अफवाहों पर ना जाएं-सरकार खुद ही फैला रही कोरोना के इलाज से जुड़ी गलतफहमी; बड़े बिजनेसमैन भी हमें-आपको कर रहे कंफ्यूज
नई दिल्ली। शरीर में ऑक्सीजन बढ़ाने वाली, कपूर-लौंग की पुड़िया से लेकर कोरोना की रोकथाम और इलाज तक; हजारों किस्म के मैसेजेस वॉट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब समेत तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शेयर किए जा रहे हैं। जिनके मेडिकल साइंस का कोई ठोस आधार नहीं है। यहां तक कि कई बार वो मरीजों की हालत और ज्यादा खराब कर दे रहे हैं, लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह है कि इन भ्रम के पीछे सरकार, बिजनेसमैन्स, मीडिया और नेताओं का हाथ है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कोरोना से बचने की एडवाइजरी जारी की थी, कहा गया- होम्योपैथी इलाज से नहीं फैलता कोरोना
जब भारत में कोरोना की सुगबुगाहट हुई, जनवरी 2020, तभी भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक एडवाइजरी जारी की थी। इसमें कहा गया कि होम्योपैथिक दवा और यूनानी दवाओं से कोरोना को रोका जा सकता है। यूनानी दवाओं में मोतियों का खमीरा या खमीरा मरवारीद, शरबत उन्नाब, तिरयाक अरबी और तिरयाक नजला से कोरोना रुक सकता है। इसमें कहा गया कि आयुष मंत्रालय की रिसर्च टीम दुनियाभर में कोरोना के मामलों पर शोध के बाद ये बता रही है।
Advisory to recess the symptoms of respiratory tract in possible Corona virus infected cases
Read the detailed advisory:https://t.co/hApX41NPx7
— PIB India (@PIB_India) January 29, 2020
आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी पर IMA ने उठाया सवाल, स्वास्थ्य मंत्रालय से कहा- ये फ्रॉड करने जैसा है
आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी पर इंडियन मेडिकल काउंसिल (IMA) ने प्रेस रिलीज जारी कर उसमें बताए हर तरीकों को अवैज्ञानिक बताते हुए इसे तत्काल वापस लेने की बात कही। अगर ऐसा नहीं किया गया तो स्वास्थ्य मंत्रालय सामने आए और सवालों के जवाब दे। ये कोरोना मरीजों और देश के साथ धोखा करने जैसा है। इसमें स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन का नाम लेकर कहा गया कि आयुष और योगा से कोरोना ठीक करने की सरकारी एडवाइजरी में कई खामियां हैं।
आयुष मंत्रालय लगातार होम्योपैथी दवा- अर्सेनिकम एलबम 30 का प्रचार करती रहा, जबकि ये संक्रमण नहीं रोकता
IMA की ओर से सवाल उठाए जाने के बाद भी आयुष मंत्रालय की ओर से लगातार अर्सेनिकम एलबम 30 का प्रचार जारी रहा। PIB की ओर से जारी की गई प्रेस रिलीज सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई थी। भोपाल के एक केमिस्ट कहते हैं कि जनवरी, फरवरी और मार्च 2020 में अचानक से अर्सेनिकम की मांग कई गुना बढ़ गई थी। सरकारी अस्पतालों में लगातार इसकी कमी की खबरें आती रहीं।
