एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट बताते हैं कि उनके इंटरव्यू के लिए बाहर से एक टीम आई हुई थी. पीटर उस्तीनोव आए. उन लोगों ने अपना सर्वे किया. ये देखा कि खुली जगह पर इंटरव्यू करना चाहिए. वहां दीवाली के पटाखे पड़े हुए थे. उसको साफ करवा कर इंतजाम करवाया गया, उसमें कुछ वक्त लग रहा था.
दरअसल पीटर इंदिरा गांधी पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहे थे. इस बीच सुबह के आठ बजे इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन एक सफदरजंग रोड पहुंच चुके थे. धवन जब इंदिरा गांधी के कमरे में गए तो वो अपना मेकअप करा रही थीं. इंदिरा ने पलटकर उन्हें देखा. दीवाली के पटाखों को लेकर थोड़ी नाराजगी भी दिखाई. फिर अपना मेकअप पूरा कराने में लग गईं.
इंदिरा बाहर निकलीं और एक अकबर रोड की ओर चल पड़ीं
31 अक्टूबर की सुबह 09 बजकर पांच मिनट सबकुछ ठीक था. अचानक गोली की चलने की आवाज आई
आर के धवन उनके पीछे-पीछे चल रहे थे. दूरी करीब तीन से चार फीट रही होगी. तभी वहां से एक वेटर गुजरा. उसके हाथ में एक कप और प्लेट थी. वेटर को देखकर इंदिरा थोड़ा ठिठकीं. पूछा कि ये कहां लेकर जा रहे हो. उसने जवाब दिया इंटरव्यू के दौरान आइरिश डायरेक्टर एक-टी सेट टेबल पर रखना चाहते हैं. इंदिरा ने उस वेटर को तुरंत कोई दूसरा और अच्छा टी-सेट लेकर आने को कहा. ये कहते हुए वो आगे बढ़ गईं.
तेज कदमों से चलते हुए इंदिरा उस गेट से करीब 11 फीट दूर पहुंच गई थीं जो एक सफदरजंग रोड को एक अकबर रोड से जोड़ता है. नारायण सिंह ने देखा कि गेट के पास सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह तैनात था. ठीक बगल में बने संतरी बूथ में कॉन्सटेबल सतवंत सिंह अपनी स्टेनगन के साथ मुस्तैद था.
बेअंत ने अचानक सरकारी रिवॉल्वर निकाली और …
आगे बढ़ते हुए इंदिरा गांधी संतरी बूथ के पास पहुंची. बेअंत और सतवंत को हाथ जोड़ते हुए इंदिरा ने कहा-नमस्ते. बेअंत सिंह ने अचानक अपने दाईं तरफ से .38 बोर की सरकारी रिवॉल्वर निकाली. इंदिरा गांधी पर एक गोली दाग दी. आसपास के लोग भौचक्के रह गए. सेकेंड के अंतर में बेअंत सिंह ने दो और गोलियां इंदिरा के पेट में उतार दीं. तीन गोलियों ने इंदिरा गांधी को जमीन पर झुका दिया. उनके मुंह से एक ही बात निकली-ये क्या कर रहे हो. बेअंत ने क्या जवाब दिया ये शायद किसी को नहीं पता.
तभी संतरी बूथ पर खड़े सतवंत की स्टेनगन भी इंदिरा गांधी की तरफ घूम गई. जमीन पर नीचे गिरती हुई इंदिरा गांधी पर कॉन्सटेबल सतवंत सिंह ने एक के बाद एक गोलियां दागनी शुरू कर दीं. लगभग हर सेकेंड के साथ एक गोली. एक मिनट से कम वक्त में सतवंत ने स्टेनगन की पूरी मैगजीन इंदिरा गांधी पर खाली कर दी. स्टेनगन की तीस गोलियों ने इंदिरा के शरीर को भूनकर रख दिया.
