How was Afghanistan formed अफगान‍िस्‍तान का निर्माण कैसे हुआ, यहां जानें इत‍िहास महाभारत से लेकर अब तक

अफगानिस्तान और पाकिस्तान को छोड़कर भारत के इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती। कहना चाहिए की वह 7वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था। अफगान पहले एक हिन्दू राष्ट्र था। बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह एक इस्लामिक राष्ट्र है। 26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर उपगण स्थान अफगानिस्तान उसे सौंप दिया था।

अफगानिस्तान 7वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था। यह पहले एक हिंदू राष्ट्र था। बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब इस्लामिक राष्ट्र है। 17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। आज कैसा है यह देश और कैसा जीवन जी रहे हैं यहां के लोग। आइए जानते हैं।

महाभारत में इसका जिक्र

अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह आदि नामों से पुकारा जाता था, जिसमें गांधार, कम्बोज, कुंभा, वर्णु, सुवास्तु आदि क्षेत्र थे। ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था, जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है।

धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी, महान संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनी और गुरु गोरखनाथ यहीं के बाशिंदे थे।

वैदिक धर्म का पालन होता था

आज भी अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम कनिष्क, आर्यन, वेद आदि रखे जाते हैं। अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया।

कम उम्र में हो जाती है शादी

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के मुताबिक अफगानिस्तान की 50 फीसदी जनसंख्या का विवाह 15 साल की उम्र में ही हो जाता है। 33 फीसदी आबादी का विवाह 18 साल की उम्र में होता है। अफगानिस्तान में 14 जनजातियां निवास करती है। इस देश में मोबाइल फोन रखना प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है।

परिवार सबसे पहले

अफगानिस्तान में नया साल 21 मार्च को मनाया जाता है, जो बसंत का पहला दिन होता है। अफगान लोगों में परिवार का बहुत महत्व है और शादी के बाद सारा परिवार साथ रहता है।

हफ्ते में एक दिन कविता पाठ

अफगान के हैरत शहर में गुरुवार रात को कविताओं का आयोजन होता है। यहां महिला, पुरुष और बच्चे इकट्ठा होते हैं।

खेती है आय का जरिया

अफगानी लोग मुख्य तौर पर खेती करने अपना जीवनयापन करते हैं। हालांकि अफगानिस्तान में प्राकृतिक गैस और तेल का बड़ा भंडार है।

अरेंज मैरिज का चलन

अफगानी शिष्टाचार में हाथ मिलाना सामान्य बात है। लेकिन महिला-पुरुष का आपस में हाथ मिलाना दुर्लभ है। अफगानिस्तान में महिला और पुरुष की कोशिश होती है कि वे एक-दूसरे से आंख भी नहीं मिलाएं। अरेंज मैरिज का प्रचलन यहां ज्यादा है।

मंदिरों के अवशेष मौजूद

अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष हैं।

गजनी ने कराया धर्म परिवर्तन

महमूद गजनी को सत्ता और लूटपाट के अलावा वह जीते हुए क्षेत्रों के मंदिरों, शिक्षा केंद्रों, मंडियों और भवनों को नष्ट करता जाता था और स्थानीय लोगों का धर्म परिवर्तन कराता था। यह बात अल-बेरूनी, अल-उतबी, अल-मसूदी और अल-मकदीसी जैसे मुस्लिम इतिहासकारों ने भी लिखी हैं।

भारत से सटे सबसे छोटी सीमा वाले देश अफगान‍िस्‍तान का ऐसा है इतिहास

अफगान‍िस्‍तान न केवल कभी हिंदू राष्‍ट्र था बल्कि यह भारत का ही ह‍िस्‍सा था। भारत पर अंग्रेजों के आक्रमण के समय अंग्रेजों ने अफगान‍िस्‍तान को अपने न‍ियंत्रण में रखा और भारत से ही इसपर शासन क‍िया। लेक‍िन वर्ष 1893 में सर मॉर्टीमर डूरंड ने भारत और अफगान‍िस्‍तान के बीच रेखा खींची जो क‍ि डूरंड रेखा कहलाई। हिंदुकुश में स्थापित यह सीमा रेखा जो अफगान‍िस्‍तान और ब्रिटिश भारत के जनजातीय क्षेत्रों से उनके प्रभाव वाले क्षेत्रों को रेखांकित करती हुई गुजरती थी। वर्तमान में यह रेखा अफगान‍िस्‍तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा है। यह तो हुई इतिहास की बात लेक‍िन अफगान‍िस्‍तान का महाभारत से भी गहरा र‍िश्‍ता है। यही नहीं पूर्व में यह हिंदू राष्‍ट्र था इसके भी कई साक्ष्‍य म‍िले हैं।.

