16वां दिन:किसानों का नया ऐलान- मांगें पूरी नहीं हुईं तो देशभर में ट्रेनें रोकेंगे, तारीख जल्द बताएंगे
नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन का आज 16वां दिन है। किसान नेता बूटा सिंह ने गुरूवार को कहा कि कानून रद्द करने को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ, इसलिए जल्द ट्रेनें रोकने की तारीख का ऐलान करेंगे। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि खेती राज्यों का विषय है, तो केंद्र इस पर कानून कैसे ला सकता है।
रेलवे ने पंजाब जाने वाली 4 ट्रेनें रद्द कीं
आज सियालदह-अमृतसर और डिब्रूगढ़-अमृतसर ट्रेनें रद्द की गई हैं। 13 दिसंबर को अमृतसर-सियालदह और अमृतसर-डिब्रूगढ़ ट्रेनें कैंसिल की गई हैं।
‘भगवान जाने कब हल निकलेगा’
किसान नेता शिवकुमार कक्का से पूछा गया कि हल कब निकलेगा तो उन्होंने कहा, “भगवान जाने कब ऐसा होगा। सर्दी और कोरोना के चलते हमें काफी दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन मांगें पूरी होने तक आंदोलन जारी रखेंगे।
सरकार और किसान बातचीत को राजी, दोनों को पहल का इंतजार
दोनों पक्षों को एक-दूसरे की पहल का इंतजार है। कृषि मंत्री ने कहा कि जब बातचीत हो रही है तो आंदोलन को बढ़ाने का ऐलान ठीक नहीं। उधर, किसानों का कहना है कि बातचीत का रास्ता बंद नहीं किया है, सरकार के दूसरे प्रपोजल पर विचार करेंगे।
कृषि मंत्री बोले- सरकार सुधार के लिए तैयार, किसान फैसला नहीं कर पा रहे
केंद्र ने किसानों को साफ संकेत दे दिए हैं कि कृषि कानूनों की वापसी मुश्किल है। अगर कोई चिंता है तो सरकार बातचीत और सुधार के लिए हमेशा तैयार है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि हमने किसानों से कई दौर की बातचीत की। उनके हर सवाल का जवाब लिखित में भी दिया, लेकिन किसान अभी फैसला नहीं कर पा रहे हैं और ये चिंता की बात है।
आंदोलन के बीच कोरोना का खतरा
किसान आंदोलन के बीच सिंघु बॉर्डर पर ड्यूटी कर रहे 2 IPS कोरोना पॉजिटिव आए हैं। इनके अलावा एक DCP और एक एडिशनल DCP भी संक्रमित हो गए हैं।
- पंजाब के कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने रिलायंस के पेट्रोल पंप, स्टोर्स और अडानी ग्रुप के एग्रो आउट्लेट्स का बहिष्कार किया
- किसानों ने अंबानी के पुतले जलाए, भारी संख्या में जियो के सिम तोड़ी और अपने नंबर अन्य नेटवर्क में पोर्ट करवाए हैं
केंद्र से आया प्रस्ताव ठुकराने के साथ ही किसानों ने अदाणी-अंबानी के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया है। ‘अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति’ की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि वे ‘सरकार की असली मजबूरी, अदाणी-अंबानी जमाखोरी’ जैसे नारों को अब जन-जन तक पहुंचाने का काम करेंगे और इन दोनों कॉर्पोरेट घरानों के तमाम प्रोडक्ट्स का बॉयकॉट पूरे देश में किया जाएगा।
ये पहली बार नहीं है, जब इस किसान आंदोलन में ये दोनों कॉर्पोरेट घराने प्रदर्शनकारियों के निशाने पर आए हैं। करीब तीन महीने पहले जब यह आंदोलन पंजाब और हरियाणा तक सीमित था, तब भी सरकार के साथ ही अदाणी-अंबानी ग्रुप के खिलाफ प्रदर्शन जारी ही चुके थे। प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा निशाना साधते हुए ‘धर्म दा न साइंस दा, मोदी है रिलायंस दा’ जैसे नारे तब भी पंजाब के अलग-अलग शहरों में खूब गूंज रहे थे।
पंजाबी में कहे गए इस नारे का मतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी न तो धर्म से सरोकार रखते हैं और न ही विज्ञान से, वे सिर्फ रिलायंस (कॉर्पोरेट) से सरोकार रखते हैं।
इस नारे के साथ ही सोशल मीडिया से लेकर पंजाब की सड़कों पर भी जो इसी तरह का दूसरा नारा खूब चर्चित हो रहा था, उसमें काफी रचनात्मक तरीके से कहा गया था कि मौजूदा सरकार को सिर्फ एक ही सरगम सुनाई देती है जो कहती है, ‘सा रा ध न अं बा नी का, ध न सा रा अ दा णी का’।
‘सरकार पूरे देश को कॉर्पोरेट के हवाले करने की दिशा में काम कर रही है’
