प्रधानमंत्री मोदी ने जिस कोवैक्सिन का डोज लिया, वह 81% असरदार; जानिए क्या हैं इसके मायने

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नई दिल्ली। कोरोनावायरस से लड़ने में स्वदेशी कोवैक्सिन 81% तक असरदार साबित हुई है। भारत बायोटेक ने बुधवार शाम को कोवैक्सिन के फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के अंतरिम नतीजे जारी किए तो उन आलोचकों के मुंह पर ताले लग गए, जो भारत सरकार के फैसले की आलोचना कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक मार्च को कोवैक्सिन का ही टीका लगवाया था और इस वैक्सीन को लेकर बन रही हिचक को तोड़ने की कोशिश की थी।

यह नतीजे कितने महत्वपूर्ण है, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि भारत में इस समय कोरोनावायरस के खिलाफ दो वैक्सीन इस्तेमाल हो रही हैं- कोवैक्सिन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोवीशील्ड। इन दोनों में कोवीशील्ड को अब तक प्राथमिकता दी जा रही थी, जबकि नतीजों से साफ है कि 72% असर दिखाने वाली कोवीशील्ड के मुकाबले कोवैक्सिन ज्यादा असरदार है।

कोवीशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ब्रिटिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर तैयार किया है और भारत में पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया इसे बना रही है। वहीं, कोवैक्सिन को हैदराबाद की भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी (NIV) के साथ मिलकर बनाया था।

क्यों अहम है कोवैक्सिन के नतीजे?

  • भारत सरकार ने 3 जनवरी को कोवैक्सिन को इमरजेंसी अप्रूवल दिया था। तब कहा गया था कि फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के नतीजे नहीं आए हैं, इसलिए इसे क्लीनिकल ट्रायल मोड में अप्रूवल दिया है। यानी जिन्हें वैक्सीन लगेगी, उन पर नजर रखी जाएगी।
  • कई विशेषज्ञों और पॉलिटिकल पार्टियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। स्वदेशी वैक्सीन को लेकर अविश्वास का माहौल बन गया था। स्वदेशी वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल्स नतीजों ने सभी तरह की आलोचनाओं को करारा जवाब दिया है।
  • कोवैक्सिन के फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स में 25,800 वॉलंटियर्स शामिल हुए थे। यह देश में वॉलंटियर्स के लिहाज से अब तक का सबसे बड़ा क्लीनिकल ट्रायल है। फेज-1 और फेज-2 में करीब एक हजार वॉलंटियर्स शामिल हुए थे।
  • फेज-3 में शामिल 43 वॉलंटियर्स कोरोनावायरस से इंफेक्ट हुए। इनमें 36 प्लेसिबो ग्रुप के थे, जबकि 7 वैक्सीन ग्रुप के। इस आधार पर वैक्सीन की एफिकेसी या इफेक्टिवनेस 80.6% निकलकर आई।
  • कोवैक्सिन के ट्रायल्स में 2,433 वॉलंटियर्स की उम्र 60 वर्ष या अधिक थी। 4,500 वॉलंटियर्स ऐसे थे, जो पहले से ही किसी न किसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। इन पर भी कोवैक्सिन ने अच्छा इम्यून रिस्पॉन्स दिखाया है।

कोवीशील्ड के मुकाबले कोवैक्सिन बेहतर क्यों है?

  • कोवैक्सिन भारतीय परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही बनाई गई है। टीकाकरण का मौजूदा नेटवर्क 2 से 8 डिग्री टेम्परेचर तक वैक्सीन स्टोर कर सकता है। इसके लिहाज से कोवैक्सिन को स्टोर करना बेहद आसान है।
  • कोवैक्सिन के साथ ओपन वॉयल पॉलिसी भी मिलती है। यानी एक शीशी को खोलने के बाद उसका 25 से 30 दिन तक इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे वैक्सीन का वेस्टेज 10-30% तक कम होगा।
  • कोवीशील्ड वैक्सीन में यह सुविधा नहीं है। शीशी को खोलने के चार घंटे के भीतर इस्तेमाल करना जरूरी है। इस वजह से कोवीशील्ड की वैक्सीन का वेस्टेज भी शुरुआत में ज्यादा हुआ था।
  • कोवीशील्ड को पूरे वायरस को ध्यान में रखकर बनाया गया है। वायरस में छोटे-मोटे बदलाव आते हैं तो भी कोवैक्सिन का असर कम नहीं होगा। कोवीशील्ड दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन पर बेअसर साबित हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मार्च को कोवैक्सिन का पहला डोज लगवाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक मार्च को कोवैक्सिन का पहला डोज लगवाया।

अंतरिम नतीजों के मायने क्या है?

  • भारत बायोटेक ने अपने शुरुआती नतीजों में 43 वॉलंटियर्स के इंफेक्ट होने पर डेटा का एनालिसिस किया है। जब 87 केस सामने आएंगे, तब एक बार और एनालिसिस किया जाएगा। 130 केस सामने आने पर अंतिम एनालिसिस होगा और अंतिम रिपोर्ट बनाई जाएगी।
  • कंपनी का दावा है कि अब तक दुनियाभर के 40 देशों ने कोवैक्सिन में रुचि दिखाई है। इन देशों ने वैक्सीन की सेफ्टी और इम्यून रिस्पॉन्स को लेकर संतुष्टि दिखाई है। अंतरिम एनालिसिस के बाद उनका इस प्लेटफॉर्म पर भरोसा और मजबूत होगा।

कोवैक्सिन के प्रोडक्शन का क्या स्टेटस है?

  • कोवैक्सिन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक की प्लानिंग सालाना 70 करोड़ डोज बनाने की है। हैदराबाद में 20 करोड़ वैक्सीन डोज बनेंगे और 50 करोड़ चार अन्य शहरों में। कंपनी ने चार जगह फैसिलिटी बनाने का काम शुरू कर दिया है।
  • सरकार ने अब तक करीब ढाई करोड़ वैक्सीन डोज ऑर्डर दिए हैं। जिसमें एक करोड़ ऑर्डर भारत बायोटेक को गए हैं। बाकी डोज कोवीशील्ड के लिए गए हैं। फेज-3 के नतीजे नहीं होने की वजह से ज्यादातर लोगों ने कोवैक्सिन के बजाय कोवीशील्ड को चुना था।
  • आने वाले समय में कोवैक्सिन की खपत बढ़ सकती है। अब तक तो लोग पीछे हट रहे थे, वे भी कोवैक्सिन लगाने आगे आ सकते हैं। ब्राजील के साथ ही यूनाइटेड अरब अमीरात भी कोवैक्सिन सप्लाई होने वाली है।

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