पाकिस्‍तान में सेना और पुलिस आमने-सामने आने से गृहयुद्ध जैसे हालात, बलूचिस्‍तान में हाल-बेहाल

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नई दिल्ली। बीते माह अक्टूबर की 18-19 तारीख को रात दो बजे पाकिस्तान सेना के द्वारा सिंध प्रांत के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस मुस्ताक मैहर के घर और ऑफिस को घेर लिया जाता है। उन्हें बख्तरबंद गाड़ियों में सेना के लोग लगभग घसीटते हुए किसी अज्ञात स्थान पर ले जाते हैं। उसके कुछ समय के बाद ही कराची के एक होटल में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी मरियम नवाज अपने पति कैप्टन मोहम्मद सफदर के साथ होटल के कमरे में थीं, सेना के जवान लगभग दरवाजे को तोड़ते हुए और उन्हें घसीटते हुए अपने साथ गिरफ्तार कर ले गए। उन पर जो आरोप लगाया गया, अपनेआप में वह एक हास्यास्पद घटना है कि पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना की मजार पर ये लोग इज्जत से पेश नहीं आए।

बलूचिस्तान की आजादी के आंदोलन से पहले इस घटना का जिक्र इसलिए भी आवश्यक हो जाता है, क्योंकि पहले ही यह साफ हो जाए कि पाकिस्तान की जो फौज है, वह पूरे पाकिस्तान की नहीं, सिर्फ वहां के पंजाब की है, और वह पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान के अंदर दहशतगर्दी के अलावा कुछ नहीं करती। सेना की हिमाकत देखिए कि पूर्व प्रधानमंत्री के दामाद और उनकी बेटी व एक प्रांत के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस को घसीटते हुए अपने साथ ले जाती है। इन सबसे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में सिविल सोसाइटी, वहां की पुलिस, वहां का मीडिया और न्यायपालिका की क्या हालत होगी?

सेना के दम पर कुछ टेस्ट ट्यूब बेबी टाइप के नेता हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में सेना के अधिकारियों के जूते साफ करने के अलावा वे कुछ नहीं करते। फिलहाल तो पाकिस्तान के सिंध प्रांत और पंजाबी फौज के बीच बवंडर मचा हुआ है, सेना और पुलिस आमने-सामने हो गई है। गृहयुद्ध जैसे आसार भी बन रहे हैं। पाकिस्तानी पंजाबी फौज सिंध में तो कुछ वर्षो से ही, लेकिन बलूचिस्तान में उसने शोषण 72 वर्षो से किया हुआ है।

सबसे बड़ा प्रांत : आज का जो पूरा पाकिस्तान है, उसके लगभग 44 प्रतिशत हिस्से में बलूचिस्तान है। ईरान के सिस्तान राज्य, पाकिस्तान के दक्षिण और पश्चिम तथा अफगानिस्तान के कई क्षेत्रों में बलूचिस्तानियों की संख्या वास करती है, लेकिन इनकी आबादी बहुत कम है। वर्तमान बलूचिस्तान में लगभग एक करोड़ तीस लाख की आबादी वास करती है, जबकि पूरी दुनिया में लगभग चार करोड़ बलूचिस्तानी हैं। बलूचिस्तान में कई कबीले हैं। इसमें प्रमुख बुगती, र्मी आदि हैं। प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण बलूचिस्तान के संपूर्ण क्षेत्र में यूरेनियम, गैस, कोयले और सोने के प्रचुर भंडार हैं। बलूचिस्तान स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख नेता नायला बलोच कादरी कहती हैं, पिछले तीन दशकों से चीन हमारे बलूचिस्तान से प्रत्येक दिन 30 किलो सोना लेकर जाता है, जिसका आज तक कोई हिसाब हमें नहीं मिला है।

बलूचिस्तान फ्रीडम मूवमेंट के प्रमुख नेता ब्रह्मदत्त बुगती कहते हैं, डेरा बुगती प्रांत के सुई क्षेत्र के अंदर गैस का प्रमुख स्नोत है, लेकिन आज तक बलूचिस्तान के लोग लकड़ियों पर ही पर खाना बनाते हैं, जबकि बलूचिस्तान की गैस से पाकिस्तान का पंजाब सूबा रोशन होता है। वह पूछते हैं, हमारे साथ ऐसा दोयम व्यवहार क्यों किया जाता है? इसका जवाब पाकिस्तानी फौज के पास नहीं है।