असल में आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी के बाद देश में एक मैसेज गया कि इस खास होम्योपैथी दवा से कोरोना नहीं होगा। गौतमबुद्ध नगर के सिविल अस्पताल की होम्योपैथिक डॉक्टर कहती हैं कि लोग आते थे और सीधे खुद अर्सेनिकम दिला देने की बात करते थे। पता नहीं उन्हें ये कहां से पता चला था, लेकिन पूरे-पूरे दिन इसी तरह के लोग आते थे। उन्हें कुछ नहीं हुआ रहता था, वे बस अर्सेनिकम के लिए आते थे। शायद इसे तब वैक्सीन की तरह लोग ले रहे थे।
कोरोना के लिए अर्सेनिकम एलबम 30 को लेकर कोई टेस्ट नहीं हुआ। या यूं कहें कि कोरोना के इलाज या रोकथाम को लेकर होम्योपैथी में कोई रिसर्च नहीं हुआ था। अर्सेनिकम को लेकर ब्रिटिश होम्योपैथी जर्नल में 1994 की एक रिसर्च मिलती है। कायने एस एंड रैफट्री ए ने इसे डायरिया के इलाज के लिए बताया था। लेकिन साल 2003 में डी वरडियर, के ओहगेन और एलेनियस एस ने कहा कि ये दवा डायरिया पर भी ठीक से काम नहीं कर रही।
आयुष मंत्रालय ने जो यूनानी दवाएं कोरोना की रोकथाम के लिए बताईं, उनका भी कोई आधार नहीं
आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी को लेकर PIB ने 29 जनवरी को दो बार ट्वीट कर के बताया। इसे हजारों लोगों ने रीट्वीट किया। इसकी जानकारी पर अधिकांश मीडिया हाउसेज में खबरें बनीं। टेलीविजन में इसके आधार पैकेज बनाए गए।
इसमें प्रमुख रूप से तीन चीजों का जिक्र किया गया। तीन ग्राम उबला हुआ बेहिदाना (सायोडोनिया ओब्लॉन्गा), उन्नाब जिजिफस (जुज्यूब लिनन), सैपिस्तान (कॉर्डिया मायक्सा लिनन) को 1 लीटर पानी में डालकर लें। यह कोरोना रोकने में सक्षम है।
ड्यूक अल (2002) के रिसर्च, नदकर्णी की आयुर्वेदिक, एलोपैथिक, होम्योपैथिक, नेचरोपैथिक और होम रैमेडी पर लिखी गई किताब इंडियन मैटेरिया मेडिका (1976), वर्ल्ड जर्नल ऑफ फॉर्मास्युटिकल रिसर्च और एल स्नाफी (2016) में इसका जिक्र मिलता है। दवाई के इस कॉम्बिनेशन के लिए कहा गया है कि चेहरे पर तनाव, नाक बजने और कफ होने पर इसे दे सकते हैं, लेकिन संक्रमण की रोकथाम से इसका कोई संबंध नहीं।
मीडिया में अचानक कोरोना रोकने वाले फूड पर आर्टिकल आए, जमकर वायरल हुए, पर इनका कोई आधार नहीं
12 मार्च 2020 को द टाइम्स ऑफ इंडिया ने ‘Coronavirus prevention: Top 5 anti-viral food items which are easily available in India’ हेडिंग से एक खबर प्रकाशित की। इसका मतलब है कि भारत में पांच ऐसी एंटी-वायरल खाने की चीजें आसानी से मिल रही हैं, जिनसे कोरोना वायरस को फैलने से रोका जा सकता है।
इस खबर में बिना किसी कोरोना संबंधित डॉक्टर या किसी एक्सपर्ट की राय के पांच चीजों का जिक्र किया गया। कहा गया कि इनसे आपकी इम्युनिटी मजबूत होगी और आपको कोरोना नहीं होगा। इसमें लहसुन, दालचीनी, दही, मशरूम और मुलेठी को अपने रोजमर्रा के खाने में शामिल करने को कहा गया। चाय आदि के साथ भी मुलेठी लेने की सलाह दी गई।
मिंट का ट्वीट जबर्दस्त वायरल हुआ, जिसे बाद में डिलीट किया गया
11 मार्च को लाइव मिंट ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से एक ओपिनियन वाला आर्टिकल ट्वीट किया। इसका शीर्षक था-It makes no sense for us to panic over the coronavirus यानी हम लोगों को कोरोना वायरस से परेशान होने का कोई मतलब नहीं बनता। इसे नामी लेखक संदीपन देब ने लिखा था। इस आर्टिकल के आते ही, ट्विटर पर कई ब्लूटिक हैंडल इसे शेयर करने लगे। जबर्दस्त वायरल होते इस आर्टिकल पर नकारात्मक टिप्पणियों के बाद इसे डिलीट कर दिया गया।