अफगान‍िस्‍तान का ऐसे हुआ था न‍िर्माण

भारत से सटे सबसे छोटी सीमा वाला देश आज जो अफगान‍िस्‍तान है उसका मानचित्र उन्नीसवीं सदी के अंत में तय हुआ। ऐत‍िहास‍िक साक्ष्‍यों के अनुसार स‍िंकदर के आक्रमण के समय 327 ईसापूर्व अफगान‍िस्‍तान में फारस के हखामनी शाहों का शासन था। उसके बाद के ग्रेको-बैक्ट्रियन शासन में बौद्ध धर्म लोकप्रिय हुआ। मध्यकाल में कई अफगान शासकों ने दिल्ली की सत्ता पर अधिकार किया या करने का प्रयास किया इसमें लोदी वंश का नाम प्रमुख है। इसके अलावा भी कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अफगान शाहों की मदद से भारत पर आक्रमण किया। हालांक‍ि उस समय अफगानिस्तान के कुछ क्षेत्र दिल्ली सल्तनत के भी अंग थे। भारत में पहला आक्रमण अफगान‍िस्‍तान पर ही हुआ। इसके बाद यहीं हिंदुकुश के अलग-अलग दर्रों से आक्रांताओं ने भारत पर कई आक्रमण क‍िए। इन आक्रांताओं में बाबर, नादिर शाह तथा अहमद शाह अब्दाली शामिल है। अहमद शाह अब्दाली ने पहली बार अफगान‍िस्‍तान पर एकाधिपत्य कायम किया। वह अफगान यानी क‍ि पश्‍तून था। 1751 तक उसने वे सारे क्षेत्र जीत लिए जो वर्तमान में अफगानिस्तान और पाकिस्तान है।

महाभारत के साथ है अफगान‍िस्‍तान का गहरा र‍िश्‍ता

अफगानिस्‍तान का महाभारत के साथ काफी गहरा रिश्‍ता है। अफगानिस्‍तान की पेशावर घाटी और काबुल नदी घाटी तक महाभारत का इतिहास फैला हुआ है। नवंबर 2013 में एशिया और अफ्रीका की तरफ से हुई एक स्‍टडी में यह बात साबित हुई थी कि अफगानिस्‍तान का हजारों साल पहले महाभारत से गहरा र‍िश्‍ता रहा है। यही नहीं अफगान‍िस्‍तान के ज‍िस ह‍िस्‍से को हम आज कंधार के नाम से जानते हैं वह कभी गंधार साम्राज्‍य के नाम से जाना जाता था। गंधार शब्‍द का जिक्र ऋग्‍वेद, उत्‍तर रामायण और महाभारत में भी मिलता है। गंधार का एक बड़ा हिस्‍सा उत्‍तरी पाकिस्‍तान और कुछ हिस्‍सा पूर्वी अफगानिस्‍तान में है। गंधार साम्राज्‍य पोथोहार, पेशावर घाटी और काबुल नदी घाटी तक फैला था।

कभी होती थी यहां श‍िवजी की पूजा

महाभारत काल में ज‍िक्र म‍िलता है क‍ि गंधार पर आज से 5500 साल पहले राजा सुबाला ने राज किया था। उनकी बेटी का नाम गंधारी था जिनकी शादी हस्तिनापुर के राजा धृतराष्‍ट्र से हुई थी। गंधारी के भाई शकुनी थे। राजा सुबाला की मृत्‍यु के बाद गंधार साम्राज्‍य की सत्‍ता शकुनी ने संभाली। यही नहीं मान्‍यता तो यह भी है क‍ि गंधार में श‍िवजी की पूजा की जाती थी। इसका तात्‍पर्य गंधार शब्‍द से माना जाता है क्‍योंक‍ि गंधार शब्‍द गंध से बना है। गंध यानी क‍ि खुशबू और गंधार का पूरा शाब्दिक अर्थ खुशबू की धरती। मान्‍यता है कि काबुल नदी के तट पर लोग रहा करते थे। उत्‍तर-पश्चिम पंजाब भी किसी समय में गंधार का हिस्‍सा थे। कई और शोध पत्रों में इस बात की पुष्टि की गई है कि नॉर्थ-वेस्‍ट पंजाब, ईरान, भारत और सेंट्रल एशिया से संपर्क का रास्‍ता था।

