कोरोना की दूसरी लहर में रीइन्फेक्शन का खतरा भी बढ़ा है; 102 दिनों में निगेटिव होकर फिर पॉजिटिव होता है तो उसे रीइन्फेक्शन माना
इस समय भारत में कोरोना की दूसरी लहर चल रही है और रविवार को पहली बार देश में एक दिन में एक लाख से ज्यादा केस सामने आए हैं। ऐसे में यह समझना बेहद जरूरी है कि कोरोना वायरस दोबारा इन्फेक्ट कर सकता है या नहीं।
नई दिल्ली। अगर आपको लगता है कि आपको एक बार कोरोना हो चुका है, और यह दोबारा आपको नहीं होगा, तो आप गलती कर रहे हैं। मेडिकल रिसर्च के क्षेत्र में भारत की सर्वोच्च संस्था यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) का दावा है कि भारत में कोरोना वायरस रीइन्फेक्शन के 4.5% केस सामने आए हैं। यानी 100 में से करीब 4.5 लोग ऐसे हैं जो कोरोना पॉजिटिव होकर निगेटिव हुए और बाद में फिर पॉजिटिव हो गए।
इस समय भारत में कोरोना की दूसरी लहर चल रही है और रविवार को पहली बार देश में एक दिन में एक लाख से ज्यादा केस सामने आए हैं। ऐसे में यह समझना बेहद जरूरी है कि कोरोना वायरस दोबारा इन्फेक्ट कर सकता है या नहीं।
आइए, समझते हैं कि रीइन्फेक्शन क्या है और दूसरी बार कोरोना वायरस किस तरह आपको इन्फेक्ट कर सकता है?
कोरोना रीइन्फेक्शन क्या है?
- कोरोना रीइन्फेक्शन यानी कोरोना से दूसरी बार इन्फेक्ट होना। ICMR का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव होता है और 102 दिनों में निगेटिव होकर फिर पॉजिटिव होता है तो उसे रीइन्फेक्शन माना जाएगा।
- दरअसल, ICMR के वैज्ञानिकों की टीम ने 1,300 लोगों के मामलों की पड़ताल की, जो दो बार कोरोना पॉजिटिव निकले। रिसर्चर्स को पता चला कि 1,300 में से 58 केस यानी 4.5% को रीइन्फेक्शन कहा जा सकता है। स्टडी में कहा गया है कि SARS-CoV-2 रीइन्फेक्शन की परिभाषा सर्विलांस बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है। यह स्टडी एपिडेमियोलॉजी एंड इन्फेक्शन जर्नल में प्रकाशित होने के लिए स्वीकार कर ली गई है।
- हालांकि पब्लिक हेल्थ और पॉलिसी एक्सपर्ट डॉ. चंद्रकांत लहारिया का कहना है कि रीइन्फेक्शन को समझना बेहद जरूरी है। जब तक पॉजिटिव केसेज की जीनोम सिक्वेसिंग नहीं हो जाती, तब तक कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि कोरोना रीइन्फेक्शन हुआ है।
रीइन्फेक्शन नहीं है तो रिपोर्ट पॉजिटिव क्यों आती है?
- मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में कंसल्टेंट जनरल मेडिसिन डॉ. रोहन सिकोइया कहते हैं कि कोरोना वायरस की वजह से रीइन्फेक्शन हो सकता है या नहीं, इसे लेकर साइंटिफिक कम्युनिटी में बहस चल रही है। यह साफ नहीं है कि कोरोना होने पर शरीर में बनी एंटीबॉडी हमेशा के लिए रहेगी या कुछ दिनों में खत्म हो जाएगी। रीइन्फेक्शन के बहुत ही कम केस सामने आए हैं।
- उनका कहना है कि कोरोना निगेटिव होने के बाद भी अक्सर वायरस की थोड़ी-बहुत मात्रा शरीर में रह जाती है। इसे परसिस्टेंट वायरस शेडिंग कहते हैं। ये वायरस बहुत कम मात्रा में रहते हैं, इस वजह से न तो बुखार आता है और न ही कोई लक्षण दिखता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों को इन्फेक्ट भी नहीं कर सकता। जांच में पॉजिटिव निकल सकता है। ऐसे में जीनोम एनालिसिस के बाद ही कहा जा सकता है कि रीइन्फेक्शन हुआ है या नहीं।
- डॉ. सिकोइया के अनुसार अगर दो पॉजिटिव रिपोर्ट्स के बीच एक निगेटिव रिपोर्ट आई है तो भी हम उसे प्रोविजनल केस ऑफ रीइन्फेक्शन कह सकते हैं। जब तक जीनोम एनालिसिस नहीं हो जाता, तब तक हम रीइन्फेक्शन की पुष्टि नहीं कर सकते।
क्या इससे पहले भी रीइन्फेक्शन के केस सामने आए हैं?
