2021 में उम्मीद : वैज्ञानिकों ने बनाया हू-ब-हू कोरोना जैसा पार्टिकल; ये महामारी फैलाएगा नहीं, उसे मार देगा
दुनियाभर के लोग पूरे साल जानलेवा कोरोनावायरस की लाल तस्वीर देखते रहे। वैज्ञानिकों ने इसे Severe Acute Respiratory Syndrome Coronavirus-2 यानी SARS-CoV-2 नाम दिया है। तो आइये नए साल के पहले दिन देखते हैं उस अनोखे पार्टिकल की तस्वीर जो हू-ब-हू कोरोनावायरस की तरह दिखता है। इसके चारों ओर भी कोरोनावायरस की तरह स्पाइक्स हैं। लेकिन, यह एकदम उलटा काम करता है। यह कोरोना फैलाता नहीं, बल्कि उसके वायरस को मारता चलता है।
नई दिल्ली। आखिर 2020 विदा हो ही गया। पूरी दुनिया 2021 को उम्मीदों भरी निगाहों से ताक रही है। सबसे बड़ी आस कोरोना वैक्सीन से है। और हो भी क्यों न। आखिर पूरा 2020 कोरोना को झेलते ही तो बीता है। (2021 इस सदी के लिए उम्मीदों का सबसे बड़ा साल है। वजह- जिस कोरोना ने देश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया, उसी से बचाने वाली वैक्सीन से नए साल की शुरुआत होगी। इसलिए 2021 के माथे पर यह उम्मीदों का टीका है।)
दुनियाभर के लोग पूरे साल जानलेवा कोरोनावायरस की लाल तस्वीर देखते रहे। वैज्ञानिकों ने इसे Severe Acute Respiratory Syndrome Coronavirus-2 यानी SARS-CoV-2 नाम दिया है। तो आइये नए साल के पहले दिन देखते हैं उस अनोखे पार्टिकल की तस्वीर जो हू-ब-हू कोरोनावायरस की तरह दिखता है। इसके चारों ओर भी कोरोनावायरस की तरह स्पाइक्स हैं। लेकिन, यह एकदम उलटा काम करता है। यह कोरोना फैलाता नहीं, बल्कि उसके वायरस को मारता चलता है।
यह तस्वीर है- कोरोना के VLP (Virus like particle) यानी कोरोनावायरस जैसे पार्टिकल की। इसे प्रकृति ने नहीं बल्कि कोरोना की काट तलाश रहे वैज्ञानिकों ने बनाया है।
माइक्रोस्कोप से ऐसा दिखता है VLP, एकदम कोरोनावायरस की तरह
VLP को शरीर कोरोना वायरस समझेगा और उन्हें मारने की ताकत जुटा लेगा
आइडिया यह है कि वैक्सीन के जरिए जैसे ही VLP इंसानी शरीर में पहुंचेंगे तो वह धोखा खा जाएगा। हमारे शरीर को लगेगा कि कोरोनावायरस आ गया है और वह इसे मारने के लिए अपनी प्रतिरोधक तंत्र को सक्रिय कर देगा।
हमारे शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज बनना शुरू हो जाएंगी। वह भी इतनी तादाद में कि कई महीनों या साल तक अगर हमारे शरीर का सामना असली कोरोनावायरस से होता है तो पहले से तैयार एंटीबॉडीज उसे मार देंगे।
इस वैक्सीन से कोरोना होने का कोई डर नहीं
दूसरी तकनीकों से बनने वाली कई वैक्सीन्स की तरह इन पार्टिकल से बनने वाली वैक्सीन से कोरोना होने का बिल्कुल भी डर नहीं। दरअसल, इनमें किसी भी वायरस की जान, यानी जेनेटिक मेटेरियल ही नहीं है। यह पार्टिकल्स कोरोनावायरस की तरह होने के बावजूद अपनी संख्या बढ़ा नहीं सकते।
कनाडा की कंपनी पौधों से बनाई सस्ती वैक्सीन, भारत में भी कवायद
