तालिबानी हुकूमत LIVE :तालिबान को पाकिस्तान का खुला समर्थन, विदेश मंत्री कुरैशी बोले- तालिबान के खिलाफ प्रोपेगैंडा चलाया गया

अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत के बीच कई इलाकों में तालिबान का विरोध भी हो रहा है, लेकिन ऐसे लोगों को गोलियां खानी पड़ रही हैं। ताजा घटना पाकिस्तान से सटे अफगानी प्रांत कुनार की राजधानी असादाबाद की है। यहां अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर निकाली जा रही रैली में लोग अफगानी झंडा लहरा रहे थे। इन पर तालिबान ने फायरिंग कर दी, जिससे भगदड़ मच गई। इस हिंसा में कई लोग मारे गए हैं।

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तालिबान की क्रूरता की तस्वीरें पूरी दुनिया देख रही है, लेकिन पाकिस्तान उसका खुला समर्थन कर रहा है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार ने तालिबान के खिलाफ जो प्रोपेगैंडा चलाया था, वह झूठा साबित हुआ है। कुरैशी का कहना है कि तालिबान ने तो सभी को माफ करने का ऐलान किया है और वह लड़कियों की पढ़ाई को भी नहीं रोक रहा। तालिबान के अभी तक उठाए गए शांतिपूर्ण कदमों का स्वागत करते हैं।

पाकिस्तान से सटे इलाके में तालिबान की फायरिंग, कई लोगों की मौत
अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत के बीच कई इलाकों में तालिबान का विरोध भी हो रहा है, लेकिन ऐसे लोगों को गोलियां खानी पड़ रही हैं। ताजा घटना पाकिस्तान से सटे अफगानी प्रांत कुनार की राजधानी असादाबाद की है। यहां अफगानिस्तान के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर निकाली जा रही रैली में लोग अफगानी झंडा लहरा रहे थे। इन पर तालिबान ने फायरिंग कर दी, जिससे भगदड़ मच गई। इस हिंसा में कई लोग मारे गए हैं।

हालांकि ये साफ नहीं है कि मारे गए लोगों को गोली लगी थी या फिर वे भगदड़ के शिकार हुए थे। इस बीच तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान का झंडा अब नई बनने वाली तालिबानी सरकार ही तय करेगी।

अफगान की तालिबानी सूरत:टीवी पर महिला एंकर और विदेशी शो बैन, कुरान-इस्लामी संदेशों का टेलीकास्ट शुरू; बाजारों में महिलाओं के पोस्टर पर कालिख पोती

तालिबानी हुकूमत ने अफगानिस्तान की सूरत बदल दी है। महिलाओं को अधिकार और हर क्षेत्र में मौका देने की बात कहने वाले तालिबान ने महिला एंकरों पर पाबंदी लगा दी है। टीवी पर विदेशी शो का टेलीकास्ट रोक दिया गया है। सरकारी चैनलों से इस्लामी संदेश दिए जा रहे हैं। बाजारों में जहां कहीं भी महिलाओं की तस्वीरें दिखाई दे रही हैं, उन पर कालिख पोत दी जा रही है। तालिबान ने अफगानिस्तान के टॉप मीडिया अफसर का कत्ल पूरे मुल्क पर कब्जे से पहले ही कर दिया था।

महिला एंकर को दफ्तर से लौटा दिया
अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में वादा किया था कि महिला अधिकारों की हिफाजत की जाएगी, लेकिन एक हफ्ता पहले ही अफगानिस्तान के सरकारी चैनल को जॉइन करने वाली महिला एंकर खदीजा अमीन को वहां के अधिकारियों ने निकाल दिया है। चैनल के अधिकारियों ने खदीजा से कहा कि सरकारी चैनल में महिलाएं काम नहीं कर सकती हैं।

खदीजा ने कहा, ‘अब मैं क्या करूंगी। भविष्य की पीढ़ी के पास कुछ नहीं होगा। 20 साल में हमने जो कुछ भी हासिल किया है, वो सबकुछ चला जाएगा। तालिबान तालिबान ही रहेगा। वो बिल्कुल नहीं बदला है।’

इसके बाद काबुल स्थित रेडियो टेलीविजन अफगानिस्तान (RTA) में काम करने वाली एंकर शबनम दावरान को भी काम करने से मना कर दिया गया है। शबनम ने कहा- बुधवार को मैं हिजाब पहनकर और आईडी लेकर दफ्तर पहुंची। वहां मौजूद तालिबानियों ने मुझसे कहा कि सरकार बदल चुकी है। आपको यहां आने की इजाजत नहीं है। घर जाइए।

