कहां गई विदेश से आई मेडिकल मदद:नौकरशाही में उलझी ऑक्सीजन, 7 दिन में बन पाई मदद बांटने की SOP, अब तक सिर्फ सेंट्रल हॉस्पिटल्स को मिली मदद

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नई दिल्ली। भारत में कोरोना की दूसरी लहर के कहर को देखते हुए दुनिया भर से मदद आ रही है। एनडीटीवी और द हिंदू समेत कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब तक दिल्ली एयरपोर्ट पर ही 25 से ज्यादा फ्लाइट्स विदेशी मदद लेकर आई हैं। जिनमें 5500 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स, 3200 ऑक्सीजन सिलेंडर और एक लाख 36 हजार रेमडेसिविर के इंजेक्शन भारत को मिल चुके हैं।

लेकिन सवाल यह है कि विदेशों से मेडिकल इमरजेंसी के तौर पर आ रही यह मदद किन-किन राज्यों को और कब पहुंचाई गई।

सात दिन सिर्फ SOP बनाने में लग गए
भारत में मेडिकल मदद का पहला कंसाइनमेंट 25 अप्रैल को पहुंचा था। उसके बाद मेडिकल ऑक्सीजन और लाइफ सेविंग ड्रग्स लगातार भारत पहुंच रहे हैं। कायदे में आपात स्थिति को देखते हुए पहले दिन से ही इन सामानों का वितरण जरूरत वाले राज्यों को पहुंच जाना चाहिए था, लेकिन केंद्र सरकार को इस बारे में SOP बनाने में ही सात दिन लग गए कि कैसे राज्यों और अस्पतालों में इसका वितरण किया जाए।

इस मामले में नौकरशाही किस तरह काम कर रही है इसे इस तरह समझा जा सकता है… विदेश से आ रही मेडिकल मदद को रिसीव करने के लिए नोडल मिनिस्टरी विदेश मंत्रालय है। जबकि राज्यों और अस्पतालों में इस मदद को बांटने का स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर, यानी SOP स्वास्थ्य मंत्रालय को बनाना था। 25 अप्रैल को पहली खेप आई और उसके वितरण के नियम स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2 मई को जारी किए। यानी एक हफ्ते तक आई मेडिकल मदद एयरपोर्ट, बंदरगाहों पर यूं ही पड़ी रही। जबकि अगर आमद के साथ ही यह राज्यों में पहुंचना शुरू हो जाती तो कई मरीजों की जान बचाई जा सकती थी।

अमेरिका से क्रिटिकल केयर में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की कई खेप मदद के लिए भारत भेजी गई है, लेकिन कहा जा रहा है कि ज्यादातर सामान गोदाम या एयरपोर्ट पर ही पड़ा है।
अमेरिका से क्रिटिकल केयर में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की कई खेप मदद के लिए भारत भेजी गई है, लेकिन कहा जा रहा है कि ज्यादातर सामान गोदाम या एयरपोर्ट पर ही पड़ा है।

रेडक्रॉस सोसायटी और HLL एक दूसरे पर टाल रहे
भारत सरकार विदेशों से आ रही मेडिकल मदद रेडक्रॉस सोसायटी के जरिए ले रही है, जो एनजीओ है। मेडिकल सप्लाई राज्यों तक न पहुंच पाने के सवाल पर रेडक्रॉस सोसायटी के प्रबंधन का कहना है कि उसका काम सिर्फ मदद कस्टम क्लीयरेंस से निकाल कर सरकारी कंपनी एचएलएल (HLL) को सौंप देना है। वहीं, HLL का कहना है कि उसका काम केवल मदद की देखभाल करना है। मदद कैसे बांटी जाएगी, इसका फैसला केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय करेगा। स्वास्थ्य मंत्रालय इस बारे में चुप्पी साधे हुए है।

कस्टम क्लीयरेंस में आ रहीं दिक्कतें
प्रधानमंत्री मोदी खुद कह चुके हैं कि मेडिकल इमरजेंसी वाली सप्लाई का कस्टम क्लीयरेंस जल्द से जल्द किया जाए, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मदद के कई कंसाइनमेंट अब भी कस्टम में उलझे हुए हैं। देश के कई बड़े अस्पतालों ने अपने स्तर पर मेडिकल जरूरत की कुछ चीजें मंगाई हैं, लेकिन उन्हें भी आसानी से कस्टम क्लीयरेंस नहीं मिल रहा है। सूत्रों के मुताबिक HLL को इस मदद की देखरेख का जिम्मा दिया गया है। एयरपोर्ट के आसपास बनाए गए गोदामों में बहुत सारे मेडिकल उपकरण यूं ही पड़े हैं।

अब तक केवल केंद्र द्वारा संचालित अस्पतालों को ही मिली मदद
देश के कई राज्यों में ऑक्सीजन और उसके इस्तेमाल से जुड़े उपकरणों को लेकर हाहाकार मचा है, लेकिन छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, झारखंड जैसे राज्यों का कहना है कि उन्हें विदेश से आई मदद के नाम पर अभी तक कुछ नहीं मिला है। भाजपा शासित राज्यों में भी अभी मदद नहीं पहुंची हैं, लेकिन वहां इस बारे में कोई बात नहीं करता।

हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का इस पर कुछ और रुख है। मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा है कि विदेश से अब तक करीब 40 लाख आइटम्स आए हैं। इनमें दवाओं समेत तमाम मेडिकल इक्विपमेंट्स भी शामिल हैं। ये जो सामान आए हैं इनमें से ऑक्सीजन सिलेंडर और कुछ जीवनरक्षक दवाएं 38 इंस्टीट्यूशंस और अस्पतालों को दी गई हैं, लेकिन द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से ज्यादातर अस्पताल वे हैं जिन्हें केंद्र सरकार संचालित करती है।

अगर दिल्ली का ही उदाहरण लें तो यहां द लेडी हॉर्डिंग मेडिकल कॉलेज, सफदरजंग अस्पताल, AIIMS , DRDO और ITBP के अस्पताल को ऑक्सीजन उपलब्ध कराई गई है। जबकि दिल्ली उन शहरों में है जहां का हर हॉस्पिटल ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रहा है।

राज्यों और उनके अस्पतालों को मेडिकल सप्लाई पर स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में मदद भेजने की प्रक्रिया जारी है और उन्हें जल्द मदद उपलब्ध कराई जाएगी।

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