शिअद ने BJP से नाता तोड़ा तो पंजाब SGPC चुनाव के संंकेत, गुरुद्वारा चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त की नियुक्ति

चंडीगढ़, । भाजपा और अकाली दल के बीच नाता टूटते ही केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रिटायर जस्टिस एसएस सारों को गुरुद्वारा चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त नियुक्त करने की मंजूरी दे दी है। जस्टिस सारों इस समय पंजाब रेवेन्यू कमीशन के चेयरमैन हैं। गुरुद्वारा चुनाव आयोग के लिए मुख्य आयुक्त की नियुक्ति होते ही पंजाब में शिरोमणि सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इसके साथ ही राजनीतिक हलकों में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच सियासी टकराव बढ़ने की भी चर्चा छिड़ गई है।

दरअसल श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार भाई रंजीत सिंह और आम आदमी पार्टी के नेता विपक्ष के पूर्व नेता एच एस फूलका लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं कि एसजीपीसी के चुनाव तुरंत करवाए जाएं। पूर्व एसजीपीसी मेंबर अमरिंदर सिंह का उनका आरोप है कि चूंकि तब शिरोमणि अकाली दल एनडीए सरकार में भागीदार था इसलिए वह भाजपा पर दबाव बनाकर इन चुनाव को रोके हुए था। अब नाता टूट गया है इसलिए केंद्र सरकार ने चुनाव करवाने की तैयारी कर ली है।

शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने भाजपा से नाता तोड़ने के बाद जिस तरह से अपने भाषणों में केंद्र सरकार को चुनौती दी है, उससे लगता है कि भाजपा ने इसे स्वीकार कर लिया है। श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के कारण शिअद पंजाब में निशाने पर आ गया था। 2017 के आम चुनाव के बाद पार्टी के कई बड़े नेताओं के सुखबीर का साथ छोड़ देने से शिअद की हालत 2011 वाली नहीं रही है। इन नेताओं की पंथक मुद्दों पर अच्छी पकड़ थी। श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूपों के गायब होने के मामले में भी पार्टी की सीनियर लीडरशिप कटघरे में है। ऐसे में अगर एसजीपीसी के चुनाव हो जाते हैं तो पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है।

दूसरी ओर, शिरोमणि अकाली दल से नाता टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी को भी 2022 में किसी दल के साथ की जरूरत होगी। इसलिए एसजीपीसी के चुनाव पार्टी के लिए भी एक परीक्षा की घड़ी होंगे, यानी शिरोमणि अकाली दल जीते या उनके विरोधी, पार्टी के पास उनके साथ चुनाव से पहले या चुनाव के बाद का गठबंधन करने के लिए रास्ता खुला रहेगा।

दस साल बाद होंगे एसजीपीसी चुनाव

एसजीपीसी के पिछले चुनाव 18 सितंबर 2011 को हुए  थे और अब नए चुनाव 2021 में ही होने के आसार हैं।  इससे पहले गुरुद्वारा चुनाव आयोग को सीटों की नए सिरे से हदबंदी, वोटर सूची आदि तैयार करने के लिए समय लगेगा। साल 2011 में जब चुनाव हुए तो उसी समय पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सहजधारी मतदाताओं को मतदान में हिस्सा लेने के मामले में अपना फैसला सुना दिया था और कहा कि सहजधारी वोटर मतदान में हिस्सा ले सकते हैं। एसजीपीसी ने इसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसे स्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला न आने तक पुराने बोर्ड को ही काम करने की अनुमति दे दी।

साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया लेकिन केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि सहजधारी सिख की परिभाषा को प्रशासनिक निर्देशों के अनुसार निर्धारित नहीं किया जा सकता उसके लिए संसद में संशोधन बिल लाया जाए। इसके साथ ही कहा कि संशोधन के बाद 2011 में चुना हुआ बोर्ड नए सिरे से काम कर सकता है। 2016 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार केंद्र सरकार ने सहजधारी यानी जिसने केश, दाढ़ी आदि नहीं रखा हुआ को सिख की परिभाषा से बाहर कर दिया। सिख संगठनों और अकाली दल के बीच नए सिरे से चुनाव करवाने को लेकर भी लंबे समय से आरोप प्रत्यारोप चल रहे हैं।

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