अफगानी मीडिया एंड इन्फॉर्मेशन सेंटर के हेड का किया था कत्ल

करीब दो हफ्ते पहले तालिबानियों ने अफगानिस्तान के मीडिया एंड इन्फॉर्मेशन सेंटर के चीफ दावा खान मेनापाल का कत्ल कर दिया था। दावा खान को तब कत्ल किया गया, जब शुक्रवार को वो नमाज पढ़कर बाहर आए थे। दावा खान अफगान सरकार के कट्टर समर्थक थे और हमेशा ही तालिबान विरोधी रहे। तालिबान ने कत्ल के बाद कहा था कि दावा खान को उनके कर्मों की सजा मिली, उन्हें तालिबानी लड़ाकों ने मारा।

फोटो काबुल की है, जिसे AFP के फोटोग्राफर वकील कोहसर ने खींचा है। तस्वीर बता रही है कि महिलाओं को लेकर तालिबान की सोच क्या है।

महिलाओं का सपोर्ट बस दिखावा, मार्केट तक में उनकी तस्वीरों को बदरंग किया
महिलाओं को अधिकार और शिक्षा देने जैसी बातें केवल तालिबान का दिखावा है। हालात ये हैं कि बाजारों में भी जहां महिलाओं की तस्वीरें दिखाई पड़ रही हैं, तालिबानी लड़ाके उन पर कालिख पोत रहे हैं। कई ट्वीट सोशल मीडिया पर किए गए हैं, जिनमें काबुल और अन्य शहरों के बाजारों में पोस्टर, एडवर्टाइजमेंट या शॉप पर महिलाओं की तस्वीर को कालिख से रंग दिया गया है।

घर-घर महिला एक्टिविस्टों और ब्लॉगर्स की तलाश
तालिबान भले ही वुमन फ्रैंडली होने की बात कह रहा हो, लेकिन हकीकत ये है कि वो हर जगह महिलाओं की मौजूदगी पर पहरा बैठा रहा है। अफगानिस्तान में पली-बढ़ी होमीरा रेजाई ने बीबीसी को बताया कि मुझे काबुल से खबरें मिल रही हैं। वहां तालिबानी घर-घर जाकर महिला एक्टिविस्टों की तलाश कर रहे हैं।

इसके अलावा महिला ब्लॉगर्स, यूट्यूबर्स की भी खोज की जा रही है ताकि उन पर बंदिश लगाई जा सके। होमीरा ने बताया कि तालिबानी हर उस महिला को तलाश कर रहे हैं, जो अफगानिस्तानी समाज के विकास से जुड़ा कोई काम कर रही हो।

1996 से 2001 का दौर लौटा

  • 1996 से 2001 तक जब अफगानिस्तान में तालिबानी शासन था, तब भी औरतों और बच्चियों के स्कूल या काम पर जाने की मनाही थी। उन्होंने अपना चेहरा ढंकना पड़ता था और बाहर निकलते वक्त घर के किसी मर्द का साथ होना जरूरी था।
  • महिलाओं को रेडियो, टेलीविजन या किसी सभा या सम्मेलन में जाने की इजाजत नहीं थी। घर से बाहर उन्हें ऊंची आवाज में बोलने की भी इजाजत नहीं थी, क्योंकि दूसरा व्यक्ति उनकी आवाज नहीं सुन सकता था।
मेरी बेटी को तालिबान से बचा लो:इस्लामिक स्टेट से जुड़ने गई केरल की महिला अफगानिस्तान में फंसी, देश वापसी के लिए मां ने लगाई सरकार से गुहार

केरल से भागकर ISIS से जुड़ने गई एक महिला अफगानिस्तान में फंस गई है। उसकी मां ने भारत सरकार से गुहार लगाई है कि उसे वापस लाया जाए और उस पर भारतीय कानून के तहत मुकदमा चलाया जाए।

निमिशा फातिमा नाम की यह महिला 2017 में केरल से लापता हो गई थी। बाद में खबर आई थी कि उसने आतंकी संगठन ISIS से जुड़ने के बाद 2019 में अफगान सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।

काबुल पर अफगानिस्तान के कब्जा करने और जेल से सैंकड़ों कैदियों को रिहा करने के दो दिन बाद निमिशा की मां बिंदु संपत ने सरकार से यह अपील की है। निमिशा फातिमा काबुल की जेल में सजा काट रही थी। कैदियों को रिहा करने के बाद वह कहां गई इसकी कोई खबर नहीं है।