पांडवों से हार के बाद कौरव वंश के कुछ लोग यहां फ‍िर आए

महाभारतकाल में अफगान‍िस्‍तान का कंधार जो क‍ि गंधार साम्राज्‍य था। यह काफी शक्तिशाली साम्राज्‍य था। मान्‍यता है क‍ि 18 द‍िनों तक चले महायुद्ध महाभारत में पांडवों से हार के बाद कौरव वंश के कई लोग गंधार साम्राज्‍य में रहने लगे थे। बाद में वे धीर-धीरे इराक और सऊदी अरब में चले गए। बाद में गंधार पर मौर्य साम्राज्‍य के राजाओं का राज हो गया। इसके बाद फिर मुगलों का हमला हुआ। मोहम्‍मद गजनी ने भी यहां पर हमला किया। गजनी ने दसवीं सदी में इस पर कब्‍जा कर लिया।

टाइम वेल में फंसे एयरक्राफ्ट का यह क‍िस्‍सा भी जान लें

कुछ साल पहले अफगान‍िस्‍तान में जिस समय अमेरिकी सेना ने ओसामा बिन लादेन को तलाशने के लिए अभियान चलाया था। तो अमेरिकी सैनिकों को कंधार की एक गुफा में बड़ा सा एयरक्राफ्ट द‍िखाई द‍िया। इस एयरक्राफ्ट पर हुई र‍िसर्च में यह दावा क‍िया गया क‍ि यह तकरीबन 5हजार साल पुराना एयरक्राफ्ट है इसल‍िए यह महाभारतकालीन भी हो सकता है। यही नहीं यह भी कहा गया क‍ि यह ‘टाइम वेल’ में फंसा हुआ है। ‘टाइम वेल’ यानी क‍ि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्‍स से सुरक्षित क्षेत्र। कहते हैं क‍ि इसी के चलते यह एयरक्राफ्ट कंधार की गुफा में सुरक्षित है। इसे लेकर मान्‍यता है क‍ि इसके आकार-प्रकार का विवरण महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी किया गया है। कहते हैं क‍ि जब इसे एयरक्राफ्ट को गुफा से निकालने की कोशिश की जा रही थी तो कई सील कमांडो अचानक ही गायब हो गए फ‍िर उनके बारे में कुछ पता नहीं चल सका।

यहां हिन्दूकुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन जाया जा सकता है। ईसा के 700 साल पूर्व तक यह स्थान आर्यों का था। ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है।

अफगानिस्तान की सबसे बड़ी होटलों की श्रृंखला का नाम ‘आर्याना’ था और हवाई कंपनी भी ‘आर्याना’ के नाम से जानी जाती थी। इस्लाम के पहले अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह आदि नामों से पुकारा जाता था।

पारसी मत के प्रवर्तक जरथ्रुष्ट द्वारा रचित ग्रंथ ‘जिंदावेस्ता’ में इस भूखंड को ऐरीन-वीजो या आर्यानुम्र वीजो कहा गया है। आज भी अफगानिस्तान के गांवों में बच्चों के नाम आपको कनिष्क, आर्यन, वेद आदि मिलेंगे।

उत्तरी अफगानिस्तान का बल्ख प्रांत दुनिया की कुछ बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विरासतों को सहेजे हुए है। इसके कुछ प्राचीन शहरों को दुनिया के सभी शहरों का जनक कहा जाता है। ये बल्ख के तराई इलाकों की समतल भूमि है जिसके प्राचीन व्यापारिक मार्ग ने खानाबदोशों, योद्धाओं, साहसी लोगों और धर्म प्रचारकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन लोगों ने अपने पीछे यहां ऐसे रहस्यों को छोड़ा जिन्हें पुरातत्वविदों ने खोजना शुरू ही किया है।

पिछले वर्ष ही अफगानिस्तान में 5,000 साल पुराना एक विमान मिला है। इस विमान के महाभारतकालीन होने का अनुमान है। यह खुलासा ‘वायर्ड डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट में किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान की एक प्राचीन गुफा में रखा प्राचीन भारत का एक विमान पाया गया है। अब सवाल है कि ये इतने वर्षों तक सुरक्षित कैसे रहा। दरअसल, यह विमान ‘टाइम वेल’ में फंसा हुआ है। इसी कारण सुरक्षित बना हुआ है।