दुनिया की कई कंपनियां इस नई टेक्नोलॉजी से वैक्सीन बनाने में जुटी हैं। अब तक स्तनधारियों से लिए गए प्रोटीन के जरिए यह पार्टिकल बनाए जा रहे थे, लेकिन कनाडा की बायोटेक्नोलॉजी कंपनी Medicago ने मात्र 20 दिनों में पौधों के प्रोटीन से कोरोना के VLP बना लिए हैं।
कंपनी का दावा है इस टेक्नोलॉजी से तैयार वैक्सीन बेहद सस्ती, कम समय और कम जगह में तैयार होगी। कंपनी ने इस आधार पर कोरोना वैक्सीन विकसित कर ट्रायल जुलाई में ट्रायल शुरू किए। इस तकनीक से वैक्सीन तैयार करने में एंटीजन की बेहद कम मात्रा में जरूरत होती है। ऐसे में कम खर्च में वैक्सीन से ज्यादा डोज तैयार की जा सकती हैं।
भारत में हैदराबाद की जीनोम वैली में स्थित फार्मा कंपनी बायोलाजिकल E ने VLP आधारित कोरोना वैक्सीन तैयार की है। जिसके phase-1 और phase-2 के क्लीनिकल ट्रायल चल रहे हैं।
पौधों को बायो-रिएक्टर बनाकर तैयार होता है वैक्सीन का कच्चा माल
परंपरागत रूप से वैक्सीन के लिए एंटीजन बनाने के लिए जीवित वायरस को मारकर विभाजित किया जाता है। इसके लिए भारी संख्या में वायरस की जरूरत होती है। इसके काम में आमतौर पर मुर्गी के चूजों के भ्रूण या निषेचित अंडों को बायो-रिएक्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मतलब अनुकूल वातावरण बनाकर इनमें ही भारी संख्या में वायरस पैदा किए जाते हैं।
जबकि, VLP वाली वैक्सीन में वायरस जैसे पार्टिकल्स को भारी संख्या में बनाने के लिए पौधों को बायो-रिएक्टर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह वैक्सीन बनाने का कच्चा माल यानी एंटीजन न केवल कम समय में बल्कि बेहद कम लागत से तैयार हो जाता है। इससे वैक्सीन भी सस्ती और तेजी से तैयार की जा सकती है।
कोविड-19: इन पाँच कारणों से कोरोना वायरस बन गया है घातक
पहले भी इंसान के सामने वायरस का ख़तरा था. पहले भी महामारियां फैली थीं लेकिन दुनिया को हर नए संक्रमण या फ़्लू से निपटने के लिए इस तरह रुकना नहीं पड़ा था. तो इस कोरोना वायरस में ऐसा क्या है? इसकी बायोलॉजी में ऐसी क्या बात है जो हमारे शरीर और जीवन के लिए ख़तरनाक बन जाती है.
धोखा देने में माहिर
संक्रमण के शुरुआती चरणों में कोरोना वायरस आपके शरीर को धोखा देने में कामयाब हो जाता है. कोरोना वायरस हमारे फेफड़े और श्वसन तंत्र में बड़े पैमाने पर मौजूद होता है लेकिन हमारे प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) को लगता है कि सबकुछ ठीक है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज में प्रोफ़ेसर पॉल लेहनर कहते हैं, “ये ग़ज़ब का वायरस है. ये आपकी नाक में वायरस की फ़ैक्ट्री बना लेता है और आपको लगता रहता है कि आप ठीक हैं.” हमारे शरीर की कोशिकाएं इंटरफर्नो नाम के केमिकल्स रिलीज़ करती हैं. जब इन केमिकल्स पर कोई वायरस क़ब्ज़ा करता है तब हमारे शरीर और प्रतिरक्षा तंत्र को वायरस की मौजूदगी की चेतावनी मिलने लगती है.
