आतंकियों को उनके घर में घुसकर ड्रोन से खत्म करता है अमेरिका; इस तरह के ड्रोन वॉर के लिए क्या है भारत की तैयारी? जानिए सब कुछ

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अमेरिका ने शनिवार को दावा किया कि काबुल एयरपोर्ट पर धमाके करने वाले इस्लामिक स्टेट- खुरासान के मुख्य साजिशकर्ता को ड्रोन हमले में मार गिराया है। इसी ग्रुप ने काबुल एयरपोर्ट पर हमलों में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत 170 लोगों की हत्या की थी। रॉयटर्स न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका का रीपर ड्रोन मिडिल ईस्ट के किसी गुप्त ठिकाने से लॉन्च हुआ और उसने अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में एक कार को निशाना बनाया। इस कार में ही इस्लामिक स्टेट-खुरासान ग्रुप के साजिशकर्ता मौजूद थे।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब अमेरिकी ड्रोन ने आतंकी ठिकानों को तबाह किया हो। इससे पहले भी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सीरिया समेत कई इलाकों में ड्रोन से आतंकियों को निशाना बनाया जा चुका है। अमेरिका ही नहीं, बल्कि तुर्की, चीन और इजराइल भी बड़ी संख्या में ऐसे ड्रोन बना रहे हैं जो कई किलोमीटर दूर से दुश्मन को ठिकाने लगा सकते हैं।

आइए जानते हैं कि यह ड्रोन क्या है? दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए मिलिट्री इसका इस्तेमाल कैसे करती है? क्या भारत के पास भी ऐसे ड्रोन हैं? ड्रोन वॉर के लिए भारत की क्या तैयारी है?

ड्रोन क्या है?

  • चालकरहित विमान यानी अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) को ही आसान शब्दों में ड्रोन कहते हैं। पिछले 30 साल से ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है। न केवल मिलिट्री सर्विलांस के लिए बल्कि फिल्म बनाने, किसी इलाके की मैपिंग और अब तो सामान की डिलीवरी में भी। जहां तक मिलिट्री सर्विलांस का सवाल है तो इसकी शुरुआत 1990 के दशक में अमेरिका ने ही की थी।
  • मिलिट्री टेक्नोलॉजी के एडवांसमेंट के साथ ही ड्रोन का इस्तेमाल दुश्मन को मार गिराने में भी होने लगा। 1999 के कोसोवो वॉर में सर्बिया के सैनिकों के गुप्त ठिकानों का पता लगाने के लिए पहली बार सर्विलांस ड्रोन का इस्तेमाल हुआ था। 2001 में अमेरिका 9/11 के हमले के बाद ड्रोन हथियारों से लैस हो गया। उसके बाद तो जैसे यह सबसे एडवांस हथियार के तौर पर विकसित हो ही रहा है।

मिलिट्री ड्रोन से हमले कब शुरू हुए?

  • 2001 में। अमेरिका ने ड्रोन से पहला हमला अक्टूबर 2001 में किया, जब उसने तालिबान के मुल्ला उमर को निशाना बनाया था। मुल्ला के कम्पाउंड के बाहर कार पर ड्रोन से हमले में मुल्ला तो नहीं मरा, पर उसके बॉडीगार्ड्स मारे गए थे। पहले ही मिशन में नाकामी के बाद भी अमेरिका पीछे नहीं हटा। उसने इस टेक्नोलॉजी को और मजबूती दी।
  • अमेरिका ने ‘वॉर ऑन टेरर’ के दौरान प्रिडेटर और रीपर ड्रोन अफगानिस्तान के साथ ही पाकिस्तान के उत्तरी कबाइली इलाकों में भी तैनात किए थे। अमेरिका के ही ड्रोन इराक, सोमालिया, यमन, लीबिया और सीरिया में भी तैनात हैं। रीपर ड्रोन ही था, जिससे यूएस ने अलकायदा के ओसामा बिन लादेन की निगरानी की थी। जिसके बाद नेवी सील्स ने 2 मई 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में लादेन को मार गिराया था।
  • अमेरिका ने आज तक कभी भी ड्रोन हमलों के आंकड़े जारी नहीं किए हैं। ड्रोन हमलों की निगरानी करने वाले एक ग्रुप जेन्स का दावा है कि 2014-2018 के बीच चार साल में इराक और सीरिया में अमेरिका ने रीपर ड्रोन से कम से कम 2,400 मिशन अंजाम दिए, यानी हर दिन दो हमले किए।

दुनियाभर में कितने मिलिट्री ड्रोन उड़ रहे हैं?

