कोविड टास्कफोर्स का दावा- अगस्त से दिसंबर तक भारत में बनेंगे 2.16 अरब डोज; पर आधे ही मिलने की संभावना

कंपनी ने कहा है कि सरकार के कहने पर वह जून-जुलाई में इमरजेंसी यूज के लिए आवेदन करेगी। यह देखना होगा कि क्या सरकार इस वैक्सीन को उसके ग्लोबल ट्रायल्स के नतीजों के आधार पर मंजूरी देगी? अगर नियमों को देखें तो इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। वैसे, प्रोडक्शन टारगेट्स पूरे करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। बायोलॉजिकल ई ने अगस्त से 7.5-8 करोड़ डोज हर महीने बनाने की योजना बनाई है। पांच महीने में 30 करोड़ डोज उपलब्ध होना मुश्किल नहीं है।

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भारत में जिस रफ्तार से कोविड-19 के खिलाफ वैक्सीनेशन शुरू हुआ था, वह अब पूरी तरह सुस्त पड़ चुकी है। 3 से 9 अप्रैल के बीच भारत में 2.47 करोड़ डोज लगाए गए, जो 16 जनवरी से शुरू हुए वैक्सीनेशन में अब तक एक हफ्ते में सबसे अधिक डोज हैं। पर इसके बाद सप्लाई गड़बड़ा गई और 15-21 मई के बीच 92 लाख डोज ही दिए जा सके।

वैक्सीनेशन की रफ्तार कम हुई तो भारत में कोरोना से जुड़े मामलों पर पॉलिसी बना रहे कोविड टास्क फोर्स ने 13 मई को वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर बड़े-बड़े दावे किए। नीति आयोग के सदस्य (हेल्थ) डॉ. वीके पॉल ने बाकायदा एक प्रेजेंटेशन दिखाया और कहा कि भारत में अगस्त से दिसंबर तक 2.1 अरब डोज बनेंगे। यानी पूरी आबादी को दो डोज दे सकें, इतने डोज भारत में ही बन जाएंगे।

पर सरकार ने जो प्लान बनाया, उसमें जो आकलन किया गया है, वह वास्तविकता से कोसों दूर नजर आ रहा है। मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए लगता नहीं कि अगस्त से दिसंबर तक भारत में टारगेट के आधे भी डोज उपलब्ध हो सकेंगे।

आइए समझते हैं वैक्सीन डोज सप्लाई पर सरकार का प्लान और उसकी हकीकत…

पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की फेसिलिटी में कोवीशील्ड वैक्सीन की वायल्स से भरे बक्से पैक करते हुए कर्मचारी। सीरम में 75 करोड़ डोज अगस्त से दिसंबर तक बनने की उम्मीद है, पर कंपनी की क्षमता 50 करोड़ डोज बनाने की है।
पुणे में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की फेसिलिटी में कोवीशील्ड वैक्सीन की वायल्स से भरे बक्से पैक करते हुए कर्मचारी। सीरम में 75 करोड़ डोज अगस्त से दिसंबर तक बनने की उम्मीद है, पर कंपनी की क्षमता 50 करोड़ डोज बनाने की है।

