बठिंडा. बठिंडा के सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों व एक महिला को बिना जांच एचआईवी संक्रमित खून लगने के मामले में मंगलवार को पंजाब राज्य बाल अधिकार रक्षा आयोग ने बठिंडा पुलिस के अधिकारियों को तलब किया था जिसमें थाना कोतवाली पुलिस के इंस्पेक्टर व प्रभारी दविंदर सिंह व सिविल अस्पताल चौकी इंचार्ज रमन कौर ने आयोग के समक्ष अपने बयान दर्ज करवाएं। इसमें आयोग ने जिला पुलिस से पूछा कि उन्होंने अक्तूबर माह में 8 साल के बच्चे व महिला का संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले में विभाग की तरफ से आरोपी बनाए गए तीन लोगों में से दो के खिलाफ आज तक किसी तरह की कारर्वाई क्यों नहीं की है वही सिविल अस्पताल में पूर्व बीटीओ बलदेव सिंह रोमाणा की तरफ से जांच के दौरान 600 कीटों को बाहर से मंगवाकर स्टाक में रखने के मामले में आज तक जांच का दायरा क्यों नहीं बढाया गया व इसमें दोषियों की तलाश कर उनके खिलाफ कारर्वाई क्यों नहीं की गई।
इन तमाम सवालों के जबाब में पुलिस ने तर्क दिया कि सिविल अस्पताल में अब तक चार थेलेसीमिया पीड़ित बच्चों व एक महिला को संक्रमित रक्त चढ़ाने का मामला सामने आया है इसमें सिविल सर्जन व एसएमओ की तरफ से जिन मामलों में कारर्वाई रिपोर्ट पुलिस के पास पेश की गई व जिन लोगों के खिलाफ कानूनी कारर्वाई करने के लिए कहा गया उसमें पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है। ब्लड बैंक में तैनात बलदेव सिंह रोमाणा के अलावा अन्य दो अधिकारियों पर कानूनी कारर्वाई करने की रिपोर्ट सिविल अस्पताल प्रबंध उन्हें देगा तो पुलिस इसमें मामला जरूर दर्ज करेगी। वही पुलिस सिविल अस्पताल प्रबंधन ने दोनों मामलों की जांच रिपोर्ट मांगेगी व इसमें जांच कर बनती कारर्वाई की जाएगी।
26 नवंबर 2020 को पंजाब राज्य बाल अधिकार रक्षा आयोग के चेयरमैन रजिंदर सिंह ने अपनी पड़तालियां रिपोर्ट में सिविल अस्पताल के अधिकारियों व ब्ल़ड बैंक में तैनात कर्मियों की लापरवाही को उजागर किया था व इसमें अधिकारियों को ताड़ना कर मामले की विस्तृत रिपोर्ट 20 दिनों में देने के लिए कहा था। इसमें आयोग के समक्ष सिविल अस्पताल प्रबंधन ने 17 दिसंबर तक दोनों पक्षों में रिपोर्ट तैयार करने के साथ इसमें दोषी लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ कानूनी कारर्वाई करनी है। इसी कड़ी में गत दिनों सिविल सर्जन अमरिंक सिंह सिद्धू ने भी सिविल अस्पताल ब्लड बैंक का दौरा कर वहां रिकार्ड की जांच की थी। वही ब्लड बैंक में अतिरिक्त कर्मी की तैनाती करने के साथ सुरक्षा के इंतजाम भी किए गए है। इससे पहले लगातार आ रहे लापरवाही के मामलों को रोकने के लिए सीसीटीवी कैमरों को भी ब्लड बैंक की लुकेशन में लगाया जा चुका है।