  • सर्विलांस के लिए दुनियाभर में हजारों मिलिट्री ड्रोन इस्तेमाल हो रहे हैं। गार्जियन ने इंफॉर्मेशन ग्रुप जेन के एनालिस्ट के हवाले से दावा किया कि 2028 तक 80 हजार से अधिक सर्विलांस और 2000 से अधिक अटैक ड्रोन खरीदे जाएंगे।
  • हथियारों से लैस ड्रोन सस्ता नहीं होता। एक्सपर्ट कहते हैं कि एक ड्रोन की कीमत 110 से 150 करोड़ रुपए तक हो सकती है। इसमें जैसे-जैसे हथियार जुड़ते जाएंगे, कीमत भी बढ़ती जाएगी। इन्हें उड़ाने वाले पायलट्स और टेक्निशियंस की ट्रेनिंग का खर्च अलग है।

कौन-से देश ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं?

  • ब्रिटिश ग्रुप ड्रोन वॉर्स के मुताबिक ड्रोन के तीन बड़े एक्सपोर्टर हैं- अमेरिका, चीन और तुर्की। इजराइली कंपनियां भी बड़े ड्रोन एक्सपोर्ट करती हैं, पर उसने कभी भी स्वीकार नहीं किया कि उसके ड्रोन मिलिट्री हथियार से लैस हैं। भारत समेत कई देश अपने-अपने ड्रोन बना रहे हैं।
  • अमेरिका ने ही दुनिया को दुश्मन को खत्म करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करना सिखाया। इस टेक्नोलॉजी में वह सबसे आगे है। उसके प्रिडेटर और रीपर ड्रोन बहुत घातक हैं और उनकी डिमांड भी बहुत है। यूके, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, यूएई समेत कई देशों के पास अमेरिकी ड्रोन हैं।
  • अपनी जियोग्राफिक लोकेशन की वजह से तुर्की की मजबूरी थी ड्रोन सिस्टम बनाना। उसने ऐसा किया भी। तुर्की अपने ड्रोन बेराक्टार (Bayraktar) से सीरिया और इराक में हमले करता है। अल्बानिया, मोरक्को, पोलैंड और सऊदी अरब को भी ड्रोन सप्लाई कर रहा है।
  • चीन ने पिछड़ने के बाद भी इस दिशा में तेजी से काम किया है। वह नए और ज्यादा घातक ड्रोन बना रहा है। पाकिस्तान अपना खुद का आर्म्ड ड्रोन बुर्राक बना रहा है, जिसे चीनी ड्रोन का क्लोन बताया जाता है। उसने चीन से पहली बार चीनी CH-4 ड्रोन इम्पोर्ट किए हैं, जिसमें से पांच जनवरी में डिलीवर हुए हैं। इंडोनेशिया और म्यांमार (बर्मा) भी चीनी ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये ड्रोन सैटेलाइट से भी ऑपरेट हो सकते हैं।
  • इजराइल की एक कंपनी हेरोन ड्रोन बनाती है, जो उसने जर्मनी और भारत के साथ-साथ कुछ देशों को डिलीवर भी किए हैं। इसके अलावा ईरान (कामरान), रूस (ओरायन), जॉर्जिया (प्रोजेक्ट T-31) जैसे देश भी अपने ड्रोन बना रहे हैं।

ड्रोन वॉर के लिए भारत की क्या तैयारी है?