1. कोवीशील्डः देश की सबसे बड़ी उम्मीद सीरम इंस्टीट्यूट

प्लेटफॉर्मः वायरल वेक्टर वैक्सीन। चिम्पैंजी में मिलने वाला एडेनोवायरस लिया। उसमें बदलाव किया। उसे कोरोना जैसा बनाया है। 12-18 हफ्तों के गैप में दो डोज देने पर यह वैक्सीन 80% तक इफेक्टिव रही है।
डेवलपमेंट स्टेटसः ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश फर्म एस्ट्राजेनेका ने इसे विकसित किया है। भारत में 16 जनवरी से शुरू हुए वैक्सीनेशन कैम्पेन में इसे शामिल किया गया था। 28 मई तक 18 करोड़ डोज लग चुके हैं। सरकार ने दो बार दो डोज का गैप बढ़ाया। पहले 4-6 हफ्ते से बढ़ाकर 6-8 हफ्ते किया और फिर 13 मई को इसे बढ़ाकर 12-16 हफ्ते किया।
सरकार का दावाः जुलाई तक 27.6 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे। इसके बाद अगस्त से दिसंबर तक 75 करोड़ डोज मिलेंगे। यानी हर महीने 15 करोड़ डोज का प्रोडक्शन होगा।
हकीकतः कुछ ही दिन पहले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भारत सरकार को चार महीने का प्रोडक्शन प्लान दिया है। उसके अनुसार अगस्त तक वह 10 करोड़ डोज हर महीने बनाने लगेगी। यानी अगस्त से दिसंबर तक 50 करोड़ डोज ही बन सकेंगे। इसमें भी कंपनी कच्चे माल के लिए अमेरिका समेत अन्य देशों पर निर्भर है और इस वजह से पहले ही उसका प्रोडक्शन प्लान गड़बड़ा चुका है।

भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए एनिमल वैक्सीन बनाने वाली अपनी दो यूनिट्स को तैयार करना शुरू कर दिया है। कंपनी का दावा प्रोडक्शन बढ़ाकर 1 अरब डोज सालाना तक लेकर जाने का है।
भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन का प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए एनिमल वैक्सीन बनाने वाली अपनी दो यूनिट्स को तैयार करना शुरू कर दिया है। कंपनी का दावा प्रोडक्शन बढ़ाकर 1 अरब डोज सालाना तक लेकर जाने का है।

2. कोवैक्सिनः स्वदेशी वैक्सीन की राह में कई अड़चनें

प्लेटफॉर्मः इनएक्टिवेटेड वैक्सीन। वायरस को रेडिएशन, गर्मी और अन्य उपायों से कमजोर किया। शरीर में इंजेक्ट किया, ताकि नेचरल तरीके से एंटीबॉडी बन सकें।
डेवलपमेंट स्टेटसः इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के साथ मिलकर भारत बायोटेक ने वैक्सीन विकसित की है। 16 जनवरी से शुरू वैक्सीनेशन में शामिल रही है। पिछले महीने जारी दूसरे अंतरिम नतीजों के अनुसार यह वैक्सीन 78% इफेक्टिव है। 28 मई तक कोवैक्सिन के 2.19 करोड़ डोज लग चुके हैं।
सरकार का दावाः जुलाई तक 8 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे। इसके बाद अगस्त से दिसंबर तक 55 करोड़ डोज मिलेंगे। यानी हर महीने 11 करोड़ डोज का प्रोडक्शन होगा।
हकीकतः भारत बायोटेक ने सरकार को बताया है कि जुलाई तक 3.32 करोड़ डोज हर महीने बनने लगेंगे। अगस्त में प्रोडक्शन बढ़ाकर 7.82 करोड़ डोज हर महीने किया जाएगा। कंपनी ने इसके लिए कर्नाटक के मालुर में एनिमल वैक्सीन बनाने वाली फेसिलिटी और गुजरात के अंकलेश्वर की फेसिलिटी में भी कोवैक्सिन बनाने की योजना बनाई है। केंद्र सरकार ने कोवैक्सिन प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए कोविड सुरक्षा मिशन लॉन्च किया है। इसके तहत सरकार अपनी तीन यूनिट्स- इंडियन इम्युनोलॉजिकल्स लिमिटेड, भारत इम्युनोबायोलॉजिकल्स एंड बायोलॉजिक्स लिमिटेड और हॉफकिन इंस्टीट्यूट- को कोवैक्सिन प्रोडक्शन के लिए तैयार कर रही है। इनमें 3 करोड़ डोज हर महीने बन सकते हैं, पर यूनिट्स को तैयार करना एक बड़ी चुनौती होगी।