पीएम के लिए एंबुलैंस तक नहीं मिली
हेड कांस्टेबल नारायण सिंह हो या आर के धवन. सब हक्के-बक्के थे. वक्त जैसे थम गया था. दिमाग में खून जमने जैसी हालत थी. तभी बेअंत सिंह ने आर के धवन की ओर देखकर कहा- हमें जो करना था वो हमने कर लिया. अब तुम जो करना चाहो, वो करो. वहां मौजूद सभी लोग एक झटके के साथ होश में आए.
पास में खड़े एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट ने तुरंत बेअंत और सतवंत को काबू में ले लिया. उनके हथियार जमीन पर गिर गए. उन्हें तुरंत पास के कमरे में ले जाया गया. एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट कहते हैं कि उस वक्त जो हो सकता था किया गया लेकिन हमला इतना अचानक और अनपेक्षित और झकझोर देने वाला था कि उसको रिकॉल करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है.
प्रधानमंत्री आवास पर एक एंबुलेंस हमेशा तैनात रहती थी. उस दिन भी थी लेकिन उसका ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था
अब तक छाता लेकर भौचक्क खड़ा रहा हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह भी हरकत में आया. उसने छाता फेंका और डॉक्टर को बुलाने के लिए दौड़ पड़ा. एक अकबर रोड के लॉन में इंदिरा का इंतजार करते हुए आइरिश डेलिगेशन को फायरिंग की आवाज अजीब सी लगी. फिर उन्हें लगा कि शायद फिर दीवाली के पटाखे फोड़े गए हैं. डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव वहीं पर इंदिरा का इंतजार करते रहे.
घबराई सोनिया वहां पहुंचीं
आर के धवन ने इंदिरा को उठाने की कोशिश की. तभी बुरी तरह घबराई सोनिया गांधी वहां पहुंचीं. तब तक कई दूसरे सुरक्षाकर्मी भी उस गेट के पास पहुंच चुके थे. धवन और सोनिया ने मिलकर इंदिरा को उठाया. आर के धवन बताते हैं कि मैंने उस वक्त एक एंबुलैंस जो वहां रहती थी, उसे बुलाया लेकिन एंबुलेंस नहीं आई. पता चला उसका ड्राइवर चाय पीने गया था.
तय हुआ कि कार से ही इंदिरा को एम्स लेकर जाया जाए. इंदिरा गांधी का सिर सोनिया ने अपनी गोद में रखा. उनके शरीर से लगातार खून बह रहा था.
एम्स में क्या हुआ
इंदिरा गांधी को लेकर एंबेसडर कार तेजी से एम्स की तरफ भागती जा रही थी. घड़ी वक्त दिखा रही थी 9 बजकर 32 मिनट. एम्स पहुंचते ही इंदिरा गांधी को वीआईपी सेक्शन लेकर जाया गया लेकिन वो उस दिन बंद था. धवन उन्हें इमरजेंसी की तरफ लेकर भागे वहां कुछ नौजवान डॉक्टर मौजूद थे. वो मरीज को देखते ही हड़बड़ा गए. तभी किसी का दिमाग काम किया. उसने तुरंत अपने सीनियर कार्डियोलॉडिस्ट को खबर दी. वो सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट कोई और नहीं डॉक्टर वेणुगोपाल थे.
डॉक्टर वेणुगोपाल बताते हैं कि हमारे सहयोगी डॉक्टर ने बताया कि आप नीचे आ जाइए इंदिरा गांधी को लेकर आए हैं. उनको देखना है. हम उसी ड्रेस में नीचे गए कैजुएलिटी में. जब गए थे तो हमने देखा वो एक ट्रॉली पर लेटी हुई हैं और काफी खून बह रहा है.