  • भारत ने भी 2000 के दशक में ड्रोन पर काम शुरू कर दिया था। शुरुआत में ड्रोन का इस्तेमाल सर्विलांस के लिए करना शुरू कर दिया था। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) ने रुस्तम ड्रोन बनाए हैं, जिसकी फरवरी 2021 में टेस्ट फ्लाइट सफल रही थी। फरवरी में भारत ने इजराइली कंपनी से 4 फेल्कन ड्रोन लीज पर लिए हैं, जिन्हें चीन की तनावग्रस्त सीमा पर तैनात किया गया है।
  • मिलिट्री इंफॉर्मेशन ग्रुप जेन्स के मुताबिक भारत के पास 90 इजराइली ड्रोन हैं, जिसमें से 75 का ऑपरेशन एयरफोर्स के पास और 10 का इंडियन नेवी के पास है। आर्मी ने नए ड्रोन लीज पर लिए हैं, जो 2020 में चीनी सीमा पर हुए विवाद के बाद तैनात किए गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिकी कंपनी जनरल एटॉमिक्स से 30 ड्रोन के लिए 3 बिलियन डॉलर (22 हजार करोड़ रुपए) की डील हुई है। इसके तहत आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को 10-10 MQ9 रीपर ड्रोन मिलेंगे।
  • इंडियन नेवी बिना हथियारों वाले 2 सी गार्जियन ड्रोन्स का लीज पर इस्तेमाल कर रही है। यह अमेरिकी ड्रोन प्रिडेटर का ही वैरिएंट है। इसके अलावा हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने CATS (कम्बाइंड एयर टीमिंग सिस्टम) वॉरियर बनाया है, जो तेजस और जगुआर फाइटर प्लेन में लगेगा। यह फाइटर प्लेन से ऑपरेट होगा और राडार को चकमा दे सकता है।
  • इंडियन नेवी के पास स्मैश 2000 एंटी-ड्रोन सिस्टम भी है। जुलाई में जम्मू में हुए ड्रोन हमले के बाद अब आर्मी के लिए भी इस तरह के एंटी-ड्रोन सिस्टम की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। ताकि ड्रोन हमलों को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड एक ड्रोन हेलिकॉप्टर- रोटरी भी बना रहा है। यह 15 हजार फीट की ऊंचाई पर ऑपरेट हो सकता है।

भारत के खिलाफ ड्रोन अटैक की साजिश रची जा रही है, ये अटैक किस तरह होते हैं?
ड्रोन से हमले की तकनीक दुनिया में कई साल से जगह-जगह इस्तेमाल हो रही है। भारत के लिए ये हमले नए हो सकते हैं, लेकिन साजिश में ड्रोन का इस्तेमाल नया नहीं है। पंजाब में हथियार सप्लाई का मामला इसका उदाहरण है। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर जैसे सेंसटिव इलाके में पहले भी इनके जरिए हथियारों की सप्लाई की कोशिश की जा चुकी है।

दरअसल, ड्रोन दो तरीकों से हमला करता है। पहला- ऐसे ड्रोन पर बम या विस्फोटक लगे होते हैं। इनका टारगेट पहले से सेट रहता है। ये काम GPS जैसी तकनीक से किया जा सकता है। ड्रोन लोकेशन या टारगेट पर बम ड्रॉप करता है। ये बम भी ऐसे होते हैं, जो गिरने के साथ ही ब्लास्ट होते हैं। इसके अलावा ऐसे भी जिनकी टाइमिंग सेट की जा सकती है। दूसरा- ड्रोन टारगेट पर खुद बम के साथ ड्रॉप हो जाते हैं।

भारत में ऐसे हमलों से बचने के लिए क्या व्यवस्था है?
इंडियन इंटेलिजेंस के पास ड्रोन की खरीद-बिक्री को लेकर निश्चित तौर पर इन्फॉर्मेशन होती हैं। इसके जरिए मॉनिटरिंग की जाती है। इसके अलावा बड़े एयरबेस, मिलिट्री बेस और इंटरनेशनल एयरपोर्ट्स पर AVIAN रडार जैसी अत्याधुनिक तकनीकें भी हैं। इनकी रेंज 10-15 किलोमीटर होती है। इनके जरिए चिड़िया को भी मॉनिटर कर लिया जाता है। इसके अलावा मॉनिटर होने पर एंटी एयरक्राफ्ट गन, मिसाइल्स, स्नाइपर्स की मदद से भी ड्रोन जैसे टारगेट को गिराया जा सकता है।

आमतौर पर फायरिंग के जरिए ही इन्हें न्यूट्रिलाइज्ड किया जाता है। जैसा कि हमने जम्मू के केस में देखा है। इसके अलावा नेट फायर करने वाली गन भी सिक्योरिटी एजेंसीज के पास हैं, जो ऐसे ड्रोन को नेट में फंसा देती हैं और वो जमीन पर आ जाते हैं। सभी बेस, एयरपोर्ट्स, महत्वपूर्ण व्यक्तियों के घरों और उनके काफिलों की सुरक्षा के लिए AVIAN रडार जैसी महंगी तकनीक का इस्तेमाल किया जाना अभी भी सवाल है?