स्पुतनिक V का प्रोडक्शन अभी देश में शुरू नहीं हुआ है। रूस से आई पहली खेप के आधार पर 14 मई को स्पुतनिक वी का पहला डोज भारत में लगाया गया।
स्पुतनिक V का प्रोडक्शन अभी देश में शुरू नहीं हुआ है। रूस से आई पहली खेप के आधार पर 14 मई को स्पुतनिक वी का पहला डोज भारत में लगाया गया।

3. स्पुतनिक V: दोनों डोज अलग, मतलब प्रोडक्शन भी अलग

प्लेटफॉर्मः वायरल वेक्टर वैक्सीन। एडेनोवायरस से विकसित किया है। यह दो डोज वाली वैक्सीन है, जिसके दोनों डोज में अलग-अलग वायरस का इस्तेमाल किया है।
डेवलपमेंट स्टेटसः रूसी वैक्सीन स्पुतनिक V को भारत सरकार ने 12 अप्रैल को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी। इस वैक्सीन की इफेक्टिवनेस करीब 92% है। 14 मई को स्पुतनिक V का भारत में पहला डोज दिया गया है। 28 मई तक 3,761 डोज दिए गए हैं।
सरकार का दावाः जुलाई से दिसंबर के बीच 15.6 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे।
हकीकतः डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरी ने रूस से 1.5 लाख डोज मंगवाए थे, जिसका इस्तेमाल प्राइवेट अस्पताल में हो रहा है। पैनासिया बायोटेक के हिमाचल प्रदेश की फेसिलिटी में स्पुतनिक V बननी शुरू हो गई है। पहला बैच क्वालिटी जांच के लिए मॉस्को में गामालेया सेंटर भेजा जाएगा। समस्या यह है कि इस वैक्सीन को -18 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करने की जरूरत होगी। यह भारत में उपलब्ध रेफ्रिजरेशन व्यवस्थाओं को चुनौती होगी। एक समस्या यह भी है कि स्पुतनिक V के दोनों डोज में अलग-अलग कम्पोजिशन है। यानी पहला डोज अलग बनेगा और दूसरा डोज अलग। डॉ. रेड्डीज और अन्य पार्टनर्स की मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को देखते हुए टारगेट्स पूरा होना मुश्किल लग रहा है।

अहमदाबाद की जायडस कैडिला की स्वदेशी वैक्सीन फेज-3 ट्रायल्स में हैं। जून के पहले हफ्ते में इसके नतीजे आ सकते हैं। जल्द ही इसका प्रोडक्शन भी शुरू हो जाएगा। तस्वीर नवंबर की है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कंपनी की अहमदाबाद स्थित फेसिलिटी में वैक्सीन डेवलपमेंट की प्रक्रिया का मुआयना किया था।
अहमदाबाद की जायडस कैडिला की स्वदेशी वैक्सीन फेज-3 ट्रायल्स में हैं। जून के पहले हफ्ते में इसके नतीजे आ सकते हैं। जल्द ही इसका प्रोडक्शन भी शुरू हो जाएगा। तस्वीर नवंबर की है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कंपनी की अहमदाबाद स्थित फेसिलिटी में वैक्सीन डेवलपमेंट की प्रक्रिया का मुआयना किया था।

4. जायकोव डीः यह तो तीन डोज वाली वैक्सीन है!

