चंडीगढ़। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के बीच मोदी सरकार ने पंजाब को बड़ा झटका दिया है। केंद्र सरकार की एजेंसी कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APIDA) ने मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) देने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लगाई आपत्ति को वापस लेने का फैसला लिया है। इससे मप्र के बासमती चावल के निर्यात करने का रास्ता साफ हो गया है। इस पर प्रदेश की सत्ता और कारोबारी वर्ग दोनों में खासा रोष का माहौल है।
बता दें कि मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग दिए जाने की लड़ाई 12 साल से लड़ रहा है। मप्र सरकार और मध्य क्षेत्र बासमती उत्पादक एसोसिएशन ने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस पर केंद्र सरकार की एजेंसी कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APIDA) ने आपत्ति दर्ज कराई थी। इस मसले पर जुलाई 2020 में पंजाब के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मध्य प्रदेश के बासमती चावल की GI टैगिंग पर रोक लगाने की मांग की थी। दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जुलाई 2020 को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर APIDA की आपत्ति को वापस लेने का अनुरोध किया था। बताया जाता है कि APIDA की 5 जनवरी को हुई बैठक में मध्य प्रदेश के बासमती चावल को GI टैग देने के मामले में अपनी आपत्ति वापस लेने का फैसला किया है। जल्द ही इस आपत्ति को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया जाएगा। इसके बाद मप्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेगी।
बासमती की GI टैगिंग करवाने के मध्य प्रदेश के दावे का पंजाब-हरियाणा में कड़ा विरोध किया जा रहा है। न सिर्फ ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर एसोसिएशन इसके विरोध में है, बल्कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी इसके खिलाफ आवाज उठा चुके हैं। यहां तक कि वह PM को चिट्ठी भी लिख चुके हैं।
क्या है GI टैगिंग?
दरअसल, भारत में हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के कुछ क्षेत्र में पैदा होने वाली बासमती की ही GI टैगिंग की जाती है। इन दिनों मध्य प्रदेश में पैदा हुए बासमती चावल को GI टैगिंग दिए जाने का मसला चर्चा में है। जियोग्राफिकल इंडीकेशन ऑफ गुड्स (रेजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 1999 के तहत यह टैग उन कृषि उत्पादों को दिया जाता है, जो किसी क्षेत्र विशेष में विशेष गुणवत्ता और विशेषताओं के साथ उत्पन्न होती है। भारत में बासमती को उसकी गुणवत्ता, स्वाद और खुशबू के लिए GI टैगिंग दी जाती है। हिमालय की तलहटी में बसे क्षेत्रों में इंडो-गेंजेटिक क्षेत्र में पैदा होने वाली बासमती का स्वाद और खुशबू की पहचान सारे विश्व में विख्यात है। जानकारों की मानें तो मध्य प्रदेश बासमती का उत्पादन करने वाले इस इस विशेष क्षेत्र में नहीं आता, इसीलिए इसे पहले ही बासमती की GI टैगिंग के लिए शामिल नहीं किया गया था।
क्या है कैप्टन के विरोध का तर्क?
कैप्टन अमरिंदर सिंह का कहना है कि GI टैगिंग से कृषि उत्पादों को उनकी भौगोलिक पहचान दी जाती है। भारत से हर साल 40 हजार करोड़ के करीब बासमती चावल का निर्यात होता है। अगर GI टैगिंग व्यवस्था से छेड़छाड़ हुई तो इससे भारतीय बासमती के बाजार को नुकसान हो सकता है और इसका सीधा-सीधा फायदा पाकिस्तान को मिल सकता है।