MSP पर लिखित गारंटी क्यों चाहते हैं किसान? जानिए क्या हैं उनकी चिंताएं
कृषि कानून के खिलाफ किसानों के आंदोलन का मुख्य मुद्दा MSP से जुड़ा है. किसान MSP की गारंटी को कानून का हिस्सा बनाना चाहते हैं, लेकिन सरकार की ओर से सिर्फ भरोसा दिया जा रहा है.
नई दिल्ली। किसानों द्वारा कृषि कानून के विरोध में जो प्रदर्शन किया जा रहा है, वो अभी भी जारी है. केंद्र सरकार की ओर से अब जाकर बातचीत की पहल की गई है, लेकिन उससे पहले ही किसान संगठन अपना रुख साफ कर चुके हैं. किसानों का कहना है कि MSP और मंडी के मुद्दे पर उन्हें लिखित गारंटी चाहिए. किसान संगठनों को डर है कि नया कानून जैसे ही जमीन पर उतरेगा, MSP धीरे-धीरे खत्म होने लगेगी. यही कारण है कि MSP हमेशा के लिए बनी रहे, वो इस बात को कानून में शामिल करवाना चाहते हैं.
आखिर क्या है किसानों का डर?
किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र द्वारा लागू किया गया कानून जब असर दिखाएगा तो APMC एक्ट कमजोर होगा, जो मंडियों को ताकत देता है. ऐसा होते ही MSP की गारंटी भी खत्म होने लगेगी जिसका सीधा नुकसान भविष्य में किसान को उठाना होगा. यही कारण है किसान चाहते हैं कि MSP को कानून का हिस्सा बना दिया जाए.
किसानों की ओर से इसके लिए टेलिकॉम कंपनियों का उदाहरण दिया गया. किसानों के मुताबिक, शुरुआत में टेलिकॉम कंपनियों ने मुफ्त का डाटा दिया और जब लोग उसके आदि बन गए तो दाम बढ़ा दिए. ऐसा ही उनके साथ होने जा रहा है, कानून लागू होने के बाद कॉरपोरेट खरीदार अधिक दाम पर फसल ले सकते हैं लेकिन एक-दो साल बाद उनपर MSP का जब कोई दबाव नहीं होगा तो वो मनचाहा दाम लेंगे. और तब किसान के पास कोई ऑप्शन नहीं होगा.
इसके साथ ही मंडी सिस्टम को लेकर भी किसानों के दिल में डर है. अगर मंडी से बाहर खुले तौर पर फसल खरीद-बेचने की छूट होगी तो मंडियां कमजोर होंगी जिससे आगे जाकर उन्हें बंद करने के लाले पड़ सकते हैं. किसानों का कहना है कि मंडी का मजबूत होना जरूरी है, क्योंकि मौजूदा वक्त में वो अपनी जरूरत के हिसाब से आढ़तियों से पैसा ले लेते हैं, चाहे फसल आने में वक्त हो. ऐसे में किसानों को मदद होती है, लेकिन कॉर्पोरेट के साथ इस तरह के रिश्ते बनाना आसान नहीं होगा.
एक किसान ने कहा कि कुछ वक्त पहले उन्होंने 200 क्विंटल फसल बेची, उन्होंने आड़ती को फसल दी और 1888 प्रति क्विंटल के हिसाब से उन्हें पैसा मिल गया. लेकिन अब मुझे ये भरोसा नहीं है कि क्या अगली बार MSP के हिसाब से पैसा मिलेगा या नहीं, इसी चिंता को दूर करने की जरूरत है.
क्या कह रही है सरकार?
किसानों की मुख्य चिंता MSP को लेकर है, सरकार भी लगातार किसानों को विश्वास दिला रही है कि MSP खत्म नहीं होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत अन्य मंत्री-नेता इसपर विश्वास दिला चुके हैं, लेकिन किसान नहीं मान रहे हैं. किसानों का सीधा कहना है कि अगर MSP खत्म नहीं करनी है तो सरकार इसे कानून में शामिल कर दे, लेकिन सरकार उसपर राजी नहीं है. पीएम मोदी ने सोमवार को अपने संबोधन में भी कहा कि उनकी सरकार के कार्यकाल में मंडी और MSP सिस्टम को मजबूत करने का काम हुआ है, ऐसे में वो क्यों इन्हें खत्म करेंगे.