प्लेटफॉर्मः डीएनए प्लेटफॉर्म। पहली बार सार्स और मर्स के लिए वैक्सीन बनाने में यह प्लेटफॉर्म विकसित हुआ था।
डेवलपमेंट स्टेटसः कोवैक्सिन के बाद यह दूसरी पूरी तरह से स्वदेशी वैक्सीन होगी। 28 हजार वॉलंटियर्स पर जनवरी में फेज-3 ट्रायल्स शुरू हुए थे। जून के पहले हफ्ते तक नतीजे आने की उम्मीद है। अनुमति मिली तो जून में प्रोडक्शन शुरू होगा।
सरकार का दावाः अगस्त से दिसंबर तक 5 करोड़ डोज मिलेंगे। पर यह तीन डोज वाली वैक्सीन है यानी 1.6 करोड़ लोग ही पूरी तरह वैक्सीनेट हो सकेंगे।
हकीकतः कंपनी की योजना जून से वैक्सीन सप्लाई करने की है। कंपनी 2 करोड़ डोज हर महीने बना सकती है। कुछ दिन पहले जायडस कैडिला के मैनेजिंग डायरेक्टर शर्विल पटेल ने कहा था कि कंपनी एक करोड़ डोज हर महीने बना लेगी। कॉन्ट्रेक्ट के तहत एक करोड़ डोज और हर महीने बनाए जा सकते हैं। यानी सरकार के अनुमान पर यह खरी उतर सकती है। पर फेज-3 के ट्रायल्स के नतीजों पर सब कुछ निर्भर है। उससे ही पता चलेगा कि वैक्सीन को अनुमति मिल सकती है या नहीं।

नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन, बेलर में प्रोफेसर और डीन डॉ. पीटर होटेज और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मारिया एलेना बोताजी की निगरानी में बनी वैक्सीन का प्रोडक्शन भारत में बायोलॉजिकल ई करेगी।
नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन, बेलर में प्रोफेसर और डीन डॉ. पीटर होटेज और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मारिया एलेना बोताजी की निगरानी में बनी वैक्सीन का प्रोडक्शन भारत में बायोलॉजिकल ई करेगी।

5. बायोलॉजिकल ईः ग्लोबल ट्रायल्स के नतीजों का करना होगा इंतजार

प्लेटफॉर्मः प्रोटीन सबयूनिट। वायरस के स्पाइक प्रोटीन के हिस्से को टारगेट करेगी। उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में प्रेरित करेगी।
डेवलपमेंट स्टेटसः अमेरिका के टेक्सास चिल्ड्रंस हॉस्पिटल सेंटर फॉर वैक्सीन डेवलपमेंट में बने एंटीजन का इस्तेमाल किया है। बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन एंड डायनावैक्स ने वैक्सीन बनाई है। 24 अप्रैल को बायोलॉजिकल ई ने भारत में 1,268 वॉलंटियर्स पर फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स शुरू किए हैं।
सरकार का दावाः अगस्त से दिसंबर के बीच 30 करोड़ डोज उपलब्ध हो जाएंगे।
हकीकतः कंपनी ने कहा है कि सरकार के कहने पर वह जून-जुलाई में इमरजेंसी यूज के लिए आवेदन करेगी। यह देखना होगा कि क्या सरकार इस वैक्सीन को उसके ग्लोबल ट्रायल्स के नतीजों के आधार पर मंजूरी देगी? अगर नियमों को देखें तो इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। वैसे, प्रोडक्शन टारगेट्स पूरे करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। बायोलॉजिकल ई ने अगस्त से 7.5-8 करोड़ डोज हर महीने बनाने की योजना बनाई है। पांच महीने में 30 करोड़ डोज उपलब्ध होना मुश्किल नहीं है।

नवंबर में वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोसेस देखने और समझने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला कंपनी के विस्तार के बारे में बताते हुए। इसी परिसर में कोवीशील्ड के साथ-साथ कोवावैक्स भी बनाई जानी है।
नवंबर में वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोसेस देखने और समझने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला कंपनी के विस्तार के बारे में बताते हुए। इसी परिसर में कोवीशील्ड के साथ-साथ कोवावैक्स भी बनाई जानी है।