इंदिरा के शरीर का तापमान गिर रहा था
इमरजेंसी में तब तक दर्जन भर सीनियर डॉक्टर जुट चुके थे. पहली कोशिश ये कि लगातार बहते खून को रोका जाए. इंदिरा के शरीर का तापमान भी तेजी से नीचे गिर रहा था. डॉक्टरों ने तुरंत उनके फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाने वाली मशीन लगाई. ईसीजी मशीन दिखा रही थी उनका दिल मंद गति से धड़क रहा था. इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें हार्ट मशीन भी लगा दी हालांकि उन्हें इंदिरा की पल्स नहीं मिल रही थी. धीरे-धीरे इंदिरा की पुतलियां फैलती जा रही थीं. साफ था कि दिमाग में खून पहुंचना लगभग रुक गया है.
जब इंदिरा जी का लहूलुहान शरीर जब एम्स पहुंचा, तब तक उनका खून बहुत बह चुका था.
डॉक्टरों की टीम ने उन्हें आठवें फ्लोर के ऑपरेशन थिएटर में ले जाने का फैसला किया. हालांकि जिंदगी का कोई निशान उनके शरीर में नजर नहीं आ रहा था लेकिन फिर भी 12 डॉक्टरों की टीम चमत्कार की आस में उन्हें बचाने की कोशिश में जुट गई. इधर बीबीसी संवाददाता सतीश जैकब भी तेजी के साथ एम्स पहुंचे. उन्हें ये तो मालूम था कि एक अकबर रोड पर कुछ अनहोनी हुई है लेकिन वो अनहोनी क्या है ये पता करना उनके लिए बड़ी चुनौती थी.
सतीश जैकब बताते हैं कि मैं गाड़ी पार्क करके लिफ्ट से ऊपर गया. जैसे ही लिफ्ट से बाहर निकला तो देखा एक बुजुर्ग से डॉक्टर मुंह से कपड़ा हटा रहे थे. ऐसा लगता था कि मानो ओटी से आए हों. मैंने पूछा-सब ठीक तो है ना. जान तो खतरे में नहीं है ना. उन्होंने मुझे बड़े गुस्से में देखा. कहा कैसी बात करते हो. अरे सारा जिस्म छलनी हो चुका है तो मैंने उनसे कुछ नहीं कहा. वहीं आईसीयू के बाहर आर के धवन खड़े थे. चेहरे से ऐसा लग रहा था कि चिंता में हैं. उनसे मैने इतना कहा कि धवन साहब, ये तो बहुत बुरा हुआ. कैसे हुआ. उन्होंने कहा कि वो अपने घर से निकल पैदल आ रही थीं. वो पीछे-पीछे चल रहे थे, अचानक गोलियों की आवाज आई.
अब बीबीसी संवाददाता सतीश जैकब के हाथ में अब पुख्ता खबर थी- देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गोली मारी गई है.
डॉक्टरों ने आस छोड़ दी
डॉक्टर वेणुगोपाल कहते हैं कि पहले तो एक ही मकसद था. उनको बचाने के लिए जहां से खून बाहर आ रहा है उनको सारे को कंट्रोल करना था. वो 4-5 घंटे लगे उनको कंट्रोल करने में. इसी टाइम पर उनका हार्ट फंक्शन, ब्रेन फंक्शन ठीक करने के लिए मशीन पर लगाया. तापमान भी कम कर दिया उनको बचाने के लिए.
लेकिन इंदिरा का शरीर उनका साथ छोड़ रहा था. डॉक्टर बड़ी बारीकी के साथ उनके शरीर से सात गोलियां निकाल चुके थे वक्त निकलता जा रहा था. डॉक्टरों के सामने एक मुश्किल इंदिरा का ओ निगेटिव ब्लड ग्रुप भी था. भारत में सौ लोगों में केवल एक का ओ निगेटिव ब्लड ग्रुप होता है. इंदिरा को बचाने के लिए डॉक्टरों ने उन्हें 88 बोतल ओ-निगेटिव खून चढ़ाया.