डर है- तालिबान के हाथ में न पड़ जाए नातिन
निमिशा की पांच साल की बेटी भी है। बिंदु संपत ने कहा कि उन्हें डर है कि उनकी नातिन तालिबान के हाथों में न पड़ जाए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने कहा, “जब मैंने खबर सुनी कि कैदियों को रिहा किया गया है तो मैं बहुत खुश हुई। फिर, शाम तक खबर आई कि उन्हें रिहा नहीं किया गया है।”

भारत के कानून के मुताबिक मिले निमिशा को सजा
उन्होंने कहा- “अगर निमिशा ने मेरे देश के साथ कुछ गलत किया है तो उसे यहीं के कानून के हिसाब से सजा दी जाए। मैं चार साल से यही कह रही हूं। अगर उसे अफगानिस्तान से भारत लाया जाता है, तो मैं अपनी नातिन का खयाल रख पाऊंगी। वरना वह भी इन आतंकियों का शिकार बन जाएगी। मैं नहीं जानती कि भारत सरकार उसे वापस लाने की अनुमति क्यों नहीं दे रही है।”

आतंकियों ने निमिशा का ब्रेनवॉश किया
उन्होंने बताया- “तिरुअनंतपुरम में निमिशा के कोचिंग सेंटर पर एक डॉक्टर और आतंकियों ने मिलकर उसे बहलाया-फुसलाया और ISIS में जुड़ने के लिए तैयार किया। 2017 में केरल से 17 लोग लापता हुए थे, जिसके मास्टरमाइंड अब्दुर राशिद और चार अन्य लोग थे।”

निमिशा और उसकी चार साल की बेटी अफगानिस्तान की जेल में तब से हैं जब उसने और ISIS से जुड़े 400 लोगों ने अफगानी सेना के सामने आत्म समपर्ण किया था। ISIS बेस पर अमेरिकी एयरस्ट्राइक में निमिशा फातिमा का पति मारा गया था।

अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए क्या हैं तालिबान के आने के मायने, कितनी बदलेगी उनकी जिंदगी?

अफगानिस्तान की टोलो न्यूज की एक महिला पत्रकार बहेश्ता अरघंद फिलहाल सुर्खियों में हैं। वजह है उनका हाल ही का एक इंटरव्यू जिसमें वे तालिबानी प्रवक्ता मौलवी अब्दुल हक हम्माद के साथ TV पर बातचीत कर रही हैं। अफगानिस्तान के इतिहास में ये पहला मौका है जब कोई महिला एंकर किसी तालीबानी प्रवक्ता के साथ TV पर इंटरव्यू कर रही है।

तालिबान प्रवक्ता के इंटरव्यू के दौरान पत्रकार बहेश्ता अरघंद।
तालिबान प्रवक्ता के इंटरव्यू के दौरान पत्रकार बहेश्ता अरघंद।

दुनियाभर में इस तस्वीर के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। लोगों का कहना है कि तालिबान 2.0 महिलाओं के प्रति पहले के मुकाबले नरम रवैया अपना सकता है। इस इंटरव्यू के जरिए तालिबान ने दुनिया को यही संदेश देने की कोशिश की है। इसके बावजूद भी लोग अफगानिस्तान छोड़कर भाग रहे हैं। पूरी दुनिया को डर है कि तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति और बदतर हो जाएगी।

समझते है, अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति क्या है? तालिबान के शासन में महिलाएं किस तरह रहती थीं? तालिबान के हटने के बाद महिलाओं की स्थिति में क्या बदलाव आया? और महिलाओं को लेकर तालिबान की कथनी और करनी में कितना अंतर है…

सबसे पहले अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति क्या है वो समझिए

भले ही तालिबान महिलाओं को काम करने और ज्यादा आजादी देने की बात कर रहा हो, लेकिन ग्राउंड पर स्थिति इसके विपरीत है। तालिबान ने कहा है कि वो अफगानिस्तान को शरिया कानून के मुताबिक चलाएगा। स्थानीय मीडिया के मुताबिक, कई जगह महिलाओं को बिना किसी पुरुष के घर से बाहर निकलने पर पांबदी लगा दी गई है। कई जगह सार्वजनिक स्थानों पर भी महिलाओं की एंट्री बैन कर दी गई है। यानी, तालिबान के आते ही महिलाओं पर सख्ती की शुरुआत हो चुकी है।

काबुल की सड़कों पर महिलाओं की प्रदर्शन की तस्वीरें भी सामने आई हैं। हिजाब पहने इन महिलाओं को तालिबानी शासन के आने के बाद खुद की आजादी छिन जाने का डर है। सोशल मीडिया पर शेयर हो रहे वीडियो में ये महिलाएं पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने की मांग कर रही हैं।

अफगानिस्तान के चैनल में बतौर एंकर काम करने वाली खदीजा अमीन को वहां के अधिकारियों ने निकाल दिया है। बल्ख की महिला गवर्नर सलीमा को भी तालिबान ने बंधक बना लिया गया है। काबुल में TV चैनल की महिला पत्रकार शबनम ने वीडियो जारी कर कहा है कि तालिबान के लड़ाकों ने उन्हें ऑफिस नहीं जाने दिया। उनसे कहा गया कि निजाम बदल गया है, इसलिए अब ऑफिस में नहीं आ सकती हैं।

तालिबान 1.0 में किस तरह थी महिलाओं की जिंदगी?

