टकराव टालने की कोशिश:आज पुतिन से वीडियो कॉल पर बात करेंगे बाइडेन, यूक्रेन मुद्दे पर रहेगा फोकस

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वॉशिंगटन. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन आज रात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन से वीडियो कॉल पर बात करेंगे। दोनों नेताओं के बीच यह वर्चुअल मीटिंग ऐसे वक्त हो रही है जब पुतिन सरकार यूक्रेन पर हमलावर रुख अपना रही है। तमाम इंटेलिजेंस इस बात की तरफ इशारा कर रही है कि रूस ने यूक्रेन को तीन तरफ से घेरना शुरू कर दिया है और माना जा रहा है कि उसकी सेनाएं किसी भी वक्त इस देश पर हमला कर सकती हैं। दूसरी तरफ, अमेरिका और नाटो कोशिश कर रहे हैं कि रूस इस मामले पर पीछे हट जाए। अमेरिका ने तो रूस को हमले के नतीजे भुगतने की वॉर्निंग भी दी है।

रूस को धमकी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका और नाटो के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि रूसी सेनाएं किसी भी वक्त यूक्रेन पर हमला कर सकती हैं। अमेरिका और नाटो इसका जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। इन्होंने कहा है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उसे इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिस्टम से बाहर कर दिया जाएगा। आज बाइडेन रूसी राष्ट्रपति को यह बता भी सकते हैं।

मीटिंग पर दुनिया की नजर
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुतिन और बाइडेन के बीच कितनी देर बातचीत होगी, ये अभी तय नहीं है। माना जा रहा है कि इस मुलाकात के नतीजे का असर दुनिया पर जरूर पड़ेगा। आने वाले कुछ दिनों में इंटरनेशनल मार्केट्स और इकोनॉमी पर इस मुलाकात के नतीजे का साया दिखाई देगा।

अमेरिकी इंटेलिजेंस का मानना है कि रूस के एक लाख 75 हजार सैनिक यूक्रेन पर हमले के लिए हरी झंडी का इंतजार कर रहे हैं। 2014 में भी रूस ने यह कदम उठाया था। हालांकि, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि बाइडेन अमेरिकी सैनिको को यूक्रेन की हिफाजत के लिए भेजेंगे।

जो बाइडेन और पुतिन के बीच आखिरी मीटिंग इसी साल जून में जिनेवा में हुई थी। तब यूक्रेन के मुद्दे पर तनाव नहीं था।
जो बाइडेन और पुतिन के बीच आखिरी मीटिंग इसी साल जून में जिनेवा में हुई थी। तब यूक्रेन के मुद्दे पर तनाव नहीं था।

रूस-यूक्रेन विवाद है क्या
इसे आप मोटे तौर पर इस तरह देख सकते हैं कि यूक्रेन सरकार रूस के बजाए यूरोप को ज्यादा अहमियत देती है। 2014 में जब राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने यूरोप के बजाए रूस को तरजीह दी तो जनता नाराज हो गई। इसका फायदा उठाकर रूस ने यूक्रेन का हिस्सा कहे जाने वाले क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। अब वो यूक्रेन को यूरोप, अमेरिका या कहें पश्चिमी देशों की तरफ जाने से रोकना चाहता है।

दरअसल, रूस को डर है कि अगर यूक्रेन और पश्चिमी देशों की रिश्ते मजबूत हुए तो भविष्य में नाटो सेनाएं रूस के करीब पहुंच जाएंगी और ये उसके लिए बड़ा खतरा होगा। यही वजह है कि वो यूक्रेन को ही अपने कब्जे में लेना चाहता है। अमेरिका और नाटो इसका विरोध करते हुए यूक्रेन के साथ खड़े हो गए हैं।

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