Bathinda Municipal Corporation Election-पांच साल में नगर निगम का 700 करोड़ का बजट, अधिकतर राशि कर्मियों व अफसरों के वेतव व भत्तों पर खर्च
-शहर के विकास के लिए रही फंड की भारी कमी, बकाया टैक्सों की वसूली का काम भी रहा धीमा -नगर निगम चुनावों से पहले लोगों के बीच बताने के लिए राजनीतिक दलों के पास मुद्दों की कमी
बठिंडा. नगर निगम बठिंडा की पिछले पांच साल की कारगुजारी विकास के लिहाज से काफी नकारात्मक रही है। पांच साल में नगर निगम बठिंडा का कुल बजट 700 करोड़ रुपए के करीब रहा इसमें विकास की बात करे तो मात्र 150 करोड़ की राशि ही विकास कार्यों में खर्च हो सकी जबकि लोगों की तरफ से दिया गया टैक्स कर्मचारियों व अधिकारियों के वेतन व भत्तों में ही खर्च हो गया जो कुल बजट का 60 फीसदी था जो स्थानीय निकाय विभाग की तरफ से जारी हिदायतों के खिलाफ था लेकिन इसमें सुधार के लिए किसी भी मेयर व अधिकारी ने प्रयास नहीं किए।
लोग मांग रहे हैं जबाव विकास कहा हुआ
फिलहाल पांच साल की नकारा कारगुजारी का खामियाजा सत्ता में रही अकाली दल के साथ राज्य की सत्ता पर काबिज कांग्रेस को उठाना पड़ेगा।लोग सवाल कर रहे हैं कि पांच साल में उन्होंने हमारे वार्ड के लिए क्या किया। सड़के बनी पर कुछ समय बाद फिर से टूट गई। करोड़ों का खर्च कर सीवरेज डाला लेकिन पाइपे फिर से चोक हो गई व गंदा पानी सड़कों में आ रहा है। पानी का मोटा बिल लोगों को भेज रहे हैं लेकिन सप्ताह में दो दिन भी पानी सही ढंग से नहीं मिल रहा है कभी कभार को पीने के पानी में सीवरेज का गंदा पानी मिक्स होकर आ रहा है। अब इस स्थिति में लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या पांच साल पहले की तरह की खड़ी है तो करोड़ों का फंड आखिर कहा लगा इसका जबाव किसी के पास नहीं है।
अधिकतर राशि कर्मिय़ों के वेतन पर खर्च
इस तरह से 400 करोड़ की राशि कर्मचारी व अधिकारियों पर खर्च हुए जबकि 250 करोड़ की राशि नगर निगम के बिलों व दफ्तरी कार्यों पर खर्च कर दिया गया। इस तरह से 650 करोड़ रुपए इन मदों में ही खर्च हो गए जबकि मात्र 50 करोड़ रुपए की विकास कार्यों के लिए निगम के पास बचे थे। इसमें नगर निगम अधिकारियों को उम्मीद थी कि बकाया टैक्सों की वसूली करने के साथ राज्य सरकार से फंड की मांग की जाएगी लेकिन साल 2017 में राज्य में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आसीन होते ही निगम की सत्ता में बैठे अकाली दल के साथ खींचतान बढ़ गई व अगले तीन साल एक दूसरे के पैर खींचने में ही निकल गए। इसमें सरकार ने सीधे तौर पर नगर निगम को फंड जारी करने से इंकार कर दिया वही साल 2019 के अंत तक यही स्थिति बनी रही।
इसमें कांग्रेस ने बाद में फंड देने की योजना बनाई जो सीधे नगर निगम को देने की बजाय नगर सुधार ट्रस्ट को फंड ट्रांसफर किए जाने लगे। इन फंडों में पिछले छह माह में नई सड़कों का निर्माण करने के काम शुरू हुए। फिलहाल पांच साल में शहर को कोई भी बड़ी योजना नगर निगम अपने स्तर पर देने में पूरी तरह से नाकाम रहा।