लेकिन मूल आर्टिकल अब भी लाइव मिंट की वेबसाइट पर पड़ा हुआ है। 8 मार्च को इलेक्शन कैटेगरी में यह आर्टिकल पब्लिश किया गया था। इसमें कहा गया कि मास्क लगाने से आप नहीं बचेंगे। ये हवा में फैलने वाला वायरस नहीं है। यह केवल तभी हो सकता है जब कोई संक्रमित शख्स आपके चेहरे पर आकर छींक दे या कफ निकाल दे। अमेरिका के एक सर्जन के हवाले से कहा गया कि मास्क खरीदना बंद करें।
लेखक ने कहा, हां यह वायरस घातक है। लेकिन भारत वालों को इससे डरता देख मुझे हंसना आ रहा है। उन्होंने नेचर एशिया के साल 2008 के आर्टिकल को आधार बनाकर लिखा कि हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम दुनिया में सबसे तगड़ा है। साल 2003 में SARS महामारी दुनिया के 29 देशों में फैल गई, लेकिन भारत के केवल तीन शख्स इससे संक्रमित हुए और जल्द ही ठीक हो गए। वुहान में भारत के केवल 327 छात्र ही इससे संक्रमित हुए वो भी अब ठीक हो गए हैं। इसके बाद अमेरिका और दूसरे जगहों पर फैली कई बड़ी बीमारियों का जिक्र किया गया था जो भारत नहीं पहुंची थीं। कहा कि देश में इससे कहीं बड़ी समस्याएं हैं, हमें उनके बारे में चिंतित होना चाहिए।
भारत के लोगों को जिस आर्टिकल के आधार पर सबसे तगड़ी इम्युनिटी वाला बताया, वो भी गलत था
लेखक ने जिस आधार पर भारत के लोगों की इम्युनिटी को दुनिया में सबसे बेहतर कहा था, वो भी गलत बयानी थी। नेचर एशिया के जिस आर्टिकल ‘More immunity in Indian genes’ की बात की गई थी। यह यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में प्रकाशित जर्नल ‘जीन्स एंड इम्युनिटी’ में डू एंड कलीग्स (2008) की एक रिसर्च पर आधारित था।
इसमें एकमात्र जीन KIR2DL5 पर ही रिसर्च की गई थी। इसमें केवल 96 भारतीयों, 250 अमेरिका और अफ्रीकी श्वेत और अश्वेतों को शामिल किया गया था। इसमें केवल आंखों, बालों और चेहरे को आधार बनाकर कुछ बातें कही गई थीं। इसमें अलग से भारतीयों के पूरे इम्यून सिस्टम पर रिसर्च नहीं की गई थी। हालांकि कई आर्टिकल में इसे आधार बनाकर भारतीयों के इम्युनिटी को सबसे बेहतर बता दिया गया।
बाबा रामदेव ने कोरोना की दवाई बेचना शुरू कर दी, दावा किया इससे कोरोना मरीज ठीक हो चुके हैं
जून 2020 में पतंजलि आयुर्वेद ने कोरोना के इलाज के लिए ‘कोरोनिल’ और ‘क्योर’ नाम की दो दवाएं लॉन्च कीं। कई जगहों पर यहां तक मीडिया हाउसेज ने भी इसे कोरोना पर बड़ी जीत बताया। लॉन्चिंग के वक्त दावा किया गया कि कोरोनिल टैबलेट और श्वासरि वटी का क्लिनिकल ट्रायल हुआ है। इससे 280 कोरोना मरीज ठीक हो गए।
लेकिन रामदेव की दवा लॉन्चिंग के बाद आयुष मंत्रालय ने कहा- ‘ऐसी किसी दवा के बारे में नहीं पता। इसकी बिक्री न की जाए।’ इसके बाद पतंजलि के चेयरमैन बालकृष्ण ने कहा, ‘कम्युनिकेशन गैप हुआ। इलाज नहीं रोकथाम के लिए है। नाम बदलकर दिव्य श्वासारि कोरोनिल किट रखा।’ लेकिन महज चार महीने में पतंजलि ने 250 करोड़ रुपए की 25 लाख दिव्य श्वासारि कोरोनिल किट बेच दीं।
