Bathinda/ ब्लड बैंक की जांच करने वाली आथार्टी डेढ़ माह से गायब, एक के बाद एक हो रही लापरवाही

-ब्लड बैंक में कर्मचारियों की स्थिति, अनुभव, स्टाफ, साधनों को लेकर नहीं की गई है जांच, जांच समय पर होती तो लापरवाही से बचा जा सकता था -अब सिविल अस्पताल प्रबंधन ने फिर से दो अनट्रेड स्टाफ को ब्लड बैंक में किया तैनात

बठिंडा. सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक में चार बच्चों सहित पांच लोगों को संक्रमित रक्त चढ़ाने के मामले में अधिकारियों की कारगुजारी पर सवाल उठने शुरू हो गए है। अब तक चार थेलेसीमिया पीड़ित बच्चों को एचआईवी पोजटिव रक्त चढ़ाने की पुष्टी हो चुकी है जबकि सेहत विभाग ने केवल दो मामलों की ही जांच शुरू की है। इसमें भी जांच का दायरा विवादों के घेरे में आया हुआ है। अक्तूबर माह में बच्चों को रक्त चढाने में तीन कर्मियों को दोषी माना गया लेकिन कारर्वाई के नाम पर तीनों को निलंबित तो कर दिया लेकिन आपराधिक मामला केवल एक कर्मी पर दर्ज हुआ वही सात नवंबर को आए केस में चार कर्मियों पर कारर्वाई की सिफारिश हुई लेकिन इसे लेकर भी अस्पताल के ही कर्मचारी संगठनों ने सवाल उठाते अधिकारियों को भी जांच के दायरे में लाने की मांग की है।

फिलहाल सेहत विभाग ने सात नवंबर को घटित घटना में एड्स कंट्रोल सोसायटी के अधीन काम करने वाले कर्मी अजय शर्मा व जगदीप को चंडीगढ़ तलब किया है जबकि दो अन्य कर्मी गुरदीप सिंह व गुरदीप घुम्मन जो ठेके पर भर्ती है तो निलंबन का आदेश दिया है। इस पूरे मामले में दूसरा सवाल यह उठता है कि ब्लड बैंक संचालन, लाइसेंस व प्रबंधन की जांच का जिम्मा ‘ड्रग कंट्रोलर एंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी’ के पास होता है। इसका काम है कि ब्लड बैंक को लाइसेंस जारी करने के बाद वहां मिलने वाली सुविधा, तैनात कर्मचारियों के अनुभव व हासिल की गई ट्रेनिंग व काबलियत के साथ साधनों की समय-समय पर जांच करे।

अगर इसमें कोई कमी है तो उसके बारे में ब्लड बैंक आथार्टी को नोटिस जारी कर समय दे व समय पर कमियां पूरी नहीं होने पर लाइसेंस रद्द करने की प्रक्रिया अमल में लाई जाती है। फिलहाल सिविल अस्पताल में ब्लड बैंक में पिछले डेढ़ माह से लगातार लापरवाही हो रही है व कहा जा रहा है कि अनट्रेड स्टाफ से काम लिया जा रहा है व उनके पास जरूरत अनुसार साजों सामान व जांच के लिए मशीनरी नहीं है। इसके बावजूद ड्रग कंट्रोलर की तरफ से ब्लड बैंक में जाकर जांच करना अनुचित नहीं समझा गया। अगर उक्त जांच समय पर होती व इमानदरी से पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाता तो उक्त लापरवाही सामने ही नहीं आती। अब तीसरा सवाल उठता है कि ड्रग कंट्रोलर को काम के प्रति जबावदेह बनाने का काम किसका है। इसमें भी सेहत विभाग के आला अधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेवार है। अगर उन्होंने मशीनों को समय पर ठीक करवाया होता व पहली लापरवाही के बाद ही समुचित कदम उठाते तो चार लापरवाही इस तरह से नहीं होती। इसमें सिविल सर्जन से लेकर एसएमओ व ब्लड बैंक इंचार्ज ने सीधे तौर पर नियमों की अवहेलना की व ड्रग कंट्रोलर अपनी जिम्मेवारी से भागते रहे।
अब पिछले डेढ़ माह में घटित घटनाक्रम के बाद सेहत विभाग के अधिकारी कितने सतर्क हुए इसका पता इस बात से लगता है कि प्रतिदिन सिविल अस्पताल में स्थित लैब में जहां 350 लोगों की टेस्टिंग विभिन्न बीमारियों की जांच के लिए होती है वहां से ब्लड बैंक संबंधी दो अनट्रेड कर्मियों को ब्लड बैंक में नियुक्ति दी गई है। इसमें अनमोलजीत व सुरिंदर कौर को ब्लड बैंक में ड्यूटी ज्वाइन करने की हिदायत दी है जबकि इन दोनों लोगों के पास ब्लड बैंक की टेस्टिंग का कोई अनुभव नहीं है। इससे लगता है कि सेहत विभाग पहले घटित मामलों से किसी तरह का सबक नहीं लेना चाहता है या फिर उसकी मजबूरी बन गई है कि वह अनट्रेड स्टाफ को ही यहां तैनात करे व फिर से लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने का सिलसिला चले व जांच के नाम पर फाइलों को फिर से लटका दिय़ा जाए। फिलहाल इस मामले में जेएलए जिला ड्रग कंट्रोल विभाग के अधिकारी अमनदीप वर्मा का कहना है कि वह घर में नवजन्मे बच्चे के लिए कुछ दिनों से जरुरी छुट्टी पर है इसमें दफ्तर जाने के बाद ही मामले के बारे मं सही जानकारी दे सकते है कि ब्लड बैंक में जांच कब हुई व इसमें क्या कमियां पाई गई थी।

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