पीएफआई का कच्चा चिट्ठा:इस संगठन ने केरल में छात्राओं को जींस पहनने पर ईशनिंदा का दोषी ठहराया, पैगम्बर पर सवाल पूछने पर एक प्रोफेसर के हाथ काटे
बाबरी विध्वंस के बाद एनडीएफ बनी, जो बाद में पीएफआई बन गई, इस पर धर्मांतरण, सांप्रदायिक दंगे फैलाने और लव जिहाद जैसे आरोप हैं इसी साल दिल्ली दंगों के दौरान भी इसका नाम चर्चाओं में रहा है, आरोप लगे थे कि नागरिकता कानून के विरोध के हिंसक हो जाने के पीछे इसकी साजिश रही है पीएफआई के कई लोग हत्याओं-दंगों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार हो चुके हैं और इस संगठन पर हथियार रखने, उनका प्रशिक्षण देने, बम बनाने के आरोप लगे हैं
नई दिल्ली। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम एक बार फिर से सुर्खियों में है। केरल के इस संगठन पर इन दिनों उत्तर प्रदेश में दंगों की साजिश रचने के आरोप लग रहे हैं। हाथरस मामले की जांच के दौरान ही प्रदेश पुलिस ने दावा किया है इस घटना के बहाने पीएफआई पूरे प्रदेश में जातीय हिंसा भड़काना चाहता था और इसके लिए उसे विदेशों से पैसा भी मिला था।
यह पहली बार नहीं है पीएफआई पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं। इसी साल दिल्ली में हुए दंगों के दौरान भी इस संगठन का नाम बार-बार चर्चाओं में रहा है। उस दौरान भी आरोप लगे थे कि नागरिकता कानून के विरोध के हिंसक हो जाने के पीछे पीएफआई की साजिश रही है। इस संगठन को प्रतिबंधित करने की मांग भी कई बार उठ चुकी है और कई राज्य सरकारें इसके लिए केंद्र सरकार को पत्र भी लिख चुकी हैं।
हालिया मामले में नाम आने के बाद पीएफआई के प्रवक्ता ने इसे आधारहीन बताते हुए कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार अपनी नाकामी से ध्यान हटाने के लिए ऐसे बेबुनियाद आरोप लगा रही है। लेकिन, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पीएफआई का ऐसे गम्भीर आरोपों से बहुत पुराना रिश्ता रहा है। पीएफआई पर लगते रहे तमाम आरोपों को समझने से पहले इस संगठन के इतिहास पर एक नजर डालते हैं।
90 के दशक की शुरुआत की बात है। राम मंदिर आंदोलन उस दौरान चरम पर था। दशक के शुरुआती सालों में ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी। इसके बाद देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। इसी दौर में केरल में एक संस्था का गठन हुआ, जिसका नाम था नैशनल डेवेलप्मेंट फ्रंट (एनडीएफ)।
इसकी स्थापना का उद्देश्य था मुस्लिम समुदाय पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ लड़ना और समुदाय के सामाजिक व आर्थिक कल्याण के लिए काम करना।
स्थापना के साथ ही एनडीएफ तेजी से लोकप्रिय हुआ, लेकिन साथ-साथ विवादों से भी घिरता चला गया। इस संस्था पर जबरन धर्मांतरण करवाने के आरोप लगने लगे। इसकी पहचान कट्टर और सांप्रदायिक संस्था की बनने लगी और हिंसक घटनाओं में भी इसकी भूमिका का जिक्र होने लगा।
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, एनडीएफ ने केरल में मुस्लिम समुदाय के लोगों को सीपीएम और आरएसएस के खिलाफ हिंसक लड़ाई का भी प्रशिक्षण दिया और इन संगठनों से लड़ने को जिहाद बताया गया। इस रिपोर्ट में आतंकी संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’ की केरल इकाई के प्रमुख राशिद अब्दुल्लाह के हवाले से यह भी लिखा गया था कि एनडीएफ की स्थापना करने वालों का मुख्य उद्देश्य ‘अल्लाह की राह पर चलते हुए जिहाद करना’ था।
21 सदी के पहले दशक की शुरुआत में ही एनडीएफ कई तरह के गंभीर आरोपों से घिरने लगा था। इनमें एक बड़ा मामला साल 2002 का था, जब केरल में आठ हिंदू लड़कों की हत्या कर दी गई थी। इस घटना की जांच हुई तो एनडीएफ की इसमें संलिप्तता की बात सामने आई। अब एनडीएफ पर पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आईएसआई से मिलीभगत और उनके इशारे पर काम करने के भी आरोप लगने लगे।
साल 2006 में एनडीएफ का दो अन्य संगठनों के साथ विलय हो गया। ये संगठन थे ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’ और ‘मनिथ नीति पासरई’। इसी विलय ने पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को जन्म दिया। आगे चलकर कई अन्य इस्लामिक संगठन भी इससे जुड़ते गए पीएफआई की पहुंच देश के कई राज्यों तक हो गई।
पीएफआई का आकार और इसकी पकड़ जैसे-जैसे बढ़ती गई वैसे-वैसे विवादों से इसका नाता भी गहराता ही रहा। हत्या, लूट, अपहरण, धर्मांतरण, सांप्रदायिक नफ़रत फैलाना, दंगे भड़काना, धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देना और लव जिहाद जैसे तमाम आरोप पीएफआई पर लगते चले गए।
