पंजशीर के सिपहसालार का ऐलान: तालिबान से लड़ रहे सालेह बोले- अंगरक्षक से बोल दिया था कि घायल हो जाऊं तो सिर में गोली मार देना, मैं समर्पण नहीं करूंगा
लंदन के न्यूज पेपर डेली मेल में 48 साल के सालेह ने लिखा है, 'संकट के समय जिन नेताओं ने अफगानिस्तान को छोड़ दिया, मेरा मानना है कि उन्होंने अपनी जमीन से धोखा किया है। जिस रात काबुल तालिबानियों के कब्जे में आया, मुझे वहां के पुलिस चीफ ने फोन किया। उन्होंने बताया कि जेल में विद्रोह मच गया है और तालिबानी कैदी भागने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने गैरतालिबानी कैदियों का नेटवर्क तैयार किया हैं।
अफगानिस्तान के पंजशीर में तालिबानियों के खिलाफ बगावत की अगुआई कर रहे अमरुल्लाह सालेह ने कहा कि वो आत्मसमर्पण करना नहीं चाहते। निर्णायक जंग का ऐलान करते हुए सालेह बोले- मैंने अपने गार्ड से कह दिया है कि अगर मैं घायल हो जाऊं तो मुझे सिर में दो गोलियां मार देना, क्योंकि मैं तालिबान के आगे घुटने नहीं टेकना चाहता।
लंदन के न्यूज पेपर डेली मेल में 48 साल के सालेह ने लिखा है, ‘संकट के समय जिन नेताओं ने अफगानिस्तान को छोड़ दिया, मेरा मानना है कि उन्होंने अपनी जमीन से धोखा किया है। जिस रात काबुल तालिबानियों के कब्जे में आया, मुझे वहां के पुलिस चीफ ने फोन किया। उन्होंने बताया कि जेल में विद्रोह मच गया है और तालिबानी कैदी भागने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने गैरतालिबानी कैदियों का नेटवर्क तैयार किया हैं। मैंने उन्हें जेल के भीतर विद्रोह का विरोध करने का आदेश दिया।’
‘मुझे काबुल में कहीं कोई अफगानी सैनिक नहीं मिला’
सालेह बोले- ‘अफगानिस्तान स्पेशल फोर्सेस के साथ मॉब कंट्रोल यूनिट की मदद से जेलों में हालात को संभाला गया। तब के रक्षा मंत्री, गृह मंत्री को भी मैंने फोन किया था और अगली सुबह उनके डिप्टी को भी, पर वो नहीं मिले। दोनों मंत्रालयों में कोई जिम्मेदार अफसर नहीं मिला, जो मुझे ये बता सके कि रिजर्व फोर्सेस या कमांडो तैनात क्यों नहीं किए गए। मुझे शहर में कहीं भी अफगानी सैनिक नहीं मिले, जिन्हें तैनात किया जा सके।’
‘इसके बाद मैंने काबुल के पुलिस चीफ से बात की, जो कि बहुत ही बहादुर इंसान हैं। उन्होंने बताया कि पूर्वी सीमा पर हम हार गए हैं और दक्षिण में भी 2 जिले तालिबानियों के कब्जे में हैं। साथ ही वरदाक की भी यही स्थिति है। उन्होंने कमांडोज की तैनाती के लिए मेरी मदद मांगी। मैंने उनसे कहा था कि जो भी सैनिक उनके साथ हैं, वो उनके साथ ही करीब एक घंटे तक मोर्चे पर डटे रहें, पर मैं उनके लिए कोई फौज नहीं जुटा पाया।’
‘उन्होंने राष्ट्रपति भवन और पूर्व सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब को फोन किया, पर कोई फायदा नहीं हुआ। मैंने भी राष्ट्रपति भवन और सुरक्षा सलाहकार को फोन किया कि कुछ करिए। मुझे भी कोई जवाब नहीं मिला। 15 अगस्त की सुबह 9 बजते-बजते काबुल में हाहाकार मच चुका था।’
अपनों से दगा कर देश से भाग गए राजनेता
सालेह ने कहा- ’15 अगस्त के पहले इंटेलीजेंस चीफ मेरे पास आए और कहा कि जहां भी आप जाएंगे, मैं साथ चलूंगा। अगर तालिबानियों ने रास्ता रोक भी लिया तो हम आखिरी जंग साथ-साथ लड़ेंगे। वे राजनेता जो विदेशों के होटलों और विला में रह रहे हैं, उन्होंने अपने ही लोगों से दगा किया। ये लोग अब गरीब अफगानियों से विद्रोह करने को कह रहे हैं। ये कायरता है। अगर हम विद्रोह चाहते हैं तो इस विद्रोह की अगुआई भी होनी चाहिए।’
सालेह ने कहा, “वे कह सकते हैं कि अफगानिस्तान में जो लोग रह गए हैं, वे शहीद हो जाएंगे। क्यों नहीं? हम ऐसे नेता चाहते हैं जो शहीद हों। हमें ऐसे नेता चाहिए जो कैदी बने। मैंने अपने मेंटर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद को फोन किया। उससे पूछा कि भाई तुम कहां हो। उसने कहा कि वह काबुल में है और अगले कदम की योजना बना रहा है। मैंने उसे बताया कि मैं भी काबुल में हूं। मैंने कहा कि हमारी फौजों के साथ आइए।’
‘इसके बाद मैं काबुल में अपने घर गया। अपनी बेटी और बीवी की तस्वीरें मिटाईं। अपना कंप्यूटर बटोरा और अपने चीफ गार्ड रहीम से कहा कि अपना हाथ कुरान पर रखो। मैंने उससे कहा कि हम पंजशीर जा रहे हैं और सड़कों पर तालिबानियों का कब्जा है। हम लड़ेंगे और साथ मिलकर लड़ेंगे। अगर मैं घायल हो जाऊं तो मेरे सिर में 2 गोलियां मार देना। मैं तालिबान के आगे घुटने नहीं टेकना चाहता हूं।’