के मुताबिक, स्टॉप किलर रोबोट्स के समन्वयक रिचर्ड मोयस ने कहा, ”सरकारों को मशीनों द्वारा लोगों की हत्या के खिलाफ मानवता के लिए एक नैतिक और कानूनी रेखा खींचने की जरूरत है।”

किलर रोबोट्स को क्यों जरूरी बता रहे हैं कुछ देश?

किलर रोबोट्स पर बैन लगाने का विरोध करने वाले देश इसे भविष्य के लिए जरूरी बताते हैं। उनका तर्क है कि किलर रोबोट्स युद्ध की आपात स्थिति में इंसानी सैनिकों को न केवल नुकसान से बचा सकते हैं, बल्कि इंसानी सैनिकों की तुलाना में ज्यादा तेजी से फैसले भी ले सकते हैं।

किलर रोबोट्स के पक्ष में तर्क देने वालों का ये भी कहना है कि रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल, और परमाणु हमलों से प्रभावित क्षेत्रों में भी इंसानों के बजाय इन मिलिट्री रोबोट्स मशीनों का उपयोग किया जा सकता है। साथ ही बारूदी सुरंगों, जवाबी हमलों और जीवन के लिए खतरनाक मिशनों पर भी इन किलर रोबोट्स का इस्तेमाल क्रांतिकारी हो सकता है।

ऑटोनॉमस वेपंस सिस्टम बनाने में कौन से देश हैं आगे?

ऑटोनॉमस वेपंस सिस्टम या किलर रोबोट्स के जरिए भविष्य में होने वाली किसी भी जंग में आगे रहने के लिए कई देश कमर कस चुके हैं। किलर रोबोट्स के विकास की लड़ाई में अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और इजराइल जैसे देश तो करोड़ों डॉलर निवेश भी कर चुके हैं।

अमेरिकी सेना की नजरें कुछ सालों में अपनी जल, थल और वायु सेना को किलर रोबोट्स से लैस करना है। वहीं, रूस भी किलर रोबोट्स को ध्यान में रखकर न्यूक्लियर हथियारों से लैस सबमरीन विकसित कर रहा है। चीन ने कहा है कि वह किलर रोबोट्स को विकसित करने वाली तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का 2030 तक ग्लोबल लीडर होगा।

किलर रोबोट्स तकनीक के मामले में कहां खड़ा है भारत?

AI-आधारित हथियारों को लेकर हाल में भारत ने कुछ कदम उठाए जरूर हैं, लेकिन अभी भी डिफेंस में AI के इस्तेमाल का रोडमैप तैयार नहीं हो पाया है।

भारत ने ऑटोनॉमस वेपंस बनाने के लिए 2019 में दो एजेंसी- डिफेंस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काउंसिल (DAIC) और डिफेंस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रोजेक्ट एजेंसी (DAIPA) का गठन जरूर किया है, लेकिन अभी तक इसने कोई महत्वपूर्ण परिणाम नहीं दिए हैं।

भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में 1986 से ही सेंटर ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (CAIR) है, लेकिन डिफेंस में AI के इस्तेमाल को लेकर इससे अभी तक कुछ खास हासिल नहीं हो पाया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसने अभी तक AI-आधारित हथियारों का प्रोटोटाइप ही तैयार किया है, लेकिन सेना में शामिल किए जा सकने वाला असली हथियार (किलर रोबोट्स) बनाने से ये अभी कोसों दूर है।

दुनिया में तेजी से बढ़ रहा मिलिट्री किलर रोबोट्स का मार्केट?

हाल के वर्षों में दुनिया के कई ताकतवर देशों, जैसे अमेरिका, रूस और चीन में मिलिट्री रोबोट्स बनाने के लिए उनके डिफेंस बजट में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। AI आधारित ऑटोनॉमस डिफेंस सिस्टम बनाने में इजराइल, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश भी खूब निवेश कर रहे हैं।

रिसर्च फर्म मार्केट्स एंड मार्केट्स की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल मिलिट्री मार्केट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का शेयर 2020 में 6.3 अरब डॉलर (करीब 4780 करोड़ रुपये) था, जिसके 2025 तक 11.6 बिलियन डॉलर (8350 करोड़ रुपये) हो जाने का अनुमान है। कुछ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 2025 तक ये 18 अरब डॉलर (13,600 करोड़) हो सकता है।

क्यों हुई किलर रोबोट्स पर बैन की मांग को लेकर जिनेवा में बैठक?

इस साल मार्च में यूनाइटेड नेशंस (UN) ने कहा था कि संभव है कि पहला ऑटोनॉमस ड्रोन (किलर रोबोट्स) हमला लीबिया में हुआ हो। इसके बाद UN की पहल पर पिछले हफ्ते कन्वेंशन ऑन सर्टेन कन्वेंशनल वेपंस (CCW) के 125 सदस्य देशों की किलर रोबोट्स पर नए नियम बनाने को लेकर 5 दिनों की महत्वपूर्ण बैठक हुई, लेकिन 16 दिसंबर को CCW की छठी समीक्षा बैठक, लीथल ऑटोनॉमस वेपंस सिस्टम (LAWS) के विकास और उपयोग को लेकर किसी नियम को बनाए बिना ही समाप्त हो गई।

CCW के गठन का उद्देश्य किलर रोबोट्स से होने वाले खतरों की पहचान करना और उससे निपटने के उपाय सुझाना है। इस संगठन का मानना है कि अगर किलर रोबोट्स पर पूरी तरह से बैन नहीं लग सकता है, तो कम से इसे रेगुलेट किए जाने के नियम बनाए जाने चाहिए।

किलर रोबोट्स पर बैन लगाने का विरोध वे देश कर रहे हैं, जिन्होंने इस टेक्नोलॉजी में जमकर निवेश किया है। माना जा रहा है कि जिनेवा में हुई इस बैठक में किलर रोबोट्स पर बैन लगाने का सबसे अधिक विरोध अमेरिका और रूस जैसे देशों ने किया।

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