पंजाब के पूर्व सेहत मंत्री व विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर सतपाल गोसाईं का मंगलवार को निधन हो गया। 86 वर्षीय गोसाई की तबीयत बीते कुछ दिनों से खराब चल रही थी और वह लुधियाना के सीएमसी अस्पताल में उपचाराधीन थे। सतपाल गोसाईं का निधन भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं है। उनकी गिनती भाजपा के दिग्गज नेताओं में होती थी।
पंजाब भाजपा के वरिष्ठ नेता सतपाल गोसाईं को राजनैतिक जगत में सभी स्नेह एवं आदर से ‘शेर-ए-पंजाब’ कहते थे। 2 सितंबर 2019 को जब उन्होंने अपना 85वां जन्मदिन मनाया था। इस उपलक्ष्य में भाजपा कार्यकर्ताओं एवं पारिवारिक सदस्यों ने किदवई नगर स्थित आर्य समाज मन्दिर में उनकी दीर्घायु के लिए हवन करवाया था।
अब उनके निधन के बाद शोक संवेदनाएं व्यक्ति करते हुए इलाके के गणमान्य लोगों ने कहा कि गोसाईं जी जहां बाल्यकाल से समाजसेवा में जुट गए थे, वहीं उन्होंने पूरी उम्र एक मार्शल की तरह व्यवस्था से युद्ध किया और समाज के हर तबके के हकों की लड़ाई लड़ी। इसके लिए उन्हें (दरी वाला लीडर) भी कहा जाता है। इसके फलस्वरूप पहले जनसंघ फिर भाजपा को लुधियाना में स्थापित करने में उनके द्वारा किये गए संघर्ष का बड़ा योगदान रहा है।
यह है गोसाईं का राजनैतिक सफर
सन 1980 में भाजपा की स्थापना से लेकर 2012 तक 6 विधानसभा चुनाव लड़कर 3 में जीत हासिल कर उन्होंने पार्टी में तेजी से पहचान बनाई थी। वहीं, पार्टी संगठन में जब वोटिंग से जिला प्रधान चुनने की शुरुआत हुई थी। भाजपा की स्थापना के साथ ही पार्टी के इस मास-लीडर ने चुनावी-मैदान संभाला था। फिर करीब 4 साल पहले 2016 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने के साथ कई रिकॉर्ड भी बनाए, जब भाजपा के प्रांतीय प्रवक्ता अमित गोसाईं नामक पोते को अपने साथ कांग्रेस में ले गए। दरअसल उस वक्त नाराजगी का कारण यह था कि बुजुर्ग गोसाईं संग उनके पोते अमित और सियासी-शागिर्द नीटू भी लुधियाना सेंट्रल सीट से टिकट के दावेदार थे। अमित उनकी सियासी विरासत संभाल रहे थे, जबकि कौंसलर नीटू उनके चुनाव में बूथ-बूथ जाकर मोर्चा संभालते थे। इस बार जब टिकट लेने की बारी आई तो तीनों एक ही सीट से दावेदारी ठोक एक-तरह से आमने-सामने थे, मगर पार्टी को अलविदा कहने के वक्त तीनों एक हो गए।