नगर निगम पर है करोड़ों का कर्जा जिसे आज तक नहीं उतारा जा सका
केंद्र और राज्य सरकार समेत सैटलमेंट पॉलिसी से आने वाली करीब 200 करोड़ की अतिरिक्त राशि के सहारे बहुमूल्य योजनाओं के पिछले पांच साल से सपने पूरे करतेरहे। इसमें सबसे ज्यादा 125 करोड़ रुपए सालाना सैटलमेंट पॉलिसी के आधार पर अवैध इमारतों, सीएलयू आदि से होने की संभावना हर साल दिखाई जाती रही, जबकि 20 करोड़ रुपए सरकार से पार्किंग प्रोजेक्ट और 50 करोड़ रुपए सालाना अमृत योजना के पहले फेज में आने की उम्मीद पर कुछ काम पूरे किए। वही दूसरी तरफ निगम पर पीआईडीबी के 107 करोड़ रुपए के कर्ज की राशि पूर्व की तरह खड़ी है जिसमें केवल ब्याज का भुगतान कर साल हो रहा है।
इन टैक्सों की नहीं हो रही है इमानदारी से वसूली
पंजाब म्युनिसिपल फंड का करीब 91 करोड़, बिल्डिंग रेगुलाइजेशन का 1.50 करोड़, वाटर सप्लाई सीवरेज का 13.43 करोड़ रुपए सालाना वलूसी के साथ प्रापर्टी टैक्स की वसूली जैसी मदों में लोग टैक्स देने में जहां दिलचस्पी नहीं दिखा रहे वही नगर निगम भी इन फंडों की वसूली में इमानदारी से काम नहीं कर सका है। इसका नतीजा यह है कि हर साल नगर निगम के सालाना बजट में प्रस्तावित राशि पूर्व की तरह खड़ी रहती है व कुल बजट वसूली का ट्रागेट पूरा नहीं होता है जिसका सीधा असर शहर की विकास योजनाओं पर भी दिखाई देता है। नगर निगम ने प्रॉपर्टी टैक्स 11.50 करोड़ रुपए सालाना वसूल करना है। वही बिल्डिंग/सीएलयू/डेवल्पमेंट/ वाटर सप्लाई चार्ज बिल्डिंग चार्ज के करीब 8 करोड़ रुपए बकाया खड़े हैं जबकि निगम की बड़ी आय के साध रहे विज्ञापन कर पर जहां हर साल 2.30 करोड़ रुपए मिलते थे वह भी सरकार व निगम की गलत नीतियों के कारण लगातार कम हो रहा है व विज्ञापन साइटों पर राजनीतिक दलों के विज्ञापन लगे हैं जिसमें निगम को एक पैसे की कमाई नहीं होती है।
फंड की कमी से रुके पड़े हैं कई काम
नगर निगम में फंड की कमी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ता है। शहर में लावारिस जानवरों की समस्या हल करने के लिए नगर निगम हर साल काउ सेस के तौर पर तीन से चार करोड़ की वसूली करता है लेकिन उक्त राशि को सही मैनेजमेंट कर वितरित करने की कमी के कारण समस्या पूर्व की तरह बरकरार है। जानवरों के मरने के बाद उन्हें हड्डारोडी में फैंकने की व्यवस्था आज तक नहीं हो सकी। सड़कों में घूम रहे जानवरों को पकड़कर गौशाला भेजने की योजना अधर में लटकी पड़ी है। कई इलाकों में सीवरेज समस्या आए दिन बिगड़ रही है जहां हर 10 दिनों बाद सीवरेज जाम होने से गंदा पानी इकट्ठा हो जाता है। इन इलाकों में नई सीवरेज पाइप लाइन निगम अपने स्तर पर फंड की कमी से बिछाने में नाकाम रहा है। शहर में जितने सफाई कर्मियों की जरूरत है उसके मुकाबले ताताद कम है वही नगर निगम में अभी भी 40 फीसदी पद विभिन्न विभागों में खाली पड़े हैं। इन पदों को भरने के लिए निगम के पास फंडों की भारी दिक्कत है। इससे प्रबंधन का काम पूरी तरह से प्रभावित हो रहा है।