पठानकोट हमले पर किताब में दावा:भ्रष्ट पुलिस अफसर थे आतंकियों के मददगार; उन्होंने ही एयरबेस तक जाने का सुरक्षित रास्ता तलाशा, अंदर घुसने में मदद भी की

इसके कैंपस की दीवार कूदकर, लंबी घास से होते हुए उस जगह पहुंचे, जहां सैनिक रहते थे। यहां उनका पहला सामना सैनिकों से हुआ। फायरिंग में चार हमलावर मारे गए और तीन जवान शहीद हो गए। अगले दिन एक IED धमाके में चार और भारतीय सैनिक शहीद हुए। सुरक्षाबलों को यह पक्का करने में तीन दिन लग गए कि हालात पूरी तरह उनके काबू में हैं।

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नई दिल्ली. पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले में लोकल पुलिस अफसरों की मिलीभगत थी। इन भ्रष्ट अफसरों ने हमले से पहले एयरबेस की रेकी की। इनमें से एक ने सुनसान रहने वाले रास्ते की पहचान की थी, जिसका इस्तेमाल हमलावरों ने गोला-बारूद, ग्रेनेड, मोर्टार और एके-47 राइफल ले जाने के लिए किया। यह दावा दो जर्नलिस्ट एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क ने अपनी किताब ‘स्पाई स्टोरीज: इनसाइड द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ दि रॉ एंड दि ISI’ में किया है।

भारतीय सेना की वर्दी में आए थे हथियारबंद आतंकी
एयरबेस पर यह हमला 2 जनवरी 2016 को हुआ था। भारतीय सेना की वर्दी में आए हथियारबंद आतंकियों ने इसे अंजाम दिया था। वे सभी भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर रावी नदी के रास्ते आए थे। भारतीय इलाके में पहुंचकर आतंकियों ने कुछ गाड़ियां हाईजैक कीं और पठानकोट एयरबेस की ओर बढ़ गए।

इसके कैंपस की दीवार कूदकर, लंबी घास से होते हुए उस जगह पहुंचे, जहां सैनिक रहते थे। यहां उनका पहला सामना सैनिकों से हुआ। फायरिंग में चार हमलावर मारे गए और तीन जवान शहीद हो गए। अगले दिन एक IED धमाके में चार और भारतीय सैनिक शहीद हुए। सुरक्षाबलों को यह पक्का करने में तीन दिन लग गए कि हालात पूरी तरह उनके काबू में हैं।

किताब लिखने वाले एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क।
                                                   किताब लिखने वाले एड्रियन लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क।

सलाह के बावजूद नहीं बढ़ाई सुरक्षा

  • राइटर्स का कहना है कि भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाकर युद्ध की धमकी दी। हालांकि, पूरी ईमानदारी से की गई संयुक्त जांच में सामने आया कि लगातार चेतावनी के बावजूद सुरक्षा इंतजाम मजबूत नहीं किए गए। पंजाब की 91 किलोमीटर से ज्यादा सीमा पर बाड़बंदी नहीं की गई।
  • कम से कम चार रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया था कि नदियां और नाले घुसपैठ के लिहाज से संवेदनशील हो सकते हैं, पर उन पर जाल नहीं लगाए गए। 6 बार लिखित में कहने के बाद भी गश्त नहीं बढ़ाई गई। निगरानी के लिए सर्विलांस टेक्नोलॉजी और मूवमेंट ट्रैकर्स नहीं लगाए गए।
  • किताब में एक BSF ऑफिसर के हवाले से लिखा गया है कि जमीन पर फोर्स के जवान बहुत कम थे। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कश्मीर में एक्टिविटी बढ़ गई थी। बार-बार अतिरिक्त जवान मांगे गए, लेकिन इस डिमांड को नजरअंदाज किया जाता रहा।

पुलिस अफसर हर कदम पर आतंकियों के साथ रहे
पठानकोट हमले के लिए भारत में ही 350 किलो एक्सप्लोसिव खरीदा गया था। इसके लिए जैश-ए-मोहम्मद ने भुगतान किया। इसे आतंकियों तक पहुंचाने वाले उनका भारत आने का इंतजार कर रहे थे। किताब के मुताबिक, लोकल पुलिस अफसरों सहित आतंकियों के भारतीय मददगारों पर एयरबेस की रेकी करने का शक था।

इनमें से एक पुलिस अफसर ने ऐसा इलाका तलाशा, जहां सुरक्षा उपाय कमजोर थे। फ्लडलाइट्स काफी नीचे थीं और सीसीटीवी कैमरों में कोई कवरेज नहीं था। निगरानी के लिए कोई उपकरण नहीं थे। कैंपस के बगल में एक बड़ा पेड़ था। इसकी पहचान एक लिखित रिपोर्ट में खतरे के तौर पर की गई थी।

एयरबेस में जांच करने वाले इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक ऑफिसर ने लेखकों को बताया था कि आतंकियों का साथ देने वाले पुलिस अफसरों या उनके किसी मददगार ने दीवार फांदकर दूसरी ओर एक रस्सी फेंकी थी। इसी के जरिए आतंकी 50 किलो गोला-बारूद, 30 किलो ग्रेनेड, मोर्टार और AK-47 राइफल लेकर अंदर घुसे।

सबसे लंबा चला ऑपरेशन
एयरबेस में घुसे आतंकियों ने 2 जनवरी रात 3 बजे हमला किया। अगली शाम तक NSG के जवानों ने 4 आतंकियों को ढेर कर दिया। बाकी बचे 2 आतंकी रुक-रुक कर फायरिंग करते रहे। NSG ने 5 जनवरी को ऑपरेशन खत्म करने की जानकारी दी। ऑपरेशन 4 दिन और 3 रात चला। मुंबई हमले में भी NSG को इतना समय नहीं लगा था।

हमले के वक्त रक्षा मंत्री रहे मनोहर पार्रिकर ने खुद एयरबेस पहुंचकर ऑपरेशन के पूरा होने का ऐलान किया था। पूरे ऑपरेशन में 300 NSG कमांडो लगाए गए थे। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजित डोभाल भी एयरबेस पर पहुंचे थे।

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