MSP क्या है ?
आपको बता दें कि किसानों को उनकी फसलों की लागत से ज्यादा मूल्य मिलने की गारंटी हो इसके लिए सरकार देशभर में अनाज, तिलहन, दलहन आदि की मुख्य फसलों के लिए एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करती है. खरीदार नहीं मिलने पर सरकार अपने खरीद केंद्रों के माध्यम से MSP पर किसान से फसल खरीद लेती है. MSP निर्धारित करते वक्त कृषि पैदावार की लागत, मूल्यों में परिवर्तन, मांग-आपूर्ति जैसी कई बातों का ध्यान रखा जाता है. यही कारण है कि किसानों की चिंताएं कम होती हैं और उन्हें नुकसान नहीं उठाना होता है.
किसान आंदोलन: आज सरकार से बात करेंगे कुल 32 संगठनों के प्रतिनिधि, जानें कौन-कौन शामिल?.
कृषि कानूनों के मसले पर किसानों का प्रदर्शन जारी है, दिल्ली-एनसीआर पर पिछले एक हफ्ते से इसका असर पड़ रहा है. इस बीच आज भारत सरकार और किसानों के बीच सुलह को लेकर चर्चा होनी है. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने दोपहर तीन बजे किसान संगठनों को वार्ता के लिए बुलाया है, ये बातचीत दिल्ली के विज्ञान भवन में होगी.
जानकारी के मुताबिक, जिन किसान संगठनों से सरकार ने कृषि कानून के मसले पर पहले भी बात की है उन्हीं संगठनों को आज की वार्ता के लिए न्योता दिया गया है. इस दौरान कुल 32 प्रतिनिधि कृषि मंत्री के साथ वार्ता करेंगे.
पंजाब किसान संघर्ष कमेटी के सुखविंदर का कहना है कि देश में किसानों के करीब 500 से अधिक संगठन हैं, लेकिन सरकार ने कुल 32 को न्योता दिया है. ऐसे में अगर सरकार सभी संगठनों को नहीं बुलाती है, तो हम नहीं जाएंगे.
कृषि मंत्रालय की ओर से किसान संगठनों को जो चिट्ठी लिखी गई है, उसमें कहा गया है कि भारत सरकार ने पहले भी आप से दो बार बातचीत की है, ऐसे में उसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए एक दिसंबर को दोपहर तीन बजे आगे की बात होगी. जो संगठन पहले शामिल हुए थे, वे ही दोबारा भी शामिल हों.
किसान संगठनों के ये प्रतिनिधि होंगे शामिल:
आपको बता दें कि पहले सरकार ने बातचीत के लिए तीन दिसंबर का वक्त तय किया था, लेकिन किसानों के बढ़ते प्रदर्शन के कारण सरकार को झुकना पड़ा और जल्द बातचीत बुलानी पड़ी. किसानों का विरोध दिल्ली के चारों ओर हो रहा है, कई बॉर्डर बंद हैं और जो खुले हैं वहां जाम की स्थिति है.
कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे हजारों किसानों के बीच कंधे से कंधा मिलाकर एक बड़ा समूह महिला किसानों का भी सड़कों पर है। पंजाब की जुझारू महिला किसान बच्चों के साथ ट्राली पर बैठकर दिल्ली की दूरी नाप रही हैं। कुछ दिल्ली तक पहुंच गयी हैं और कुछ हरियाणा और पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में डटी हुई हैं। इनके बुलंद हौसलों के आगे झुकमे हुए आख़िरकार दिल्ली पुलिस ने बुराड़ी के निरंकारी मैदान में शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने की इजाजत दे दी है। ये किसान दिल्ली तक न पहुंच सकें इसके लिए जगह-जगह बैरिकेटिंग लगाई गयीं। सड़क पर कई जगह गड्ढे खोदे गये, बड़े-बड़े पत्थर रखकर इनका रास्ता रोकने की पूरी कोशिश की गयी। इतना ही नहीं प्रोटेस्ट के दूसरे दिन 27 नवंबर को कई जगह किसानों पर आंसू गैस के गोले दागे गये। पानी की बौछारे मारी गईं, लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में किसान बैरिकेड्स् तोड़कर, तमाम मुश्किलों से जूझते हुए दिल्ली पहुंचने में सफल रहे।