तालिबान ने अफगानिस्तान पर 1996 से 2001 तक शासन किया था। इस दौरान महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक थी।

  • महिलाओं और लड़कियों को काम करने और स्कूल/कॉलेज जाने की आजादी नहीं थी। साल 2000 में अफगानिस्तान में एक भी लड़की स्कूल नहीं जाती थी।
  • छोटी-छोटी बच्चियों को भी बुर्का पहनना जरूरी था। महिलाएं अकेले घर से बाहर नहीं निकल सकती थी। घर से बाहर जाने के लिए अपने साथ किसी पुरुष को ले जाना होता था।
  • महिलाओं को ऊंची हील पहनने पर पाबंदी थी।
  • पर्दा इतना सख्त था कि महिलाएं सार्वजनिक जगहों पर बात तक नहीं कर सकती थीं, ताकि उनकी आवाज कोई दूसरा पुरुष न सुने।
  • अखबारों, किताबों, दुकानों और घरों में महिलाओं की फोटो लगाने पर पाबंदी थी। महिलाओं के नाम पर किसी भी सार्वजनिक जगह के नाम नहीं रखे जाते थे।
  • इन नियम-कायदों को तोड़ने पर महिलाओं को सख्त सजा दी जाती थी। उन्हें सार्वजनिक जगहों पर पत्थरों से मारा जाता और शरिया कानून के मुताबिक सजा दी जाती थी।
ये फोटो रिवॉल्यूशनरी एसोसिएशन ऑफ द विमन ऑफ अफगानिस्तान द्वारा जारी किए गए एक वीडियो से निकाली गई है। फोटो अगस्त 2001 की है, जिसमें तालिबानी लड़ाका एक महिला को मार रहा है, क्योंकि महिला ने अपना बुर्का उतार दिया था।
ये फोटो रिवॉल्यूशनरी एसोसिएशन ऑफ द विमन ऑफ अफगानिस्तान द्वारा जारी किए गए एक वीडियो से निकाली गई है। फोटो अगस्त 2001 की है, जिसमें तालिबानी लड़ाका एक महिला को मार रहा है, क्योंकि महिला ने अपना बुर्का उतार दिया था।

तालिबान के हटने के बाद क्या महिलाओं कि स्थिति बदली?

2001 में अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद तालिबान सत्ता से हटा तो महिलाओं की स्थिति में सुधार आना शुरू हुआ। महिलाओं को बेसिक राइट मिलने लगे। साल 2000 में जहां एक भी लड़की स्कूल नहीं जाती थी, वहीं 2018 में ये आंकड़ा 83% हो गया था।

अफगानिस्तान में 2018 में हुए चुनावों में 249 में से 69 सीटों पर महिलाओं को जीत मिली थी। यानी, कुल सदस्यों में से 27% महिलाएं थीं। ये आंकड़ा पाकिस्तान और चीन से भी ज्यादा था।

तालिबान के शासन से पहले भी अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति बेहतर थी। नवंबर 2001 की अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 90 के दशक के शुरुआत में अफगानिस्तान में स्कूलों में पढ़ाने वाले कुल टीचर्स में 77% महिलाएं थीं, सरकारी पदों पर 50% महिलाएं काम करती थीं और काबुल में कुल डॉक्टरों में 40% तक महिलाएं थीं।

तालिबान ने महिलाओं को लेकर क्या कहा है?

अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से ही तालिबान दावा कर रहा है कि वो महिलाओं की आजादी को बरकरार रखेगा। तालिबान महिलाओं से अपील भी कर चुका है कि वो अफगानिस्तान की नई सरकार में शामिल हों। महिलाओं को पढ़ाई और काम करने का अधिकार मिलेगा।

तालिबानी प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा है कि महिलाओं के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कोई फैसला नहीं लिया जाएगा, लेकिन साथ ही ये भी कहा है कि महिलाओं को इस्लामिक कानून के मुताबिक ही छूट दी जाएगी। इसके साथ ही तालिबान ने इस बार बुर्का और हिजाब में भी ढील देने का ऐलान किया है।

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