- हां, दुनियाभर में रीइन्फेक्शन का केस सबसे पहले अगस्त 2020 में हांगकांग में सामने आया था। 33 वर्षीय व्यक्ति मार्च 2020 में कोरोना से इन्फेक्ट हुआ था। अगस्त में वह दोबारा कोरोना पॉजिटिव हो गया। इस दौरान वह स्पेन जाकर लौटा था। डॉ. सिकोइया का कहना है कि हांगकांग वाले मरीज के सैम्पल का जीनोम एनालिसिस हुआ था, जिससे रीइन्फेक्शन की पुष्टि हुई।
- इसके बाद अमेरिका, बेल्जियम और चीन में भी कोरोना रीइन्फेक्शन के कई केस सामने आए। इनमें जीनोम एनालिसिस भी हुआ था। अगस्त 2020 में ICMR ने भारत में कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमण के 3 मामलों की पुष्टि की थी।
किन कारणों से हो सकता है रीइन्फेक्शन?
- रीइन्फेक्शन के पीछे की सबसे बड़ी वजह कोरोना वायरस में होने वाले म्यूटेशन हैं। इसकी वजह से वायरस नए-नए अंदाज में नए अवतार में सामने आ रहा है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति पहले पॉजिटिव होकर निगेटिव हुआ था तो वह नए स्ट्रेन से इन्फेक्ट हो सकता है। इसकी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
- भारत सरकार के मुताबिक महाराष्ट्र में डबल म्यूटेंट वायरस भी मिला था। वायरस में दो जगह बड़े बदलाव हुए हैं। इसके अलावा 18 राज्यों में वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न (VOC) मिले थे, जो रीइन्फेक्ट की वजह बन सकते हैं। हांगकांग में सामने आए रीइन्फेक्शन के केस में भी म्यूटेशन और नए स्ट्रेन को जिम्मेदार ठहराया गया था।
- भोपाल में कोरोना केसेज पर काम कर रहीं डॉ. पूनम चंदानी के मुताबिक कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर में बनी एंटीबॉडी कितने दिन तक रहेगी, इसे लेकर अलग-अलग दावे हुए हैं। ऑस्ट्रेलिया और यूके में जो स्टडी हुई है, उसके मुताबिक 8 से 10 महीने तक एंटीबॉडी शरीर में मिली है। पर यह इस बात की पुष्टि नहीं है कि कोरोना रीइन्फेक्शन नहीं होगा।
- डॉ. चंदानी का कहना है कि कोरोना के हर नए स्ट्रेन के साथ लक्षण भी बदल रहे है। नए लक्षणों में ठंड लगकर बुखार आना, आंखों का लाल होना, बदन दर्द, सिर दर्द और उल्टी-दस्त जैसे लक्षण शामिल हैं। ये सभी लक्षण फ्लू के भी होते हैं। ऐसे में इन लक्षणों को सामान्य फ्लू मानकर नजरअंदाज नहीं कर सकते।
- विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि ICMR की स्टडी में अक्टूबर-2020 तक का ही डेटा लिया गया है, लेकिन भारत में अभी कोरोना की दूसरी लहर की वजह से संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में आशंका है कि ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है। अन्य देशों की स्टडी में कोरोना से दोबारा संक्रमित होने वाले लोगों की दर 1 फीसदी रही है, लेकिन भारत में ये 4.5% है। ये भी चिंता का विषय है।
रीइन्फेक्शन से कैसे बचा जा सकता है?
- केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों का जोर इसी बात पर है कि सरकारें सावधानी बरतें। कोविड-19 प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करें। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर और देश की ख्यात वैक्सीन साइंटिस्ट डॉ. गगनदीप कंग का कहना है कि वायरस की लहर तो आती-जाती रहेगी, जब तक सभी को वैक्सीन नहीं लग जाती, तब तक केस बढ़ते-घटते रहेंगे।
- उनका कहना है कि लोगों को समझना होगा कि कोविड-19 जानलेवा है और वायरस खत्म नहीं हो गया है। उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहना है। साथ ही बार-बार हाथ धोना है। सफाई का ध्यान रखना है और भीड़ भरे स्थानों पर जाने से बचना है।