ब्रिटिश हुकूमत ने पूरे बलूचिस्तान को चार रियासतों में बांट दिया था- कलात, मकराना, लास बेला और खारान। कमाल देखिए अमीर यार खान, खान ऑफ कलात ने मोहम्मद अली जिन्ना को राज्य का कानूनी सलाहकार बनाया था। पाकिस्तान के जन्म से पहले 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान अधिकृत रूप से एक अलग देश बन चुका था। 14 अगस्त 1947 को जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान नाम के देश का जन्म होता है, जिसमें सिर्फ पश्चिम पंजाब और सिंध का कुछ इलाका था। यही मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहते हुए जो बलूचिस्तान के कानूनी सलाहकार थे, उनके रुपयों पर इनकी रोजी रोटी चलती थी, अपने पहले फौजी जनरल अब्दुल करीम खान के नेतृत्व में फौज भेज कर 1948 में 27 मार्च को बलूचिस्तान पर हमला कर दिया और कब्जा कर लिया। कलात के खान को धोखे से कराची बुला कर जबरदस्ती विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाए गए।

पाक मीडिया की चुप्पी : पाकिस्तानी मीडिया को बलूचिस्तान में आजादी है? यह अपने आप में एक सवाल है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी रोका टोका जाता है। वर्ष 2004 से अब तक मानवाधिकार संगठनों के अनुमान के अनुसार बलूचिस्तान में 20,000 नौजवानों को गायब कर दिया गया है। बलोच नौजवानों को महज शक के आधार पर देशद्रोह के आरोप लगाकर हेलीकॉप्टर से ले जाकर उन्हें नीचे फेंक दिए जाने तक की खबरें आ चुकी हैं। मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2003 से अभी तक लगभग 2,000 से ज्यादा बलोच महिलाओं के साथ पाकिस्तानी फौजों के द्वारा दुष्कर्म किया गया है।

मध्ययुगीन काल में जैसे बर्बर सेनाओं के द्वारा महिलाओं को दास के रूप में रखा जाता था, वैसे ही आइएसआइ और पाकिस्तानी फौज इन महिलाओं का प्रयोग अपने दास के रूप में करती है। वहां की फौज कितनी बर्बर है, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि पाक सेना के सेनाध्यक्ष रह चुके टिक्का खान को बलोच आंदोलनकारियों के कसाई के रूप में जाना जाता है।

बलूचिस्तान के क्वेटा में जन्मे बलोच नेता मजदाक दिलशाद बलोच कहते हैं, हमें भूगोल की किताब में पढ़ाया जाता है कि बलूचिस्तान के क्षेत्र में कोयला तो पैदा होता है, लेकिन उस कोयले की गुणवत्ता बेहतर नहीं होती है। अगर हमारे कोयले की क्वालिटी बेहतर नहीं है तो पाकिस्तान 1952 से लेकर अभी तक इतना कोयला लेकर जाता क्यों है? बलोच नेता गुलाम मोहम्मद बलोच को आइएसआइ ने उनके वकील कचलोक अली के चैंबर से सहयोगी लाला मुनीर बलूच के साथ गिरफ्तार किया और लगभग पांच दिन के बाद उनका क्षत-विक्षत शरीर चरवाहों ने देखा।

आइएसआइ और पाकिस्तानी फौज की धमकियों से तंग आकर गुलाम मोहम्मद बलोच के वकील और पूर्व मंत्री कचलोक अली को बलूचिस्तान छोड़कर जाना पड़ा और अब वह नार्वे में निर्वासित जीवन जी रहे हैं। पाकिस्तानी पंजाबी फोर्सेज ने बलूचिस्तान पर पांच बार संगठित रूप से नरसंहार किया। वर्ष 2003 से तो अनंत पीड़ा का दौर चल रहा है। बरहम बुगती के दादा अकबर बुगती जो बलूचिस्तान के प्रमुख नेता थे, उन्हें परवेज मुशर्रफ ने राकेट लॉन्चर से उड़वा दिया था। इसी प्रकार नायला कादरी बलोच, ब्रह्मदत्त बुगती आदि बलूचिस्तान छोड़ कर कनाडा और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में निर्वासित जीवन जी रहे हैं।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बीते दिनों ऐसी कई घटनाएं हुई हैं, जिनसे यह स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि वहां के निवासी पाक सेना द्वारा किए जा रहे शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद कर रहे हैं। वहां के निवासी समझने लगे हैं कि पाकिस्तान पूरी तरह से उनके संसाधनों का शोषण कर रहा है और बदले में उन्हें कुछ दे भी नहीं रहा है। बलोच जान गए हैं कि उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। कई बलोच नेता भारत सरकार से समर्थन की गुहार लगा चुके हैं, ताकि उन्हें इस शोषण से मुक्ति मिल सके, इस पर विचार करने का समय आ गया है।

