हिन्दू धर्म में स्त्रियों के ऐसे अनेक व्रत और त्यौहार होते हैं, जिनमें दिनभर उपवास के बाद रात्रि में जब चंद्रमा उदय हो जाता है, तब चंद्रदेव को अर्घ्य देकर और पूजा करके ही अन्न-जल ग्रहण किया जाता है। करवाचौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियां अपने अखंड सुहाग और पति के स्वास्थ्य व दीर्घायु होने की मंगल कामना हेतु करती हैं।
चंद्रमा की पूजा क्यों
शास्त्रों में उल्लेख है कि सौभाग्य, पुत्र, धन-धान्य, पति की रक्षा एवं संकट टालने के लिए चंद्रमा की पूजा की जाती है। करवाचौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का एक अन्य कारण यह भी है कि चंद्रमा औषधियों और मन के अधिपति देवता हैं। उसकी अमृत वर्षा करने वाली किरणें वनस्पतियों और मनुष्य के मन पर सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं। दिन भर उपवास के बाद चतुर्थी के चंद्रमा को छलनी की ओट में से जब नारियां देखती हैं तो उनके मन पर पति के प्रति अनन्य अनुराग का भाव उत्पन्न होता है।
उनके मुख व शरीर पर एक विशेष कांति आ जाती है। इससे महिलाओं का यौवन अक्षय, स्वास्थ्य उत्तम और दांपत्य जीवन सुखद हो जाता है। उपनिषद के अनुसार जो व्यक्ति चंद्रमा में पुरुषरूपी ब्रह्म को जानकार उसकी उपासना करता है। वह उज्जवल जीवन व्यतीत करता है। उसके सारे कष्ट दूर होकर सभी पाप नष्ट हो जाते हैं एवं वह लंबी आयु पाता है। चंद्रदेव की कृपा से उपासकों की इस लोक और परलोक में रक्षा होती है।
होता हैं मन का नियंत्रण
ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है,जो मन की चंचलता को नियंत्रित करता है। हमारे शरीर में दोनों भौहों के मध्य मस्तक पर चंद्रमा का स्थान माना गया है। यहाँ पर महिलाऐं बिंदी या रोली का टीका लगती हैं,जो चंद्रमा को प्रसन्न कर मन का नियंत्रण करती हैं। भगवान शिव के मस्तक पर अर्धचंद्र की उपस्थिति उनके योगी स्वरुप को प्रकट करती है। अर्धचंद्र को आशा का प्रतीक मानकर पूजा जाता है।
पूजा में इन बातों का रखें ध्यान-
– पूजा की थाली में रोली, चावल, दीपक, फल, फूल, पताशा, सुहाग का सामान और जल से भरा कलश रखा जाता है। करवा के ऊपर मिटटी की सराही में जौ रखे जाते हैं। जौ समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं। ध्यान रहे कि पूजा की थाली में खंडित चावल व माचिस न रखें।
– चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें। भूलकर भी अर्घ्य देते समय जल के छींटे पैरों पर न पड़ें,ऐसा होना शुभ नहीं माना जाता है।
– मिटटी का करवा गणेशजी का प्रतीक माना गया है,इससे चंद्रमा को अर्घ्य दें और दूसरे लोटे के पानी से व्रत खोलें।करवा साबुत और स्वच्छ होना चाहिए,टूटा या दरार वाला करवा पूजा में अशुभ माना गया है।
– जिस सुहाग चुन्नी को पहनकर आपने कथा सुनी, उसी चुन्नी को ओढ़कर चंद्रमा को अर्घ्य दें।
– इस दिन किसी की बुराई-चुगली न करें एवं लहसुन-प्याज वाला और तामसिक खाना न बनाएं।
सुहागिन महिलाओं का इंतजार खत्म हो गया है अैार सरगी के साथ उन्हाेंने आज तड़के करवा चौथ व्रत शुरू किया। आज दिनभर बिना पानी पिए निराहार रहकर महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखेंगी। शाम को वे चांद का दीदार कर व्रत तोड़ेंगी। वे दिन भर पूजा-अर्चना करेंगी और रस्में निभाएंगी। आज चंद्रोदय रात आठ बजकर 22 मिनट पर होगा।
कोविड-19 ने चाहे बहुत से सामाजिक कार्यक्रमों को रोक कर रख दिया है लेकिन उसके बावजूद महिलाओं में करवाचौथ को लेकर क्रेज दिख रहा है। शहर की मार्किंट मंगलवार को ग्राहकों से भरी नजर आई। इसके साथ ही मेंहदी लगाने वालों की भी चांदी होती दिखी। शहर के विभिन्न सेक्टरों में बनी मार्किंट के बीच मेंहदी लगाने वाले कलाकार मिले जो कि मेंहदी लगाने के मनमान दाम लेते दिखे वहीं महिलाओं को भी कोई भी कीमत देते हुए कोई हिचक या परेशानी नहीं हुई बल्कि सजना के लिए हर महिला खुशी-खुशी देती हुई दिखी।
रात आठ बजे 22 मिनट पद होगा चंद्रोदय-
पंडितों की माने तो चंद्रोदय रात आठ बजकर 22 मिनट पर होगा। इसके बाद महिलाएं चांद को देखकर व्रत पूरा कर सकती है और गणपति की पूजा करते हुए व्रत को खत्म कर सकती है।
महिलाओं के साथ पुरूषों में भी क्रेज
करवाचौथ का व्रत महिलाएं रखती है लेकिन शहर के कुछ पुरूष भी इस व्रत को रख रहे हैं। शहर में रहने वाले निर्मल सिंह इस साल 17वीं जबकि संजीव खट्टर 15 वीं बाद करवाचौथ रखेंगे। संजीव की माने तो हर व्रत महिलाओं के लिए जरूरी नहीं है उसे पुरूष भी पूरा कर सकते है। इस व्रत को रखकर हम पत्नी को और कुछ नहीं बल्कि एक प्यारा से एहसास तो दे ही सकते है। महिलाओं को एक व्रत रखने भर से खुशी के साथ जीवन भर की यादें भी जुट जाती है।