SDM को सस्पेंड नहीं करा पाने से किसान हताश, भीड़ बंटने के डर से टिकैत समेत बड़े नेताओं को करनाल छोड़ना पड़ा

दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर जो किसान प्रदर्शन हो रहा है उसके मुकाबले करनाल का प्रदर्शन बहुत छोटा है। लघु-सचिवायल के सामने वाली सड़क पर 100-150 मीटर के एरिया में प्रदर्शन हो रहा है वह भी सिर्फ एक तरफ की सड़क तक। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि एक तरफ की सड़क जल्दी ही खोल दी जाएगी। ऐसे में ये बचा हुआ प्रदर्शन भी कितने दिनों तक टिकेगा ये बड़ा सवाल है।

करनाल .पिछले तीन दिन से हरियाणा के करनाल में किसानों ने डेरा डाला है। शुरुआत के दो दिन तो अच्छी खासी भीड़ और किसानों में जोश देखने को मिला। राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी सहित कई बड़े किसान नेताओं ने हुंकार भरी। ऐसा लग रहा था जैसे दिल्ली बॉर्डर की तरह किसान यहां भी आंदोलन का नया गढ़ बनाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तीसरे दिन यानी 9 सितबंर की शाम होते-होते भीड़ छंटने लगी, किसानों का उत्साह कमजोर पड़ने लगा। बड़े नेता यहां से निकल लिए।

इसकी सबसे बड़ी वजह है सरकार का सख्त स्टैंड, लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद भी सरकार ने SDM को सस्पेंड नहीं किया। यही वजह है कि राकेश टिकैत भी बिना मांग मनवाए वापस लौट गए। एक तरह से किसानों को यहां मुंह की खानी पड़ी है। इसलिए अब किसान आंदोलन के प्रभाव, अस्तित्व, प्रासंगिकता और भविष्य को लेकर नए सिरे से बात शुरू हो गई है।

टिकैत नहीं चाहते थे कि करनाल में नया मोर्चा खुले

करनाल में शुरुआत के दो दिन किसानों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली, लेकिन तीसरे दिन आंदोलन कमजोर पड़ गया, भीड़ कम हो गई।
करनाल में शुरुआत के दो दिन किसानों की अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली, लेकिन तीसरे दिन आंदोलन कमजोर पड़ गया, भीड़ कम हो गई।

माना जा रहा था कि किसानों के भारी प्रदर्शन के बाद सरकार किसानों की SDM को बर्खास्त करने वाली मांग मान लेगी और प्रदर्शन खत्म करवा देगी, लेकिन सरकार टस से मस ना हुई। इसके बाद करनाल प्रदर्शन को जारी रखना किसानों की साख का सवाल बन गया। मजबूरन ना चाहते हुए भी किसान नेताओं को करनाल में अनिश्चितकालीन धरना देने का ऐलान करना पड़ा। किसान आंदोलन से जुड़े एक नेता नाम ना बताने की शर्त पर कहते हैं कि राकेश टिकैत नहीं चाहते थे कि करनाल में किसान आंदोलन का नया गढ़ बने।

इसकी वजह ये है कि करनाल में नया मोर्चा खुलने से पहले से दिल्ली की बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन की तीव्रता पर असर पड़ सकता है, भीड़ बंट सकती है। पंजाब से हरियाणा होकर आने वाले किसान अब करनाल में ही शामिल हो सकते हैं, तो वहीं हरियाणा के किसान भी दिल्ली जाने की बजाए करनाल जा सकते हैं।

वहीं किसान आंदोलन की भीड़ बंटने वाली बात पर राकेश टिकैत ने भास्कर से बताया कि ‘इस तरह की दिक्कतें आती रहेंगी, लोग वहां भी जाते रहेंगे, दिल्ली में भी रहेंगे। किसानों की जनसंख्या कम नहीं है। मैं लगातार करनाल में नहीं रह सकता, मुझे दूसरे प्रोग्राम में भी जाना है। किसान नेताओं की साख पर उठ रहे सवालों के जवाब में राकेश टिकैत कहते हैं- ‘हमारी नाक का कोई सवाल नहीं है। हम तो विरोध ही कर सकते हैं, हमारे हाथ में तो कोई पावर नहीं है।

‘सरकार को भी मिल गया मौका’

करनाल आंदोलन में शामिल होने के लिए किसान अलग-अलग राज्यों से यहां आए हैं। कई किसान अपने ट्रैक्टर के साथ आए हैं।
करनाल आंदोलन में शामिल होने के लिए किसान अलग-अलग राज्यों से यहां आए हैं। कई किसान अपने ट्रैक्टर के साथ आए हैं।