ऐसे हमलों से बचने के और क्या तरीके हो सकते हैं ?
सबसे पहले मॉनिटरिंग और ड्रोन का रेगुलराइजेशन सबसे जरूरी कदम है। बॉर्डर इलाकों और संवेदनशील इलाकों में ड्रोन की खरीद-बिक्री पर पुलिस लोकल लेवल पर ही अलर्ट रहे। दूसरा जिस तरह से आर्म्स की खरीद के लिए लाइसेंस और बेहद मजबूत दस्तावेजों की जरूरत होती है, उसी तरह की व्यवस्था ड्रोन की खरीद बिक्री के लिए भी हो। ताकि, हमारे पास ये रिकॉर्ड्स में हो कि किसने किसको और कैसा ड्रोन बेचा या खरीदा है।

दूसरी चीज है तकनीक। ड्रोन उड़ाने वाले और ड्रोन के बीच के लिंक को जाम करना। ज्यादातर ड्रोन जो पब्लिक इस्तेमाल करती है, उसकी एक कॉमन फ्रीक्वेंसी होती है, इसे जाम किया जा सकता है।

ये ड्रोन हमले कितना बड़ा खतरा बन सकते हैं, कितना नुकसान कर सकते हैं?
जम्मू एयरबेस पर जो हमला हुआ, उसमें छत का हिस्सा टूट गया। दो जवान भी घायल हुए। अब इसे ऐसे देखें कि अगर ब्लास्ट ठीक किसी एयरक्राफ्ट या फिर ऑफिशियल पर हुआ होता तो क्या होता? मान लीजिए कि लैंड होते वक्त या टेकऑफ के वक्त किसी प्लेन को जमीन पर 10-15 किलोमीटर दूर बैठा शख्स ड्रोन से टारगेट करे तो उसमें बैठे पैसेंजर्स की जान खतरे में पड़ना तय है। इसी तरह से VIP मूवमेंट और डिफेंस मूवमेंट पर भी हमले किए जा सकते हैं।

जम्मू में जो अटैक हुआ, उसके बारे में क्या कहेंगे?
इस अटैक को कोई ऑनग्राउंड वर्कर या आतंकवादी, जो जम्मू में बैठा हो, वह भी अंजाम दे सकता है। इसके अलावा क्रॉस बॉर्डर यानी पाकिस्तान स्थित कोई आतंकवादी संगठन भी इसे अंजाम दे सकता है, क्योंकि बॉर्डर से ये जगह ड्रोन की रेंज में है। ये देश पर हमला है। पाकिस्तान का इसमें हाथ होने की जहां तक बात है, उसे भी पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता है।

सबसे पहले ड्रोन हथियार में कब तब्दील हुए?
ड्रोन का इस्तेमाल पहली बार हथियार के तौर पर अमेरिका में 9/11 अटैक के बाद हुआ था। अक्टूबर 2001 में अमेरिकी सिक्योरिटी एजेंसी ने तालिबानी लीडर मुल्ला उमर को ड्रोन से टारगेट किया था। हालांकि, वह इस हमले में बच गया था। 9/11 के मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन को भी अमेरिकी एजेंसियों ने प्रीडेटर ड्रोन के जरिए ही ढूंढा था।

इसके बाद से अमेरिका ने प्रीडेटर और रीपर ड्रोन अफगानिस्तान में तैनात कर दिए थे। हालांकि, अमेरिका अपने ड्रोन ऑपरेशंस का ऑफिशियल डेटा जारी नहीं करता है। ब्रिटेन की बात करें तो उसने 2014 से 2018 के बीच ईराक और सीरिया में ISIS के खिलाफ 2400 मिशन किए यानी हर रोज करीब दो। इस दौरान 398 बार टारगेट पर स्ट्राइक की।

दुनिया में कॉम्बैट ड्रोन की क्या पोजिशन है?
हाल में सामने आई रिपोर्ट्स के मुताबिक, सर्विलांस के लिए दुनियाभर की फोर्सेज डिफेंस का इस्तेमाल कर रही हैं। कॉम्बैट ड्रोन की बात करें तो अगले 10 साल में दुनियाभर में करीब 80 हजार सर्विलांस और 2 हजार अटैक ड्रोन खरीदे जाएंगे। अमेरिका की योजना अगले 10 साल में एक हजार कॉम्बैट ड्रोन खरीदने की है। इस लिस्ट में चीन का नंबर दूसरा (68), रूस का तीसरा (48) और भारत (38) का चौथा है।

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