फिर एम्स में डॉक्टरों ने तमाम कोशिश के बाद सारी उम्मीदें छोड़ दीं
लेकिन ये भी काम नहीं आया. एक तरह से इंदिरा सिर्फ मशीन के भरोसे जिंदा थीं. ये वो वक्त था जब डॉक्टरों ने भी हथियार डाल दिए. अब कुछ नहीं हो सकता था. उधर ऑपरेशन थिएटर के बगल वाले कमरे में एक और जद्दोजेहद चल रही थी. इंदिरा की मौत के बाद कौन बनेगा देश का प्रधानमंत्री. राजीव गांधी पश्चिम बंगाल में अपना दौरा रद्द कर दिल्ली पहुंच चुके थे.
इंदिराजी के निधन का आधिकारिक ऐलान
पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर टी डी डोगरा कहते हैं कि उस वक्त दोपहर के 2.10 हुए थे. मुझे बुलाकर बताया गया कि इंदिरा गांधी की मौत हो चुकी है. वहां इतनी ज्यादा भीड़ थी कि मुझे लगा लोग ऑपरेशन थिएटर का शीशा तोड़कर भीतर घुस आएंगे. उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और कुल 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं.
उनके शरीर पर गोलियों के 30 निशान थे और कुल 31 गोलियां इंदिरा के शरीर से निकाली गईं. (फाइल फोटो)
लोगों को संभालना मुश्किल हो रहा था
लोग इंदिरा की मौत की खबर से बुरी तरह सन्न थे. उतना ही ज्यादा फूट रहा था उनका गुस्सा. हालत ये थी कि विएना के दौरे से लौटकर सीधे एम्स पहुंचे राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर भी पथराव कर दिया गया.
ये बहुत बड़े तूफान की आहट थी. लोग रो रहे थे. बिलख रहे थे. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि इंदिरा को भी कोई ताकत हरा सकती है. यही वो भीड़ थी जो रोते-रोते जब थक गई तो उसकी जगह गुस्से ने ली. ये गुस्सा आगे क्या करने वाला था, इस बात का किसी को कोई एहसास नहीं था.
बीबीसी ने ही ब्रेक की खबर
बीबीसी संवाददाता सतीश जैकब तेजी के साथ अपने दफ्तर वापस लौट रहे थे. दिल में तूफान कि इतनी बड़ी खबर है. उनका मन कर रहा था कि जितनी जल्दी हो सके ऑफिस पहुंचें. जैकब ने बताया कि हमें जो कोई भी खबर देनी होती थी वो हम टेलीफोन पर देते थे. खबर हमारी आवाज में जाती थी. उस समय ना तो मोबाइल थे और ना ही एसटीडी. इंटरनेशनल कॉल बुक करानी पड़ती थीं. उस दिन मुझे जल्दी कनेक्ट करा दिया. मेरे पास वक्त नहीं था टाइप करने का तो मैंने कहा कि छोटी सी खबर है. मैंने कहा-अभी थोड़ी देर पहले भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर घातक हमला हुआ है.
ये खबर बीबीसी रेडियो पर कुछ देर बाद चली लेकिन जब चलनी शुरू हुई तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया. उस वक्त अमेरिका में आधी रात हो रही थी. जानकारी के मुताबिक राष्ट्रपति रीगन को आधी रात में इंदिरा की हत्या की खबर दी गई. अमेरिका से लेकर रूस तक में हड़कंप मच गया. इधर देश के तमाम शहरों में बड़े-बड़े अखबार हरकत में आ चुके थे. ज्यादातर पत्रकारों को उनके घर से बुला लिया गया.
31 अक्टूबर 1984 की शाम चार बजे तक दूरदर्शन और आकाशवाणी पर इंदिरा की हत्या की कोई खबर नहीं थी (फाइल फोटो)हालत ये थी कि अखबार की कॉपी बाजार में पहुंचते की हाथों-हाथ बिक रही थी लेकिन दुनियाभर में इस खबर का डंका पीटने वाले सतीश जैकब ने खुद ये बात आकाशवाणी के एक अधिकारी से पूछी.
