नेफ्टाली बेनेट इजराइल के PM बने, कट्टर यहूदी और बड़े कारोबारी के तौर पर भी पहचान; उनके बारे में जरूरी बातें जानिए

बेनेट ज्यादातर यहूदी टोपी (किप्पा) लगाकर रहते हैं। वे फिलिस्तीन का वजूद ही नहीं मानते। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में सिर्फ इजराइल है, लेकिन रविवार को बहुमत साबित करने के दौरान उनके सुर बदले नजर आए। इस गठबंधन में राम पार्टी का नाम चौंका रहा है। यह अरब-मुस्लिमों की पार्टी है। मंसूर अब्बास इसके नेता हैं। इसके अलावा, वामपंथी और मध्य विचारधारा के दल भी कोएलिशन का हिस्सा हैं। बेनेट अब अरब इजराइली मुस्लिमों के विकास और शिक्षा की बेहतरी की बात कर रहे हैं।

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इजराइल में नई सरकार का गठन हो गया है। 8 पार्टियों की गठबंधन सरकार की कमान कट्टरपंथी माने जानेवाले नफ्ताली बेनेट संभालेंगे। वे फिलीस्तीन राज्य की विचारधारा को ही स्वीकार नहीं करते। खास बात यह है कि इस गठबंधन में पहली बार कोई अरब-मुस्लिम पार्टी (राम) भी शामिल है। दूसरी तरफ, बेंजामिन नेतन्याहू के 12 साल का कार्यकाल खत्म हो गया। हालांकि, वे भी गठबंधन सरकार के ही मुखिया थे।

आंकड़ों की बात करें तो रविवार देर रात सरकार के पक्ष में 60 जबकि विरोध में 59 सांसदों ने वोट किया। गठबंधन में शामिल राम पार्टी के एमके साद अल हरूमी वोटिंग से गैरहाजिर रहे। सीधे तौर पर कहें तो गठबंधन सरकार और विपक्ष के बीच सिर्फ एक सीट का फासला है। बेनेट के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नेतन्याहू ने उन्हें हाथ मिलाकर बधाई धी।

संसद में अपने भाषण के दौरान बेनेट ने कहा- मैं बेंजामिन और सारा नेतन्याहू का शुक्रिया अदा करता हूं। इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने देश के लिए कई कुर्बानियां दी हैं। हालांकि, बेनेट के भाषण के दौरान विपक्ष नारेबाजी करता रहा।

संसद में हंगामा और नारेबाजी
The Times of Israel के मुताबिक, इजराइली संसद में रविवार को काफी हंगामा और नारेबाजी हुई। बेनेट जब भाषण देने खड़े हुए तो विपक्ष ने झूठा और अपराधी जैसे शब्दों का प्रयोग किया। हंगामा इतना ज्यादा था कि गठबंधन सरकार में शामिल और अगले प्रधानमंत्री (सितंबर 2023 के बाद) येर लैपिड भाषण ही भूल गए। नेतन्याहू ने कहा- आज यहां जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर ईरान बहुत खुश हो रहा होगा। आज हमारे देश के सामने एक साथ कई खतरे आ खड़े हुए हैं।

बेनेट की सबसे बड़ी मुश्किल
इजराइली सियासत में अस्थिरता कई साल से नजर आ रही है। दो साल में चार चुनाव हुए, लेकिन किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। बेनेट प्रधानमंत्री भले ही बन गए हों और उन्होंने गठबंधन भी बना लिया हो, लेकिन उनकी सरकार को लेकर लोग बहुत आशावान नहीं हैं। इसकी एक वजह है कि इस गठबंधन के पास बहुमत से सिर्फ एक सीट ही ज्यादा है। अगर किसी भी मुद्दे पर गठबंधन में मतभेद हुए तो नया चुनाव ही रास्ता बचेगा।

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इजराइल में आठ पार्टियों की गठबंधन सरकार बन चुकी है। रविवार रात नेफ्टाली बेनेट ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। बेनेट को कट्टरपंथी यहूदी के तौर पर जाना जाता है। इसके अलावा वो कुछ बड़ी टेक कंपनियों के मालिक भी हैं। दो साल चीफ ऑफ स्टाफ भी रहे हैं। इसे संयोग कहें या कुछ और कि बेनेट उन्हीं बेंजामिन नेतन्याहू को कुर्सी से हटाकर प्रधानमंत्री बने हैं, जिन्हें उनका राजनीतिक गुरु माना जाता है। नेतन्याहू को कुर्सी खोनी पड़ी और वो महज एक सांसद की कमी से। यहां हम नए इजराइली प्रधानमंत्री बेनेट के बारे में कुछ बातें जानने की कोशिश करते हैं।

खुद कट्टरपंथी, लेकिन गठबंधन में सभी तरह की पार्टियां
बेनेट ज्यादातर यहूदी टोपी (किप्पा) लगाकर रहते हैं। वे फिलिस्तीन का वजूद ही नहीं मानते। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में सिर्फ इजराइल है, लेकिन रविवार को बहुमत साबित करने के दौरान उनके सुर बदले नजर आए। इस गठबंधन में राम पार्टी का नाम चौंका रहा है। यह अरब-मुस्लिमों की पार्टी है। मंसूर अब्बास इसके नेता हैं। इसके अलावा, वामपंथी और मध्य विचारधारा के दल भी कोएलिशन का हिस्सा हैं। बेनेट अब अरब इजराइली मुस्लिमों के विकास और शिक्षा की बेहतरी की बात कर रहे हैं।