साल 2011 में प्रकाशित हुई वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार पीएफआई से जुड़े लोगों ने केरल में छात्राओं को जींस पहनने या हिजाब न रखने के लिए ईशनिंदा का दोषी ठहराया और उन्हें लगातार धमकी दी गई। ईशनिंदा के ऐसे ही एक और मामले में भी पीएफआई का नाम आया जिसमें पैगम्बर मुहम्मद पर सवाल पूछने के चलते एक प्रोफेसर का हाथ काट दिया गया था।
पीएफआई पर लगने वाले आरोपों का सिलसिला यहीं नहीं थमता। इस संगठन पर एक बड़ा आरोप यह भी लगता रहा है कि ये उत्तर प्रदेश में कभी बने संगठन सिमी का ही नया संस्करण है। सिमी यानी ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया’ का गठन 1970 के दशक में अलीगढ़ में हुआ था, लेकिन आगे चलकर भारत सरकार ने इसे आतंकी संगठन घोषित करते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दया था।
आरोप लगते रहे हैं कि सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद इसके कई सदस्य पीएफआई में शामिल हो गए। हालांकि, पीएफआई लगातार इन तमाम आरोपों को नकारता रहा है लेकिन ऐसी भी कई घटनाएं हुई हैं जब पुलिस ने पीएफआई के कार्यालयों या इससे जुड़े लोगों के पास से कई तरह के हथियार बरामद किए हैं।
समय-समय पर पीएफआई से जुड़े कई लोग हत्याओं और दंगों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार हो चुके हैं और कई बार इस संगठन पर प्रतिबंधित हथियार रखने, उनका प्रशिक्षण देने, बम बनाने और ऐसा साहित्य वितरित करने के आरोप लग चुके हैं जो सांप्रदायिक तनाव फैलाने में मददगार हो।
अपने गठन से आज तक पीएफआई पर दर्जनों बार हिंसा भड़काने और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के आरोप लग चुके हैं। इनमें से कई मामले तो बेहद चर्चित भी रहे हैं। एक ही एक मामला 2017 का भी है जब अखिला अशोकन नाम की एक लड़की के धर्मांतरण का मुद्दा राष्ट्रीय सुर्खियों में शामिल हुआ था।
अखिला ने इस्लाम धर्म अपना लिया था, जिसके बाद वह हादिया नाम से जानी गई। हादिया की एक मुस्लिम नौजवान से शादी भी हुई और इस मामले में आरोप लगे पीएफआई ने ही हादिया का जबरन धर्मांतरण करने के बाद उसकी शादी एक मुस्लिम नौजवान से करवाई है। यह मामला इतना विवादित हुआ था कि इसकी जांच एनआईए को सौंप दी गई थी।
एनआईए ने अपनी जांच में पाया कि हादिया की ही तरह दर्जनों लड़कियों का धर्मांतरण करके उनकी शादी किसी मुस्लिम से करवाई है और ऐसे कई मामलों में पीएफआई ने सक्रिय भूमिका निभाई है। लेकिन ऐसे कोई सबूत एनआईए के हाथ नहीं लगे जिससे पीएफआई को जबरन धर्मांतरण का सीधा दोषी साबित किया जा सकता हो।
पीएफआई पर केरल में कई हत्याओं के आरोप भी हैं। दिलचस्प है कि इन हत्याओं में लेफ्ट और राइट दोनों के ही लोग शामिल हैं। वामपंथी राजनीतिक दलों के साथ ही दक्षिणपंथी आरएसएस जैसे संगठन और पीएफआई के बीच दशकों से तनातनी रही है। इन सभी संगठनों के बीच प्रदेश में खूनी संघर्ष भी हुए हैं जिनके आरोप ये तीनों संगठन एक-दूसरे पर लगाते रहे हैं।
हाल की घटनाओं का जिक्र करें तो नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों से लेकर दिल्ली में हुए दंगों और श्रीलंका में हुए बम धमाकों तक में पीएफआई का नाम सामने आता रहा है। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने केंद्र सरकार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को बढ़ने के लिए पीएफआई ने विदेशों से पैसा लिया है और देश के कई हिस्सों में यह पैसा पहुंचाया है।
इन तमाम तरह के आरोपों से इतर पीएफआई का नाम सामाजिक कार्यों और प्राकृतिक आपदाओं के पीड़ितों की मदद करने के लिए सुर्खियों में शामिल होता रहा है। पीएफआई से जुड़े यह दावा भी करते हैं कि उनका संगठन दलितों और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए मुख्यतः आर्थिक और सामाजिक लड़ाई को ही अपना उद्देश्य मानता है।
कई जानकार यह भी मानते हैं कि पीएफआई पर हिंसा में शामिल होने के जैसे आरोप लगते हैं वैसे ही आरोप प्रदेश में आरएसएस पर भी लगते रहे हैं। इन लोगों का मानना है कि आरएसएस की ही तरह पीएफआई भी एक धर्म विशेष के लिए काम कर रहा है और दोनों ही संगठन सांप्रदायिक पैमानों पर एक-दूसरे के पूरक हैं।
दोनों ही विवादों और गम्भीर आरोपों से अछूते नहीं हैं लेकिन दोनों के ही खिलाफ कभी इतने पुख़्ता सबूत नहीं मिले हैं कि इन पर प्रतिबंध लगाया जा सके।