इसी तरह विश्व एड्स दिवस पर पंजाब एड़स कंट्रोल सोसायटी के अधीन काम कर रहे कर्मियों ने मंगलवार को चंडीगढ़ में प्रदर्शन कर जहां वेतन बढ़ोतरी की मांग रखी वही बठिंडा में चार टेक्निसियनों पर विभागीय कारर्वाई करने का मुद्दा उठाया। इसमें टैक्नीसियनों ने 7 नवंबर को सिविल अस्पताल में एक 14 साल के बच्चे को संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले में निष्पक्ष जांच करवाने व उनका पक्ष रखने की मांग भी रखी। सेहत मंत्री ने कर्मियों को आश्वासन दिया है कि वह इस मामले में रिपोर्ट तलब कर जरूरत पड़ने पर मामले की फिर से जांच करवाने की हिदायत देंगे।
बठिंडा के एसएसपी भुपिंदरजीत सिंह विर्क ने कहा कि बाल सुरक्षा आयोग ने पुलिस से सिविल अस्पताल में संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले की रिपोर्ट मांगी थी इसमें उनके दो अधिकारी आयोग के समक्ष पेश हुओ है व उन्होंने आयोग की तरफ से जताई आपत्ति पर अपना जबाव दायर किया है। इसमें ब्लड बैंक कर्मियों पर कारर्वाई व ब्लड टेस्टिंग कीट बाहर से मांगवाने सहित कुछ सवालों के जबाव में पुलिस ने सिविल अस्पताल प्रबंधन से रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है ताकि अगली बनती कारर्वाई को अमल में लाया जा सके।
वाद विवाद के बीच ब्लड बैंक मेें रक्त की कमी से परेशान हो रहे लोग
बाद विवादों में आने तथा इस मामले में अकेले कांट्रेक्ट कर्मियों को बलि का बकरा बनाने के बाद सेहत यूनियनों का विरोध झेल रहे सेहत विभाग को शायद कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो, लेकिन सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक ने इसका खामियाजा भुगतना शुरू कर दिया है। इस मामले से बुरी तरह आहत हुए एनजीओ यानी समाजसेवी संस्थाओं ने पहले ही खूनदान बंद कर दिया था तथा चंद दिनों पहले थैलेसीमिया एसोसिएशन के प्रधान पर डाक्टरों द्वारा पुलिस केस दर्ज करवाने ने आग में घी डाल दिया है जिससे ब्लड बैंक में खून की कमी का संकट गहरा गया है तथा मात्र 65 यूनिट रक्त ही बाकी बचा है। नन्हें बच्चों की जिंदगी से हुए इस खिलवाड़ ने रेगुलर खूनदानियों को इस कदर झकझोर दिया है कि उन्होंने सरकारी ब्लड बैंक से ही किनारा कर लिया है। बठिंडा में 25 साल से खूनदान की पुरोधा रही यूनाइटेड वेलफेयर सोसायटी के प्रधान विजय भट्ट, जो इस खुलासे से बेहद आहत हैं। उन्होंने कहा कि जिंदगी बचाते खून से कभी इंसानी जिंदगी भी छीनी जाएगी, देखकर अब खूनदान की हिम्मत जवाब दे गई है। गौरतलब है कि लॉकडाउन में ब्लड बैंक खाली होने पर अस्पताल अथॉरिटी की एक अपील पर ब्लड बैंक भर दिया गया था, लेकिन अब एचआईवी विवाद के बाद लॉकडाउन से भी खराब हालात यहां हो रहे हैं। जिसका खामियाजा मरीज भुगत रहे हैं।
समाजसेवक आहत : कहा-दाग जल्द हटने वाला नहीं
खूनदान ही त्याग दिया: भट्ट
बठिंडा में 25 साल पहले खूनदान की लहर शुरू करने वाले व एक साल में 100 कैंप तक लगाने वाले एनजीओ यूनाइटेड वेलफेयर सोसायटी के प्रधान विजय भट्ट एचआईवी खुलासे से बेहद व्यथित हैं। बकौल विजय, जिस तरह से छोटे बच्चों को एचआईवी रक्त चढ़ाया गया है, उससे खूनदान ही छूट गया है। जो दाग इस ब्लड बैंक के माथे लगा है, वह कभी हटने वाला नहीं है।