पाकिस्तानी फौज की बर्बरता के कारण शिया अहमदिया जमात को मानने वाले लोगों में और सिंध बलूचिस्तान में गृह युद्ध की स्थिति बनी हुई है। भारत की दृष्टि से अगर देखें तो हमें बलूचिस्तान को आगे बढ़ कर यथासंभव सहयोग देना चाहिए। मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए बलूचिस्तान हमारा एक बेहतरीन रणनीतिक और राजनीतिक सहयोगी हो सकता है। हम आशा भी करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार से तीन साल पहले स्वतंत्रता दिवस पर बलूचिस्तान की स्वतंत्रता को जोड़ा, उससे वहां के स्वतंत्रता आंदोलनकारियों में उत्साह चरम पर था। उनकी आजादी की लड़ाई को विश्व पटल पर लाने के लिए उन्होंने नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया था। ऐसे में भारत को इस संबंध में व्यापक रणनीति के साथ आगे बढ़ते हुए बलूचिस्तान की आजादी का पूरा प्रयास करना चाहिए।

इस कार्य के लिए हमें ईरान को भी विश्वास में लेना होगा। शिया बहुल ईरान को यह समझ लेना चाहिए कि बहावी सुन्नी विचारधारा का समर्थक पाकिस्तान कभी भी उसका दिल से समर्थन नहीं कर सकता। इसलिए ईरान को भी बलूचिस्तानियों पर हमला नहीं करना चाहिए। हैरान कर देने वाली बात यह है कि बलूचिस्तान के स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए ईरान पाकिस्तान के बहकावे में हवाई हमले करता है। पाकिस्तान की फौज तो हेलीकॉप्टरों से बम गिराती ही रहती है। बलोच नेता मामा कादरी कहते हैं, आतंकवाद की मदरलैंड है पाकिस्तान। बलूचिस्तान के स्वतंत्रता आंदोलनकारी नेता निसार बलूच कहते हैं, पाकिस्तान आर्मी की निकृष्टता देखिए कि हमारे यहां 100 से ज्यादा कोरोना संक्रमित लोगों को जानबूझकर छोड़ रही है, ताकि हमारे बीच में संक्रमण फैले और आर्मी हमारे साथ मनमर्जी करे।

भारतीय समाचार पत्रों में इसकी कई बार चर्चा हो चुकी है कि लगभग 73 वर्ष पूर्व कथित भारतीय आजादी के समय यदि थोड़ी समझदारी और धैर्य दिखाया गया होता तो आज सिंध और बलूचिस्तान समेत पीओके तीनों ही भारत का हिस्सा होते। पाकिस्तान के साथ-साथ सीधे चीन भी बलूचिस्तानियों के आंदोलन को दबाने में पाक सेना का सहयोग कर रहा है। गुलाम कश्मीर से होते हुए आíथक गलियारा सीधे बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट तक जा रहा है। बलूचिस्तान के मामले में चीन पाकिस्तान को मूर्ख बना कर संगठित रूप से उसके संसाधनों को लूट रहा है। चीन अपने कच्चे और तैयार माल को सेंट्रल एशिया और यूरोप के देशों तक ग्वादर पोर्ट के माध्यम से पहुंचाना चाहता है। और यह ग्वादर पोर्ट सिर्फ व्यापार का मामला नहीं, चीन संपूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया में अपने सामरिक महत्व को अत्यधिक मजबूती देने में लगा हुआ है।

वहीं नायला कादरी बलोच कहती हैं, भारत में शरण से कहीं ज्यादा बेहतर यह होगा कि भारत की सरकार मुङो निर्वासित सरकार का गठन करने में मदद करे। उन्होंने आगे कहा, अगर भारत तिब्बत की निर्वासित सरकार को समर्थन दे सकता है, बांग्लादेश को मदद कर सकता है, तो हम बलूचिस्तानी एक अरसे से उनके पड़ोसी हैं और हमारे साथ जो अत्याचार हो रहा है, उसे देखते हुए भारत सरकार को चाहिए कि वह विश्व के कई देशों को विश्वास में लेकर हमारी निर्वासित सरकार का समर्थन करे। लिहाजा हमें नायला कादरी बलोच की बातों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

सौजन्य /अनिल झा, पूर्व सदस्य, दिल्ली विधानसभा व पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली विवि छात्र संघ ने जागरण के लिए लिखा। 

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