इन दोनों कॉर्पोरेट घरानों का ये विरोध सिर्फ नारों और सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि पंजाब के कई शहरों में प्रदर्शनकारियों ने रिलायंस के पेट्रोल पंप से रिलायंस के तमाम स्टोर्स और अडानी ग्रुप के एग्रो आउटलेट्स का बहिष्कार किया है, मुकेश अंबानी के पुतले जलाए हैं और भारी संख्या में जियो के सिम तोड़े हैं और अपने नंबर किसी अन्य नेटवर्क में पोर्ट करवाए हैं। इसी तरह के विरोध को अब पूरे देश में फैलाने की बात किसान कर रहे हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि किसान तमाम कॉर्पोरेट घरानों में से सिर्फ अदाणी और अंबानी ग्रुप को ही निशाना क्यों बना रहे हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल कहते हैं, ‘ये सरकार पूरे देश को कॉर्पोरेट के हवाले करने की दिशा में काम कर रही है। अदाणी-अंबानी कॉर्पोरेट के सबसे बड़े चेहरे हैं जो पिछले थोड़े ही समय में बहुत तेजी से आगे बढ़े हैं और मुख्य कारण यही है कि राज सत्ता और पूंजी साथ-साथ चल रहे हैं। ये दोनों ही ग्रुप मौजूदा सत्ता के बेहद करीब हैं और ये किसी से छिपा नहीं है।
इसके अलावा इन दोनों घरानों का नाम प्रतीकात्मक रूप से भी इस्तेमाल होता है। हमने इनके अलावा अन्य कॉर्पोरेट घरानों का भी विरोध किया है जिसमें Essar ग्रुप जैसे नाम भी हैं। उनके पेट्रोल पंप का भी बहिष्कार पंजाब में हुआ है। ये विरोध किसी व्यक्ति या एक-दो कॉर्पोरेट घरानों का नहीं बल्कि पूरे कॉर्पोरेट के हवाले जाते संसाधनों का विरोध है। इसलिए हमने सबसे से मांग की है कि कॉर्पोरेट घरानों के तमाम उत्पादों और सेवाओं का बहिष्कार किया जाए।’
‘जो भी जनता का शोषण कर रहा है हम उसके खिलाफ हैं’
किसानों के दूसरे बड़े नेता गुरनाम सिंह चढूनी अदाणी-अंबानी के खिलाफ विरोध तेज किए जाने के बारे में कुछ और कारण भी गिनाते हैं। वे कहते हैं, ‘इस देश में पहले लोकतंत्र का मतलब होता था लोगों का राज, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए। अब ये हो गया है कॉर्पोरेट का राज, कॉर्पोरेट के द्वारा, कॉर्पोरेट के लिए। इस तरह से एक आदमी या चंद लोग ही पूरे देश को हड़प रहे हैं और इसी के खिलाफ हमारा विरोध प्रदर्शन है।’
चढूनी मानते हैं कि अदाणी-अंबानी का नाम मुख्यत: प्रतीक के तौर पर लिया जा रहा है क्योंकि वे इस दौर में कॉर्पोरेट के सबसे बड़े चेहरे हैं। वे कहते हैं, ‘हमारी किसी से व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है। ये आंदोलन बस जनता बनाम कॉर्पोरेट का है और जो भी जनता का शोषण कर रहा है हम उसके खिलाफ हैं।’
किसान नेता डॉक्टर दर्शन पाल और गुरनाम सिंह चढूनी दोनों ही अदाणी और अंबानी ग्रुप के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को प्रतीकात्मक बताते हैं। लेकिन इस आंदोलन के एक अन्य बड़े किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल मानते हैं कि अडानी-अंबानी के विरोध के कई कारण और भी हैं। वे कहते हैं, ‘विरोध में अडानी-अंबानी का ही नाम इसलिए आ रहा है क्योंकि असल में ये सरकार हो वही दोनों चला रहे हैं।
आप बहुत बारीकी में न भी जाएं तो भी देखें कि आज तेल का सेक्टर अंबानी के पास है, संचार उनके पास है, डिफेंस उनके पास है और उनके मुकाबले कोई दूसरा नहीं है। इसी तरह से कोयला अदाणी के पास है, रेलवे में अदाणी लगातार मजबूत हो रहा है, एयरपोर्ट उन्हें मिल रहे हैं. एक-एक करके सारे सेक्टर इन्हीं के पास जा रहे हैं और यही दोनों सरकार को निर्देश देते हैं। सरकार इन्हीं के हिसाब से चलती है इसलिए हमने इन दोनों के खिलाफ ऐसे फैसले लिए हैं।’
अदाणी और अंबानी ग्रुप का पूरी तरह बहिष्कार करने के पीछे कुछ अन्य कारण बताते हुए बलबीर राजेवाल कहते हैं, ‘लोगों को कॉर्पोरेट का ये खेल भी समझना होगा। नेता, अफसर और कॉर्पोरेट मिलकर सारे देश को लूट रहे हैं। इनका अपना पैसा कुछ नहीं होता।
अदाणी और अंबानी जैसे घराने कंपनी फ्लोट करते हैं और हजारों-करोड़ की पब्लिक मनी जमा कर लेते हैं, उसी पूंजी के आधार पर फिर बैंक से करोड़ों का लोन उठाते हैं और फिर उसे चुकाने से मुकर जाते हैं जो पैसा डूबता है वो जनता का है। फिर ये लोन एनपीए घोषित हो जाता है, बैंक को बचाने के लिए सरकार को खर्च करती है वो सारा जनता का पैसा होता है।
ये लड़ाई इसलिए सिर्फ किसानों की नहीं, कॉर्पोरेट के इस चंगुल से पूरे देश को बचाने की लड़ाई है।’