लेकिन, कोरोना वायरस में इस चेतावनी को रोकने की ‘ग़ज़ब की क्षमता’ होती है. प्रोफ़ेसर लेहनर कहते हैं, “ये काम वायरस इतनी अच्छी तरह करता है कि आपको पता ही नहीं चलता कि आप बीमार हैं.” वह बताते हैं कि जब आप संक्रमित कोशिकाओं को लैब में देखते हैं तो वो बिल्कुल भी संक्रमित नहीं लगतीं लेकिन जब आप टेस्ट करते हैं तो पता चलता है कि इनमें बहुत सारा वायरस मौजूद है.
हिट एंड रन जैसा वायरस
- जब हमारे शरीर में मौजूद वायरस ‘लोड पीक’ पर पहुँच जाता है तब हम बीमार पड़ते हैं और लक्षण दिखने लगते हैं.
- ऐसे में लक्षण ना दिखने के बावजूद भी वायरस शरीर में मौजूद होता है और एक से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है.
- मरीज़ के अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति तक पहुँचाने में वायरल लोड को क़रीब एक हफ़्ते का समय लगता है.
- प्रोफ़ेसर लेहनर कहते हैं, “यह ख़ुद के विकास का एक शानदार तरीक़ा है. यह मरीज़ को तुरंत अस्पताल नहीं पहुँचाता बल्कि ठीक महसूस कराता है, आराम से बाहर घूमने देता है ताकि वायरस और फैल सके.”
- इसलिए कोरोना वायरस उस ड्राइवर की तरह है जो दुर्घटना करके तुरंत भाग जाता है. वायरस भी किसी संक्रमित व्यक्ति के ठीक होने या मरने से पहले तुरंत ही दूसरे व्यक्ति में भी चला जाता है.
- साल 2002 के मूल सार्स-कोरोना वायरस और मौजूदा कोरोना वायरस में ये बहुत बड़ा अंतर है.
- मूल सार्स-कोरोना वायरस में लोगों के बीमार होने यानी लक्षण दिखने के बाद संक्रमण का ख़तरा सबसे ज़्यादा होता था जिससे उन्हें आईसोलेट करना आसान हो जाता था.
शरीर के लिए अजनबी वायरस
पिछली महामारी को याद करें? साल 2009 में एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू को लेकर लोगों में बहुत डर था.
हालांकि, यह उतना जानलेवा नहीं निकला जितनी चिंता जताई जा रही थी.
इसकी वजह थी कि बुज़ुर्गों में इस वायरस से लड़ने की क्षमता कुछ हद तक पहले से ही मौजूद थी. क्योंकि इसी तरह का वायरस पहले भी फैल चुका था. ऐसे चार और इंसानी कोरोना वायरस होते हैं जिनमें ज़ुकाम जैसे लक्षण सामने आते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैनचेस्टर से प्रोफ़ेसर ट्रेसी हसल कहती हैं, “ये नए तरह का वायरस है इसलिए लोगों में इससे लड़ने के लिए पहले से इम्यूनिटी नहीं है. इसके नए प्रभाव आपके इम्यून सिस्टम के लिए एक झटका साबित होते हैं.”
इसकी तुलना यूरोप में हुए स्मॉलपॉक्स से की जा सकती है. उसके लिए भी लोगों में पहले से प्रतिरक्षा मौजूद नहीं थी जिसके बहुत घातक परिणाम निकले.
किसी वायरस से लड़ने के लिए एकदम नई इम्यूनिटी बना पाना बुज़ुर्गों के लिए बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि उनका प्रतिरक्षा तंत्र कमज़ोर हो चुका होता है.
एक नए वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र को बहुत से बदलावों से गुज़रना पड़ता है.