6. कोवावैक्स- सीरम पर ही है सरकार का बड़ा दांव

प्लेटफॉर्मः दो डोज वाली वैक्सीन प्रोटीन सबयूनिट प्लेटफॉर्म पर बनी है।
डेवलपमेंट स्टेटसः सीरम इंस्टीट्यूट ने कोवावैक्स के फेज-2/3 ब्रिजिंग ट्रायल्स मार्च में शुरू किए थे। इसके लिए 1,600 वॉलंटियर्स को एनरोल किया गया है। इसका लॉन्च जून में होने वाला था, जो सितंबर तक के लिए टल गया है।
सरकार का दावाः अगस्त से दिसंबर तक 20 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे।
​​​​​​​हकीकतः इस वैक्सीन को डेवलप करने वाली कंपनी नोवावैक्स का कहना है कि 30 हजार वॉलंटियर्स पर किए गए फेज-3 ट्रायल्स के अंतिम नतीजे जून तक मिलेंगे। ऐसे में वह 2021 की तीसरी तिमाही में अमेरिका, यूके और यूरोप में इमरजेंसी यूज का अप्रूवल मांगेगी। सितंबर से पहले वैक्सीन मिल पाना मुश्किल है। एक और बड़ी समस्या होगी कच्चे माल की उपलब्धता। सीरम के सीईओ अदार पूनावाला ने इस मुद्दे को कई बार उठाया है। कंपनी का कहना है कि कच्चा माल मिला तो 4-5 करोड़ डोज हर महीने बन सकते हैं। यानी यह प्रोडक्शन शर्तों में बंधा है।

देश की पहली mRNA वैक्सीन जेनोवा में बन रही है। फिलहाल ट्रायल्स में है। चर्चा यह भी है कि मॉडर्ना की mRNA वैक्सीन का भारत में प्रोडक्शन जेनोवा कर सकती है। फिलहाल तय कुछ नहीं है।
देश की पहली mRNA वैक्सीन जेनोवा में बन रही है। फिलहाल ट्रायल्स में है। चर्चा यह भी है कि मॉडर्ना की mRNA वैक्सीन का भारत में प्रोडक्शन जेनोवा कर सकती है। फिलहाल तय कुछ नहीं है।

7. जेनोवा फार्मास्युटिकल्स की mRNA वैक्सीन

प्लेटफॉर्मः mRNA वैक्सीन प्लेटफॉर्म। अमेरिका में फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन इसी प्लेटफॉर्म पर बनी है। मैसेंजर आरएनए पर बेस्ड है। शरीर में जाकर इम्यून सिस्टम को अलर्ट करती है।
​​​​​​​डेवलपमेंट स्टेटसः मई में फेज-1 और फेज-2 के ट्रायल्स शुरू हुए हैं। पुणे और कोल्हापुर में 620 लोगों को एनरोल किया गया है। 28 दिन के गैप से दो डोज वाली इस वैक्सीन को -4 डिग्री सेल्सियस पर स्टोर करना होगा।
सरकार का दावाः दिसंबर तक 6 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे।
हकीकतः पुणे की जेनोवा फार्मा ने सिएटल की एचडीटी बायोटेक से हाथ मिलाया है। वैक्सीन के ट्रायल्स शुरू होने में 6 महीने की देर पहले ही हो चुकी है। कंपनी की भारत में 20 करोड़ डोज सालाना बनाने की क्षमता है, जिसे बाद में बढ़ाकर 1 अरब करने की तैयारी है। वहीं, एचडीटी बायोटेक का कहना है कि अब तक वैक्सीन पूरी तरह से सेफ साबित हुई है। फेज-3 ट्रायल्स पूरे करने में कितना वक्त लगेगा और इमरजेंसी अप्रूवल कब मिलेगा, यह पूरी तरह से रेगुलेटरी संस्थाओं के हाथ में होगा। बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय रेगुलेटर के लिए बिना फेज-3 के ट्रायल्स के नतीजे देखे देश की पहली mRNA वैक्सीन को मंजूरी देना ठीक होगा?