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फिलिस्तीन का समर्थन नहीं
बेनेट ने खुलेतौर पर फिलिस्तीन की आजादी और उसको अलग मुल्क बनाए जाने का सैकड़ों मर्तबा विरोध किया। वेस्ट बैंक और यरूशलम में यहूदियों की बस्तियों पर जोर दिया। दुनिया इसे इजराइली जिद और शांति के लिए खतरा मानती है। बराक ओबामा जब अमेरिकी राष्ट्रपति थे, और उन्होंने नेतन्याहू पर यहूदी बस्तियों का काम रोकने को कहा था, तो बेनेट ने इसका विरोध किया था। 2013 में सांसद बनने से पहले वो वेस्ट बैंक सेटलर्स काउंसिल के चीफ भी रहे।

इजराइल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट के चीफ और बेनेट के अच्छे दोस्त योहान प्लेसनर कहते हैं- इसमें कोई दो राय नहीं कि बेनेट कट्टर दक्षिणपंथी और सुरक्षा मामलों पर बेहद सख्त रुख वाले नेता हैं, लेकिन काफी व्यावहारिक भी हैं।

नेतन्याहू से मुकाबला
49 साल के बेनेट चार बच्चों के पिता हैं। किसी दौर में नेतन्याहू के बेहद करीबी सहयोगी रहे हैं। लेकिन बाद में दूरियां बढ़ती गईं। मिडल-ईस्ट को लेकर नेतन्याहू की नीति से वो सहमत नहीं हैं। नेतन्याहू ने ही उन्हें चीफ ऑफ स्टाफ बनाया था। कहा जाता है कि नेतन्याहू की पत्नी सारा की सियासी दखलंदाजी के चलते बेनेट उनसे दूर हो गए। मार्च में एक टीवी डिबेट के दौरान बेनेट ने कहा था- मैं मध्यमार्गी पार्टी के नेता येर लैपिड को कभी प्रधानमंत्री नहीं बनने दूंगा।

मजे की बात यह है कि नेतन्याहू को सत्ता से हटाने के लिए बेनेट ने इन्हीं येर लैपिड से न सिर्फ हाथ मिला लिया, बल्कि गठबंधन की शर्तों के मुताबिक, सितबंर 2023 में येर लैपिड ही प्रधानमंत्री बनेंगे। अब नेतन्याहू के समर्थक बेनेट को धोखेबाज और मतदाताओं से वादाखिलाफी करने वाला बता रहे हैं। वहीं, बेनेट का कहना है कि उन्होंने जो कुछ किया वो देश की एकता और चुनाव से बचाने के लिए किया।

तेल अवीव में घर
बेनेट इजराइल के सुरक्षित और खूबसूरत शहर तेल अवीव में रहते हैं। हमेशा किप्पा पहनते हैं। उनके आलोचक पूछते हैं कि वे उन यहूदी बस्तियों में क्यों नहीं रहते, जिनको इजराइल ने वेस्ट बैंक या यरूशलम में बनाया है और जिनका बेनेट हमेशा से समर्थन करते आए हैं। बेनेट के माता-पिता का जन्म अमेरिका में हुआ, लेकिन उनका जन्म हाइफा शहर में हुआ। मिलिट्री में रहे, फिर लॉ स्टूडेंट बने और फिर प्राइवेट सेक्टर में आए। उनके बारे में कहा जाता है कि वो आधुनिक, धार्मिक और राष्ट्रवादी हैं।

बड़ी कंपनियों के मालिक
बेनेट इजराइल मिलिट्री की कमांडो यूनिट सेरेत में भी रहे। 1999 में उन्होंने एंटी-फ्रॉड सॉफ्टवेयर कंपनी ‘क्योटा’ बनाई। 2005 में इसे 145 मिलियन डॉलर में अमेरिका की RSA सिक्योरिटी फर्म को बेच दिया।

बेनेट कहते हैं कि 2006 में जब इजराइल और लेबनान के आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह में जंग हुई तो उन्होंने सियासत में आने का फैसला किया। इस जंग का कोई नतीजा नहीं निकला था, लेकिन इजराइली सेना और सरकार को देश में आलोचना का सामना करना पड़ा था। उन्होंने तीसरी पीढ़ी का नेता माना जाता है।

इजराइली अखबार ‘हेरात्ज’ के कॉलमनिस्ट एन्शेल फीफर कहते हैं- बेनेट राष्ट्रवादी हैं, लेकिन जिद्दी नहीं। धार्मिक हैं, लेकिन कट्टर नहीं। सैनिक हैं, लेकिन ऐश-ओ-आराम की जिंदगी जीते हैं। टेक एंटरप्रेन्योर हैं और अपनी कंपनियों के जरिए लाखों डॉलर कमाते हैं। उनकी सियासी पारी शायद बहुत लंबी न हो।

विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायल में चाहे जो भी सरकार आए, भारत से उससे संबंध अच्छे रहेंगे, क्योंकि रूस के बाद वह सबसे ज्यादा सैन्य उपकरण इस देश से खरीदता है। हालांकि, नेफ्टाली फिलीस्तीन को लेकर जो सोच रखते हैं, उससे मोदी सरकार सहमत नहीं हो सकती है।

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