सतीश जैकब ने बताया- वो कहने लगे भाई मैं क्या करूं. इतनी बड़ी खबर है और जब तक कि कोई सीनियर मिनिस्टर या अधिकारी इसको अप्रूव नहीं कर देता मैं इसको ब्रॉडकास्ट नहीं कर सकता. मैंने पूछा कि क्यों नहीं कराया अप्रूव तो उन्होंने कहा कि प्रेसिडेंट यमन में हैं. होम मिनिस्टर प्रणब मुखर्जी राजीव के साथ पश्चिम बंगाल में. उनका कहना था दिल्ली में कोई भी मिनिस्टर नहीं है,मैं क्या करूं.
बीबीसी के लिए ये भारत में बहुत अहम दिन था. पूरा देश इंदिरा की हत्या की खबर बार-बार सुनने के लिए जैसे बीबीसी रेडियो से चिपक गया था. खुद पश्चिम बंगाल से दिल्ली तक के रास्ते में राजीव गांधी भी बीच-बीच में बीबीसी पर ही खबरें सुनते आ रहे थे.
जल उठी थी दिल्ली
सुबह से लेकर अब तक बहुत कुछ बदल चुका था. एम्स में एक अजीब सा तनाव बढ़ता जा रहा था. सैकड़ों की तादाद में वहां सिख भी आए थे. पहले इंदिरा गांधी अमर रहे के नारे भी लगा रहे थे लेकिन धीरे-धीरे वो एम्स से हटने लगे. जैसे-जैसे लोगों को ये पता चला कि इंदिरा की हत्या उनके ही दो सिख गार्डों ने की है. नारों का अंदाज भी बदलने लगा. राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की कार पर पथराव के बाद इन नारों की गूंज एम्स के आसपास के इलाकों में भी फैलती जा रही थी.
दोपहर ढलते-ढलते एम्स से वापस लौटते लोगों ने कुछ इलाकों में तोड़फोड़ शुरू कर दी थी. हॉस्पिटल के पास से गुजरती हुई बसों में सिखों को खींच-खींच कर बाहर निकाला जाने लगा. दिल्ली में बरसों से रह रहे इन लोगों को अंदाजा भी नहीं था कि कभी उनके खिलाफ गुस्सा इस कदर फूटेगा. धीरे-धीरे बसों से सिखों को खींचकर निकालने का सिलसिला पूरी दिल्ली में फैल गया लेकिन लोगों का गुस्सा यहीं नहीं थमा। पहला हमला 5 बजकर 55 मिनट पर हुआ विनय नगर इलाके में. यहां एक सिख लड़के को बुरी तरह पीटने के बाद उसकी मोटरसाइकिल में आग लगा दी गई. इस आग में पूरी दिल्ली धधकने जा रही थी.
सन्नाटा पसर गया
उस वक्त के हालात का अंदाजा लगना मुश्किल है. एक के बाद एक दुकानों के शटर गिर रहे थे. इंदिरा की मौत की घोषणा के बाद पूरे के पूरे बाजारों में सन्नाटा पसर गया. सड़कों पर चल रही गाड़ियां ना जाने कहां गायब हो गईं. ऐसा लगा जैसे कर्फ्यू लगा दिया गया हो लेकिन इस सन्नाटे के बीच सिख विरोधी नारे लगातार बढ़ते जा रहे थे. 31 अक्टूबर के सूरज ने दिन भर में बहुत कुछ देख लिया था. डूबते सूरज की लाल रोशनी भी धीरे-धीरे खत्म हो रही थी लेकिन सूरज के डूबने के बाद भी लाल रोशनी खत्म नहीं हुई. जलते हुए घरों से उठती हुई रोशनी…वो भी तो लाल ही थी.