Farmer Protests: कुछ किसान नेताओं पर उठने लगे गंभीर सवाल, आंदोलन को नक्सली संगठन कर रहे हैं हाईजैक

पंजाब भाजपा के महासचिव सुभाष शर्मा ने जहां सीधे तौर आरोप लगाया कि किसान की आड़ में कुछ नक्सली संगठन सक्रिय है। वहीं बताया जा रहा है कि किसान संगठनों के बीच भी ऐसे लोगों से सतर्क रहने की अपील की जा रही है। आंदोलन में शामिल कुल 31 संगठनों में कुछ संगठनों को वास्तविक रूप से किसानों का प्रतिनिधि माना जा रहा है।

नई दिल्ली। कृषि कानूनों को निरस्त करने की जिद पर अड़े संगठनों की ओर से जिस तरह किसानों के हित से परे दूसरे मुद्दे भी जोड़े जा रहे हैं उसने न सिर्फ किसान संगठनों के अंदर बल्कि बाहर भी सवाल पैदा कर दिए हैं। यह पूछा जाने लगा है कि आखिर ऐसे संगठन किसानों के बीच क्या कर रहे हैं जो शरजील इमाम और उमर खालिद समेत भीमा कोरेगांव घटना में शामिल एलगार परिषद के आरोपियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं। इनमें से कुछ के खिलाफ पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज है। सवाल यह उठता है कि कहीं किसानों की अगुवाई कर रहे कुछ संगठनों की पृष्ठभूमि नक्सलवाद से तो नहीं जु़ड़ी है।

वाम विचारधारा से प्रेरित नेताओं और युवाओं को जेल से रिहा किए जाने की मांग

पंजाब भाजपा के महासचिव सुभाष शर्मा ने जहां सीधे तौर आरोप लगाया कि किसान की आड़ में कुछ नक्सली संगठन सक्रिय है। वहीं बताया जा रहा है कि किसान संगठनों के बीच भी ऐसे लोगों से सतर्क रहने की अपील की जा रही है। आंदोलन में शामिल कुल 31 संगठनों में कुछ संगठनों को वास्तविक रूप से किसानों का प्रतिनिधि माना जा रहा है। बताते हैं कि ये दल समाधान चाहते हैं, लेकिन बीकेयू हावी है। जबकि सच्चाई यह है कि बीकेयू (मान) 2019 चुनाव से पहले ऐसी ही मांगें करता रहा था। कृषि कानून से उनकी मांगें पूरी हुईं। लेकिन माहौल बदलते देख उसने भी सुर बदल लिया। बीकेयू उग्राहां सबसे ज्यादा उग्र है। इसी की ओर से गुरुवार को भारत के खिलाफ नारे लगाने वाले व अलग अलग धाराओं में बंद और वाम विचारधारा से प्रेरित नेताओं और युवाओं को जेल से रिहा किए जाने की मांग की थी। राजेवाल संगठन भी इसे लेकर असहज है।

किसान संगठनों की आड़ में राजनीति 

राजेवाल समूह के महासचिव ओंकार सिंह ने कहा- ‘इस विषय पर जरूरत होगी तो हम विचार करेंगे और फैसला लेंगे। हमारे ऊपर कोई खालिस्तान समर्थक या राजनीतिक होने का आरोप नहीं लगा सकता है।’ दरअसल, ओंकार की सतर्क आवाज और भाजपा के सुभाष शर्मा का सीधा आरोप इस ओर जरूर इशारा करता है कि किसान संगठनों की आड़ में राजनीति भी हो रही है। सुभाष शर्मा कहते हैं- ‘पिछले कुछ सालों से किसान संगठनों के नाम पर नक्सली संगठन खड़े हुए हैं जो अब आंदोलन को हाईजैक कर रहे हैं। किसानों को समझना चाहिए कि ऐसे लोग भावनाओं को भड़काकर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है।’

बीकेयू और कांग्रेस के बीच रिश्ते का एक ट्वीट भी चर्चा में है। 20 मार्च 2019 को किए गए ट्वीट में बीकेयू ने राहुल गांधी, रणदीप सुरजेवाला और जयराम रमेश को टैग किए है। इस ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा गया था और कहा गया था- जब राफेल का डाक्यूमेट चोरी हुई तब कौन सा चौकीदार ड्यूटी पर था? दरअसल, दिल्ली की सीमा पर चल रहे आंदोलन के बीच सक्रिय खुफिया विभाग ने भी सबकी पृष्ठभूमि की जांच परख तेज कर दी है।

सूत्रों के अनुसार, किसानों के बीच बैठे दर्शनपाल पीडीएफआइ के नेता हैं, जिसकी स्थापना 2006 में अन्य लोगों के साथ-साथ वरवरा राव ने की थी। वही वरवरा राव जिसकी रिहाई की मांग की जा रही है। बताया जाता है कि 2014 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने भी बताया था कि पीडीएफआइ वामपंथी माओवादी संगठन है और सक्रिय है। ध्यान रहे कि किसान संगठनों में शुरूआत में राजनीतिक दलों और मुद्दों से दूरी बनाकर रखी थी और इसीलिए उसे सहानुभूति मिलनी शुरू हुई थी लेकिन बीतते समय के साथ राजनीतिक चहलकदमी बढ़ने लगी। ऐसा नही हैं कि आंदोलन पर बैठे सभी संगठनों पर सवाल उठ रहे हैं। जो प्रोफाइल तैयार किया गया है कि उसमे बीकेयू राजेवाल, केएससी जैसे संगठनों का भी जिक्र है जो किसानों के बीच ही काम करते हैं और विवादों से परे रहे हैं। बीकेयू मान का भी जिक्र है जिसका कोई राजनीतिक गठजोड़ नहीं है लेकिन स्थानीय सिख नेताओं से रिश्ता है।

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