कोरोनिल के आठ महीने बाद पतंजलि फिर कोरोना की दवा ले आया, WHO ने इसे दवा नहीं माना
कोरोनिल वाली घटना के करीब 8 महीने बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के साथ ‘साक्ष्यों के साथ कोरोना की पहली दवा’ लॉन्च कर दी। जाने-माने टीवी पत्रकार रजत शर्मा ने एक ट्वीट में यह भी कहा कि इसे वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) ने भी स्वीकार कर लिया है।
लेकिन इसके बाद WHO ने ट्वीट कर कहा कि कोरोना के लिए किसी देसी दवा के प्रभाव को लेकर संस्था ने कोई सर्टिफिकेट नहीं दिया है। उन्होंने ऐसी किसी दवा का टेस्ट नहीं किया है।
IMA ने स्वास्थ्य मंत्री से जवाब मांगा, आखिर वो ऐसे कैसे किसी दवा की लॉन्चिंग में जा सकते हैं
बाबा रामदेव की ओर से कोरोना की दवा की लॉन्चिंग के कार्यक्रम में जाने पर IMA ने स्वास्थ्य मंत्री से विधिवत जवाब देने काे कहा। कहा कि देश का स्वास्थ्य मंत्री होने के बावजूद उनका बिना वैज्ञानिक आधार वाली दवा के प्रमोशन में जाना कितना उचित है। इससे देश के नागरिकों पर क्या असर पड़ेगा? हालांकि उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
डाबर च्यवनप्राश के विज्ञापन में कोरोना की रोकथाम का दावा, जबकि इससे कोरोना का कोई लेना-देना नहीं
बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार की तस्वीर के साथ डाबर ने च्यवनप्राश का विज्ञापन प्रकाशित किया। इसमें दावा किया गया कि यह कोरोना संक्रमण से बचाने में मददगार है। इसे रोजाना दो चम्मच लेना होगा। यही नहीं दावा किया गया कि पांच सेंटर पर की गई क्लिनिकल स्टडी में ये बात पाई गई है कि ये कोरोना संक्रमण को रोकने में 12 गुना तक सक्षम है। स्टडी में जिन पर रिसर्च किया गया उनमें च्यवनप्राश खाने वाले केवल 2.38% ही कोरोना पॉजिटिव हुए जबकि न खाने वाले 28.57% कोविड पॉजिटिव थे।
हालांकि ऐसी किसी क्लिनिकल स्टडी का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है। भारत में क्लिनिकल स्टडी के लिए ICMR के क्लिनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री- इंडिया (CTRI) में रजिस्टर करना होता है। आमतौर पर यहां रजिस्टर क्लिनिकल स्टडी को ही उचित माना जाता है, लेकिन कोरोना और च्यवनप्राश को लेकर हाल-फिलहाल यहां कोई ऐसी स्टडी नहीं मिलती। इस तरह की स्टडी को लेकर गूगल स्कॉलर और पबमेड के पास भी कोई जानकारी नहीं है। असल में डाबर की ओर से ऐसी किसी स्टडी को किसी ऐसे मानक पर नहीं भेजा गया है जहां से इस पर मुहर लग सके।
राजनेताओं के दावे, गोमूत्र कोरोना से लड़ने में सहायक, पर कोई वैज्ञानिक आधार नहीं
पश्चिम बंगाल के नेता दिलीप घोष ने गोमूत्र को कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही जंग में सहायक बताया था। असम में एक विधायक सुमन हरिप्रिया ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि गोमूत्र पीने वाले कोरोना वायरस से बचे रहेंगे।