दूसरी तरफ सरकार के लिए भी ये फायदे की स्थिति होगी कि अब तक किसान आंदोलन का केंद्र बने दिल्ली से किसानों की भीड़ 140 किमी. दूर करनाल शिफ्ट होगी। कृषि कानूनों को लेकर किसानों की सीधी लड़ाई दिल्ली की केंद्र सरकार से रही है, लेकिन अगर हरियाणा के करनाल में खट्टर सरकार के खिलाफ मोर्चा खुलेगा तो आंदोलन के क्षेत्रीय मुद्दों पर सिमटने का डर है। हो भी यही रहा है। मांगें क्षेत्रीय हैं और सरकार वे भी नहीं मान रही है।

9 महीने से संघर्ष कर रहे किसानों के बीच भी यही संदेश जाएगा कि कहां केंद्र की सरकार को झुकाने निकले थे, कहां करनाल में एक SDM को सस्पेंड तक नहीं करवा पा रहे, वो भी तब जब SDM का ‘सिर फोड़ने’ वाला वीडियो सबूत के तौर पर मौजूद है।

अब आधे लोग करनाल और आधे दिल्ली में रहेंगे

करनाल में हमें प्रदर्शन करने आए किसान जगदेव सिंह मिले। इसके पहले जगदेव सिंह दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन अब करनाल आ गए हैं। वे कहते हैं कि लोगों में जोश हैं और अभी भी संघर्ष जारी है। जब हमने जगदेव से पूछा कि दिल्ली के अलावा अब करनाल भी किसान आंदोलन का नया मोर्चा बन गया है।

किसान आंदोलन में लंगर और चाय-पानी की व्यवस्था है। दिल्ली बॉर्डर की तरह ही किसान यहां भी लंबी तैयारी के लिए निकले थे।
किसान आंदोलन में लंगर और चाय-पानी की व्यवस्था है। दिल्ली बॉर्डर की तरह ही किसान यहां भी लंबी तैयारी के लिए निकले थे।

ऐसे में दिल्ली के मुख्य आंदोलन पर असर नहीं पड़ेगा? वे जवाब में कहते हैं कि हमारे गांव से 10 किसान प्रदर्शन करने आते हैं, तो अब 5 करनाल आएंगे और 5 दिल्ली जाएंगे। हमने उनसे कहा ऐसे में तो दिल्ली का आंदोलन कमजोर पड़ेगा? इस सवाल के बाद वे सोच में पड़ जाते हैं और घुमा फिराकर जवाब देने लगते हैं।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आए सुरेंद्र सिंह मढान अपनी खड़ी मूछों पर ताव दे रहे थे तभी हमारी नजर उन पर गई। बातचीत में जब हमने उनसे कहा कि दिल्ली हो या करनाल किसानों की मांगें सरकार मान ही नहीं रही है? जवाब में वे कहते हैं कि कुछ भी हो जाए किसान का मनोबल नहीं टूटेगा, लेकिन उनकी बात में आत्मविश्वास की साफ कमी दिख रही थी।

एक तरफ संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत देशभर में घूम-घूम कर महापंचायतें कर भीड़ जुटा रहे हैं और बात हो रही है कि अगले साल होने वाले UP चुनाव को ये रैलियां प्रभावित करेंगी। दूसरी तरफ अब करनाल मोर्च पर वे खुद मुंह की खा गए हैं, जो उनकी साख को भी चोट पहुंचा सकती है।

दिल्ली बनाम करनाल’ किसान प्रदर्शन

करनाल में किसानों के आंदोलन को देखते हुए पुलिस और सुरक्षाबल के जवान मुस्तैद हैं। वे लगातार मोर्चे पर डटे हुए हैं।
करनाल में किसानों के आंदोलन को देखते हुए पुलिस और सुरक्षाबल के जवान मुस्तैद हैं। वे लगातार मोर्चे पर डटे हुए हैं।

दिल्ली के सिंघु, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर जो किसान प्रदर्शन चल रहा है, वह पहले से ही ठंडा पड़ा हुआ और सुर्खियों से बाहर है। करनाल में किसानों के इकट्ठा होने के बाद उम्मीद जागी थी कि यहां से किसान आंदोलन को नए सिरे से बूस्ट मिल सकता है, लेकिन और उल्टा हो गया है। करनाल में शुरुआती दो दिन तो काफी बड़ा प्रदर्शन हुआ, हजारों किसान भी जुटे, लेकिन तीसरे दिन से आंदोलन सुस्त पड़ने लगा है। इसकी साफ वजह है कि आंदोलन का नेतृत्व करनाल प्रदर्शन को लंबे वक्त तक जारी रखे जाने पर एकजुट नहीं दिखता।

दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर जो किसान प्रदर्शन हो रहा है उसके मुकाबले करनाल का प्रदर्शन बहुत छोटा है। लघु-सचिवायल के सामने वाली सड़क पर 100-150 मीटर के एरिया में प्रदर्शन हो रहा है वह भी सिर्फ एक तरफ की सड़क तक। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि एक तरफ की सड़क जल्दी ही खोल दी जाएगी। ऐसे में ये बचा हुआ प्रदर्शन भी कितने दिनों तक टिकेगा ये बड़ा सवाल है।

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