पहाड़ों पर बड़े बांधों पर सवाल :हिमालय 20 साल में सबसे गर्म, सर्दियों में मई-जून जैसा तापमान और पॉवर प्रोजेक्ट तबाही की वजह

उत्तराखंड के चमोली में रविवार को हुई तबाही के बाद धौलीगंगा हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट में जारी बचाव अभियान। यहां कई लोगों को सैलाब में बह जाने की आशंका है। भू-वैज्ञानिकों ने 8 महीने पहले हिमालय में ऐसी आपदा को लेकर चेतावनी दी थी सुप्रीम कोर्ट ने गंगा पर नए पॉवर प्रोजेक्ट्स को पर्यावरण के लिए खतरा बताया था

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उत्तराखंड में आपदाओं के बाद हमेशा ही नदियों पर बने बड़े बांधों और पॉवर प्रोजेक्ट्स पर उंगली उठती रही है। सुप्रीम कोर्ट तक इस पर चिंता जता चुका है। यहां तक कि केंद्र सरकार का अपना जल संसाधन मंत्रालय 2016 में सुप्रीम कोर्ट के सामने मान चुका है कि उत्तराखंड में गंगा पर कोई भी नया पॉवर प्रोजेक्ट पर्यावरण के लिए खतरा है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद राज्य के 39 में से 24 पॉवर प्रोजेक्ट्स पर रोक लगा दी थी, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के बावजूद उत्तराखंड में बांधों और पॉवर प्रोजेक्ट्स पर काम जारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- प्रोजेक्ट्स को रद्द क्यों नहीं करते?
सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसंबर, 2014 को इस मामले में पूछा था कि अगर इन पॉवर प्रोजेक्ट्स से वन और पर्यावरण को खतरा है, तो इन्हें रद्द क्यों नहीं किया जा रहा? उन अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती, जिन्होंने इन्हें मंजूरी दी? विकास योजनाओं में पर्यावरण से समझौता नहीं होना चाहिए।

इसके बाद केंद्र की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया था कि सरकार विकास के सभी काम वैज्ञानिक तरीके से कराएगी। सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी 2020 को केंद्र सरकार को निर्देश जारी करते हुए कहा था कि सरकार चाहे तो इन प्रोजेक्ट को इको-सेंसेटिव जोन से बाहर दूसरे क्षेत्रों में शिफ्ट करने पर विचार कर सकती है ताकि इनके कारण लोगों की जिंदगी खतरे में न आए। मामले की सुनवाई अभी तक जारी है।

मंत्री रहते उमा भारती ने कहा था- नदियों का रास्ता नहीं रुकना चाहिए
उत्तराखंड के 24 पॉवर प्रोजेक्ट्स पर रोक के मामले में सुनवाई के दौरान 2016 में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री उमा भारती की ओर से दायर हलफनामे में केंद्र सरकार के रुख के उलट कहा गया था कि नदियों का रास्ता नहीं रोका जाना चाहिए। उत्तराखंड में अलकनंदा, मंदाकिनी, भागीरथी और गंगा नदियों पर कोई भी बांध या पॉवर प्रोजेक्ट खतरनाक होगा।​​​​​​​

केंद्र के दो मंत्रालयों ने बांध बनाने की वकालत की थी
इस मामले में पर्यावरण और ऊर्जा मंत्रालयों ने अपने हलफनामे में कहा था कि बांध बनाना खतरनाक नहीं है। इसका आधार 1916 में हुए समझौते को बताया गया था। समझौते के मुताबिक, नदियों में 1000 क्यूसेक पानी का फ्लो बनाए रखा जाए, तो बांध बनाए जा सकते हैं। इसे पर्यावरण मंत्रालय ई-फ्लो कहता है।​​​​​​​

उमा के मंत्रालय ने कहा था- बड़े बांध खतरनाक होंगे
उमा के मंत्री रहते उनके विभाग जल संसाधन मंत्रालय ने अपने हलफनामे में चेताया था कि पॉवर प्रोजेक्ट्स को पर्याप्त स्टडी के बिना मंजूरी दी जा रही है। यह खतरनाक है। उस समय 70 नए पॉवर प्रोजेक्ट्स की तैयारी चल रही थी।

चारधाम प्रोजेक्ट पर भी सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी
चारधाम प्रोजेक्ट के कारण भी उत्तराखंड में पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा था। इसका खुलासा सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित रवि चोपड़ा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किया था। इस रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 7 मीटर की जगह 5.5 मीटर चौड़ी सड़क बनाने का निर्देश दिया था।

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