जैसे कि हम किसी नई समस्या को सुलझाने के लिए कई तरीक़े अपनाते हैं. इनमें से कुछ तरीक़े सफल होते हैं, कुछ असफल होते हैं और कुछ में बदलाव भी करना पड़ता है.
इसी तरह प्रतिरक्षा तंत्र भी काम करता है. लेकिन, अधिक उम्र में प्रतरिक्षा तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा माने जाने वाले टी-सेल्स बहुत कम बनते हैं. इसलिए नई प्रतिरक्षा बन पाना मुश्किल होता है.
पूरे शरीर तक पहुँच
कोरोना वायरस फेफड़ों को प्रभावित करते हुए पूरे शरीर में फैल जाता है.
किंग्स कॉलेज लंदन में प्रोफ़ेसर मारो गाका कहते हैं कि कोविड के कई पहलू बहुत अनोखे हैं. “यह दूसरी वायरल बीमारियों से अलग है.” वह कहते हैं कि यह ना सिर्फ़ फेफेड़ों में मौजूद कोशिकाओं को मारता है बल्कि उन्हें ख़राब भी कर देता है. इससे ख़राब हो चुकी कोशिकाएं अपने आसपास की स्वस्थ कोशिकाओं से जुड़ती हैं और उन्हें भी बीमार करके एक बड़ा रूप धारण कर लेती हैं.
प्रोफ़ेसर गाका कहते हैं कि फ्लू के बाद आपके फेफड़े फिर से पूरी तरह स्वस्थ हो सकते हैं लेकिन कोविड में ऐसा नहीं होता. यह एक अजीब तरह का संक्रमण है.
इसमें शरीर में ख़ून के थक्के भी जमने लगते हैं. कई बार डॉक्टर्स को थक्के जमने के कारण मरीज़ों में नसें ढूंढने में भी मुश्किल आती है.
किंग्स कॉलेज लंदन में प्रोफ़ेसर बेवरली हंट कहती हैं कि कोविड के कुछ मरीज़ों में ख़ून में थक्का जमाने वाले केमिकल्स सामान्य से “200, 300, 400 गुना ज़्यादा” तक पाए गए हैं.
उन्होंने इनसाइड हेल्थ से कहा था, “मैं ईमानदारी के साथ कहना चाहती हूं कि अपने करियर में मैंने इतने गाढ़े ख़ून वाले मरीज़ पहले नहीं देखे थे.”
कोरोना वायरस के पूरे शरीर पर प्रभाव डालने के पीछे वजह है, शरीर में मौजूद एसीई2 रिस्पेटर जिसके ज़रिए वायरस कोशिकाओं को संक्रमित करता है.
एसीई2 रिस्पेटर एक तरह का प्रोटीन है जो रक्त कोशिकाओं, फेफड़ों, लिवर, और किडनी सहित पूरे शरीर में पाया जाता है. इसलिए कोरोना वायरस हर अंग तक पहुँच बना लेता है.
वसा है ख़तरनाक
अगर आपका वज़न अधिक है तो कोविड-19 आपको ज़्यादा नुक़सान पहुँचा सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैम्ब्रिज में प्रोफ़ेसर स्टीफ़न ओ रेहली कहते हैं, “इसका मोटापे से गहरा संबंध है जोकि हमने दूसरे वायरस संक्रमणों में नहीं देखा है. फेफड़ों में होने वाली दूसरी समस्याओं में मोटे लोगों के ज़्यादा बेहतर परिणाम आते हैं.”
दरअसल, पूरे शरीर में मौजूद वसा से मेटाबॉलिक गड़बड़ियां होती हैं जो कोरोना वायरस से जुड़कर और बुरा असर डालती हैं.
कोरोना वायरस और इसके प्रभाव से जुड़ी कई और अनजानी बातें समय के साथ सामने आ सकती हैं. जैसे-जैसे इसकी तहें खुलती जाएंगी वैसे-वैसे मानव शरीर भी इससे निपटने के लिए ख़ुद को तैयार कर सकेगा.