‘टाइम वेल’ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक शॉकवेव्स से सुरक्षित क्षेत्र होता है और इस कारण से इस विमान के पास जाने की चेष्टा करने वाला कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव के कारण गायब या अदृश्य हो जाता है।

कहा जा रहा है कि यह विमान महाभारतकाल का है और इसके आकार-प्रकार का विवरण महाभारत और अन्य प्राचीन ग्रंथों में‍ किया गया है। इस कारण से इसे गुफा से निकालने की कोशिश करने वाले कई अमेरिकी सील कमांडो गायब हो गए हैं या फिर मारे गए हैं।

करीब 3,500 साल पहले एकेश्वरवादी धर्म की स्थापना करने वाले दार्शनिक जोरास्टर यहीं रहते थे। 13वीं शताब्दी के महान कवि रूमी का जन्म भी अफगानिस्तान में ही हुआ था। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी, महान संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनी और गुरु गोरखनाथ अफगानिस्तान के ही पठान जाति के बाशिंदे थे।

पठान पख्तून होते हैं। पठान को पहले पक्ता कहा जाता था। ऋग्वेद के चौथे खंड के 44वें श्लोक में भी पख्तूनों का वर्णन ‘पक्त्याकय’ नाम से मिलता है। इसी तरह तीसरे खंड का 91वें श्लोक आफरीदी कबीले का जिक्र ‘आपर्यतय’ के नाम से करता है।

दरअसल, अंग्रेजी शासन में पिंडारियों के रूप में जो अंग्रेजों से लड़े, वे विशेषकर पठान और जाट ही थे। पठान जाट समुदाय का ही एक वर्ग है। कुछ लोग इन्हें बनी इसराइलियों का वंशज मानते हैं।

अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया। यहां के सभी लोग ध्यान और रहस्य की खोज में लग गए।

इस्लाम के आगमन के बाद यहां एक नई क्रांति की शुरुआत हुई। बुद्ध के शांति के मार्ग को छोड़कर ये लोग क्रांति के मार्ग पर चल पड़े। शीतयुद्ध के दौरान अफगानिस्तान को तहस-नहस कर दिया गया। यहां की संस्कृति और प्राचीन धर्म के चिह्न मिटा दिए गए।

17वीं सदी तक दुनिया में अफगानिस्तान नाम का कोई देश नहीं था अर्थात आज से मात्र 300 वर्ष पूर्व तक अफगानिस्तान एक नाम से कोई राष्ट्र नहीं था। 6टी सदी तक यह एक हिन्दू और बौद्ध बहुल क्षेत्र था। यहां के अलग-अलग क्षेत्रों में हिन्दू राजा राज करते थे। उनकी जाति कुछ भी रही हो, लेकिन वे सभी आर्य थे। वे तुर्क और पठान आर्यवंशीय राजा थे।

अंतिम हिन्दूशाही राजवंश :
सन् 843 ईस्वी में कल्लार नामक राजा ने हिन्दूशाही की स्थापना की। तत्कालीन सिक्कों से पता चलता है कि कल्लार के पहले भी रुतविल या रणथल, स्पालपति और लगतुरमान नामक हिन्दू या बौद्घ राजाओं का गांधार प्रदेश में राज था। ये स्वयं को कनिष्क का वंशज भी मानते थे।

हिन्दू राजाओं को ‘काबुलशाह’ या ‘महाराज धर्मपति’ कहा जाता था। इन राजाओं में कल्लार, सामंतदेव, भीम, अष्टपाल, जयपाल, आनंदपाल, त्रिलोचनपाल, भीमपाल आदि उल्लेखनीय हैं।

इन राजाओं ने लगभग 350 साल तक अरब आततायियों और लुटेरों को जबर्दस्त टक्कर दी और उन्हें सिंधु नदी पार करके भारत में नहीं घुसने दिया, लेकिन 1019 में महमूद गजनी से त्रिलोचनपाल की हार के साथ अफगानिस्तान का इतिहास पलटी खा गया।

