नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली बीते दिनों सुर्खियों में थे, लेकिन उनके सुर्खियों में रहने की वजह क्रिकेट नहीं था। दरअसल, कोहली अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से खबरों में थे। इस पोस्ट पर एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) की ओर से कोहली को नोटिस भेजा गया था। जिसके बाद कोहली को अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट एडिट करनी पड़ी।
आइए समझते हैं, क्या है पूरा मामला? विराट कोहली ने क्या गलती की? इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग क्या होती है? भारत में इसका कारोबार कितना बड़ा है? और भारत में इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग को लेकर क्या गाइडलाइन है…
सबसे पहले समझिए पूरा मामला क्या है?
कोहली ने 27 जुलाई को इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर की। 3 फोटो की ये पोस्ट एक यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के बारे में हैं, जो टोक्यो ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। पहले फोटो में विराट ने लिखा है, “ओलिंपिक में भारत की ओर से भेजे गए कुल खिलाड़ियों में से 10% इसी यूनिवर्सिटी से हैं। ये एक रिकॉर्ड है। उम्मीद करता हूं कि यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स भारतीय क्रिकेट टीम का भी हिस्सा बनेंगे”।
अगले दो फोटो यूनिवर्सिटी के पोस्टर हैं। इनमें उन 11 खिलाड़ियों के नाम है जो टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय दल का हिस्सा थे।
कोहली ने इस पोस्ट में यूनिवर्सिटी को भी मेंशन किया है। जाहिर सी बात है कि ये पेड पोस्ट है और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग का हिस्सा है। यानी कोहली ने इस पोस्ट के लिए यूनिवर्सिटी से पैसे लिए हैं।
कोहली को नोटिस क्यों भेजा गया?
कोहली को नोटिस एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने भेजा। दरअसल ASCI की गाइडलाइन के मुताबिक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर ने अगर पेड पोस्ट की है, तो उन्हें यूजर को बताना होगा कि ये पोस्ट एडवर्टाइजमेंट का हिस्सा है। विरोट कोहली ने यूनिवर्सिटी वाली पोस्ट में कहीं भी ये मेंशन नहीं किया था। इसी वजह से कोहली को नोटिस भेजा गया। हालांकि ASCI के नोटिस के बाद कोहली ने पोस्ट को एडिट कर उसमें पार्टनरशिप का टैग लगा दिया।
इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग क्या होती है?
दरअसल, सोशल मीडिया पर जिन लोगों के ज्यादा फॉलोअर होते हैं, वे इन्फ्लुएंसर की कैटेगरी में आ जाते हैं। यानी लोग उन्हें फॉलो करने लगते हैं और उनसे प्रभावित भी होते हैं। कंपनियां ऐसे इन्फ्लुएंसर को पैसे देकर कंपनी का प्रमोशन करवाती हैं। जरूरी नहीं कि इन्फ्लुएंसर को प्रमोशनल पोस्ट के लिए पैसे दिए ही जाएं। कई बार कंपनी इन्फ्लुएंसर को प्रमोशन के लिए स्पेशल डिस्काउंट देती है और ट्रायल के लिए प्रोडक्ट भी फ्री में दे देती है।
डिजिटल एक्सपर्ट आलोक रघुवंशी का कहना है कि जो व्यक्ति अपनी सोशल मीडिया पोस्ट से यूजर्स को प्रभावित करते हैं, उन्हें सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कहा जाता है। ये वो लोग होते हैं, जिनके सोशल मीडिया पर हजारों-लाखों फॉलोअर्स होते हैं और इनकी एक पोस्ट से आम यूजर्स किसी प्रोडक्ट, ब्रांड या कंटेंट से प्रभावित हो जाते हैं। ये डिजिटल मार्केटिंग का एक नया तरीका है। इसे इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग कहा जाता है।
इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग में परेशानी ये है कि इसमें आम यूजर धोखा खा जाते हैं। उन्हें नहीं पता होता कि कौन-सी पोस्ट प्रमोशन का हिस्सा है और जिन्हें वे फॉलो कर रहे हैं उन्होंने इसके लिए पैसे लिए हैं या खुद की मर्जी से कर रहे हैं।
इन्फ्लुएंसर्स को अपनी प्रमोशनल पोस्ट्स पर इनमें से कोई भी टैग लगाना जरूरी है। ये टैग बदलते रहते है।
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भारत में कितना बड़ा है इन्फ्लुएंसर मार्केट?
भारत में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग का कारोबार सालाना 1 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है। फिर भी ये कुल सोशल मीडिया मार्केटिंग का केवल 10% ही है। यानी अभी इसके और बढ़ने की संभावना है। इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग में करीब 70% हिस्सा सिर्फ इंस्टाग्राम का है। बाकी 30% में बाकी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स आते हैं।
ग्लोबल लेवल पर इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग इंडस्ट्री करीब 95 हजार करोड़ रुपए की है और लगातार बढ़ रही है। अनुमान है कि 2028 तक ये इंडस्ट्री 6.13 लाख करोड़ से भी ज्यादा की हो सकती है।
क्या कहती हैं नई गाइडलाइंस
नई गाइडलाइंस के अनुसार, यदि स्पोंसर्ड कंटेंट एक वीडियो है, तो डिस्क्लोजर लेबल वीडियो में कम से कम 3 सेकंड तक रहना चाहिए. 2 मिनट से अधिक के वीडियो के लिए, डिस्क्लोजर लेबल उस हिस्से की पूरी टाइमिंग के लिए बना रहना चाहिए जहां किसी प्रोडक्ट का प्रचार किया जा रहा है. ऑडियो पोस्ट के लिए, डिस्क्लोजर की शुरुआत और अंत में स्पष्ट रूप से घोषणा की जानी चाहिए.
ASCI ने ASCI.social, एक डिजिटल डोमेन भी लॉन्च किया है जो गाइडलाइंस और इन्फ्लुएंसर, मर्केटर, एजेंसियों और उपभोक्ताओं के समुदाय के बारे में जानकारी रखेगा.
स्पोंसर्ड कंटेंट में नकली दावा भी नहीं होना चाहिए
ASCI इंफ्लुएंसर्स से अपने फॉलोवर्स को प्रचारित करने से पहले प्रोडक्ट और सर्विसेज की समीक्षा करने का भी आग्रह करता है. स्पोंसर्ड कंटेंट में प्रोडक्ट के बारे में कोई नकली दावा भी नहीं होना चाहिए. मसौदा गाइडलाइंस शुरू में फरवरी में वापस जारी किए गए थे और सभी संबंधित स्टेकहोल्डर्स से प्रतिक्रिया मांगी गई थी. ऐडवरटाइजर, एजेंसियों, इंफ्लुएंसर और उपभोक्ताओं. विशेषज्ञों के अनुसार, जैसे-जैसे डिजिटल मीडिया की खपत बढ़ती है कंटेंट और विज्ञापनों के बीच का अंतर महत्वपूर्ण हो जाता है.
जाहिर है मार्केटिंग के तौर तरीके बदल रहे हैं और इंफ्लुएंसर मार्केटिंग इसकी मेनस्ट्रीम बन गया है. इसलिए, उपभोक्ताओं को यह जानने का अधिकार है कि ब्रांडों द्वारा किस कंटेंट का भुगतान किया गया है और गाइडलाइंस इस ट्रांसपेरेंसी को इंफ्लुएंसर मार्केटिंग में लाने का इरादा रखते हैं.