DMK-AIADMK में छोटा कार्यकर्ता हो या पार्टी अध्यक्ष; टिकट चाहिए तो आवेदन करना ही होगा, CM पद के दावेदार स्टालिन ने भी दिया इंटरव्यू

DMK में टिकट के दावेदार को फॉर्म के साथ 25 हजार रुपए का चेक देना पड़ता है, AIADMK में यह फीस 15 हजार रुपए

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तमिलनाडु में चुनावी हलचल अब जोर पकड़ने लगी है। DMK और AIADMK के पार्टी मुख्यालयों पर टिकट के दावेदारों की कतारें लगी हैं। तमिलनाडु की इन दो प्रमुख पार्टियों में परंपरा है कि टिकट के हर दावेदार को आवेदन करना ही पड़ेगा, भले ही वह मुख्यमंत्री पद का चेहरा ही क्यों न हो। DMK की ओर से पार्टी प्रमुख उस कमेटी में हैं जो दावेदारों के टिकट फाइनल कर रही है, लेकिन हाल ही में पार्टी कार्यालय में चल रहे इंटरव्यू में उनका नाम आया तो वो इंटरव्यू लेने वाली सीट से उठकर इंटरव्यू देने वाले उम्मीदवार की कुर्सी पर बैठ गए। स्टालिन के मामले में यह भले ही औपचारिकता हो, लेकिन इसका पालन सभी को करना पड़ता है, भले ही पार्टी में कितने भी बड़े पद पर हो।

आवेदन के अलावा इन पार्टियों में टिकट के लिए फीस भी देनी पड़ती है। DMK में सामान्य सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक कार्यकर्ताओं को 25 हजार, जबकि रिजर्व सीट के लिए 15 हजार का चेक देना पड़ता है। AIADMK में टिकट के हर दावेदार को 15000 का चेक देना पड़ता है। DMK ऑफिस के मुताबिक, पार्टी के पास अब तक करीब 6.5 हजार टिकट के दावेदारों के आवेदन आए हैं। इससे पार्टी फंड में करीब 15 करोड़ रुपए आए हैं। AIADMK के पास अब तक 8400 से कुछ ज्यादा टिकट के आवेदन हैं। AIADMK को भी टिकट के आवेदनों से लगभग इतनी ही आय हुई है।

यह पार्टी की इंटरनल डेमोक्रेसी

DMK कार्यालय के बाहर नेताओं की भीड़ लगी है। माइक से दावेदारों के नामों की घोषणा की जा रही है।
DMK कार्यालय के बाहर नेताओं की भीड़ लगी है। माइक से दावेदारों के नामों की घोषणा की जा रही है।

वेल्लूर से DMK सांसद कथीर आनंद पार्टी के टिकट बांटने के इस सिस्टम पर कहते हैं कि ‘यह पार्टी की स्थापना से चल रहा है। हर किसी के इंटरव्यू होते हैं, इससे पता चलता है कि हमारी पार्टी में कितनी ट्रांसपेरेंसी है। टिकट के लिए आवेदन की फीस एक तरह से पार्टी फंड में कार्यकर्ताओं का योगदान है। इस बार की स्क्रीनिंग कमेटी में स्टालिन, दुरई मुरूगन, कनिमोझी, ए राजा, टीआर बालू जैसे सीनियर लीडर हैं, लेकिन इंटरव्यू में जब स्टालिन की बारी आई तो वह चयन समिति की सीट से उठकर सामने उम्मीदवार की कुर्सी पर बैठे।’ स्टालिन चेन्नई से सटी ‘थाउजेंड लाइट’ से चुनाव लड़ते हैं।

एक सीट से टिकट के लिए कई आवेदन आते हैं। आखिर में चयन समिति किसी एक का टिकट फाइनल करती है। करुणानिधि के बेहद विश्वासपात्र रहे दुरई मुरूगन इस समय पार्टी के जनरल सेक्रेटरी हैं। 82 वर्षीय मुरूगन पहली बार 1971 में वेल्लूर जिले की काटपाडी क्षेत्र से विधायक बने थे। तब मौजूदा स्क्रीनिंग कमेटी के एक सदस्य स्टालिन महज 18 साल के थे तो दसरी सदस्य करुणानिधि की बेटी कनिमोझी, महज 3 साल की थीं।

स्टालिन के साथ फोटो खिंचाने के लिए भर दिया फॉर्म

9 बार विधायक रहे दुरई मुरूगन की पार्टी में पहचान यह भी है कि उनकी सीट से उनके सामने आज तक पार्टी के किसी दूसरे नेता ने आवेदन ही नहीं किया। दुरई मुरूगन इस बारे में कहते हैं कि ‘मैंने कभी किसी को नहीं रोका, लेकिन यह कार्यकर्ताओं का प्यार है कि वह इतने लंबे समय से मुझे लीडर मान रहे हैं। हालांकि इस विधानसभा चुनाव में पहली बार मुरूगन के खिलाफ एक दावेदार का आवेदन आया। लेकिन जब वह इंटरव्यू कमेटी के सामने आया तो उसने चुनाव लड़ने की बात से इनकार करते हुए कहा कि उसने तो आवेदन सिर्फ इसलिए किया था ताकि वह पार्टी सुप्रीमो स्टालिन के साथ एक फोटो ले सके। DMK पार्टी कार्यालय से इंटरव्यू देकर निकलते लोगों से हमने पूछा कि कैसे सवाल पूछे जाते हैं? आपने क्या जवाब दिया, लेकिन इस पर सभी का जवाब होता था- यह गोपनीय है।

वी रामचंद्रन, अन्नाद्रमुक के संस्थापक एमजी रामचंद्रन के पोते हैं। इन्होंने 3 सीट से टिकट की मांग करते हुए आवेदन दिया है।
वी रामचंद्रन, अन्नाद्रमुक के संस्थापक एमजी रामचंद्रन के पोते हैं। इन्होंने 3 सीट से टिकट की मांग करते हुए आवेदन दिया है।

पार्टी संस्थापक एमजीआर के पोते भी AIADMK के टिकट की लाइन में

सत्तारूढ़ AIADMK के संस्थापक एमजी रामचंद्रन राज्य के 3 बार मुख्यमंत्री रहे थे। इस चुनाव में उनके पोते वी रामचंद्रन ने 3 सीटों से दावेदारी की है और फीस के 45000 रुपए भरे हैं। उन्होंने भास्कर को बताया कि इंटरव्यू अच्छा रहा है। मुझे टिकट मिलने का भरोसा तो है, लेकिन अभी पक्का दावा नहीं कर सकता। इसके बावजूद कि मैं प्रदेश के सबसे सम्मानित एमजीआर परिवार से हूं। हमारी पार्टी में यदि चुनाव लड़ना है तो छोटे से कार्यकर्ता से लेकर खुद मुख्यमंत्री के लिए भी यही प्रक्रिया है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब छोटे से कार्यकर्ता को भी टिकट मिली और वह जीता भी। यही हमारा आंतरिक लोकतंत्र है।’

हालांकि, एक्सपर्ट कहते हैं कि ‘टिकट के लिए फॉर्म भरने और इंटरव्यू का सिस्टम वक्त के साथ कमजोर हुआ है और द्रविड पार्टियों में भी परिवारवाद पनप रहा है। लेकिन, फिर भी इसे एक हद तक उत्तर भारत के मुकाबले ट्रांसपेरेंट कह सकते हैं।’

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