Indo-Pak 1971 War: इस एक लाइन के खत को पढ़कर पाक सेना ने कर दिया था सरेंडर, खत ले जाने वाले कैप्टन निर्भय ने बताई सरेंडर की पूरी कहानी

पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी तक वह खत ले जाने वाले रिटायर्ड लेफ्टीनेंट जनरल निर्भय शर्मा (Lieutenant general Nirbhay sharma) ने खत से लेकर सरेंडर (Surrender) करने तक के उस पूरे वाक्य को न्यूज18 में प्रकाशित किया गया है।

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नई दिल्ली. साल 1971 में भारत-पाकिस्तान (India-Pakistan) के बीच लड़ा गया युद्ध (War) कई दिन तक चला था, लेकिन 2 पैरा बटालियन ग्रुप के पहुंचने के बाद पाक सेना बांग्लादेश की राजधानी ढाका में चारों तरफ से घिर चुकी थी. इसी दौरान पाक सेना के लेफ्टीनेंट जनरल एएके नियाज़ी को एक खत भेजा गया था, लेकिन ढाका में यहां-वहां फैली पाक सेना (Pak Army) ने खत ले जाने वाले कैप्टन निर्भय और उनकी टीम पर ही हमला बोल दिया. किसी तरह से उस एक लाइन के खत को पाक सेना के अफसर तक पहुंचाया गया. और खत की उस लाइन को पढ़ते ही पाक सेना के 93 हज़ार अफसर और जवानों ने सरेंडर (Surrender) कर दिया.
The True Story of India's Decision to Release 93,000 Pakistani POWs After 1971  War
 भारतीय सेना चारों तरफ से ढाका को घेरे खड़ी थी.
रिटायर्ड लेफ्टीनेंट जनरल निर्भय शर्मा (Lieutenant general Nirbhay sharma) बताते हैं, ‘हम ढाका शहर के बाहर उसके बॉर्डर पर खड़े थे. भारतीय सेना चारों तरफ से ढाका को घेरे खड़ी थी. 16 दिसम्बर की सुबह मेजर जनरल जी. नागरा का एक मैसेज उनके एडीसी कैप्टन मेहता के मार्फत मिला. यह मैसेज हमारे सीओ कर्नल केएस. पन्नू के नाम आया था. मैसेज था कि एक खत जनरल नियाज़ी तक पहुंचाना है. सीओ साहब ने खत भेजने के लिए मुझे चुना. मुझे कैप्टन मेहता के साथ जाना था. सुबह 10.45 बजे मैं अपनी टीम के मेजर सेठी, लेफ्टीनेंट तेजेंदर और कैप्टन मेहता के साथ ढाका में दाखिल हो गया. यह पहला मौका था जब भारतीय सेना ढाका में घुस रही थी. हम एक जीप में सवार थे और सरेंडर का मैसेज ले जाते हुए इतिहास का हिस्सा भी बनने जा रहे थे.’
वह बताते हैं कि उस एक लाइन के खत में लेफ्टीनेंट जनरल नियाज़ी  के लिए लेफ्टीनेंट जनरल नागरा का यह मैसेज था, ‘My dear Abdullah, I am here. The game is up, I suggest you give yourself up to me and I will take care of you.’

Unloading of Pakistani POWs post 1971 Indo-Pak war of disintegration of  Pakistan & independence of Bangladesh (600 x 400) : MilitaryPorn
  • हम जब एक ब्रिज के पास पहुंचे तो हमारे ऊपर गोलियां दागी जाने लगीं. तब मैंने अपनी पूरी ताकत से चीखते हुए फायरिंग रोकने के लिए कहा. फायरिंग तो रुक गई, लेकिन उन्होंने हमारे हथियार छीन लिए. वो पाक सेना का एक जूनियर कमीशंड अफसर था. मैंने उसे चेतावनी भरे लहाजे में कहा कि अगर हमे हाथ भी लगाया तो उसके नतीजे ठीक नहीं होंगे.
  • भारतीय सेना ने ढाका को चारों ओर से घेर लिया है और उनका जनरल नियाज़ी सरेंडर करने को तैयार है.’ वह कहते हैं, ‘मैंने उसे उसके सीनियर को बुलाने के लिए कहा. तभी वहां उसका एक कैप्टन आ गया. मैंने उसे पूरी बातों के साथ खत के बारे में भी बताया. तब वो हमे अपने एक कमांडर के पास ले गया जिसने हमसे खत लिया और हमे कुछ देर रुकने के लिए कहा. करीब आधा घंटे बाद मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद हमारे सामने आए और जीप में बैठकर हमारे साथ चल दिए. जमशेद मेरे और मेजर सेठी के बीच में बैठे हुए थे. जमशेद खाकी ड्रेस में थे.’

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निर्भय शर्मा बताते हैं कि एक पाकिस्तानी जीप हमारे पीछे चल रही थी. हम वापस अपने ठिकाने पर जा रहे थे. एक बार फिर से हमारे ऊपर फायरिंग होने लगी. मेजर सेठी को पैर में गोली लगी और एक गोली तेजेंदर को भी लगी और वो वहीं शहीद हो गया. कुछ देर बाद हम अपने ठिकाने पर पहुंच चुके थे. जनरल नागरा कर्नल पन्नू के साथ वहीं थे. इस तरह से मेजर जनरल मोहम्मद जमशेद ने अपनी पिस्तौल जनरल नागरा को सौंप कर सरेंडर कर दिया.’

गौरतलब रहे कि बाद में कैप्टन निर्भय शर्मा लेफ्टीनेंट जनरल के पद तक पहुंचे. रिटायर्ड होने के बाद पहले अरुणाचल और फिर मिजोरम के गर्वनर भी रहे. साथ ही यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के मेम्बर भी रहे. और सबसे अहम बात यह कि जनरल शर्मा ने कश्मीर और नॉथ-ईस्ट में आतंकवाद के खिलाफ बहुत काम किया. वक्त-वक्त पर उनकी बहादुरी लिए उन्हें पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम और वीएसएम अवार्ड से भी नवाज़ा गया.
The mystery of India's 'missing 54' soldiers - BBC News

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