सुधार के बाद खूनदान: रमेश
आसरा वेलफेयर सोसायटी के प्रधान रमेश मेहता कहते हैं कि जब तक ब्लड बैंक में ट्रेंड स्टाफ नहीं लगाया जाता और कमियां नहीं सुधारी जातीं, तब तक उनका कोई डोनर सरकारी ब्लड बैंक में खूनदान नहीं करेगा। वह इस समय निजी ब्लड बैंक में खूनदान कर रहे हैं।
डोनरों में डर व गुस्सा : आशीष
श्री गणेश वेलफेयर सोसायटी के प्रधान आशीष बांसल ने कहा कि जब से ब्लड बैंक में थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी पॉजीटिव खून चढ़ाने का मामला सामने आया है, तब से डोनरों में डर बन गया है। डोनर खूनदान करने से कतरा रहे हैं। दो दिन पहले सरकारी अस्पताल में दाखिल एक मरीज के लिए उन्होंने एक ब्लड डोनर से संपर्क किया, जिसने खूनदान से साफ मना कर दिया।
जागरूक करे विभाग: बीरबल
डोनर बीरबल बांसल कहते हैं कि एचआईवी मामले के खुलासे से खूनदानी ब्लड बैंक में नहीं जा रहे हैं। सेहत विभाग ब्लड बैंक में सुधार करे और जो लोगों के मन में डर व गुस्सा है, उसे दूर करें। जब तक यह नहीं होता, कोई खूनदान करने नहीं आएगा।
जिंदा रहने को दाखिल मरीज खरीद रहे खून
सरकारी अस्पताल में दाखिल मरीजों, घायलों के अलावा थैलेसीमिया पीड़ित व कैंसर के मरीजों के अलावा डिलीवरी के लिए दाखिल गर्भवती महिलाओं को ब्लड बैंक से निशुल्क खून मिलता है, लेकिन पिछले 15-20 दिनों से सरकारी अस्पताल में दाखिल मरीजों को खून न मिलने पर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ब्लड देते समय ब्लड बैंक डोनर की डिमांड करता है, लेकिन डोनर नहीं होने की सूरत में मरीजों को खून लेने को निजी ब्लड बैंकों में जाना पड़ रहा है जहां होल ब्लड के 1200 रुपए वसूल तक वसूले जा रहे हैं जबकि सरकारी ब्लड बैंक से यह मरीज को 100 रुपए में मिल जाता है।
प्रशासन से परमिशन लेकर कैंप लगाएंगे
ब्लड बैंक में खून की बेहद कमी चल रही है। इसे पूरा करने के लिए ब्लड बैंक में सुधार किए जा रहे हैं। खून का स्टॉक पूरा करने के लिए आने वाले समय में प्रशासन से परमिशन लेकर खूनदान कैंपों का आयोजन किया जाएगा। जल्द ही ब्लड बैंक में सुधार का काम पूरा कर लिया जाएगा। डा. मनिंदरपाल सिंह, एसएमओ
एनजीओ के दम पर चलता था ब्लड बैंक, हालात बिगड़े
सरकारी ब्लड बैंक संस्थाओं की बदौलत चलता था, लेकिन आज समाजसेवी संस्थाओं ने ब्लड बैंक की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगने के बाद खूनदान का बायकाट कर दिया है तथा कहा कि जब तक काम में पूरी पारदर्शिता नहीं होती, रक्तदान शुरू होना संभव नहीं है। एचआईवी संक्रमण मामले से पहले ब्लड बैंक से रोजाना 25 से 30 यूनिट रक्त रोजाना जारी होता था, जो अब 3 से 4 यूनिट तक सिमट गया है। ब्लड बैंक के नए प्रबंधक बैंक में खून की कमी पूरा करने को संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अधिकतर एनजीओ ने खूनदान से इंकार कर दिया है। इमरजेंसी के लिए एबी पॉजिटिव का एक यूनिट बचा है जबकि प्रत्येक ग्रुप के इमरजेंसी के लिए कम से कम 15 यूनिट होने जरूरी हैं।