भारत बायोटेक के सीएमडी श्रीकृष्ण एल्ला अपने सहयोगियों से बात करते हुए। भारत बायोटेक एक नेजल वैक्सीन पर भी काम कर रहा है। इसके ट्रायल्स शुरू हो गए हैं। यह देश में बनने वाली पहली नेजल कोरोना वैक्सीन हो सकती है।
भारत बायोटेक के सीएमडी श्रीकृष्ण एल्ला अपने सहयोगियों से बात करते हुए। भारत बायोटेक एक नेजल वैक्सीन पर भी काम कर रहा है। इसके ट्रायल्स शुरू हो गए हैं। यह देश में बनने वाली पहली नेजल कोरोना वैक्सीन हो सकती है।

8. भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन

प्लेटफॉर्मः BBV154 या इंट्रानेजल एडेनोवायरल वेक्टर वैक्सीन। यह वैक्सीन नाक में ड्रॉप की तरह लगाई जाएगी। निडिल की जरूरत नहीं होगी।
डेवलपमेंट स्टेटसः 175 लोगों पर फेज-1 क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। जून के पहले हफ्ते में इसके नतीजे सामने आने की संभावना है।
सरकार का दावाः दिसंबर तक इस वैक्सीन के 10 करोड़ डोज उपलब्ध होंगे।
हकीकतः कोवैक्सिन बना रही कंपनी भारत बायोटेक ही इंट्रानेजल वैक्सीन भी बनाएगी। यह भारत में अपनी तरह की पहली वैक्सीन होगी। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन, सेंट लुईस के बायोलॉजिक्स थेरॉप्टिक्स सेंटर ने यह वैक्सीन विकसित करने के लिए भारत बायोटेक से हाथ मिलाया है। यह वैक्सीन नाक में ही इम्यून रिस्पॉन्स को प्रेरित करेगी, जिससे वायरस को उसके एंट्री पर ही खत्म कर दिया जाएगा। सितंबर 2020 में कंपनी ने दावा किया था कि वह हैदराबाद फेसिलिटी में इस इंट्रानेजल वैक्सीन के 1 अरब डोज हर साल बनाने की क्षमता विकसित करेगी।

प्राइवेट अस्पतालों में लगे यह नोटिस बता रहे हैं कि देश में डोज की उपलब्धता की मौजूदा स्थिति क्या है। हकीकत भी कुछ ऐसी ही है। जून या जुलाई में हालात जरूर सुधर सकते हैं।
प्राइवेट अस्पतालों में लगे यह नोटिस बता रहे हैं कि देश में डोज की उपलब्धता की मौजूदा स्थिति क्या है। हकीकत भी कुछ ऐसी ही है। जून या जुलाई में हालात जरूर सुधर सकते हैं।

अब हकीकत की बात…

भारत सरकार का प्लान कोवीशील्ड और कोवैक्सिन के प्रोडक्शन पर टिका है। अगस्त से दिसंबर के बीच दोनों के मिलाकर 1.3 अरब डोज की उम्मीद की गई है। हकीकत यह है कि उसे 75 करोड़ डोज भी मिल जाएं तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। केंद्र सरकार को नोवावक्स की कोवावैक्स के 20 करोड़ और स्पुतनिक V के 15.6 करोड़ डोज मिलना भी इस समय तो मुश्किल ही लग रहा है।

बचे हुए 51 करोड़ डोज जिन वैक्सीन से मिलने हैं, उनमें से चार तो फेज-1 और फेज-2 ट्रायल्स में हैं। तीन को विदेशी कंपनी या संगठनों की मदद से विकसित किया गया है। उनके ट्रायल्स का डेटा भी उपलब्ध नहीं है। केंद्र सरकार के दबाव में अगर इन वैक्सीन की इफेक्टिवनेस जांचे बगैर अनुमति दी गई तो ही सरकार के अनुमान के मुताबिक वैक्सीन डोज भारत में उपलब्ध हो सकेंगे।

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