चीनी यात्री युवानच्वांग ने इस्लाम व अफगानिस्तान के बौद्धकाल का इतिहास लिखा है। गौतम बुद्ध अफगानिस्तान में लगभग 6 माह ठहरे थे। बौद्धकाल में अफगानिस्तान की राजधानी बामियान हुआ करती थी।

सिकंदर का आक्रमण 328 ईसा पूर्व के समय हुआ, जब यहां प्रायः फारस के हखामनी शाहों का शासन था। आर्यकाल में यह क्षे‍त्र अखंड भारत का हिस्सा था। ईरान के पार्थियन तथा भारतीय शकों के बीच बंटने के बाद अफगानिस्तान के आज के भू-भाग पर सासानी शासन आया।

विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में पख्तून लोगों और अफगान नदियों का उल्लेख है। सुदास-संवरण के बीच हुए दाशराज्ञ युद्घ में ‘पख्तूनों’ का उल्लेख पुरू (ययाति के कुल के) कबीले के सहयोगियों के रूप में हुआ है।

जिन नदियों को आजकल हम आमू, काबुल, कुर्रम, रंगा, गोमल, हरिरुद आदि नामों से जानते हैं, उन्हें प्राचीन भारतीय लोग क्रमश: वक्षु, कुभा, कुरम, रसा, गोमती, हर्यू या सर्यू के नाम से जानते थे।

जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था।

महाभारत में गांधारी के देश के अनेक संदर्भ मिलते हैं। हस्तिनापुर के राजा संवरण पर जब सुदास ने आक्रमण किया तो संवरण की सहायता के लिए जो ‘पस्थ’ लोग पश्चिम से आए, वे पठान ही थे।

छांदोग्य उपनिषद, मार्कंडेय पुराण, ब्राह्मण ग्रंथों तथा बौद्घ साहित्य में इसका विस्तार से वर्णन पढ़कर लगता है कि हिन्दुओं का मूल स्थान तो सिन्धु के आसपास का क्षे‍त्र ही है। यदि अफगानिस्तान को अपने स्मृति-पटल से हटा दिया जाए तो भारत का सांस्कृतिक-इतिहास लिखना असंभव है।

चीनी इतिहासकारों ने लिखा है कि सन् 383 से लेकर 810 तक अनेक बौद्घ ग्रंथों का चीनी अनुवाद अफगान बौद्घ भिक्षुओं ने ही किया था। बौद्घ धर्म की ‘महायान’ शाखा का प्रारंभ अफगानिस्तान में ही हुआ। आजकल हम जिस बगराम हवाई अड्डे का नाम बहुत सुनते हैं, वह कभी कुषाणों की राजधानी था। उसका नाम था कपीसी।

पुले-खुमरी से 16 किमी उत्तर में सुर्ख कोतल नामक जगह में कनिष्क-काल के भव्य खंडहर अब भी देखे जा सकते हैं। इन्हें आजकल ‘कुहना मस्जिद’ के नाम से जाना जाता है। पेशावर और लाहौर के संग्रहालयों में इस काल की विलक्षण कलाकृतियां अब भी सुरक्षित हैं।

अफगानिस्तान के बामियान, जलालाबाद, बगराम, काबुल, बल्ख आदि स्थानों में अनेक मूर्तियों, स्तूपों, संघारामों, विश्वविद्यालयों और मंदिरों के अवशेष मिलते हैं। काबुल के आसामाई मंदिर को 2,000 साल पुराना बताया जाता है। आसामाई पहाड़ पर खड़ी पत्थर की दीवार को ‘हिन्दूशाहों’ द्वारा निर्मित परकोटे के रूप में देखा जाता है।

काबुल का संग्रहालय बौद्घ अवशेषों का खजाना रहा है। अफगान अतीत की इस धरोहर को पहले इस्लामिक मुजाहिदीन और अब तालिबान ने लगभग नष्ट कर दिया है। बामियान की सबसे ऊंची और विश्वप्रसिद्घ बुद्घ प्रतिमाओं को भी उन्होंने लगभग नष्ट कर दिया।

यह आश्चर्य की बात है कि इन हारते हुए ‘हिन्दूशाही’ राजाओं के बारे में अरबी और फारसी इतिहासकारों ने तारीफ के पुल बांधे हुए हैं। अल-बेरूनी और अल-उतबी ने लिखा है कि हिन्दूशाहियों के राज में मुसलमान, यहूदी और बौद्घ लोग मिल-जुलकर रहते थे। उनमें भेदभाव नहीं किया जाता था।

