कुंभ में अब सताने लगी कोरोना की चिंता:साधु-संतों में संक्रमण के बाद निरंजनी अखाड़े ने 15 दिन पहले कुंभ समाप्ति का ऐलान किया

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हरिद्वार। कुंभ मेले के बीच कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए निरंजनी अखाड़े के सचिव रविंद्र पुरी ने 15 दिन पहले ऐलान किया है कि उनके लिए कुंभ मेला खत्म हो चुका है। पुरी ने कहा है कि कुंभ का मुख्य शाही स्नान पूरा हो गया है और उनके अखाड़े के साधु-संतो में कोरोनावायरस के लक्षण नजर आ रहे हैं।

कोरोना की स्थिति को देखते हुए निरंजनी अखाड़े के बाद बाकी 5 सन्यासी अखाड़े भी कुंभ समाप्ति का ऐलान कर सकते हैं। हरिद्वार में कुंभ मेले का समय 30 अप्रैल तक है। लेकिन पिछले 5 दिन में यहां कोरोना के 2,167 मामले सामने आ चुके हैं। इसके बावजूद अधिकारियों का कहना है कि कुंभ मेला 30 अप्रैल तक चलेगा। लेकिन अब अखाड़े खुद ही कुंभ खत्म करने का ऐलान करने लगे हैं।

कोरोना के चलते इस साल कुंभ का मेला जनवरी की बजाय 1 अप्रैल से शुरू किया गया था। केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक स्थिति को देखते हुए इसका समय कम किया जा सकता है। लेकिन हरिद्वार के डीएम और कुंभ मेला ऑफिसर दीपक रावत ने बुधवार को कहा कि मेले का समय घटाने की कोई जानकारी नहीं है।

लाखों लोगों के जुटने पर उठ रहे थे सवाल
देश में कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच कुंभ मेला जारी रखने पर सवाल भी उठ रहे हैं। देश में गुरुवार को कोरोना के 2 लाख नए मामले सामने आए। यह महामारी शुरू होने से अब तक एक दिन का सबसे बड़ा आंकड़ा है। उधर कुंभ में लाखों लोगों की भीड़ जुटी हुई है। बुधवार के शाही स्नान में 14 लाख लोग शामिल हुए थे।

महामंडलेश्वर की संक्रमण से जान गई
निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर कपिल देव का बुधवार को कोरोना संक्रमण से निधन हो गया था। वह मध्यप्रदेश के चित्रकूट से कुंभ में शामिल होने के लिए हरिद्वार गए थे। पॉजिटिव होने के बाद से उनका देहरादून के कैलाश हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था। हॉस्पिटल मैनेजमेंट के मुताबिक, बुधवार को उनका निधन हो गया। कुंभ के दौरान संक्रमण से जान गंवाने वाले कपिल देव पहले बड़े संत हैं।

सरकार सख्ती की तैयारी कर रही थी
कुंभ में संक्रमण के मामले बढ़ने पर सरकार सख्त कदम उठाने की तैयारी कर रही थी। सरकार के मुताबिक, भीड़ की वजह से कोविड-19 के लिए जारी गाइडलाइन का पालन कुंभ में करवाने में लगातार दिक्कतें आ रही हैं। ऐसे में यात्रियों और अखाड़ों में साधु-संतों की संख्या सीमित करने और उनके लिए समय निर्धारित करने की बातें कही जा रही थीं।

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