इन राजाओं ने सोने के सिक्के तक चलाए। हिन्दूशाहों के सिक्के इतने अच्छे होते थे कि सन् 908 में बगदाद के अब्बासी खलीफा अल-मुक्तदीर ने वैसे ही देवनागरी सिक्कों पर अपना नाम अरबी में खुदवाकर नए सिक्के जारी करवा दिए।

मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार हिन्दूशाही की लूट का माल जब गजनी में प्रदर्शित किया गया तो पड़ोसी मुल्कों के राजदूतों की आंखें फटी की फटी रह गईं। भीमनगर (नगरकोट) से लूट गए माल को गजनी तक लाने के लिए ऊंटों की कमी पड़ गई।

महमूद गजनी को सत्ता और लूटपाट के अलावा इस्लाम का नशा भी सवार था इसीलिए वह जीते हुए क्षेत्रों के मंदिरों, शिक्षा केंद्रों, मंडियों और भवनों को नष्ट करता जाता था और स्थानीय लोगों को जबरन मुसलमान बनाता जाता था।

आज वे सभी अफगानी हिन्दू अब मुसलमान हैं। यह बात अल-बेरूनी, अल-उतबी, अल-मसूदी और अल-मकदीसी जैसे मुस्लिम इतिहासकारों ने भी लिखी है।

महाभारत में कंबोज और गांधार के कई राजाओं का उल्लेख मिलता है। जिनमें कंबोज के सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।

गांधार : गांधारी गांधार देश के ‘सुबल’ नामक राजा की कन्या थीं। क्योंकि वह गांधार की राजकुमारी थीं, इसीलिए उनका नाम गांधारी पड़ा। यह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन आदि कौरवों की माता थीं। गांधार प्रदेश भारत के पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। कुषाण शासकों के दौरान यहाँ बौद्ध धर्म बहुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया।

ऋग्वेद में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और अथर्ववेद में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है।
कंबोज : ‘कांबोज विषये जातैर्बाल्हीकैश्च हयोत्तमै: वनायुजैर्नदीजैश्च पूर्णाहरिहयोत्तमै:। वाल्मीकि-रामायण में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों के श्रेष्ठ घोड़ों का अयोध्या में होना वर्णित है।
‘गृहीत्वा तु बलं सारं फाल्गुन: पांडुनन्दन: दरदान् सह काम्बोजैरजयत् पाकशासनि:’
महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था।
‘कर्ण राजपुरं गत्वा काम्बोजानिर्जितास्त्वया’।
महाभारत और राजतरंगिणी में कंबोज की स्थिति उत्तरापथ में बताई गई है। महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है।
बौध काल में अफगानिस्तान :
ईसा सन् 7वीं सदी तक गांधार के अनेक भागों में बौद्ध धर्म काफी उन्नत था। 7वीं सदी के बाद यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरु किए और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद यहां के हिन्दू और बौद्धों का जबरन धर्मांतरण अभियान शुरू ‍हुआ। सैंकड़ों सालों तक लड़ाइयां चली और अंत में काफिरिस्तान को छोड़कर सारे अफगानी लोग मुसलमान बन गए।

कौटिल्य अर्थशास्त्र में कंबोज के ‘वार्ताशस्त्रोपजीवी’ (खेती और शस्त्रों से जीविका चलाने वाले) संघ का उल्लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मौर्यकाल से पूर्व यहां गणराज्य स्थापित था। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।

अंगुत्तरनिकाय और अशोक के पांचवें शिलालेख में कंबोज का गंधार के साथ उल्लेख मिलता है। इसका मतलब यह कि गांधार कंबोज का हिस्सा था या यह दो अलग अलग राज्य थे। कर्निघम के अनुसार राजपुर कश्मीर में स्थित राजौरी है। चीनी यात्री युवानच्वांग ने भी राजपुर का उल्लेख किया है। कंबोज के राजपुर, नंदिनगर और राइसडेवीज के अनुसार द्वारका नामक नगरों का उल्लेख साहित्य में मिलता है।

कालिदास ने रघुवंश में रघु के द्वारा कांबोजों की पराजय का उल्लेख किया है:- ‘काम्बोजा: समरे सोढुं तस्य वीर्यमनीश्वरा:, गजालान् परिक्लिष्टैरक्षोटै: सार्धमानता:’

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